पिता की सहायता आर. के. नारायण की कहानी | Pita Ki Sahayata R K Narayan Ki Kahani English Story in Hindi

पिता की सहायता आर. के. नारायण की कहानी, Pita Ki Sahayata R K Narayan Ki Kahani English Story in Hindi

Pita Ki Sahayata R K Narayan Ki Kahani 

बिस्तर पर लेटे स्वामी को यह सोचकर डर-सा लगा कि आज सोमवार की सुबह है। लगता था कि अभी एक क्षण पहले ही शुक्रवार की आखिरी क्लास हुई है, भले ही दो दिन बीत चुके थे। उसे आशा थी कि इस बीच भूचाल आने से स्कूल की इमारत धूल में मिल चुकी होगी, लेकिन ऐसी अनेक इच्छाओं के बावजूद एलबर्ट मिशन स्कूल सौ साल से मजबूत खड़ा था। नौ बजे के करीब स्वामीनाथन ने कहा, ‘मेरे सिर में दर्द है।’ उसकी माँ ने कहा, ‘तुम गाड़ी में बैठकर स्कूल क्यों नहीं चले जाते ?’

‘जिससे मैं वहाँ तक पहुँचते-पहुँचते ही अधमरा हो जाऊँ? तुम्हें पता है, सड़क पर कितने गड़े हैं?’

‘क्या आज कोई जरूरी क्लासें हैं?’

‘जरूरी! अरे, भूगोल का मास्टर साल भर से एक ही सबक पढ़ाये जा रहा है। और गणित की क्लास है, जिसका मतलब है कि घंटे भर टीचर से मार खाते रही।. क्या ये जरूरी हैं ?’

यह सुनकर माँ ने कहा कि तो फिर घर पर आराम करो।

साढ़े नौ बजे जब स्वामी क्लास में प्रेयर कर रहा होता, वह माँ के बिस्तर पर आराम कर रहा था। पिता ने पूछा, ‘आज स्कूल की छुट्टी है?”

‘सिर में दर्द है,” स्वामी ने जवाब दिया।

‘इतवार को दिन भर घूमोगे तो सोमवार को सिर दर्द क्यों न होगा?”

स्वामी जानता था कि पिता कितने सख्त हो सकते हैं, इसलिए उसने नया बहाना बनाया, ‘अब इतनी देर में स्कूल कैसे जा सकता हूँ?”

‘ठीक है, लेकिन यह तुम्हारी अपनी गलती है, इसलिए तुम्हें जाना चाहिए। छुट्टी करने से पहले तुम्हें मुझ से पूछना चाहिए था।’

‘मैं इतनी देर से पहुंचा तो टीचर क्या सोचेगा?”

‘कह देना, सिर में दर्द था, इसलिए देर हो गई।’

‘मैं यह कहूँगा तो वह मारेगा।”

‘अच्छा! देखते हैं। क्या नाम है उसका ?’

‘सेमुएल।’

‘वह लड़कों को मारता है?’

‘बहुत मारता है। खासतौर से देर से आने वाले लड़कों को। कुछ दिन पहले एक लड़का देर से आया तो उसे पूरे पीरियड कोने में मुर्गा बनाकर खड़ा रखा। इससे पहले छह बेंत मारे और कान भी खींचे। मैं तो सेमुएल की क्लास में देर से हरगिज नहीं जाऊँगा।’

‘अगर वह इतना मारता है तो हेडमास्टर से शिकायत क्यों नहीं करते ?’

