चैप्टर 11 दिलेर मुज़रिम इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़

Chapter 11 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi

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प्रोफ़ेसर की शरारत

मरीज के कमरे का दृश्य कुछ हद तक ऑपरेशन रूम में बदल चुका था। नर्स और डॉक्टर सफेद कपड़ों में धीरे-धीरे इधर-उधर आ जा रहे थे। ऑपरेशन टेबल, जो सिविल हस्पताल से यहाँ लाई गई थी, कमरे के बीच में पड़ी थी। मरीज को उस पर लिटाया जा चुका था। कमरे में बहुत ज्यादा वॉट वाले बल्ब जला दिए गए थे। चिलमचियों में गर्म और ठंडा पानी रखा हुआ था। उसी के करीब एक दूसरी मेज़ पर अजीबोगरीब किस्म के ऑपरेशन के औजार और रबड़ के दस्ताने पड़े हुए थे।

डॉक्टर शौकत कुछ देर पहले हुए हादसे को बिल्कुल भुला चुका था। अब उसका ध्यान सिर्फ ऑपरेशन की तरफ था। एक आदमी की ज़िन्दगी खतरे में थी। उसने सारी कोशिशें कर देखने का फैसला कर लिया। नौजवान डॉक्टर यह भी अच्छी तरह समझता था कि अगर उसे इस केस में कामयाबी मिल गई, तो उसकी शख्सियत कहीं की कहीं जा पहुँचेगी। कामयाबी उसे तरक्की के जीनों पर ले जाएगी और नाकामी! लेकिन नहीं…उसके ज़ेहन में नाकामी के ख़याल का नामोनिशान भी न था। वह एक काबिल डॉक्टर की तरह इत्मीनान में नज़र आ रहा था। डॉक्टर तौसीफ़ भी कमरे में मौजूद था, लेकिन उसकी हैसियत एक तमाशाई जैसी थी। वह देख रहा था और हैरान था कि यह नौजवान लड़का किस तरह सुकून और इत्मीनान के साथ अपनी तैयारियों में जुटा है। ऐसे अवसरों पर  इतना इत्मीनान तो उसने अच्छे से अच्छे काबिल डॉक्टरों के चेहरे पर भी नहीं देखा था। वह दिल ही दिल में उसकी तारीफें कर रहा था।

बाहर बरामदे में नवाब साहब की बहन और नज़मा बैठी थी। दोनों परेशान नज़र आ रही थीं। कुंवर सलीम टहल-टहल कर सिगरेट पी रहा था।

“मम्मी क्या हुआ कामयाब हो जाएगा?” नज़मा ने बेताबी से कहा, “मुझे यकीन है कि वह ज़रूर कामयाब हो जाएगा। लेकिन कितनी देर लगेगी?”

“परेशान मत हो बेटी।” बेगम साहिबा बोली, “मेरा ख़याल है कि कई घंटे लगेंगे। हो सकता है सुबह हो जाए। इसलिए हम लोगों का यहाँ इस तरह बैठना ठीक नहीं। क्यों न हम ड्राइंग रूम में चल कर बैठें। कॉफ़ी अब तक तैयार हो गई होगी। सलीम क्या आज तुम कॉफ़ी न पियोगे?”

“कॉफ़ी का किसे होश है फूफी साहिबा!” सलीम ने सिगरेट को बरामदे में पीछे भी कालीन पर गिराकर पैर से रगड़ते हुए कहा।

“तुम सारे कालीनों का सत्यानाश कर दोगे।” बेगम साहिबा ने नाक-भौं सिकोड़कर कहा, “क्या सिगरेट को दूसरी तरफ नहीं फेंक सकते।”

“जहन्नुम में गया कालीन..!” वह तेज लहज़े में बोला “मेरा दिमाग इस वक्त ठीक नहीं है।”

“औरत न बनो।” बेगम साहिबा ने ताना मारते हुए कहा, “अभी कितनी देर की बात है कि तुम मेरे मना करने के बावजूद ऑपरेशन की हिमायत कर रहे थे। अपनी हालत को संभालो। तुम्हें तो हम लोगों को दिलासा देना चाहिए।”

“मैं कोशिश करता हूँ कि खुद को संभाल लूं, लेकिन यह मुमकिन नहीं। मुझे कर्नल तिवारी की बात याद आ रही है जिसने कहा था कि बचने की उम्मीद नहीं। आखिर यह बेवकूफ लड़का किस उम्मीद पर ऑपरेशन कर रहा है। मेरा मतलब यह है कि वह खतरे को जल्द से जल्द करीब आने की कोशिश कर रहा है।”

“नहीं कुंवर साहब!” डॉक्टर तौसीफ़ ने बीमार के कमरे से निकलते हुए कहा, “मुझे यकीन होता जा रहा है कि वह जल्द से जल्द नवाब साहब को ठीक कर देगा।”

“मैं आप का मतलब नहीं समझा।” सलीम उनकी तरफ घूमकर बोला, “क्या ऑपरेशन शुरू हो गया?”

