चैप्टर 3 रूठी रानी मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास

Chapter 3 Ruthi Rani Novel By Munshi Premchand

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रंग में भंग

शादी हो जाने के बाद लड़की अपने महल में चली गई। बूढ़ी औरतें इधर-उधर खिसक गयीं। बहू की सहेलियां राव जी को उसके महल की तरफ ले चलीं। रास्ते में एक जगह गाना हो रहा था। कितनी ही चन्द्रवनी सुंदरियां सुहाग के गीत अलाप रही थीं। राव जी चलते-चलते वहां फिसल पड़े। औरतों के गाने और रूप-रंग ने उन पर जादू कर दिया। वहीं डट गए। खवासें दौड़ीं। एक ने चांदनी, दूसरी ने सोजनी और तीसरी ने तकिए लगा दिए। पांच-सात सखियों ने मिलकर छोटा-सा शामियाना खड़ा कर दिया। राव जी लट्टू हो गए, फिर क्या था वहीं बैठ गए। दो खवासें दाएं-बाएं मोरछल लेकर खड़ीं हो गयीं, दो चंवर हिलाने और पंखा हिलाने लगीं। गर्मियों की सुहानी रात। चांदनी छिटकी हुई थी। ठण्डी हवा चल रही थी। भीनी-भीनी खुशबू चारों तरफ फैली हुई थी और राव जी उस परिस्तान में इन्द्र बने परियों से चुहल और छेड़-छाड़ कर रहे थे। गाइनें चुप थीं और सामने कुछ फासले पर चन्द नाचने वालियां बनी-ठनी इशारे का इंतजार कर रही थीं।

कलोल करने वालियों में से एक लड़की ने आगे बढ़कर राव जी को सलाम किया और सोजनी से कुछ हटकर बैठी और गानेवालियों को इशारा किया कि हां कुछ छेड़ो, खड़ी मुंह क्या ताकती हो।

बस तबले पर थाप पड़ी और गानेवालियां ऊंचे और मीठे सुरों में गाने लगीं–

भर ला ऐ सुघड़ कलाली

पीवनवालो लाखों रो

इस लड़की ने जो चन्द्रज्योति के नाम से मशहूर थी, पन्ने के हरे प्याले में लाल शराब भरकर हंसते हुए राव के सामने पेश की। उन्होंने बड़े शौक से लेकर शराब पी और प्याला अशर्फियों से भरकर लौटा दिया। चन्द्रज्योति ने उठकर सलाम किए और अपने गले का चन्द्रहार तोड़कर उसके मोती राव जी पर से निछावर करके गानेवालियों की तरफ फेंकने लगी। गाइनें सोरठ के सुर में गाने लगीं।

बिरज देसां चन्दन बनां मीरों पहाड़ां मोड़

गरुड़ खगां लंका गढ़ां राजकुलां राठौर

(देश में वृज, वनों में चंदन, पहाड़ों में मीरो, चिड़ियों में गरुड़ और किलों में लंका सबका सरताज है। वैसे ही सब राजघरानों में राठौर का घराना सबसे ऊंचा है।)

चन्द्रज्योति ने फिर प्याला भर कर राव जी को दिया और गाइनें गाने लगीं—

दारू पियो रन चढ़ो राता राखो नैन

बैरी तुम्हारा जल मरे सुख पावेगा सैन।

(शराब पियो और लड़ने को चढ़ो, आंखें लाल रक्खो जिससे तुम्हारे दुश्मन जल मरें और दोस्त खुश हों।)

दारू दिल्ली आगरा दारू बीकानेर

दारू पियो साहब सौ रूपां रा फेर

(शराब ही दिल्ली आगरा है और शराब ही बीकानेर। ऐ साहब, शराब पीजिए, इसका एक-एक दौर सौ-सौ रुपये का है)

