चैप्टर 5 प्यार की अजब कहानी फैंटेसी रोमांस नॉवेल | Chapter 5 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance Novel In Hindi 

चैप्टर 5 प्यार की अजब कहानी फैंटेसी रोमांस नॉवेल, Chapter 5 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance Novel In Hindi By Kripa Dhaani 

Chapter 5 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance Novel In Hindi 

Chapter 5 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance

कुछ देर आँसुओं के साथ अपना दर्द बहाने के बाद दर्पण कमरे में चली आई और पैकिंग करने लगी। सावधानी से उसने अपनी डायरी ट्रॉली बैग में सरकाई। डायरी उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी, जिसके बिना रह पाना उसके लिए नामुमकिन था। और भी बहुत सी चीज़ें थीं, जिनके लिए उसे बैग में जगह बनानी थी। वह नहीं चाहती थी कि ऐसा कुछ भी पीछे छूट जाये, जो उसके लिए इम्पोर्टेन्ट है। मगर, क्या ये मुमकिन था? काश, ऐसा हो पाता! सच तो ये था कि जो उसके लिए दुनिया में सबसे इम्पोर्टेन्ट थी, वो पीछे छूटे जा रही थी और वो थी उसकी माँ – शालिनी मेहरा।

“दर्पण! तुम्हारी पैकिंग हो गई?” नीचे दरवाजे की चौखट पर खड़ी शालिनी ने उसे पुकारा।

“हुंह!” दर्पण का जवाब देने का दिल नहीं चाहा।

“तुम्हें कोई हेल्प चाहिए।” अब शालिनी डाइनिंग रूम तक आ पहुँची थीं।

“हेल्प! आज के बाद मुझे सब कुछ ख़ुद ही करना है, आपकी हेल्प की मुझे कोई ज़रूरत नहीं।” दर्पण बुदबुदाई।

“दर्पण! तुम मुझे जवाब क्यों नहीं दे रही हो?” अब शालिनी उसके सामने खड़ी थी।

“क्योंकि मैं जानती हूँ कि आप नहीं सुनने वाली।” आँखों को भेद देने वाली नज़रों से दर्पण ने शालिनी को देखा और जवाब सीधा उस पर फेंक मारा।

उसके जवाब से शालिनी जितनी हैरान थी, उससे कहीं ज्यादा आहत। दर्पण उससे इसी तरह का बर्ताव कर रही थीं, जबसे उसने ‘कुछ’ जान लिया था।

“दर्पण तुम हो, जो जाना चाहती हो। मैं तो चाहती हूँ कि तुम मेरे साथ यहीं रहो। पर तुम ये समझने की कोशिश ही नहीं कर रही कि मुझे कैसा महसूस हो रहा है?”

“मैं समझती हूँ मम्मा, मैं सब समझती हूँ।” कहकर दर्पण उठी और कमरे से बाहर निकल गई।

दर्पण और शालिनी एक ही छत के नीचे रह रही थीं, मगर अजनबियों की तरह। कई दिनों से दर्पण अपने आसपास शालिनी की मौज़ूदगी को नज़रंदाज़ करने की कोशिश कर रही थी। वह उससे दूर जाना चाहती थी, जल्द-से-जल्द। शालिनी उसकी ज़िद्द के आगे मजबूर थी। इसलिए उसे शिमला भेज रही थी, खुद से दूर। बस उसे ये तसल्ली थी कि शिमला में अभिराज होगा, डिम्पल होगी, प्रिया और निशा होंगे, जो उसे कभी अकेला महसूस करने नहीं देंगे।  

०००

शिमला में अभिराज अब भी अपनी स्टडी की बालकनी में खड़ा पुरानी यादों में उलझा हुआ था। मुकेश उसका सबसे क़रीबी दोस्त था। उससे हुई आखिरी मुलाक़ात आज भी उसे परेशान करती थी। 

उसके ज़ेहन में सोलह साल पहले की उस बर्फ़ीली रात का मंज़र तैर गया, जब वो अपने हॉटल से घर निकलने की तैयारी में था और बर्फ़बारी की वजह से उसे देर हुई जा रही थी। 

उस समय रात के तक़रीबन साढ़े ग्यारह बज रहे थे, जब उसने अपने मोबाइल पर मुकेश का नाम चमकता हुआ देखा। 

“यार मुकेश…आज बड़े दिनों बाद याद किया।“ अभिराज ने कॉल रिसीव कर चहकते हुए कहा, मगर दूसरी तरफ से आई मुकेश की आवाज़ में एक थरथराहट और खौफ़ था।

“अभि…मैं शिमला में हूँ और तुझसे मिलने आ रहा हूँ।“

“क्या…शिमला में….पर कहाँ…बता मुझे…मैं जल्द ही वहाँ पहुँचता हूँ…बस ये बर्फ़बारी….” अभिराज अपनी बात पूरी कर पाता, उसके पहले ही उसकी बात काटकर मुकेश बोला –

“मैं तेरे हॉटल स्काई कैसल के पास के जंगलों में हूँ। बस कुछ ही देर में हॉटल पहुँचता हूँ। तू वहीं है ना!”  

