चैप्टर 4 प्यार की अजब कहानी फैंटेसी रोमांस नॉवेल | Chapter 4 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance Novel In Hindi 

चैप्टर 4 प्यार की अजब कहानी फैंटेसी रोमांस नॉवेल,  Chapter 4 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance Novel In Hindi 

Chapter 4 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance Novel In Hindi 

Chapter 4 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Romance Novel In Hindi 

प्रिया हक्की-बक्की रह गई। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि बात कहाँ से कहाँ पहुँच गई। 

“आप सब लोग मिले हुए हो। मैं क्या बात लेकर आई थी और आपने बात कहाँ पहुँचा दी…!“ प्रिया पैर पटकते हुए कह ही रही थी कि अभिराज का मोबाइल बज उठा।

“श्श्श….” अभिराज ने मुँह पर उंगली रखकर सबको शांत रहने का इशारा किया और धीरे से बोला, “शालू की कॉल है।“ और कॉल अटेंड कर ली।

“हाँ शालू बोलो!”

सब ध्यान से अभिराज की बात सुनने लगे।

“अच्छा अच्छा! कल शाम तक तुम लोग दिल्ली पहुँच जाओगे। ठीक है, मैं वहाँ नाईट स्टे का अरेंजमेंट करवा देता हूँ और ड्राइवर भेज देता हूँ। परसो सुबह बाय रोड शिमला के लिए निकल जाना। हाँ…हाँ…हम सब ठीक है…दर्पण और तुम्हारा बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं।“

कॉल काटने के बाद अभिराज ने डिम्पल की ओर देखा। वह कुछ कहने ही वाला था कि निशा बोल पड़ी, “दर्पण और शालिनी आंटी आ रहे हैं…वाव…अब दर्पण यहीं पढ़ेंगी…है ना पापा…मेरे साथ?”

“तेरे साथ कोई पढ़ सकता है?” प्रिया ने ताना मारा।

निशा उसे जीभ दिखाकर चिढ़ाने लगी।

“ओह हो! अब तुम दोनों फिर शुरू मत हो जाओ। पापा को बात बताने तो दो।“ डिम्पल ने उन्हें टोका।

“परसो पहुँच जायेंगी दोनों। एडमिशन की सारी फॉर्मलिटीज़ तो मैं पूरी कर ही चुका हूँ, जो थोड़ी-बहुत बची है, वो शालू आकर पूरी कर लेगी। अब से समझ लेना डिम्पल कि तुम्हारी तीन बेटियाँ हैं। तुम्हें दर्पण का भी ख़याल रखना है।“

“हाँ! पर अच्छा होता कि दर्पण हमारे घर पर रहती।“ डिम्पल ने कहा।

“शालू चाहती है कि वो हॉस्टल में रहे। इसलिए मैंने ज़ोर नहीं डाला। पर वीक-एंड पर हम उसे घर ले आया करेंगे। कम से कम एक दिन तो उसे घर का खाना मिलेगा। भई खाने से याद आया कि ज़ोरों की भूख लग रही है।“ अभिराज ने कहा और सोफे से उठ गया। 

“डिनर रेडी हो ही गया होगा। प्रिया कैलेंडर से कहकर डिनर लगवाओ। हम चेंज करके आते हैं।“ उठते हुए डिम्पल ने प्रिया से कहा और अभिराज के साथ बेडरूम में आ गई।   

बेडरूम में पहुँचकर अभिराज ने डिम्पल से पूछा, “तुम ठीक हो ना!”

“क्यों क्या हुआ मुझे?” डिम्पल ने हैरान होकर पूछा।

“अभी जो जंगल में हुआ था….”

