चैप्टर 9 प्यासा सावन गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 9 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel

चैप्टर 9 प्यासा सावन गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 9 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel, Gulshan Nanda Ka Upanyas 

Chapter 9 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel

Chapter 9 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel

अपने कमरे से तैयार होकर राकेश सीधा रिसेप्शन रूम में पहुंचा। अर्चना को ना पाकर उसे आश्चर्य हुआ। काउंटर के पीछे कोई अपरिचित युवक खड़ा लिख रहा था। राकेश ने धीरे से काउंटर के पास आकर रुकते हुए कहा , “एक्सक्यूज मी! वह वह लड़की कहां है, जो यहां हुआ करती थी।”

युवक ने र्थपूर्ण दृष्टि से राकेश को देखा। उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान उभरी और फिर लुप्त हो गई। राकेश बड़ी उत्सुकता से उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा था। युवक ने उसकी व्याकुलता को अनुभव किया और बोला, ” वह लड़की वह मिस अर्चना!”

“जी हां ! कुछ दिनों से वह इस काउंटर पर दिखाई नहीं दे रही।”

” उसका ट्रांसफर हो गया है। ड्यूटी बदल गई है।”

” ड्यूटी बदल गई है?” अस्पष्ट शब्दों में राकेश के मुंह से निकला। उसके चेहरे का रंग उतर गया और वह इधर-उधर देखने लगा। फिर उसने पूछा, ” कहां?”

“अब वह उस कमरे की इंचार्ज है, जहां होटल के सामान रखे जाते हैं।” युवक मुस्कुराया।

“ओह स्टोर!”

जब राकेश स्टोर पहुंचा, तो अर्चना चादरें, तकिए और नैपकिन गिन रही थी। वह दबे पांव चुपके से आकर अर्चना के पीछे खड़ा हो गया। कुछ देर वह उसे काम में निहारता रहा। फिर बहुत धीमे स्वर में पुकारा, “अर्चना!”

अर्चना झट पलटी और उसे देख कर घबरा गई, “तुमने यहां कर अच्छा नहीं किया राकेश।”

“और क्या करता ? ये तीन रातें तुम्हें देखे बिना मैंने कैसे काटी, यह कोई मेरे मन से पूछे।”

“किंतु मैं विवश हूं। मैं होटल की नौकर हूं और मेरे कुछ नियम है जिनका पालन करना मेरे लिए आवश्यक है।”

“मैं जानता हूं, किंतु इस मन का क्या करूं, जो इन नियमों को नहीं मानता।”

“इसे समझाना तो आपका काम है।” 

“है तब तक, जब तक अपना रहे। अब तो यह पराए वश में है।” 

अर्चना ने कोई उत्तर ना दिया और राकेश की आंखों की गहराइयों को नापने लगी। कुछ देर इसी थाह में खोई रही और फिर अति धीमे स्वर में बोली, ” राकेश…!”

किंतु आवाज उसके गले में ही डूब कर रह गई। केवल होठों की थरथराहट दिखाई दी। वह घबराहट और मौन शब्दों के बिहा पर उसे बहुत कुछ कह गई, ” राकेश मैं स्वार्थी नहीं हूं। मेरे पैरों में बेड़ियां हैं। मेरे होठों पर ताले हैं, जो तुम्हें दिखाई नहीं देते। मैं अपनी मालकिन की इच्छा के विरुद्ध एक पग भी नहीं उठा सकती।” इस होंठों की कंपन ने उसकी पूरी व्यथा स्पष्ट कर दी थी।

अर्चना को गहन मौन में डूबा देखकर राकेश ने पूछा, “क्या सोच रही हो?”

राकेश के स्वर ने अर्चना के शरीर में रोमांच भर दिया, “वह जैसे एकाएक जाग उठी और जागते ही बोली, ” कुछ नहीं… कुछ भी नहीं।”

“मैं तुम्हारे मन की बात समझ गया।”

” क्या?”

” यही कि कमला जी को हमारा मेलजोल पसंद नहीं।”

“यह तुमसे किसने कहा ?”

“तुम्हारी इन मौन और सहमी हुई आंखों ने, तुम्हारे मुख की बदली हुई रंगत ने, एकाएक रिसेप्शन रूम से इस बंद कमरे में तुम्हारे ट्रांसफर ने।”

” हां राकेश! उस दिन उन्हें यह बात बुरी लगी कि बिना पूछे मैं तुम्हारे साथ पिकनिक पर क्यों गई।”

” वह तो बड़ों को प्राय: बुरा लगता ही है, दो तरुण हृदयों का मिलन देखकर वह जल उठते हैं। विशेष रूप से वे लोग, जिन्हें अपने जीवन में प्यार से वंचित रहना पड़ा हो।”

” राकेश!”