‘लोग कहते हैं कि हेडमास्टर साहब भी उससे डरते हैं। ऐसा खतरनाक आदमी है वह।’

फिर उसने सेमुएल की सख्ती का बड़ा चटपटा विवरण पिता को सुनाया वह लड़के को तब तक बेंत लगाता रहता था, जब तक हाथों से खून न टपकने लगे, और फिर यह खून उसके माथे पर लाल बिंदी की तरह लगवाता। स्वामी ने सोचा कि यह कहानी सुनने के बाद पिता उसे स्कूल जाने से रोक देंगे। लेकिन उन्होंने इसका एक नया उपाय बताया। वे बहुत उत्तेजित होकर कहने लगे, ‘ये सुअर बच्चों को इस तरह कैसे मार सकते हैं? इन्हें तो स्कूल से निकाल बाहर करना चाहिए। अच्छा, मैं देखता हूँ…।”

उन्होंने तय किया कि वह स्वामी को और देर से स्कूल भेजेंगे। उसे खत लिखकर देंगे कि उसे हेडमास्टर को दे दे। इसके लिए उन्होंने स्वामी का कोई विरोध नहीं माना। उसे स्कूल जाना ही होगा।

जब तक वह स्कूल जाने के लिए तैयार हुआ, पिताजी ने एक लंबा खत लिखकर तैयार कर लिया था। उसे लिफाफे में रखा और गोंद से चिपका दिया।

स्वामी ने डरते हुए पूछा, ‘इसमें आपने क्या लिखा है?”

‘यह तुम्हारे जानने की बात नहीं है। इसे हेडमास्टर को देना और क्लास में चले जाना।’

‘क्या आपने सेमुएल के बारे में शिकायत लिखी है?’

‘बहुत-सी बातें लिखी हैं उसके बारे में। हेडमास्टर इसे पढ़ेगा तो उसे स्कूल से निकाल ही नहीं देगा, पुलिस के हवाले भी कर देगा।’

‘क्या किया है सेमुएल ने?’ ‘उसने जो सब किया है उसका पूरा ब्यौरा खत में है। इसे देकर ही क्लास में जाना। शाम को उनसे इसकी पावती भी ले आना।’

स्वामी स्कूल जाते हुए सोचता रहा कि वह दुनिया का सबसे बड़ा झूठा है। उसकी आत्मा उसे परेशान करने लगी, वह तय नहीं कर पा रहा था कि सेमुएल के बारे में उसने कितनी सच्चाई बयान की है। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसने जितनी बातें कही हैं उनमें कितनी सच हैं और कितनी झूठ हैं। वह सड़क पर एक मिनट रुक गया और सोचने लगा कि सेमुएल इतना ज्यादा बुरा तो नहीं है। दरअसल वह दूसरों से ज्यादा ही अच्छा था, कभी-कभी वह स्वामी की किसी बात पर मजाक भी करता था, जिसे स्वामी अपनी तारीफ के रूप में लेता था। लेकिन इसमें भी शक नहीं है कि वह लड़कों से बुरी तरह पेश आता था. वह बेंत भी मारता था। स्वामी ऐसी किसी घटना की याद करने लगा। लेकिन देर तक कोई घटना याद नहीं आई। बहुत साल पहले उसने पहली कक्षा के एक छात्र को बेंत मारे थे और हाथों पर खून निकलने पर उससे माथे पर बिंदी लगवाई थी। लेकिन यह घटना किसी ने देखी नहीं थी। फिर भी यह कहानी हर साल लड़कों के मुँह से सुनी जाती थी.। सेमुएल के व्यवहार के बारे में स्वामी कुछ निश्चित नहीं कर पा रहा था। वह अच्छा था या बुरा? उसके बारे में यह खत हेडमास्टर को दिया जाये या नहीं! एक क्षण को स्वामी के मन में आया कि घर वापस लौट जाये और पिताजी से यह पत्र वापस ले लेने के लिए कहे। लेकिन वे बहुत कड़े आदमी थे।