“नहीं अभी वे लोग तैयारी कर रहे हैं और मेरा वहाँ कोई काम भी नहीं है। मैं इसलिए यहाँ चला आया।” डॉक्टर तौसीफ़ ने मुस्कुराते हुए कहा।

“आप बहुत अच्छे हैं डॉक्टर…मम्मी तो काफ़ी सब्र वाली है, लेकिन शायद मुझे और सलीम को जल्द से जल्द डॉक्टरी मदद की जरूरत पेश आएगी। मुझे यह सुनकर खुशी हुई कि आप इस नौजवान डॉक्टर की कामयाबी पर इतना यकीन रखते हैं। वह कितना संजीदा और मुतमईन है।” नज़मा बोली।

“और साथ ही साथ काफ़ी खूबसूरत भी।” सलीम ने मुँह बनाते हुए कहा।

“तुम क्या बक रहे हो।” सलीम बेगम साहिबा तेजी से बोली और नज़मा ने शर्मा का सिर झुका लिया।

“माफ कीजिएगा फूफी साहिबा, मैं बहुत परेशान हूँ।” सलीम यह कहकर टहलता हुआ बरामदे के दूसरे किनारे तक चला गया।

“कुंवर साहब! मेरे ख़याल से बिजली का इंतज़ाम बिल्कुल ठीक होगा। शायद डायनेमो की देखभाल आप ही करते हैं।” डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा।

“जी हाँ क्यों…डायनेमो बिल्कुल ठीक चल रहा है, लेकिन यह पूछने का मतलब?” सलीम ने डॉक्टर को घूरते हुए पूछा।

“मतलब साफ है।” डॉक्टर तौसीफ़ ने कहा, “अगर डायनेमो फेल हो गया, तो अंधेरे में ऑपरेशन किस तरह होगा। एक बड़े ऑपरेशन के लिए काफ़ी एहतियात की ज़रूरत होती है।”

“वैसे डायनेमो फेल होने का कोई चांस नहीं, लेकिन अगर फेल ही हो गया, तो मैं क्या कर सकूंगा। उफ़! यह खतरनाक है। अगर वाकई ऐसा हुआ तो डॉक्टर शौकत बड़ी मुसीबत में पड़ जाएगा। नहीं-नहीं…मेरे ख़ुदा, ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता।” कुंवर सलीम के चेहरे पर बेचैनी के भाव पैदा हो गए।

इतने में एक नौकर दाखिल हुआ है।

“क्यों क्या है?” सलीम ने उससे पूछा।

“प्रोफेसर साहब नीचे खड़े हैं। आपको बुला रहे हैं।” नौकर ने कहा।

“जाओ भाई नीचे जाओ।” बेगम साहिबा जल्दी से बोली, “कहीं वह पागल यहाँ न चला आये।”

“मुझे हैरत है कि वह इस वक्त यहाँ किसलिए आया है।” सलीम ने नौकर से कहा, “क्या तुमने उसे ऑपरेशन के बारे में नहीं बताया।”

“हुजूर मैंने उन्हें हर तरह समझाया। लेकिन भी सुनते ही नहीं।”

“क्या चलो देखूं क्या बकता है।” सलीम ने कहा, “इस पागल से तो मैं तंग आ गया हूँ।”

सलीम नीचे आया। प्रोफेसर बाहर खड़ा था। उसने सर्दी से बचने के लिए सिर पर मफ़लर लपेटा रखा था और चेस्टर का कॉलर उसके कानों के ऊपर तक चढ़ा था। इन सब बातों के बावजूद वह सर्दी की वजह से सिकुड़ा जा रहा था।

“क्यों प्रोफेसर क्या बात है?” सलीम ने उसके करीब पहुँचकर पूछा।

“एक चमकदार सितारा दक्षिण की तरफ निकला है।” प्रोफेसर ने खुशमिजाज लहज़े में कहा, “अगर तुम अपनी मालूमात में बढ़ोतरी करना चाहते हो, तो मेरे साथ चलो।”

“जहन्नुम में गई मालूमात।” सलीम ने झुंझला कर कहा, “इतनी सी बात कर तुम दौड़े आए हो?”

