बीवी छुट्टी पर आर. के. नारायण की कहानी | Biwi Chhutti Par R K Narayan Story In Hindi 

बीवी छुट्टी पर आर. के. नारायण की कहानी, Biwi Chhutti Par R K Narayan Story In Hindi,  Biwi Chhutti Par R K Narayan Ki Kahani, English Story In Hindi 

Biwi Chhutti Par R K Narayan Story

Biwi Chhutti Par R K Narayan Story

कन्नन अपनी झोंपड़ी के दरवाजे पर बैठा गाँव के लोगों को आते-जाते देख रहा था। तेली सामी अपने बैल को हाँकता सड़क से गुजरा। उसे देखकर बोला, ‘आज आराम करने का दिन है ? तो शाम को मंटपम में आ जाना।” 

कई और लोग गुजरे लेकिन कन्नन ने किसी की ओर ध्यान नहीं दिया। तेली की बात सुनकर वह विचारों में खो-सा गया। 

मंटपम टैंक बंद पर पुराने जमाने की खंभेदार जगह थी, जो अब जगह-जगह से टूट रही थी। अब कन्नन और उसके साथियों के लिए यह क्लब की तरह बन गयी थी। कभी-कभी शाम को वे यहाँ इकट्ठे होते और डटकर चौपड़ खेलते। कन्नन को न सिर्फ यह खेल पसंद था, बल्कि इसकी सुगंध और टूटी हुई मीनारों के बीच से दिखायी देती पहाड़ियाँ भी बहुत अच्छी लगती थीं। मंटपम के बारे में सोचते हुए वह कुछ गुनगुनाने भी लगा।

वह जानता था कि उसे इस तरह बैठे देखकर लोग उसे आलसी समझते होंगे। लेकिन उसे परवाह नहीं थी। वह काम करने नहीं जायेगा। उसे घर से बाहर भेजने वाला अब नहीं था-उसकी बीवी अभी नहीं लौटी थी। उसने कुछ दिन पहले मन में चुपचाप खुश होते हुए उसे मायके जाने के लिए बैलगाड़ी पर बिठाया था। उसे उम्मीद थी कि उसके माँ-बाप उसे दस-पंद्रह दिन और रुकने को कहेंगे, हालांकि अपने छोटे बेटे की अनुपस्थिति उसे अच्छी नहीं लगती थी। लेकिन कन्नन इसे बीवी के न होने की खुशी की कीमत के रूप में ले रहा था। उसने सोचा, ‘अगर वह यहाँ होती तो क्या मुझे इस तरफ आराम करने देती?’ उसे हर रोज एक रुपया कमाने के लिए नारियल के पेड़ों पर चढ़ना होता, उनके ऊपर लगे कीड़े-मकोड़े साफ करने पड़ते, नारियल तोड़-तोड़कर नीचे गिराने पड़ते और कंजूस ठेकेदारों से पैसों के लिए लड़ना-झगड़ना पड़ता।

अब वह बीवी के न होने का पूरा लाभ उठाने के लिए दिन भर घर पर पड़ा आराम करता रहता था। लेकिन अब यह हालत हो गयी थी कि उसके पास एक पैसा भी नहीं बचा था और पैसे के लिए आज ही उसे पेड़ों पर चढ़ना जरूरी हो गया था। उसने अपने हाथ और पैर फैलाये और सोचने लगा कि अब उसे पेड़ों पर चढ़ना कैसा लगेगा! वास्तव में बड़े घर के पीछे लगे दसों पेड़ अब देखभाल की माँग कर रहे थे और जल्द-से-जल्द यह काम करना चाहिए था।

लेकिन यह संभव नहीं था। उसके पैर और हाथ कड़े पड़ गये थे और मंटपम जाने के लायक ही रह गये थे। लेकिन वहाँ खाली हाथ जाना भी सही नहीं था। अगर उसके पास एक चवन्नी भी होती तो वह शाम को उससे एक रुपया बनाकर ला सकता था। लेकिन यह औरत. उसे अपनी बीवी पर गुस्सा आने लगा, जो यह नहीं समझती थी कि अपनी मेहनत की कमाई में से वह एक आना भी रखने का अधिकारी है। उसके पास एक चवन्नी भी न थी, जिसे वह अपनी कह सकता। वह सालों से कमाई के लिए खटता रहा था, जब से.खैर, उसने इसके बारे में सोचना बंद कर दिया, क्योंकि इसमें उसे गिनती में उलझना पड़ता था और चौपड़ की गिनतियों के अलावा उसे कोई गिनती समझ में नहीं आती थी।