इस स्वर ने दोनों को कंपा दिया। आहट सुनकर दोनों चौंक पड़े। दोनों ने पलटकर छाया को देखा, जो कमरे में आते प्रकाश को रोक चुकी थी। अर्चना की तो जैसे चीख निकल गई। दोनों ने एक दूसरे को देखा। उनके सामने अदमकद आईने की तरह कमलाजी खड़ी आंखों में अंगारे लिए घूर रही थी। उनके मुख पर भावों के उतार चढ़ाव से स्पष्ट था कि उन्होंने दोनों की बातें सुन ली हैं। अर्चना और राकेश इस प्रकार एक दूसरे से दूर हट गए, मानो उन्हें बिजली का झटका लगा हो।

“एक भोली भाली लड़की को बहकाना तुम्हें शोभा नहीं देता मिस्टर राकेश या पाप है महान पाप।”

“किंतु किसी के सच्चे प्यार को अकारण ही बुरी दृष्टि से देखना भी तो पाप है, महान पाप!” राकेश ने पलटकर कमला जी की ओर देखा।

“प्यार धोखा है। इसकी आड़ लेकर अपनी युवा आकांक्षाओं को पाप की भेंट न चढ़ाओ। यह एक ऐसी ज्वाला है, जो घंटों दहकती है और मिट जाने पर अपने ही बाग में दूसरों को जलाकर राख कर देती है।”

“तो वह प्यार नहीं, वासना की आग में जलते हुए दो अंगारों का खेल है, जो समाप्त होते ही मिट जाते हैं। मैं तो प्रेम की बात कर रहा हूं, जिसके छू लेने से कुम्हलाये हुए हृदय में नवजीवन का संचार होता है, जिसकी ज्योति जीवन के अंधियारों को प्रकाशमान कर देती है।”

कमला जी ने इस युवक की ओर देखा, जिसका मुख भावों की उत्तेजना से रक्तिम हो उठा था। उसकी आंखों में एक नई चमक उभर आई थी। वह सहमी हुई अर्चना पर एक दृष्टि डालकर बोली, “जानती हो इस प्यार का परिणाम क्या होगा?”

“हो हृदयों का मिलन अर्थात शादी!”

“शादी ब्याह क्या गुड्डे गुड़ियों का खेल है? यह तो जीवन भर का सौदा है, बल्कि योगों तक का निर्वाह है।”

“मैं जानता हूं।”

“और तुम्हें यह भी समझ लेना चाहिए कि इस मिलन के साथ कई लोगों की चाहते आमद होती है। जीवन के ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय जल्दबाजी में नहीं किए जाते।”

“प्यार का निर्णय बुद्धि से नहीं भावना से किया जाता है।”

“यह तो एक आकर्षण एक लगन है, जिस की अनुभूति ही नए जीवन की शिलाधार है।अर्चना एक अनाथ लड़की है इसका इस जीवन में कोई नहीं है।”

“मेरा घराना एक हरा भरा उपवन है, जहां वह स्वयं को कभी अकेली अनुभव नहीं करेगी।”

“* हो सकता है कि तुम्हारी पसंद तुम्हारे घरवालों की पसंद ना हो।”

“मुझे विश्वास है कि मेरी प्रसन्नता में ही उनकी प्रसन्नता है। मैं अपने घर वालों को भली प्रकार जानता हूं। मेरे पिता हृदय के रोगी है, वह कब से इस प्रतीक्षा में है कि बहू का मुख देखें। इस विषय में मेरी सहमति और मेरे विचारों को वह अवश्य ही महत्व देंगे ।”

कमला जी कुछ देर चुपचाप उसे एकटक देखती रही। उन्होंने अब तक किसी युवक को इतना समझदार नहीं पाया था। उसकी बातें सुनकर उनके विचारों में कुछ परिवर्तन होने लगा। उन्होंने सोचा, हो सकता है अर्चना के लिए इससे अच्छा पर और कौन हो सकता है। राकेश की होंठों पर आशा की तड़प भरने के लिए तड़प रही थी। कुछ देर के मौन को स्वयं फोड़ते हुए उसने कहा, “पूछिए और पूछिए।और क्या जानना चाहती हैं आप मेरे विषय में।”

“मुझे स्वीकार है।” कमला जी तत्काल कह उठी।

राकेश अनार की भांति फूट पड़ा। अर्चना ने लाज से गर्दन और भी झुका ली और अपनी सिरहन को छुपाने का प्रयत्न करने लगी। इसके पूर्व की कमला जी कुछ और कहती, राकेश ने झुककर उनके पांव छू लिए। कमलाजी तुरंत ऐसे पीछे हट गई, जैसे राकेश की यह बात उन्हें पसंद न आई हो। राकेश ने चकित दृष्टि से उन्हें देखा।

“एक शर्त है।” कमला जी ने बड़े गंभीर स्वर में कहा, ” तुम्हें शादी तुरंत ही करनी होगी। मुझे कोर्टशिप बिल्कुल पसंद नहीं।”

“किंतु, आप मुझे इतना समय तो देगी कि मैं अपने घरवालों को मना लूं।”

“अवश्य अवश्य!”