“बात तो कुछ दूसरी है। मैं तो एक बहुत ही हैरतनाक चीज दिखाना चाहता हूँ। ऐसी चीज तुम्हें कभी न देखी होगी।” उसने सलीम का हाथ पकड़कर उसे पुरानी कोठी की तरफ ले जाते हुए कहा।

सलीम प्रोफेसर के साथ चलने लगा। लेकिन उसने लोहे की उस मोटी सी सलाख को न देखा, जो प्रोफ़ेसर अपनी आस्तीन में छुपाए हुए था।

खट..! थोड़ी दूर चलने के बाद प्रोफेसर ने वह सलाख सलीम के सिर पर दे मारी। सलीम बगैर आवाज निकाले चकराकर ‘धम्म’ से जमीन पर आ रहा। प्रोफेसर हैरतअंगेज फुर्ती के साथ झुका और उसने बेहोश सलीम को उठाकर अपने कंधे पर डाल लिया, बिल्कुल उसी तरह जैसे कोई हल्के-फुल्के बच्चे को उठा लेता है। वह तेजी से पुरानी कोठी की तरफ जा रहा था। यह सब इतनी जल्दी और खामोशी से हुआ कि वह नौकर जो हॉल में सलीम का इंतज़ार कर रहा था, यही सोचता रह गया कि अब सलीम प्रोफेसर को उसकी कोठी में धकेल कर वापस आ रहा होगा।

पुरानी कोठी में पहुँचकर प्रोफेसर ने बेहोश सलीम को एक कुर्सी पर डाल दिया और झुककर सिर के उस हिस्से को देखने लगा, जो चोट लगने की वजह से फूल गया था। उसने बहुत ही इत्मीनान से इस तरह सिर हिलाया, जैसे उसे यकीन हो गया हो कि वह अभी काफ़ी देर तक बेहोश रहेगा। फिर इस पागल बूढ़े ने सलीम को पीठ पर लादकर मीनार पर चढ़ना शुरू किया। ऊपर के कमरे में अंधेरा था। उसने टटोलकर सलीम को एक बड़े सोफे पर डाला और मोमबत्ती जलाकर ताक पर रख दी।

हल्की रोशनी में चेस्टर के कॉलर के साये की वजह से उसका चेहरा और ज्यादा खौफ़नाक मालूम होने लगा था। उसने सलीम को सोफे से बांध दिया। फिर वह दूरबीन के करीब वाली कुर्सी पर बैठ गया और दूरबीन के ज़रिये नवाब साहब के कमरे का जायज़ा लेने लगा। नवाब साहब के कमरे की खिड़कियाँ खुली हुई थी। डॉक्टर और नर्सों ने अपने चेहरे पर सफेद नकाब लगा रखे थे।

डॉक्टर शौकत खौलते हुए पानी से रबड़ के दस्ताने निकालकर पहन रहा था। वह सब ऑपरेशन की मेज के पास खड़े थे। ऑपरेशन शुरू होने वाला था।

“बहुत खूब।” प्रोफ़ेसर बड़बड़ाया, “मैं ठीक वक्त पर पहुँच गया। लेकिन आखिर इस सर्दी के बावजूद उन्होंने खिड़कियाँ क्यों नहीं बंद की।”

नवाब साहब की कोठी के चारों तरफ अजीब तरह की खामोशी छाई हुई थी। छोटे से लेकर बड़े तक को अच्छी तरह मालूम था कि नवाब साहब के कमरे में क्या हो रहा है। बेगम साहिबा का सख्त हुक्म था कि किसी किस्म का शोर न होने पाए। लोग इतनी खामोशी से चल रहे थे, जैसे ख्वाब में चल रहे हों।

कोठी में नौकरानियाँ पंजों के बल चल रही थीं। घर के सारे कुत्ते बाग के आखिरी किनारे पर एक खाली झोपड़े में बंद कर दिए गए थे, ताकि कोठी के करीब शोर न मचा सकें।