तभी उसे कुछ सूझा और वह उठकर घर में चला गया। कोने में एक बड़ा टिन का बक्स रखा था जिसे कई साल पहने उसने काले रँग से रँगा था-यही घर की सबसे महत्वपूर्ण वस्तु थी। बक्स उसकी बीवी का था। वह उसके सामने बैठ गया और उसे खोलने लगा। उसका ताला बहुत मजबूत था, सख्त लोहे का बना, जिसके किनारे भी बहुत तीखे थे। उसने ताला पकड़कर अपनी तरफ खींचा, और ताजुब है कि वह अपने आप खुल गया। ‘ईश्वर मुझ पर बहुत मेहरबान है, ‘ यह सोचकर उसने बक्स का ढक्कन उठाया। इसमें बीवी की कीमती चीजें रखी थीं: कुछ जैकेट और दो-तीन साड़ियाँ जिनमें से एक उसने उसे शादी के समय खुद भेंट में दी थी। उसे ताज्जुब हुआ कि इसे उसने अभी तक सँभालकर रखा है। हालाँकि यह.यह. गिनती की समस्या फिर सामने आ जाने से वह यहीं रुक गया। ‘उसने इसे इसलिए इतना सँभालकर रखा है क्योंकि वह अच्छी चीज के इस्तेमाल में बहुत कंजूस है।’ यह सोचकर वह हँसा।

फिर कपड़े उसने नीचे रख दिये और लकड़ी के उस डिब्बे की तलाश करने लगा जिसमें वह पैसा रखती थी। डिब्बा बिलकुल खाली था सिर्फ एक पैसे के, जो भाग्य के लिए रखा गया था। ‘कहाँ गया उसका सारा पैसा!” उसने गुस्से में भरकर सोचा।’ वह अपने भाई या किसी और के लिए सारा पैसा निकालकर ले गयी होगी। मैं यहाँ दिन भर मेहनत करता हूँ उसके भाई के लिए?. अगली दफा भाई दिखायी दिया तो मैं उसकी गर्दन मरोड़ दूँगा।’ यह सोचकर उसे बहुत संतोष हुआ।

बक्से की और तलाशी लेते हुए उसे कोने में रखा एक सिगरेट का टिन हाथ लगा। उसे हिलाया तो भीतर रखे सिक्के बजने लगे। यह डिब्बा देखकर उसे बहुत अच्छा लगा-यह लाल टिन उसके बच्चे का था। उसे याद आया कि कैसे एक दिन उसका बेटा यात्रियों के बंगले के पीछे कूड़े के ढेर से इसे ढूँढ़कर लाया था-छाती में छिपाकर दौड़ते हुए आकर उसे यह दिखाया था। पहले तो वह दिन भर इस टिन के साथ सड़क पर खेलता रहा, इसमें बालू भरता, फिर फेंक देता, फिर भरता.। फिर कन्नन ने उससे कहा कि ‘लाओ, इसकी गुल्लक बना देते हैं जिसमें तुम पैसे जमा करना।” पहले तो लड़का इसके लिए तैयार नहीं हुआ। जब कन्नन ने बड़े विस्तार से गुल्लक में पैसे रखने के फायदे समझाये, तो वह मान गया, और एकदम बना देने की जिद करने लगा। बोला, ‘जब यह पैसों से भर जायेगी तो मैं बड़े घर के लड़के के पास जैसी मोटर है, वैसी ही मैं भी खरीदूँगा, मुँह से बजाने वाला बाजा लूगा और एक हरी पेंसिल.।” बेटे की योजना सुनकर कन्नन जोर से हँसा। वह लुहार के पास डिब्बा ले गया, उसका मुँह बंद करवाकर उसमें पैसे डालने लायक एक छेद बनवा दिया। अब यह लड़के की सबसे खास चीज हो गयी और वह अक्सर इसे बाप के सामने रखकर पैसा डलवा लेता। अक्सर वह पिता से पूछता, ‘अब पूरा भर गया है क्या? मैं इसे कब खोल सकूंगा?’ इसे वह अपनी माँ के बक्स में साड़ियों की तह के भीतर अच्छी तरह छिपा कर रखता और देखता कि बक्स का ताला अच्छी तरह बंद कर दिया गया है या नहीं। उसे देखकर मन अक्सर कहता, ‘बहुत समझदार लड़का है। यह बड़े काम करेगा। मैं इसे शहर के स्कूल में पढ़ने भेजूंगा।’। अब कन्नन ने डिब्बा उठाया और उसे हिलाकर जानने की कोशिश की कि उसमें कितना पैसा होगा। बीवी के खिलाफ भावना होने के कारण अचानक उसे एक नया विचार आया। उसने कोशिश की कि डिब्बे से पैसे बाहर निकाले, लेकिन एक भी पैसा बाहर नहीं आया। लुहार ने उसका छेद बड़ी कुशलता से इतना ही बड़ा बनाया था कि सिक्का भीतर तो चला जाये, बाहर न आ सके। दुनिया की कोई भी शक्ति अब पैसे बाहर नहीं निकाल सकती थी। एक मिनट बाद वह डिब्बा हिलाना रोककर सोचने लगा, ‘अपने बेटे की गुल्लक से पैसे निकालकर क्या वह ठीक कर रहा है?’ मन में ही जवाब आया, ‘क्यों नहीं? बाप और बेटा एक नहीं होते क्या? यही नहीं, मैं तो यह रकम दुगनी-तिगुनी करने जा रहा हूँ जिसे बाद में इसी में रख दूँगा। इस तरह मैं डिब्बा खोलकर बेटे का भला ही कर रहा हूँ।’। फैसला हो गया। वह चारों तरफ देखने लगा कि कोई ऐसी चीज मिल जाये जिससे छेद को बड़ा किया जा सके। उसने बेकार पड़ी बहुत-सी चीजों का डिब्बा ढूँढ़ डाला-बोतल, डाट, जूते का तला, रस्सी वगैरह, लेकिन कोई नुकीली चीज उसे न मिली। चाकू कहाँ चला गया? उसे बीवी पर फिर गुस्सा आया, औरतें क्यों हर चीज को छुपाकर रखती हैं? हो सकता है वह चाकू भी भाई के लिए ले गयी हो! डिब्बा लेकर वह उसे जमीन पर जोर-जोर से पटकने लगा। इससे वह तुड़मुड़ तो गया, उसकी शक्ल खराब हो गयी लेकिन पैसा बाहर नहीं आया।