राकेश प्रसन्नता से झूम उठा। उसने पलट कर अर्चना की ओर देखा, जो वहां से खिसक कर एक कोने में जा खड़ी हुई थी और अपनी सिरहन छुपाए रखने के लिए अलमारी में कपड़े जमा रही थी। राकेश ने एक विदाई मुस्कुराहट से गंगा जी की ओर देखा और तेज तेज पग उठाता हुआ कमरे से बाहर निकल गया। कमला जी खड़ी उसे जाते देखती रही।

“आंटी!” अर्चना एकाएक पलट कर उनके सामने हो गई।

“मैंने कोई अनुचित बात नहीं की अर्चना!”

“किंतु इतनी शीघ्र!”

“इसलिए कि लड़की का केवल प्यार से नहीं, बल्कि उसका संसार से संबंध होता है। मैं नहीं चाहती कि वह तुझे वचन और सुनहरे सपनों में ही जकड़कर रह जाए।”

कमला जी यह कहकर कमरे से निकल गई और अर्चना बड़ी देर तक गुमसुम अपने जीवन के इस महान परिवर्तन पर विचार करती रही।

दो दिन और बीत गए। राकेश ने बड़ा प्रयत्न किया, किंतु वह अर्चना को देख न पाया। कमला जी की स्वीकृति के बाद उसमें इतना साहस न था कि वह निर्भीक होकर अर्चना से मिलने जाए। उसकी व्यग्रता अब एक तड़प बन चुकी थी। अगले दिन उसे लौटना था और फिर न जाने वियोग की घड़ियां कितनी लंबी हो जाएं।

शाम को अकस्मात ही कश्मीर एंपोरियम में अर्चना से उसकी भेंट हो गई, जिसे देखने के लिए वह दो दिन से व्याकुल था। भाग्य ने स्वयं उसे मिला दिया। जब वह कुछ खरीदने के लिए इंपोरियम पहुंचा, तो अर्चना काउंटर पर खड़ी एक मफलर को देख रही थी। राकेश ने पहले तो चाहा कि उसे पुकारे, किंतु फिर कुछ सोचकर वह धीरे से दबे पांव उसके पास जा खड़ा हुआ। अर्चना ने उसे नहीं देखा। गहरी नारंगी रंग के सुंदर रेशमी मफलर को कोमल उंगलियों से परखकर उसके दाम पूछे। सहसा उसकी दृष्टि पास ही खड़े राकेश पड़ी और वह क्षण भर के लिए चौंक कर कांप गई। फिर मुस्कुरा पड़ी।

“कितना सुंदर मफलर है।” राकेश ने मफलर को उंगलियों से टटोलकर अर्चना की आंखों में झांकते हुए कहा, “तुम्हारी रुचि की प्रशंसा करता हूं अर्चना।”

“सच तुम्हें पसंद है?”

“जी बहुत! किस भाग्यवान के गले का हार बनेगा?”

“है कोई! मैं तो इतनी डिज़ाइन देखकर दुविधा में पड़ गई थी। अच्छा हुआ कि तुमने मेरी रूचि को सराहा।”

“लगता है किसी घनिष्ठ मित्र के लिए चुना है।”

“जी नहीं जान पहचान है।”

“कौन है वह?”

“है एक यात्री!”

सेल्स मैन ने पैकेट बांधकर अर्चना की ओर बढ़ा दिया। राकेश अर्चना से अलग होकर दूसरे काउंटर पर जा खड़ा हुआ। जब अर्चना मफलर का दाम चुका कर उसके पास आई, तो वह साड़ियां देख रहा था। उसने एक बहुत बढ़िया रेशमी साड़ी चुनी और अर्चना कर बोला, ” कैसी है यह साड़ी?”

“बहुत सुंदर, आपकी पसंद उत्तम है।”

 राकेश ने वह साड़ी उठाई और सेल्समैन को पैक करने को कहा।

” किसके लिए ली है ?” अर्चना ने पूछा।

” है कोई, नई जान पहचान!”

“कौन?”

“एक लड़की!”

अर्चना झेंप गई और चुपचाप अपना पैकेट उठा कर बाहर जाने की तैयारी करने लगी।

“कहां जा रही हो?”

“वापस होटल!”

“यदि अनुमति हो, तो मैं भी साथ चलूं।”

“आपका मेरा क्या साथ? आप कार वाले ठहरे और मैं पांव।”

“मैं अपनी कार आज नहीं लाया।”

“क्यों?”

“कहीं उसकी तीव्र गति में किसी पैदल चलने वालों को आंखों से ओझल न कर बैठूं।

सेल्समैन लिसाड़ी पैक की और तीन सौ रुपए की रसीद काटकर पैकेट सहित राकेश को थमा दी।

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