सोरठ तो दूहा भलो कपड़ा भलो सफेद

नारी तो नबली भली घोड़ा भलो कुमैत

भर ला ऐ सुघड़ कालाली।

(पदों में दोहा, कपड़ों में सफेद कपड़ा, औरतों में नवेली औरत और घोड़ों में कुमैत घोड़ा अच्छा होता है। ऐ छोकरे शराब ला।)

इन गाने-बजाने और तपस्विनियों का व्रत भंग करने वाली स्त्रियों के लुभाने-रिझाने ने राव जी का दिल छीन लिया। उस पर गानेवालियों का समवेत स्वर में तान लगाना और भी सितम ढा गया। राव जी ऐसे बेसुध और आनन्द की सुरा में ऐसे मस्त हुए कि अपनी नई-नवेली दुल्हन को भूल गए, जो उनकी प्रतीक्षा में अपनी बाहें खोले खड़ी थी।

रावजी की राह देखते-देखते उमादे की नशीली आंखें झपकने लगीं। कितनी ही बांदियां उनको बुलाने के लिए गयीं पर राव जी उन परियों के जमघट से न उठ सके यहां तक कि रात बहुत कम बाकी रह गई।

रानी ने जब देखा कि वह और किसी के बुलाने से नहीं आते हैं तो अपनी चंचल सहेली भारीली से कहा कि अब राव जी को लाना तेरा ही काम है। उसने कहा कि राव जी इस वक्त आपे में नहीं हैं, मुझे न भेजिए। मगर उमादे ने न माना और उसी को भेजा।

इधर शादी की महफिल भी सजी हुई थी। गाइनें तैयार बैठी थीं। शराब की बोतलें चुनी हुई थीं। गजक तश्तरियों में धरी हुई थी। सिर्फ राजा के आने की देर थी। रानी को यकीन हो गया कि भारीली गई है तो राजा को जरूर ही खींच लाएगी। गानेवालियों को इशारा किया कि कुछ छेड़ो और वह मीठे सुरों में गाने लगीं—

महलां पधारो महाराज हो

दारू रा भारो महलां पधारो, महाराज हो

कदरी जोहूं सेजां बाट हो

(महाराज, महलों में तशरीफ ले चलिए। ऐ शराब का मजा उड़ाने वाले, महलों में चल। मैं बहुत देर से सेज पर इंतजार में बेचैन हो रही हूं।)

मौके महल के मुताबिक गीत सुनकर उमादे मुस्कराई और फिर लजाकर आंखें नीचे कर लीं। इस वक्त उसके यौवन के नशे में मस्त दिल की जो कैफियत हो रही थी, बयान नहीं की जा सकती। खवासें, सहेलियां दम-दम पर दौड़ाई जाती थीं कि देख राजा जी आ तो नहीं रहे हैं। प्रेमिका इंतजार से बेचैन हो रही थी। गानेवालियों ने गीत का दूसरा बंद गाया–

मथुरा पुंगल पराग मरो लाहौरी भटनेर

देरावर गढ़ गजनी और नगर जैसलमेर

महलां पधारो, महाराज हो।

(मथुरा, पुंगल, प्रयाग, मारवाड़, लाहौर, गजनी देरावर, भटनेर और जैसलमेर, यह सब देश भाटियों के हैं। ऐ महाराज, महलों में तशरीफ ले चलिए)

अबकी सहेलियों ने उमादे पर से कुछ अशर्फियां न्योछावर करके गादने को दीं और उन्होंने खुश होकर यह दूसरा गीत शुरू किया–

तारां छायी रात फूलों छायी सेज

गोरी छायी है रूप प्यारे बेगां बेगां आओ।

रंग मानो हमारे राव

(ऐ मेरे राव, जवानी के मजे लूटिए। रात तारों से, सेज फूलों से और गोरी मस्ती के जोश से भरी हुई है, प्यारे जल्द आकर सुख लूटो।)

इतने में एक खवास ने कहा कि वहां राव जी नशे में चूर बैठे हैं और सुराही और प्याले के गीत अलापे जा रहे हैं। वह सुनकर गानेवालियों ने यहां भी गीत शुरू कर दिया, बस उसके पद बदल दिए–