स्कूल की पीली इमारत के पास पहुँचते हुए वह महसूस करता रहा कि वह सेमुएल की झूठी शिकायत करवा रहा है जिससे उसकी जिन्दगी बरबाद हो सकती है। हो सकता है कि हेडमास्टर साहब उसे नौकरी से निकाल दें, फिर पुलिस उसको पकड़कर ले जाये और जेल में बंद कर दे। इस सब अपमान और कष्ट के लिए कौन जिम्मेदार होगा? स्वामी यह सोचते हुए काँपने लगा। वह सेमुएल के बारे में जितना सोचता, उतना ही उसके लिए परेशान हो उठता-गहरा साँवला चेहरा, छोटी-छोटी लाली लिये आखें, पतली मूंछे, शेव के बिना हलके बालों से भरे गाल और ठोढ़ी, पीला कोट-सब मिलाकर सेमुएल की उदास शक्ल उसके सामने आने लगी। जेब में रखे लिफाफे को महसूस करते हुए वह सोचने लगा कि वही कातिल है। उसे अब गुस्सा आने लगा और सोचने लगा कि इस झूठ से भरे खत को नाली में क्यों न फेंक दिया जाये ?

स्कूल में घुसते ही उसे एक विचार आया, जो इस समस्या का हल हो सकता था। वह यह खत हेडमास्टर को अभी नहीं देगा, शाम को घर लौटते हुए देगा इस सीमा तक वह पिता की आज्ञा नहीं मानेगा और आजादी से काम लेगा। यह कोई गलत बात नहीं और पिता को इसका पता भी नहीं चलेगा। यदि पत्र शाम को दिया जायेगा तो हो सकता है सेमुएल इस बीच कुछ ऐसा कर बैठे कि पत्र की शिकायत सही हो जाये।

स्वामी कक्षा के द्वार पर खड़ा था। सेमुएल गणित पढ़ा रहा था। उसने स्वामी पर नजर डाली। स्वामी सोच रहा था कि उसे देखते ही सेमुएल कुछ ऐसा कर सकता है जिसकी शिकायत की जा सकती हो। लेकिन सेमुएल ने इतना ही पूछा, ‘अभी स्कूल आ रहे हो?’

‘जी, सर।’

‘तुम आधा घंटा लेट हो।’

‘जानता हूँ।” स्वामी ने सोचा, अब उस पर मार पड़ेगी। वह प्रार्थना भी कर रहा था, ‘तिरुपति के देवता, सेमुएल से मुझे पिटवाओ!”

‘देर क्यों हुई?’ स्वामी जवाब में कहना चाहता था, ‘मैं देखना चाहता था कि तुम मेरे साथ क्या कर सकते हो।’ लेकिन इसके बजाय यह कहा, ‘सर, सिर में दर्द था।’

‘तो फिर आये ही क्यों स्कूल?’

सेमुएल से इस सवाल की उसे उम्मीद नहीं थी। बोला, ‘सर, पिताजी ने कहा कि क्लास मिस करना ठीक नहीं है।’

इस जवाब से सेमुएल प्रभावित लगा। बोला, ‘तुम्हारे पिताजी सही कहते हैं। वे बहुत समझदार लगते हैं। हमें ऐसे ही पिताओं की जरूरत है।’

‘अरे बेवकूफ’ स्वामी ने सोचा, ‘तुम्हें पता नहीं हैं कि पिताजी ने तुम्हारे लिए क्या किया है!’ सेमुएल के व्यवहार के बारे में अब उसे और ज्यादा परेशानी होने लगी।

‘ठीक है। अपनी सीट पर बैठ जाओ। क्या दर्द अब भी है ?’

‘सर, थोड़ा-सा है।’

यह कहकर स्वामी दुखी मन से सीट पर जा बैठा। सेमुएल जितना अच्छा आदमी उसे अब तक नहीं मिला था। टीचर लड़कों के होमवर्क का मुआयना कर रहे थे, जिसमें, स्वामी का विचार था कि सख्ती के सबसे ज्यादा मौके आते हैं। कापियाँ लड़कों के चेहरों पर फेंकी जाती हैं, उन्हें बुरा-भला कहा जाता है और बेंत लगाये जाते हैं, बेंच पर खड़ा किया जाता है। लेकिन सेमुएल आज ज्यादा नरमी और सहिष्णुता दिखा रहा था। खराब कापियाँ उसने वापस कर दी, लड़कों को बेंत से जरा-सा छुआ, किसी को एकाध मिनट से ज्यादा बेंच पर खड़ा नहीं किया। अब स्वामी की बारी आई। स्वामी खुश हुआ।

‘स्वामीनाथन, तुम्हारा होमवर्क कहाँ है?”