“ओह हाँ…देखो प्रिया और निशा के चक्कर में मैं वो बात भूल ही गई थी।“ डिम्पल जंगल में घटी घटना याद करते हुए बोली।

“अच्छी बात है! उसे भूल ही जाओ, तो अच्छा है। चलो फ्रेश हो जाओ, फिर डिनर करने चलते हैं।“ अभिराज ने उसका कंधा थपथपाकर कहा।

डिनर के बाद डिम्पल बेडरूम में सोने के लिए चली गई और अभिराज अपनी स्टडी में चला आया। वह किताबों का शौक़ीन था और उसके पास नई-पुरानी किताबों का एक बहुत बड़ा कलेक्शन था। सुबह उठने के बाद और रात को सोने के पहले वो किताब ज़रूर पढ़ता था।

वह एक किताब खोल कुर्सी पर बैठ गया और पन्ने पलटने लगा। तभी प्रिया स्टडी में आई और उसके सामने रखी कुर्सी पर चुपचाप बैठ गई।

“कहो बेटा…कुछ कहना है!” अभिराज ने किताब बंद करते हुए उसकी तरफ देखकर पूछा।

“पापा आप ऋषभ वाली बात मज़ाक में कह रहे थे ना…सीरियस तो नहीं थे।”

“बेटा! मैं सीरियस तब होऊंगा, जब तुम उसके लिए सीरियस हो जाओगी और मुझे यक़ीन है कि ये बात तुम अपने पापा से छुपाओगी नहीं।“  

“बिल्कुल नहीं पापा…जब भी ऐसा कुछ होगा, तो सबसे पहले आपको ही बताऊंगी। इसी साल तो कॉलेज खत्म किया है मैंने, अब कुछ वक़्त आपके अंडर रहकर काम सीखना चाहती हूँ। अब निशा तो मैचमेकिंग.कॉम खोल लेगी, मुझे भी तो कुछ करना पड़ेगा…” 

प्रिया ने कहा, तो अभिराज हँस पड़ा और उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर बोला, “मेरा बिज़नस तुझे ही संभालना है बेटा…तू बड़ी है और ज़िम्मेदार भी।“

“पापा शालिनी आंटी को आप कबसे जानते हैं?” अचानक प्रिया ने सवाल किया।

“कॉलेज के ज़माने से। दर्पण के पापा मुकेश और मैं एक ही कॉलेज में थे। मैं उन दिनों तेरी मम्मी को डेट कर रहा था। उसकी सहेली थी शालू। एक दिन तेरी मम्मी के साथ ही शालू से मुलाक़ात हुई। मुकेश भी साथ ही था। पहली मुलाक़ात से ही दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। बाद में दोनों ने शादी भी कर ली।“

“अब दर्पण के पापा कहाँ हैं?”

“पता नहीं बेटा! दोनों ने शादी तो कर ली थी, लेकिन उनके रिश्ते शादी के बाद बिगड़ने से लगे थे। दर्पण के पैदा होने के महीनों पहले मुकेश कहीं चला गया। उसके बाद आज तक उसका कुछ पता नहीं चला।“

“दर्पण को पता है ये बात?”

“पता ही होगी…पर तुम कभी इस बात का ज़िक्र उसके सामने मत छेड़ना बेटा…”

“हम्म…मम्मा और आप शालिनी आंटी के बहुत क्लोज हैं ना!”

“हाँ बेटा! भले ही हम एक शहर में न सही…हमारे रिश्ते की नींव बहुत मजबूत है। शहरों की दूरी मुलाकातें कम कर सकती हैं, रिश्तों से आत्मीयता नहीं। अब दर्पण यहाँ आ जायेगी, तो मुलाक़ातें भी बढ़ जायेगी।“

“पर दर्पण अपने आखिरी साल में अचानक यहाँ क्यों आ रही है पापा?” प्रिया के इस सवाल ने अभिराज को ख़ामोश कर दिया। 

“पापा….”