भर ला ऐ सुघड़ कलाली दारू दाखां रो

सोने री भट्टी सरूं रूपे ही घर नार

हाथ पिलायो धन खड़ी पीयो राजकुमार

(ऐ सुघड़ साकी, अंगूरी शराब भर ला। सोने की भट्टी और चांदी का बीका बनाऊं। रानी अपने हाथ में प्याला लिए कहती हैं, राजकुमार, तुम पियो।)

आम फले पतदार सों महू फले पतखोय

ताको रस साजन पिए लाज कहां ते होय

(आम पत्तियों के साथ फलता है और महुआ अपने पत्ते खोकर। उसका रस साजन पीता है फिर उसे लाज क्योंकर आए? जिस वक्त महुए के फूल लगते हैं सारे पत्ते झड़ जाते हैं। पत में श्लेष है। पत का मतलब पत्ता भी है और लाज भी। मतलब यह है कि शराब बे शर्म महुए से बनाती है तो शराब पीने वाला क्योंकर लाज निभा सकता है।)

महलों में पुकार पड़ी है और ऐ बेटे राजकुमार, तुमको आने की फुर्सत नहीं। इधर चंचल, शोख, भारीली कुछ इस अंदाज में इठलाती, लचकती, बलखाती राव जी के पास पहुंची कि वह जवानी और शराब की मस्ती में उसी को रानी समझकर उसके साथ चल दिए। भारीली ने भी उन्हें वहां से हटा ले जाना ही ठीक समझा। मगर वह भी चुलबुली तबीयत की लड़की थी, राव की नजर अपने ऊपर बेढब पड़ते देखकर ललचा गई। यह न कहा बन्दी रानी नहीं, बांदी ही है। बल्कि राव जी को धोखे में डालकर अपने घर ले गई। रानी उमादे ने जब यह सुना तो सन्नाटे में आ गई। और उसकी गाइनें गाने लगीं–

भर ला ऐ सुघड़ कलाली

पहलां तोछी कलाली हमारा मारो जी रे ले भालिनी

अब छे आलीलारी घर नार

(भरा ला ऐ सुघड़ कलाली, अंगूरी शराब ला। पहले तो कलाली उसकी प्रेमिका थी, पर अब तो उस आलीजाह की घरवाली हो गई है।)

बिजलियां माडे चियान ऊपर ले रलियां

परदेसियां रा साजना पती जे मिलियां

(जैसलमेर देश में जह बिजलियां चमकती हैं वह ऊपर की ऊपर चली जाती हैं। ऐसे ही परदेशी साजन से मिलने का यकीन नहीं होता)

गड़री लीनी बांधी चली कपास

दासी दीनी बिच गई पिऊ रे पास

(भेड़ ली तो थी उनके लिए पर अब वह बंधी हुई कपास चरती है। लौंडी दहेज में दी गई थी, अब वह पिया से हिल-मिल गई है।)

उमादे का विलास भवन राव जी की इस उदासीनता में ठंडा पड़ गया। उसकी चढ़ती हुई जवानी, नहीं मालूम दिल में क्या-क्या उमंगें जोश मार रही थीं। क्या-क्या हौसले पैदा हो रहे थे, उसने पति के स्वागत में क्या-क्या तैयारियां न की थीं, सुराही और प्याला, नाच और गाने, बनाव-चुनाव में कोई कसर न छोड़ी थी मगर अफसोस सब सामान धरा रह गया। वह झल्लाकर उठी, गानेवालियों से कहा, तुम लोग जाओ, और सुराही व जाम उठाकर पटक दिए। वह थाल जो आरती के लिए बहुत रचकर सजाया था और जो सुनहले दीपों से जगमगा रहा था, उसने औंधा कर दिया और गम गुस्से की हालत में पलंग पर मुंह लपेटकर सो रही। उस वक्त जो ख्यालात उसके दिल में पैदा होते थे उनका अंदाजा लगाना मुश्किल है। अगर राव मालदेव यों न बहक जाते तो अब तक ही कमरा स्वर्ग बना होता, अंगूरी शराब के दौर चलते होते, सुरीले रागों से कमरा गूंजता होता—और प्रेमी और प्रेमिका एक-दूसरे के दर्शन के मजे लूटते होते। मगर यह बातें अब कहां।