उसने तपाक से उत्तर दिया, ‘मैंने कोई होमवर्क नहीं किया है।’

एक क्षण को शांति रही। ‘सिर दर्द के कारण, क्यों?’ सेमुएल ने पूछा।

‘जी, सर।’

‘ठीक है। बैठ जाओ।”

स्वामी बैठ गया और सोचने लगा कि आज सेमुएल को हुआ क्या है! पीरियड खत्म हुआ तो स्वामी को बड़ी निराशा हुई।

आखिरी पीरियड भी सेमुएल का ही था। इसमें उसे इतिहास पढ़ाना था। पौने चार बजे पीरियड शुरू हुआ और पैंतालीस मिनट में खत्म हो गया। स्वामी पिछले पीरियडों में इसी पर विचार करता रहा था। वह ऐसी कोई बात नहीं कर पाया था जिससे सेमुएल उसको मार सके। चार बजे तो वह बहुत परेशान हो उठा। सेमुएल वह सबक पढ़ रहा था जिसमें वास्कोडिगामा के भारत आने का जिक्र था। लड़के अधसोये-से सुन रहे थे। स्वामी ने एकाएक खड़े होकर सवाल किया, ‘सर, कोलंबस हिन्दुस्तान क्यों नहीं आया?’

‘वह अपना रास्ता भूल गया था।’

‘मैं यह नहीं मान सकता। यह बात विश्वास के लायक नहीं है।’

‘क्यों नहीं है?’

‘इतना बड़ा आदमी रास्ता कैसे भूल सकता है?”

‘चिल्लाकर क्यों कह रहे हो? मैं तुम्हारी बात सुन सकता हूँ।’

‘मैं चिल्ला नहीं रहा हूँ, सर, मेरी आवाज ही ऐसी है। ईश्वर ने मुझे ऐसी ही आवाज दी है। इसमें मैं क्या कर सकता हूँ?”

‘अच्छा, बैठ जाओ। ” स्वामी बैठ गया। लेकिन अब वह थोड़ा-सा खुश था, क्योंकि सेमुएल परेशानी से उसे देख रहा था।

उसका दूसरा मौका भी आ गया जब पहली लाइन में बैठे शंकर ने सवाल किया, ‘सर, वास्कोडिगामा पहला आदमी था जो भारत आया था ?’

सेमुएल के जवाब देने से पहले स्वामी ने पिछली बेंच से और भी जोर से चिल्लाकर उत्तर दिया, ‘लोग यही कहते हैं।’

सेमुएल और दूसरे लड़कों ने घूर कर स्वामी की ओर देखा। टीचर को आज स्वामी के बर्ताव से ताज्जुब हो रहा था। उसने कहा, ‘स्वामीनाथन, आज तुम जरा ज्यादा ही जोर से बोल रहे हो।’

‘मैं चिल्ला नहीं रहा हूँ, सर, मैंने कहा न कि मेरी आवाज ही ऐसी है। इसके लिए ईश्वर ही जिम्मेदार है।’

तभी स्कूल की घंटी बजी। क्लास खत्म होने में पंद्रह मिनट बाकी रहे थे। इन मिनटों में स्वामी को कुछ जरूर ऐसा कर डालना चाहिए कि सेमुएल भड़क उठे। सेमुएल ने उसे घूरकर देखा था और सख्त बात भी कही थी लेकिन शिकायत के लिए यह काफी नहीं था। स्वामी सोच रहा था कि थोड़ा और कोशिश करने से सेमुएल के खिलाफ मुकदमा बनाया जा सकेगा।

टीचर किताब में से कुछ आगे तक पढ़कर रुक गया। वह बोला कि अब वह सवाल करेगा। कहा कि सब विद्यार्थी अब किताबें बंद करके रख दें। फिर उसने दूसरी पंक्ति में बैठे एक लड़के से प्रश्न किया, ‘वास्कोडिगामा कब भारत आया था?’

