चैप्टर 1 अप्सरा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का उपन्यास, Chapter 1 Apsara Suryakant Tripathi Nirala Ka Upanyas, Apsara Suryakant Tripathi Nirala Novel In Hindi
Chapter 1 Apsara Suryakant Tripathi Nirala
इडेन-गार्डेन में, कृत्रिम सरोवर के तट पर एक कुंज के बीच, शाम सात बजे के करीब, जलते हुए एक प्रकाश-स्तम्भ के नीचे पड़ी हुई एक कुर्सी पर सत्रह साल की चम्पे की कली-सी एक किशोरी बैठी सरोवर की लहरों पर चमकती चाँद की किरणें और जल पर खुले हुए, काँपते, बिजली की बत्तियों के कमल के फूल एकचित्त से देख रही थी। और दिनों से आज उसे कुछ देर हो गई थी, पर इसका उसे खयाल न था ।
युवती एकाएक चौंककर काँप उठी। उसी बेंच पर एक गोरा बिलकुल सटकर बैठ गया। युवती एक बगल हट गई। फिर कुछ सोचकर, इधर-उधर देख, घबराई हुई, उठकर खड़ी हो गई। गोरे ने हाथ पकड़कर जबरन बेंच पर बैठा लिया। युवती चीख उठी ।
बाग में उस समय इक्के-दुक्के आदमी रह गए थे । युवती ने इधर-उधर देखा, पर कोई नजर न आया । भय से उसका कंठ भी रुक गया। अपने आदमियों को पुकारना चाहा, पर आवाज न निकली। गोरे ने उसे कसकर पकड़ लिया ।
गोरा कुछ निश्छल प्रेम की बात कह रहा था कि पीछे से किसी ने उसके कॉलर में उँगलियाँ घुसेड़ दीं, और गर्दन के पास कोट के साथ पकड़कर साहब को एक बित्ता बेंच से ऊपर उठा लिया, जैसे चूहे को बिल्ली। साहब के कब्जे से युवती छूट गई। साहब ने सिर घुमाया । आगन्तुक ने दूसरे हाथ से युवती की तरफ सिर फेर दिया, “अब कैसी लगती है ?”
साहब झपटकर खड़ा हो गया । युवक ने कॉलर छोड़ते हुए जोर से सामने रेल दिया। एक पेड़ के सहारे साहब सँभल गया, फिरकर उसने देखा, एक युवक अकेला खड़ा है । साहब को अपनी वीरता का खयाल आया । “टुम पीछे से हमको पकड़ा,” कहते-कहते वह युवक की ओर लपका ।
“तो अभी दिल की मुराद पूरी नहीं हुई ?” युवक तैयार हो गया ।
साहब को बॉक्सिंग (घूँसेबाजी) का अभिमान था, युवक को कुश्ती का । साहब के वार करते ही युवक ने कलाई पकड़ ली, और वहीं से बाँधकर बहल्ले दे मारा, और छाती पर बैठ कई रद्दे कस दिए । साहब बेहोश हो गया । युवती खड़ी सविनय ताकती रही। युवक ने रूमाल भिगोकर साहब का मुँह पोंछ दिया । फिर उसी को सिर पर रख दिया । जेब से कागज निकाल बेंच के सहारे एक चिट्ठी लिखी, और साहब की जेब में रख दी । फिर युवती से पूछा, “आपको कहाँ जाना है ?
“मेरी मोटर सड़क पर खड़ी है । उस पर मेरा ड्राइवर और बूढ़ा अर्दली बैठा होगा । मैं हवाखोरी के लिए आई थी। आपने मेरी रक्षा की, मैं सदैव-सदैव आपकी कृतज्ञ रहूँगी !”
युवक ने सिर झुका लिया ।
“आपका शुभ नाम ?” युवती ने पूछ ।
“नाम बतलाना अनावश्यक समझता हूँ । आप जल्द यहाँ से चली जाएँ ।”
युवक को कृतज्ञता की सजल दृष्टि से देखती हुई युवती चल दी । रुककर कुछ कहना चाहा, पर कह न सकी । युवती फील्ड के फाटक की ओर चली, युवक हाईकोर्ट की तरफ । कुछ दूर जाने के बाद युवती फिर लौठी । युवक नज़र से बाहर हो गया था । वह गई और साहब की जेब से चिट्ठी निकालकर चुपचाप चली आई ।
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