चैप्टर 8 प्यार की अजब कहानी सुपरनेचुअल रोमांस नॉवेल | Chapter 8 Pyar Ki Ajab Kahani Supernatural Romance Novel In Hindi 

चैप्टर 8 प्यार की अजब कहानी सुपर नेचुरल रोमांस नॉवेल,  Chapter 8 Pyar Ki Ajab Kahani Supernatural Romance Novel In Hindi 

Chapter 8 Pyar Ki Ajab Kahani Supernatural Romance Novel 

Chapter 8 Pyar Ki Ajab Kahani Supernatural Romance Novel 

आसमान पर हल्के बादल छाये हुए थे। यूं लग रहा था मानो कुछ घंटों पहले वहाँ जमकर बारिश हुई हो। मगर उस वक़्त मौसम के मिज़ाज़ को देखते हुए अगले कुछ घंटों तक बारिश के दूर-दूर तक कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे।

दर्पण ने अहिस्ता से अपनी नज़र शालिनी की ओर घुमाई, जो स्कूल गेट के सामने खड़ी अपनी कॉटन की साड़ी एडजस्ट कर रही थी। मौसम कोई भी हो, कॉटन शालिनी का फेवरेट फैब्रिक था। शालिनी बेहद ख़ूबसूरत थी। गोरा-चिट्टा रंग, गहरी काली आँखें, पलती सी नाक, कमर तक झूलते लंबे काले बाल। उसे देखकर यह अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल था कि वो एक सोलह बरस की लड़की की माँ हैं।

दर्पण हमेशा से अपनी माँ की ख़ूबसूरती की कायल रही थी और अपनी सहेलियों के बीच उनकी ख़ूबसूरती के लिए ख़ुद को काफ़ी प्राउड महसूस किया करती थी। शायद इसलिए, क्योंकि वो अपनी माँ जैसी खूबसूरत नहीं थी। उसे अपने पिता के जीन्स मिले थे और वो एक एवरेज़ लुक वाली लड़की थी। उसका लुक एवरेज़ था, उसकी पर्सनाल्टी एवरेज़ थी। एक्चुअली, वो हर चीज़ में एवरेज थी। न बैटर, न बेस्ट…बस एवरेज।

“दर्पण जल्दी करो, हम लोग पहले ही लेट हैं।” स्कूल के चमचमाते बोर्ड की ओर देखते हुए शालिनी ने उसे पुकारा।

शालिनी की पुकार सुनकर दर्पण को स्कार्पियो से उतर जाना था। उसने कोशिश भी की, मगर चाहकर भी ख़ुद को हिला नहीं पाई। वह चुपचाप मुँह छुपाकर बैठ गई।

“दर्पण!” शालिनी ने फिर उसे पुकारा।

दर्पण ने मुँह उठाकर शालिनी को देखा, फिर ड्राइविंग सीट पर बैठे शंभू को। शंभू उसकी हालत समझ रहा था। उसने प्यार से दर्पण से पूछा, “डर लग रहा है बेटा?”

दर्पण ने सिर झुका लिया।

“डरने की कोई बात ही नहीं, ये जगह बहुत खूबसूरत है और यहाँ के लोग बड़े ही प्यारे…तुम यहाँ बहुत खुश रहोगी…और तुम यहाँ पढ़ने आई हो, अपना भविष्य बनाने…यूं डरोगी, तो कैसे अपना भविष्य बना पाओगी।“ शंभू की समझाइश पर दर्पण का सोया हुआ आत्म-विश्वास जागा और वह स्कार्पियो का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल आई। पहला कदम, दूसरा कदम, तीसरा कदम… और धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए वह शालिनी के पास पहुँचकर उसके बगल में खड़ी हो गई।

गेंहुआ रंग, अंडाकार चेहरा, काली आँखों पर चढ़ा काले फ्रेम का मोटा चश्मा, पोनीटेल में बंधे बाल – ये थी दर्पण। काली जींस पर स्लेटी रंग की टी-शर्ट पहने, पैरों में सफ़ेद रंग के स्पोर्ट्स शूज डाले। टी-शर्ट खींचते हुए उसने शालिनी को देखा, फिर खुद को। उसे देखकर किसी के लिए भी यक़ीन कर पाना मुश्किल था कि वो शालिनी की बेटी है। उसमें न कोई ड्रेसिंग सेंस था, न ही सजने-धजने का सलीका।

उस वक़्त चश्मे से झांकती उसकी आँखें स्कूल का साइन बोर्ड पढ़ रही थीं, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में उसके नये स्कूल का नाम शान से चमक रहा था –

सेंट जोसेफ़ कॉन्वेंट हायर सेकेंडरी स्कूल, शिमला 

शालिनी ने शंभू को पार्किंग एरिया में स्कार्पियो पार्क करने का इशारा किया। शंभू ने बिना एक पल गंवाये इशारों से आये आर्डर को फॉलो करते हुए स्कार्पियो पार्किंग की तरफ बढ़ा दिया