उसने इधर-उधर देखा। दीवाल पर एक कील के सहारे देवता की मढ़ी हुई तस्वीर टैंगी थी। तस्वीर उतारकर उसने कील बाहर निकाल ली। जमीन पर पड़े देवता को देखकर उसका मन खराब हुआ और उसने झुककर उसके पैरों पर सिर लगाया। फिर उसने एक पत्थर उठाया और कील डिब्बे के छेद पर रखकर उसे ठोंकने लगा। कील फिसल गयीं और पत्थर उसके अँगूठे पर जा पड़ा। अँगूठा दब कर नीला पड़ गया और दर्द से वह चीख उठा। डिब्बा जमीन पर फेंक दिया। डिब्बा कोने में पड़ा उसे चिढ़कर देखने लगा।’कुते !” उसने फुसफुसाकर कहा और फिर अँगूठा पकड़कर कराहने लगा। फिर बोला, ‘अब मैं तुमसे जरूर निबटुंगा।’। वह रसोई में गया और वहाँ से पत्थर की बड़ी मुसली दोनों हाथों से सिर पर उठाकर लाया, फिर उसे डिब्बे पर जोर से दे मारा। डिब्बा पिचककर दोहरा हो गया और फट भी गया। उसने भीतर से पैसे निकाले और भूखे की तरह उन्हें गिनने लगा-कुल छह आने और तीन पैसे के सिक्के थे। पैसे उसने धोती की कमर में कसकर बाँधे और बाहर निकल आया।

मंटपम में भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया, कहें कि पास ही नहीं फटका। थोड़ी ही देर में वह सारे पैसे हार गया। इसके बाद कुछ देर वह उधार पर खेलता रहा, लेकिन दूसरों ने कहा कि वह हट जाये और पैसे वाले को खेलने दे। वह उठकर बाहर निकल आया और घर लौट चला-सूरज अभी डूबा नहीं था।

जब वह गली में घुसा, उसने देखा कि सामने से उसकी बीवी सिर पर पोटली रखे और हाथ से बेटे को पकड़े चली आ रही है। कन्नन सहम उठा। ‘यह सपना भी हो सकता है?’ उसने सोचा और ध्यान से देखा। बीवी पास आ गयी थी, बोली, ‘बस आ रही थी, मैंने सोचा कि घर लौट चलें।’। वह दरवाजे की ओर बढ़ने लगी। कन्नन डरकर देखने लगा, उसका बक्स भीतर खुला पड़ा था, सामान बिखरा हुआ, जमीन पर भगवान् की तस्वीर और बेटे का डिब्बा टूटा हुआ-घर में पैर रखते ही उसे यह सब दिखाई देगा।

स्थिति निराशाजनक थी। उसने मशीन की तरह दरवाजा खोला। ‘तुम इस तरह क्यों देख रहे हो?’ बीवी ने पूछा और भीतर चली। बेटे ने दो पैसे निकालकर उसे दिये, ‘चाचा ने मुझे दिये हैं। इन्हें भी गुल्लक में रख देंगे।’। कन्नन ने परेशानी की चीख मारी। लड़के ने पूछा, ‘आप यह क्या कर रहे हैं?’। कन्नन ने अपना नीला अंगूठा दिखाकर कहा, ‘बड़ी चोट लग गयी आज, और कोई बात नहीं,” और उनके पीछे, अब क्या होगा, सोचते हुए घर में घुसने लगा।

(‘मालगुडी की कहानियाँ’ से)

गाइड आर. के. नारायण का उपन्यास

गिला मुंशी प्रेमचंद की कहानी

रसिक संपादक मुंशी प्रेमचंद की कहानी

अपरिचिता रवीन्द्र नाथ टैगोर की कहानी 

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