“बेटा…रात काफ़ी हो गई है, सोने चलें…बातें तो चलती रहेंगी।“ अभिराज ने प्रिया का हाथ थपथपाया।

“हम्म…गुड नाईट पापा एंड लव यू!” कहकर प्रिया स्टडी से निकल गई।

अभिराज ने उठकर किताब शेल्फ़ में रख दी और बालकनी में खड़े होकर तारों भरे आसमान को देखने लगा।  

“दर्पण बेटा! मैं समझता हूँ तुम्हें। तुम अब तक अपने पापा के लिए तरसी हो और अब से माँ के लिए तरसोगी। काश! तुम ठीक हो।“  

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भोपाल में दर्पण अब भी उदास रंग में डूबी हुई थी। दिल का गुबार निकालने के बाद वह पेन को डायरी पर यूं ही लुढ़कता छोड़कर बालकनी पर निकल आई और बारिश को निहारने लगी। आसमान की ओर निगाह उठाते हुए उसने अपना दांया हाथ आगे बढ़ा दिया और हथेली पसारकर बारिश की बूंदों को समेटने की कोशिश करने लगी।

“देखो, आज तो आसमान भी रो रहा है।” उसके अंतर्मन कहा। 

वो अकेली थी, परेशान थी, दर्द में थी। अपने ज़ज्बात उसे कहीं न कहीं ज़ाहिर करने ही थे। इसलिए वह भी उस धारा में बह गई।  

“ज़िन्दगी इतनी मुश्किल क्यों है?” उसने सवाल किया। ये सवाल था, उस लड़की का, जिसने बमुश्किल ज़िन्दगी के सोलह बसंत देखे थे; जो ज़िन्दगी की मुश्किलों से कोसो दूर थी; जिसे ये मालूम ही नहीं था कि मुश्किलें दरअसल होती क्या हैं? 

“ज़िन्दगी ऐसी ही होती है। हमें इसका सामना करना होता है।” अंतर्मन उसे ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा समझाने लगा, जिसमें उसकी कतई रूचि नहीं थी। 

“इसे झेलने का कोई और रास्ता नहीं?” उसने फ़िर से सवाल किया।  

“जैसे?” अंतर्मन ने उसे टटोला।

“जैसे….भागना…..छुप जाना……” उसने हिचकिचाते हुए कहा।

“भागना या छुपना किसी परेशानी का हल नहीं। कभी न कभी तो उस परेशानी का सामना करना ही होगा, तो फ़िर आज क्यों नहीं?”

“पर आज ही क्यों?” रोआंसी होकर दर्पण बोली।

“तुम क्यों इसका सामना करना नहीं चाहती?”

“क्योंकि मेरा दिल नहीं चाह रहा।”

“तो अब तुम ही बताओ कि तुम्हारा दिल क्या चाह रहा है?” 

“मेरा दिल चाह रहा है कि मैं जी भरकर रो लूं।” 

“तो फ़िर वैसा ही करो। जी भर कर रो लो।” कहकर अंतर्मन शांत हो गया।

दर्पण रोई, रोई और बहुत रोई।

“मुझे कोई प्यार नहीं करता, कोई भी नहीं! आप कहाँ हैं डैड? आई मिस यू! प्लीज कम बैक! प्लीज!” 

दर्पण अपने पिता को याद कर ज़ार-ज़ार रो रही थी। नीचे दरवाजे की चौखट के पास खड़ी शालिनी भी उसकी बात सुनकर रो रही थी, “आज तुझे अपने पापा की याद आ रही है दर्पण, जिसने तेरी कभी परवाह ही नहीं की और मुझे एक लम्हे में तूने पराया कर दिया।

क्रमशः 

दर्पण की नई दुनिया कैसी होगी? क्या होगा उसके साथ इस नये स्कूल में? मुकेश कहां है? क्या है उसका राज़? क्या दर्पण अपने पिता का राज़ जान पायेगी? और कौन है वो, जो उसकी ज़िंदगी में आने वाला है? क्या शुरू होगी, प्यार की अजब कहानी? जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।

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Author  – Kripa Dhaani

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