सवेरा हुआ। राव जी का नशा उतरा। जिस छोकरी को रानी समझे हुए थे, उसे देखा तो पानी का घड़ा और चिलमची लिए शाही महल की तरफ जा रही है। समझ गए बड़ा धोखा हुआ। उसी वक्त शरमाए हुए महल में गए। वहां का सन्नाटा, महल की वीरानी और रानी की बेरुखी देखकर दिल बैठ गया। बोले–

मान गुमानी कामिनी उमादे बड़ भाग

रूठी बैठी सेज में मालदेव पिया को त्याग।

(ऐ बड़े रुतबेवाली नाजनीन उमादे, तू जिद में आकर क्यों अपने पिया से रूठी सेज पर बैठी हुई है?)

राव जी को देखते ही वह उठ खड़ी हुई, पर मुंह से कुछ न बोली। भवों की कमान को खींचकर, उसमें पलकों के तीर पर निशाना लगाए हुए, हाथ मरोड़े, मुंह मोड़े गोरी पी से भरी बैठी है।

खवासें दूर-दूर चुप खड़ी थीं। भारीली का डर के मारे लहू सूखा जाता था। पर गानेवालियां बंद न हुईं। वे गाने लगीं-

ऐ शराब में मस्त महाराज

तुम्हें शराब किसने पिलाई।

राव जी ने बहुत कहा कि मैं नशे में था, इस वजह से ऐसी गलती हुई, मगर रानी ने एक न सुनी। गानेवालियों ने भी राव के इशारे से बहुत से रूठे हुए को मानने वाले गीत गाए मगर रानी पर कुछ असर न हुआ। इस झमेले में दिन बहुत चढ़ आया। आखिरकार राव जी यह सोचकर कि फिर मना लेंगे, महल से बाहर निकल आए। उसी वक्त उनके सरदार भी रावल जी के पास से उठे।

राव जी ने फिर महल के अंदर जाकर अपनी जान खतरे में डालना ठीक नहीं समझा। बाहर ही से रुखसती की दरख्वास की। रावल जी भी यही चाहते थे कि भेद न खुले। चुपचाप विदाई हो जाए।

उमादे राव जी के साथ जाने को राजी नहीं होती थी। राघोजी ज्योतिषी ने यह सुना तो उसने कहा कि कल तुम्हें राव जी की जान प्यारी थी, क्या आज वह प्यार जाता रहा? उनकी जान अभी तक खतरे में है इस वक्त रूठने का मौका नहीं है।

यह सुनकर रानी नर्म हुई। हिन्दू राजा की लड़की थी और हिन्दू धर्म को मानने वाली, जो पत्नी को पति की पूजा करने की शिक्षा देता है। मां के पास गयी, कुछ देर सखियों के गले मिलकर रोती रही, फिर दो घूंट पानी पिया और चुपचाप सुखपाल में बैठ गयी।

राव जी के कहने से उमा देवी ने भारीली को भी अलग एक रथ में बिठा लिया, गोया अपनी तबाही को अपने साथ ले चली। ज्योतिषी जी पहुंचाने के बहाने से साथ हो गए। उनके बेटे चण्डो जी पहले से राव के लश्कर में आ गए थे, क्योंकि इन दोनों को डर था कि रावल जी कहीं पीछे से उनकी मरम्मत न करें। क्योंकि रावल जी को संदेह हो गया था कि इन्हीं दोनों की साजिश से शिकार हाथ से गया।

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