प्रोफेसर दूरबीन पर झुका हुआ चारों तरफ से बेखबर बीमार के कमरे का मंज़र देख रहा था। इतना ध्यान मत दो था कि उसे सलीम के जिस्म की हरकत को भी महसूस नहीं किया। सलीम धीरे-धीरे होश में आ रहा था। एक अजीब किस्म की सनसनाहट उसके जिस्म में फैली हुई थी। उसने अपने बाजू पर रस्सी के तनाव को भी नहीं महसूस किया। दो-तीन बार सिर झटकने के बाद उसने आँखें खोल दी। उसे चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा फैला नज़र आ रहा था। फिर दूर एक टिमटिमाता  हुआ तारा दिखाई दिया। तारे के चारों तरफ हल्की-हल्की रोशनी थी। धीरे-धीरे रोशनी फैलती गई। मोमबत्ती की लौ थर्रा रही थी। प्रोफेसर दूरबीन पर झुका हुआ था। उसने उठने की कोशिश की, मगर यह क्या? वह बंधा क्यों है? फिर उसे कुछ देर पहले का किस्सा याद आ गया।

“प्रोफेसर यह क्या हरकत है?” उसने भर्रायी भी आवाज में कहकहा लगाकर कहा, “आखिर इस मज़ाक की क्या ज़रूरत थी?”

“अच्छा तुम जाग गए?” प्रोफेसर ने सिर उठाकर कहा, “घबराने की कोई बात नहीं। तुम इस वक्त उतने ही बेबस हो जितने कि मेरे दूसरे शिकार…तुम्हें यह सुनकर खुशी होगी कि मैं अब गिलहरियों, खरगोश और मेंढकों के साथ-साथ आदमियों का भी शिकार करने लगा हूँ, क्यों है न दिलचस्प खबर!”

पहले तो सलीम समझ न सका। लेकिन दूसरे पल में उसे महसूस हुआ जैसे उसके जिस्म का सारा खून जम गया हो। वर्क आफ गया…अच्छी तरह जानता था कि बूढ़े ने अपने दूसरे से शिकारों का हवाला क्यों दिया है। तो क्या..तो क्या…अब वह अपनी प्यास बुझाने के लिए जानवर के बजाय आदमियों का शिकार करने लगा है।

अरे…!

सलीम ने घबराहट के बावजूद लापरवाही का अंदाज़ा पैदा करके कहकहा लगाने की कोशिश की।

“बहुत अच्छे प्रोफ़ेसर… लेकिन मजाक का वक्त और मौका होता है। चलो, शाबास ये रस्सियाँ खोल दो। मैं वादा करता हूँ…।”

“सब्र सब्र मेरे अच्छे लड़के।” उसने उसकी तरफ झुककर मुस्कुराते हुए कहा, “अब मेरी बारी आई है…हा हा हा।”

“तुम्हारी बारी क्या मतलब।” सलीम ने चौंककर कहा।

“क्या तुम नहीं जानते।” प्रोफेसर ने बुरा सा मुँह बना कर कहा।

“कहो कहो मैं कुछ समझ नहीं सका।” सलीम ने बेपरवाही से कहा।

“मेरा इरादा यह था कि नौजवान डॉक्टर अपने मकसद में कामयाब हो जाए।” प्रोफेसर ने कहा, “और यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम दोबारा आजाद कर दिया गए, तो ऐसा न हो सकेगा। इसी का मुझे खौफ है…बहरहाल मैं यह चाहता हूँ कि वह इत्मीनान के साथ नवाब साहब की जान बचा सके। इसलिए मैं तुम्हें यहाँ लाया हूँ, क्या समझे? मैं कम चालाक नहीं।”

“बहुत चालाक हो क्या कहने।” सलीम ने हँसकर कहा।

“तुम यहाँ बिल्कुल बेबस हो। यहाँ मैं तुम्हारी पिटाई भी करूंगा और बीमार के कमरे का मंज़र भी देख सकूंगा।” प्रोफेसर ने दूरबीन के शीशे में आँख लगाते हुए कहा, “न तो मैं बेवकूफ हूँ और न मेरी दूरबीन मज़ाक है क्या समझे!”