“हाँ…पर तू अचानक…शिमला में….”

“तेरे पास पहुँच जाऊं, फिर सब बताता हूँ…यहाँ कुछ ख़तरा है।“

“ख़तरा…कैसा ख़तरा…मुकेश क्या बात है, अभी बता मुझे?”

“अगर मुझे कुछ हो जाये, तो मेरी बुक तुझे….” मुकेश की बात अधूरी रह गई और उसकी कॉल कट गई।

अभिराज ने उसे कॉल करने की कोशिश की, मगर कॉल कनेक्ट नहीं हुई। उसके बाद उसने देर नहीं लगाई और कार लेकर जंगल की तरफ़ रवाना हो गया। उसकी कार जंगलों के बीच बनी सड़क पर दौड़ती जा रही थी, बिना इस अंदाज़े के कि मुकेश जंगल के किस छोर में होगा। 

अंदाज़न अभिराज ने सड़क किनारे एक जगह कार रुकवाई। वह कार से उतरा और तेजी से जंगल के अंदर भागा, फिर रुका और पलटकर ड्राइवर से बोला, “तुम यहीं ठहरकर मेरा इंतज़ार करो। ठीक पंद्रह मिनट बाद मुझे कॉल करना। उसके बाद मैं जैसा कहूं, वैसा करना।“

“जी साहब!” ड्राइवर ने सिर हिलाकर कहा।

अभिराज ने ओवरकोट की जेब से टॉर्च निकालकर ऑन कर ली और तेज कदमों से जंगल के अंदर चला गया। हल्की-हल्की बर्फ़बारी पूरे मौहाल में सिरहन पैदा कर रही थी, मगर उनसे बेपरवाह अभिराज मुकेश की तलाश में आगे बढ़ा चला जा रहा था। वह मुकेश को ढूंढते-ढूंढते जंगल में बनी एक पुरानी लाइब्रेरी के क़रीब पहुँच गया। 

“मुकेश कहाँ हो तुम? कहाँ ढूंढूं तुम्हें? किस ख़तरे की बात कर रहे थे तुम? कहीं तुम्हें कुछ….” अभिराज सोच ही रहा था कि एक पेड़ नीचे बिखरे पत्तों के बीच उसे एक मोबाइल पड़ा मिला। उसने मोबाइल उठाया। मोबाइल बंद था। उसने उसे अपनी जेब में डाल लिया और तेज आवाज़ में मुकेश को पुकारने लगा –

“मुकेश…मुकेश!”

वहाँ गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था। अभिराज को कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्या करे? वह लाइब्रेरी के दरवाज़े के पास गया और उसे धक्का देने लगा, “कोई है अंदर….”

न दरवाज़ा खुला, न कोई जवाब आया!

अभिराज थक-हारकर दरवाज़े के पास ही सिर पकड़कर बैठ गया। उसकी साँसें तेज रफ़्तार से चल रही थीं और दिमाग किसी चकरी की तरह घूम रहा था, जहाँ हजारों आशंकायें चक्कर काट रही थीं। अचानक कहीं से एक कागज़ उड़ता हुआ आया और उसके कोट में चिपक गया। 

अभिराज ने कागज़ हाथ में लिया और टॉर्च की रोशनी उस पर फेंकी। उस पर लिखा था – 

‘अभि मैं ज़िन्दा हूँ!’  

अभिराज कागज़ हाथ में लिए उठ खड़ा हुआ। अगले ही पल वह फिर खुले आसमान के नीचे खड़ा था और मुकेश का नाम पुकार रहा था।

“मुकेश….मुकेश….!”

उसी समय लाइब्रेरी के पास बने घंटाघर की घड़ी ने बारह बजे का घंटा बजाया और लाइब्रेरी के पीछे के छोर से एक ज़ोरदार चीख सुनाई पड़ी। अभिराज लाइब्रेरी के पीछे की तरफ भागा। मगर वहाँ न किसी इंसान, न किसी जानवर का नामो-निशान था। 

अभिराज हाथ में पकड़ा टॉर्च इधर-उधर घुमाते हुए बदहवास हुआ जा रहा था। तभी पीछे से एक हाथ उसकी तरफ बढ़ा…

क्रमश:

क्या अभिराज पर कोई मुसीबत टूट पड़ी? क्या हुआ मुकेश का? कैसे जुड़े हैं अतीत के राज़ वर्तमान से? जानने के लिए पढ़िए Pyar Ki Ajab Kahani Fatansy Upanyas का अगला भाग।

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Author  – Kripa Dhaani

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