स्वामीनाथन एकदम खड़ा हो गया और चीखकर बोला, ‘सन् 1648 में 20 दिसंबर के दिन।’

‘तुम्हें चिल्लाने की जरूरत नहीं है। सिर दर्द से तुम पागल हो गये लगते हो।’

‘अब मुझे सिर दर्द बिलकुल नहीं है,” स्वामी ने चिल्लाने के साथ जोर से हँसकर कहा।

‘बेवकूफ लड़के, बैठ जाओ।” अपने को ‘बेवकूफ’ कहे जाने से वह बहुत खुश हुआ। ‘अब बोले तो मैं तुम्हें बेंत लगाऊँगा,’ टीचर ने बात पूरी की।

स्वामी बैठ गया, बेंत लगाने की सुनकर उसे और भी खुशी हुई।

टीचर आगे कहने लगा, ‘अब मैं मुगल साम्राज्य के बारे में कुछ सवाल पूलूंगा। मुगल बादशाहों में आप किसको सबसे महान, किसको सबसे शक्तिशाली और किसको सबसे धार्मिक बादशाह मानते है?’

स्वामी उठ खड़ा हुआ। उसे देखते ही टीचर ने कहा, ‘तुम बैठ जाओ।”

‘सर, मैं जवाब देना चाहता हूँ।’

‘बैठ जाओ।”

‘मैं नहीं बैठूँगा।’

‘अभी मैंने क्या कहा कि तुम नहीं बैठोगे तो मैं क्या करूंगा?’

‘आपने कहा कि आप मुझे बेंत से मारेंगे, घुटनों से खून निकाल देंगे और उससे माथे पर टीका लगवायेंगे।’

‘ठीक है, यहाँ आओ।”

स्वामीनाथन सीट से कूदकर सामने आया और मेज के पास जा पहुँचा। टीचर ने दराज से बेंत निकाला और गुस्से से कहा, ‘शैतान, हाथ आगे बढ़ाओ।”

उसने हर हाथ पर तीन दफा बेंत लगाये, स्वामी ने उन्हें बिना हिले सह लिया। कुछ और बेंत लगाकर उसने पूछा, ‘ये काफी हैं कि और चाहिए?”

स्वामी ने फिर हाथ आगे बढ़ाये और दो बेंत और खा लिये। तभी छुट्टी की घंटी बज उठी। स्वामी के हाथ दर्द कर रहे थे लेकिन वह प्रसन्न मन से वापस लौटा, किताबें उठाई, जेब से पत्र निकाला और हेडमास्टर के दफ्तर की तरफ बढ़ा।

दरवाजे पर ताला लगा था। उसने चपरासी से पूछा, ‘हेडमास्टर साहब कहाँ हैं?’

‘उनसे क्या काम है ?’

‘मेरे पिताजी ने एक पत्र भेजा है।’

‘उन्होंने दोपहर की छुट्टी ले ली थी और अब एक हफ्ते बाद आयेंगे। तुम असिस्टेंट हेडमास्टर को खत दे सकते हो।’

‘वे कौन हैं?’

‘सेमुएल साहब। वे यहीं आ रहे होंगे।”

स्वामी वहाँ से तेजी से भागा। घर पहुँचकर खत पिताजी को दिया तो वे बोले, ‘मैं जानता था कि तुम खत नहीं दोगे। डरपोक हो तुम।’

‘हेडमास्टर साहब छुट्टी पर गये हैं।’

‘तुम झूठ भी बोल रहे हो अब।’

स्वामी ने खत हाथ में लेकर कहा, ‘जब वापस आ जायेंगे तब, जरूर दे दूंगा।’ पिता ने पत्र लेकर फाड़ डाला और कहा, ‘अब सेमुएल तुम्हारा गला भी घोंट दे तो मेरे पास मत आना।’

**समाप्त**

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