अचानक शरीर में एक हैरतअंगेज बदलाव पैदा हो गया। उसकी भौंहें तन गई। कुछ देर पहले जो होंठ मुस्कुरा रहे थे, भींचकर रह गए। आँखों की शरारत भरी शोखी एक बहुत खौफनाक किस्म की चमक में बदल गई। वह अब तक एक हँसमुख नौजवान था। ऐसा मालूम हुआ, जैसे उसके चेहरे पर से एक गहरी नकाब हट गई हो। वह एक खूंखार भेड़िये की तरह हांफ रहा था।

“इन रस्सियों को खोल दो सूअर के बच्चे।” वह चीखकर बोला, “वरना मैं तुम्हारा सिर फोड़ दूंगा।”

“धीरज रखो धीरज मेरे प्यारे बच्चे?” प्रोफेसर ने मुड़कर कहा, “कल तक मैं ज़रूर तुमसे खफ़ा था। मुझे इसका अफ़सोस है, लेकिन तुम इस वक्त मेरी गिरफ्त में हो…कातिल साजिशी…तुम बहुत खतरनाक होते जा रहे हो। ऐसी सूरत में तुम्हारी निगरानी की ज़रूरत है।”

“तुम दीवाने को बिल्कुल दीवाने।” सलीम ने तेजी से कहा।

“शायद ऐसा ही हो…!” प्रोफेसर ने लापरवाही से कहा, “लेकिन मैं इतना दीवाना भी नहीं कि तुम्हारी साजिशों को ना समझ सकूं। तुम अब तक मुझे एक बेजान औजार की तरह इस्तेमाल करते आए हो, लेकिन आज की रात मेरी है…क्या समझे?”

सलीम के जिस्म से पसीना फूट पड़ा। गुस्से की जगह खौफ़ ने ले ली। वह अब तक प्रोफेसर को पागल समझता था और जिधर उसे ले जाना चाहता था, वह बगैर समझे बूझे चला जाता था, लेकिन फिर भी वह हमेशा होशियार रहा। उसने आज तक अपने असली प्लान के भनक प्रोफेसर के कान में न पड़ने दी थी। फिर उसे उसके प्लान का पता कैसे चला? वह खौफ़नाक ज़रूर था, लेकिन नाउम्मीद नहीं, क्योंकि उसकी ज़िन्दगी के दूसरे पहलू की जानकारी प्रोफेसर के अलावा किसी और को नहीं थी और प्रोफेसर तो पागल था।

“तुम क़त्ल की बात करते हो।” सलीम ने सुकून के साथ कहा, “ख़ुदा की कसम अगर तुमने यह रस्सी फौरन ही न खोल दी, तो मैं अपनी उस धमकी को पूरा कर दिखाऊंगा, जो अक्सर तुम्हें देता रहा हूँ। मैं पुलिस को खबर दे दूंगा कि तुम कातिल हो…अपने असिस्टेंट के कातिल।”

“मैं..!” प्रोफेसर ने शरारती लहज़े में कहा, “यह मैं आज एक नई और दिलचस्प खबर सुन रहा हूँ। मैंने यह क़त्ल कब किया था?”

“कब किया था…!” सलीम ने कहा, “इतनी जल्दी भूल गए। क्या तुमने अपने असिस्टेंट नईम को अपने बनाए हुए गुब्बारे में बिठाकर नहीं उड़ाया था, जिसका आज तक पता नहीं चल सका।”

प्रोफेशनल खामोश हो गया। उसके चेहरे पर अजीब किस्म की मुस्कुराहट नाच रही थी। “और हाँ इसी हादसे के बाद से मेरा दिमाग खराब हो गया और तुम्हें इस बात का पता चल गया था। लिहाज़ा तुमने मुझे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया और मुझसे नाजायज कामों में मदद लेते रहे। मुझसे रुपये ऐंठते रहे। लेकिन बरखुरदार शायद तुम्हें इसका पता नहीं कि मैं हाल ही में एक सरकारी जासूस से मिल चुका हूँ। तुम डर क्यों रहे हो? मैंने तुम्हारे बारे में उससे कुछ नहीं कहा। मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूँ कि नईम मेरे गुब्बारे के टूटने से मरा नहीं, बल्कि वह इस वक़्त मद्रास के किसी घटिया से शराब खाने में नशे में चूर औंधा पड़ा होगा। मुझे इसका भी पता है कि उसने ज़िन्दा होने के जो खत मुझे लिखे थे, वह तुमने रास्ते ही से गायब कर दिए। बहुत दिन हुए, तुम्हें उसके ज़िन्दा होने का सबूत मिल गया था। लेकिन तुम मुझे पागल समझ कर रुपए ऐंठने के लिए अंधेरे ही में रखना चाहते थे। कहो मियां सलीम, कैसी रही? क्या अब मैं तुम्हें वो बातें भी बताऊं, जो मैं तुम्हारे बारे में जानता हूँ।”