“चलो!” शालिनी ने दर्पण से कहा, मगर उसके कानों में जूं तक नहीं रेंगी। वह वहीं खड़ी स्कूल बोर्ड को टकटकी लगाये देखती रही।

“दर्पण! जल्दी करो।” शालिनी ने खीझकर कहा और आगे बढ़ गई। उसे लग रहा था कि दर्पण उसकी बात मानकर उसके पीछे-पीछे आ रही है, मगर दर्पण तो स्कार्पियो की तरफ़ दौड़ गई थी। कुछ दूर आगे जाकर जब शालिनी पलटी, तो उसे दर्पण का नामो-निशां नहीं मिला। तेज कदमों से चलती हुई वह पार्किंग एरिया की तरफ गई, तो दर्पण को स्कार्पियो के पीछे छुपा हुआ पाया।

“दर्पण, सुनो।” उसने दर्पण को पुकारा।

दर्पण ने कोई जवाब नहीं दिया।

“तुम यहाँ पढ़ना चाहती हो या नहीं? तुमने यहाँ आने का डिसिज़न लिया है और अब तुम ही भाग रही हो। बताओ मुझे, तुम एक्चुअली चाहती क्या हो? यदि तुम ना कहोगी, तो मैं तुम्हें अपने साथ वापस ले चलूंगी।

दर्पण कोई जवाब न दे सकी। क्या जवाब देती? वह कन्फ्यूज्ड थी। वह ख़ुद नहीं जानती थी कि वो क्या चाहती है। बस एक बात वो अच्छी तरह जानती थी कि उसे माँ के साथ नहीं रहना। किसी भी सूरत में नहीं रहना।

“क्या?” शालिनी की नज़रें दर्पण के दिल और आत्मा को भेद रही थीं। दर्पण नहीं चाहती थी कि उसकी माँ उसके मन के भावों को पढ़ ले। वह नज़रें चुराने लगी।

“दर्पण बोलो…जवाब दो प्लीज! क्या चाहती हो तुम? मैं जो भी कुछ कर रही हूँ, तुम्हारी ख़ुशी के लिए कर रही हूँ। मैं तुम्हें ख़ुश देखना चाहती हूँ। मैं वही करूंगी, जो तुम चाहोगी। इसलिए बताओ, क्या तुम यहाँ रहने के लिए तैयार हो?” शालिनी ने अपना हाथ दर्पण के कंधे पर रख दिया और दर्पण की आँखें भर आई। उसका जी चाहा कि शालिनी से लिपटकर जी भरकर रोये, मगर वह ऐसा नहीं कर सकती।

उसने किसी तरह अपने आँसुओं को काबू में किया और शालिनी की आँखों में देखते हुए बोली, “मैं यही रहूँगी।”

शालिनी समझ गई कि दर्पण का फ़ैसला क्या है? वह उम्मीद कर रही थी कि दर्पण अपना फ़ैसला बदल देगी। उसे लग रहा था कि दर्पण कहेगी, मम्मा मैं आपके बिना नहीं रह सकती। मगर उसकी उम्मीद धुआं हो चुकी थी।

वह रूखी आवाज़ में बोली, “ठीक है! मेरे पीछे आओ। हम प्रिंसिपल के ऑफिस जा रहे हैं। जो फॉर्मेलिटी बची हैं, उसे पूरा करने।” और वह स्कूल गेट की तरफ बढ़ गई, बिना ये देखे कि दर्पण उसके पीछे आ रही है या नहीं। इस बार उसे यक़ीन था कि दर्पण उसके पीछे आयेगी और उसका यकीन ग़लत नहीं था। दर्पण उसके पीछे-पीछे जा रही थी।

शालिनी और दर्पण के बीच कुछ ही कदमों का फ़ासला था। दर्पण दौड़कर उस फ़ासले को मिटा सकती थी और शालिनी के साथ-साथ चल सकती थी। मगर उसने वैसा नहीं किया, क्योंकि वह जान चुकी थी कि अब वो पीछे छूट चुकी है। इस रास्ते पर और ज़िन्दगी के हर रास्ते पर।

दर्पण के छोटे कदमों के साथ उसकी ज़िन्दगी के एक नये सफ़र का आगाज़ हो चुका था। ये सफ़र उसे ज़िन्दगी के किस दोराहे पर ले जायेगा, उस वक़्त उसे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था।

क्रमशः

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Author  – Kripa Dhaani

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दर्पण की नई दुनिया कैसी होगी? क्या होगा उसके साथ इस नये स्कूल में? मुकेश कहां है? क्या है उसका राज़? क्या दर्पण अपने पिता का राज़ जान पायेगी? और कौन है वो, जो उसकी ज़िंदगी में आने वाला है? क्या शुरू होगी, प्यार की अजब कहानी? जानने के लिए पढ़िए Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Upanyas का भाग।

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