कुंवर सलीम सहम कर रह गया था। उसे ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे प्रोफेसर का पागलपन किसी नये मोड़ पर पहुँच गया है। जिसे वह अब तक केंचुआ समझता रहा, आज फन उठाए उस पर झपटने की कोशिश कर रहा है।

“खैर प्रोफेसर छोड़ो इन बेकार की बातों को।” सलीम ने कोशिश करके हँसते हुए कहा, “मेरी रस्सियाँ खोल दो…आदमी बनो। तुम मेरे अच्छे दोस्त हो। मैं वादा करता हूँ कि तुम्हें इससे भी बड़ी दूरबीन खरीद दूंगा। इतनी बड़ी कि सचमुच एक शीशे का गुंबद मालूम होगी।”

“ठहरो सलीम ठहरो!” प्रोफेसर ने दूरबीन के शीशे पर झुककर कहा, “मैं ज़रा बीमार के कमरे में देख लूं। हाँ तो अभी ऑपरेशन शुरू नहीं हुआ। ऐसे खतरनाक ऑपरेशन में काफ़ी तैयारी की ज़रूरत होती है। मुझे यकीन है कि नौजवान डॉक्टर नवाब साहब की जान बचाने में कामयाब हो जाएगा। लेकिन सलीम, यह तो बड़ी बुरी बात है। अगर नवाब साहब दस-बीस बरस और ज़िन्दा रहे, तो क्या होगा। तुम्हारी विरासत तुम तक जल्द न पहुँच सकेगी।”

“इसे क्या होता है?” सलीम ने कहा, “मैं हर हाल में उनका वारिस हूँ और फिर मुझे इसकी जरूरत ही क्या है? क्या मैं कम दौलतमंद हूँ?”

“खैर खैर…तुम्हारी दौलत का हाल तो मैं अच्छी तरह जानता हूँ। इसलिए तो एक बेबस बूढ़े से कैसे ऐंठते रहे। सुनो बेटे मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम्हारी तंगहाली अब नवाब साहब की मौत की ख्वाहिश रखती है, इसलिए मैंने तुम्हें इस वक्त तकलीफ दी है। मुझे उम्मीद है कि तुम एक अच्छे बच्चे की तरह इसका ख़याल न करोगे। क्या तुमने आज डॉक्टर तौसीफ़ को इसलिए शहर नहीं भेज दिया था कि नौजवान डॉक्टर सच में पैदल आने पर मजबूर हो जाये।”

“क्या बकवास है!” सलीम ने दूसरी तरफ मुँह फेरते हुए कहा।

“और फिर तुम एक रस्सी लेकर पेड़ पर चढ़ गए।” प्रोफ़ेसर बोलता रहा, ” क्या तुम समझते हो कि मैं कुछ नहीं जानता। मैं ये भी जानता हूँ कि डॉक्टर शौकत बच कैसे गए, लेकिन मैं तुम्हें नहीं बताऊंगा। तुम मुझे अंधेरे का चमगादड़ समझते हो और तुम्हारा ख़याल भी दुरुस्त है। अंधेरा मुझको सूरज की तरह रोशन रहता है। मैं इससे भी ज्यादा जानता हूँ। मैं क्या नहीं जानता?”

“तुम कुछ नहीं जानते।” सलीम ने मुर्दा आवाज में कहा, “वह सिर्फ तुम्हारा ख़याल है।”

“तुम इसे ख़याल कह रहे हो, लेकिन यह सौ फ़ीसदी सच है। देखो सलीम, हम दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं। क्या मैं नहीं जानता कि डॉक्टर शौकत को क़त्ल कर देने की एक वजह और भी है, जिसका ताल्लुक ऑपरेशन से नहीं।”

“क्या?” सलीम एकदम चौंक कर चीखा।

“ठीक ठीक!” प्रोफेसर ने सिर हिलाया, ” तुम्हारी चीख ही इकबाल-ए-ज़ुर्म है। क्या तुमने उस खंजरबाज नेपाली को रुपये देकर उसे कत्ल करने के लिए राजी नहीं किया था। उस बेवकूफ ने धोखे में एक बेगुनाह औरत का कत्ल कर दिया।”

“यह झूठ है या झूठ है!” सलीम बेसब्री से बोला, “लेकिन तुम्हें यह सब कैसे मालूम हुआ। यह सिर्फ शक है…बिल्कुल शक!”

“मुझे यह सब कैसे मालूम हुआ क्योंकि दुनिया में तुम्हें एक बड़े चालाक नहीं हो। मुझे यह भी मालूम है कि उस दिन तुमने एक रिपोर्टर पर गोली चलाई थी और वह राइफल मेरे हाथ में देखकर खुद भाग गए थे। महज इसलिए कि मुझे पागल खयाल करते हुए इस वाकये को महज़ इत्तेफाक समझा जाए और कहो तो यह भी बता दूं कि तुम उस रिपोर्टर को क्यों मारना चाहते हो। तुम उसे पहचान गए थे। तुम्हें यकीन हो गया था कि उसे तुम्हारी हरकतों का पता हो गया है। उस वक्त वह बच गया था, लेकिन आखिरकार उसे तुम्हारी ही गोलियों से जख्मी होना पड़ा। क्यों है ना सच?”

“न जाने तुम किसकी बातें कर रहे हो।” सलीम ने संभलते हुए कहा।

“इंस्पेक्टर फरी…दी की ।” प्रोफेसर ने उसकी आँखों में देखते हुए रुक-रुककर कहा।

सलीम के हाथ पैर ढीले पड़ गए। वह सुस्त पड़ गया।

“तुम्हारी धमकियां मेरा अब कुछ नहीं बिगाड़ सकती। मैं अब तुम्हारे गाल पर इस तरह चांटा मार सकता हूँ।” प्रोफेसर ने उठकर उसके गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा, “क्यों न मैं इन सब बातों की खबर नज़मा और उसकी माँ को दे दूं। पुलिस को तो मैं इसी वक्त खबर कर दूंगा। लेकिन तुम यह सोचते होगे कि पुलिस मेरी बातों का एतबार ना करेगी क्योंकि मैं पागल हूँ।”

“नहीं-नहीं प्रोफ़ेसर तुम जीत गए। तुम मुझसे ज्यादा चालाक हो।” सलीम ने आखिरी पासा फेंका, “इस रस्सी को काट दो। मैं तुम्हारे लिए एक बड़ी शानदार लेबोरेटरी बनवा दूंगा।”

“तुम्हारा दिमाग किसी वक्त भी चाल बाजियों से बाज नहीं आता। अच्छा मैं तुमसे दोस्ती कर लूंगा, मगर इस बात पर कि तुम इस मीनार में किसी राज को राज न रखोगे। इसके बाद यह यकीन रखो कि तुम्हारे सब राज मरते दम तक मेरे सीने में दफन रहेंगे। मैं इसलिए तुमसे यह सब उगलवा रहा हूँ कि तुमने मुझे बहुत दिनों तक ब्लैकमेल किया है। अच्छा पहले यह बताओ कि वाकई तुमने उस नेपाली से डॉक्टर शौकत को क़त्ल कराने की साजिश की थी।”

“मेरे ख़याल से तुम भी उतना जानते हो जितना मैं?.? हाँ मैंने उसके लिए रुपया दिया था।”

“फिर तुम्हीं ने उसे क़त्ल भी कर दिया, इसलिए कि कहीं वह नाम तो बता दे।”

“हाँ लेकिन ठहरो!”

“इंस्पेक्टर फ़रीदी का कत्ल करने के लिए तुमने ही गोली या गोलियाँ चलाई थी।”

“हाँ लेकिन तुम तो इस तरह सवाल कर रहे हो जैसे जैसे…”

“तुम्हें डॉक्टर शौकत के गले में रस्सी का फंदा भी डाला था।” प्रोफेसर ने हाथ उठाकर उसे बोलने से रोक दिया।

“फिर तुम्हारा दिमाग खराब हो गया।” सलीम ने कहा, “हाँ मैंने फंदा तो डाला था। लेकिन फिर उसने कहा, “तुमने अभी कहा है कि हम दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं। इस रस्सी को काट दो। मैं तुमसे बिल्कुल डरा हुआ नहीं हूँ, इसलिए कि अब हम दोनों दोस्त हैं।”

“तुम्हारे हवाई के लिए बहुत ज्यादा मजबूत मालूम नहीं होते।” प्रोफ़ेसर ने कहा। लेकिन इस बार उसकी आवाज बदली हुई थी। सलीम चौंक पड़ा…सिकुड़ा सिकुड़ाया प्रोफ़ेसर तन कर खड़ा हो गया। उसने अपने सिर पर बंधा हुआ मफलर खोल दिया। चेस्टर के कॉलर नीचे गिरा दिया और मोमबत्ती ताक पर से उठाकर अपने चेहरे के करीब लाकर बोला –

“लो बेटा देख लो मैं हूँ तुम्हारा बाप इंस्पेक्टर फ़रीदी!”

“अरे..!” सलीम के मुँह से निकल गया और उसे अपना सिर घूमता हुआ महसूस होने लगा, लेकिन वह फौरन ही संभल गया। उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव से साफ ज़ाहिर हो रहा था कि वह खुद पर काबू पाने की कोशिश कर रहा है।

“तुम कौन हो मैं तुम्हें नहीं जानता और इस हरकत का क्या मतलब?” सलीम ने गरज कर कहा।

“शोर नहीं शोर नहीं!” फ़रीदी ने हाथ उठाकर कहा, “तुमसे ज्यादा मुझे कौन पहचान सकता है। जबकि तुम मेरे जनाजे में भी शरीक थे। इसकी तो मैं तारीफ़ करूंगा सलीम। तुम बहुत होशियार हो। अगर मैं अपने मकान से एक जनाज़ा निकलवाने का इंतज़ाम न करता, तो तुम्हें मेरी मौत का हरगिज़ यकीन न होता। अखबारों में मेरी मौत की खबर सुनकर शायद तुम रात को ही शहर आ गए थे। मेरे लिए अस्पताल से एक मुर्दा हासिल कर लेना कोई मुश्किल काम न था और शायद तुमने दूसरे दिन कब्रिस्तान तक मेरी लाश का पीछा किया। मैं कबूल करता हूं कि तुम एक अच्छे साजिशी ज़रूर हो, लेकिन अच्छे जासूस नहीं। तुमने यह भी न सोचा कि पांच गोलियां खाने के बाद बाहोशो-हवास पंद्रह मील का सफर तय करना अगर नामुमकिन नहीं, तो मुश्किल ज़रूर है। उस रात तुमने सार्जेंट हमीद के घर के भी चक्कर काटे थे, लेकिन शायद उस वक्त तुम वहाँ मौजूद न थे, जब वह नेपाली के भेष में राज रूप नगर इसलिए आया था कि डॉक्टर तौसीफ़ को इस बात की खबर पुलिस को करने से रोक दें कि मैं उससे मिल चुका हूँ। राज रूप नगर से वापसी पर यह हादसा पेश आया। मैंने एक बार रिपोर्टर के भेष में मिलकर सख्त गलती की थी। इसलिए कि तुम मुझे पहचानते थे और क्यों न पहचानते हैं, जबकि मेरा कई बार पर पीछा कर चुके थे। उस रात भी तुमने मेरा पीछा किया था, जब मैं नेपाली के क़त्ल के बाद घर वापस आ रहा था..फिर तुमने कुबड़े के भेष में सार्जेंट हमीद को गलत राह पर लगाने की कोशिश की। हाँ तो मैं कह रहा था कि तुम्हें शक हो गया कि मैं तुम्हें अपराधी समझता हूँ। लिहाज़ा वापसी में तुमने मुझ पर गोलियाँ चलाई और राइफल प्रोफ़ेसर के हाथ में देकर फरार हो गए। प्रोफेसर से बातचीत करते वक्त मैंने अच्छी तरह अंदाज़ा लगा लिया था कि गोली चलाना तो दरकिनार, वह उस राइफल का इस्तेमाल तक नहीं जानता था। तुमने मुझे कस्बे की तरह मुड़ते देखा। इस मौके को गनीमत जानकर तुम वहां से दो मील के रास्ते पर झाड़ी में जा छुपे और तुम उसी तांगे पर गए थे, जो सड़क पर खड़ा था। तुमने खुद ही मदद के लिए चीख कर मेरा ध्यान अपनी तरफ करना चाहा। फिर तुमने गोलियाँ चलानी शुरू कर दी। उसी वक्त मेरे जेहन में यह नया प्लान आया, जिसका नतीजा यह है कि आज तुम एक चूहेदानी में फंसे हुए चूहे की तरह बेबस नज़र आ रहे हो।”

इंस्पेक्टर फ़रीदी इतना कहकर सिगरेट सुलगाने के लिए रुक गया।

“न जाने तुम कौन हो और क्या बक रहे हो।” सलीम ने झुंझलाकर कहा, “खैरियत इसी में है कि मुझे खोल दो। वरना अच्छा न होगा।”

“अभी तक तो अच्छा ही हो रहा है।” फ़रीदी ने कंधे उचका कर कहा और झुक कर दूरबीन में देखने लगा।

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