चैप्टर 3 प्यार का पागलपन लव स्टोरी नॉवेल कृपा धानी | Chapter 3 Pyar Ka Pagalpan Love Story Novel In Hindi By Kripa Dhaani

चैप्टर 3 प्यार का पागलपन लव स्टोरी नॉवेल कृपा धानी | Chapter 3 Pyar Ka Pagalpan Love Story Novel In Hindi By Kripa Dhaani

Chapter 3 Pyar Ka Pagalpan Love Story Novel In Hindi 

Chapter 3 Pyar Ka Pagalpan Love Story Novel In Hindi 

नैना दायें गाल पर दांया हाथ रखे जड़ होकर खड़ी थी। डिम्पी हैरान नज़रों से उसे देख रही थी। आखिर उसने पूछ ही लिया, “दी! ये साजन मेहता कौन है?” 

“कोई नहीं…!” नैना गुमसुम सी बोली। उसका हाथ अब भी गाल पर था।

“तो फ़िर आपने उसका नाम क्यों लिया? कोई न कोई तो है ये साजन मेहता। मैंने तो सोचा था कि आप ‘आई लव…’ में कोई नाम बोलोगी। लेकिन आपने ‘आई हेट….’ में बोला। आपका बॉस है क्या साजन मेहता? पक्का आपका बॉस ही होगा?” डिम्पी ने अंदाज़ा लगाते हुए कहा।

“नहीं रे! बॉस नहीं है। स्कूल में था एक लड़का…” नैना सोचते हुए बोली।

“और आपको अब तक उससे इतनी नफ़रत है?”

“नहीं रे! इतने साल हो गये। मुझे तो याद भी नहीं था। स्कूल के बाद कभी सोचा ही नहीं उसके बारे में और कभी ये नाम ज़ुबान पर आया भी नहीं। पता नहीं आज कैसे आ गया।” 

“खैर, जो भी हो ये साजन मेहता! लगता है यही है, जो आपके सब-कॉन्सस माइंड में बैठा हुआ है और आपको शादी करने से रोक रहा है।” डिम्पी पूरे कॉन्फिडेंस से बोली।

नैना ने उसकी इस बात पर मुँह बना लिया, “हट, कुछ भी बोलती है! चल अब घर जा। देर हो गई है। तेरी मम्मी रास्ता देख रही होगी। मुझे भी खाना बनाना है।” 

नैना की बात का डिम्पी पर कोई असर नहीं हुआ, “…दी वो आई हेट साजन मेहता ही है….समझ जाओ…” 

“मुझे नहीं समझना। तू जा घर।“ नैना ने उसे फिर घर भेजने की कोशिश की, मगर नाकामयाब रही। वह टस से मस नहीं हुई, बल्कि उसने किचन शेल्फ से एक डिब्बा उठाया और उसे खोलकर उसमें रखी बिस्किट खाने लगी।

नैना को भी उसने ऑफर किया, “बिस्किट खा लो दी…और हाँ गाल से हाथ भी हटा लो। लगता है झन्नाटेदार पड़ी है।”

डिम्पी की बात सुनकर नैना को होश आया कि इतनी देर से उसका हाथ गाल पर ही है। वह अचकचा गई और गाल से हाथ हटाते हुए लड़खड़ाती ज़ुबान में बोली, “क..क…क्या झ..झ…झन्नाटेदार पड़ी है…..”

“थप्पड़ की गूंज अब तक याद है आपको, क्यों?” डिम्पी ने भौंहें उचकाई।

“ज्यादा दिमाग मत चला। तू जो सोच रही है ना, वैसा कुछ भी नहीं है।”

“कुछ तो गड़बड़ है।” सी.आई.डी. के ए.सी.पी. की तरह गोल-गोल हाथ फिराते हुए डिम्पी ने कहा, “केस की तह तक जाना होगा।”

”अभी घर तक जाना होगा…समझी….चल अब जा….” नैना ने उसके सिर पर चपत जमाते हुए कहा।

डिम्पी डिब्बे से दो-तीन बिस्किट्स और निकालकर बोली, “मैं सब समझ रही हूँ दी। या तो किसी ने ज़ोरदार थप्पड़ मारा है या बड़े प्यार से किस किया है।” 

“तू जाती है या नहीं।” नैना चिल्लाई।

“जा रही हूँ….” हँसते हुए डिम्पी ने कहा और भागकर दरवाज़े से बाहर निकल गई।   

डिम्पी जा चुकी थी, मगर नैना के दिमाग में उथल-पुथल मचाकर। 

साजन मेहता!!

इतने सालों बाद आज उसके ज़ेहन में ये नाम फिर तैरने लगा था। उसे लगता था कि इस नाम को तो वो कब का दिमाग से निकालकर बाहर फेंक चुकी है। लेकिन नहीं! वो तो अब तक दिमाग के किसी कोने में छुपा बैठा था। वो भी इतने सालों से। दस साल हो चुके थे, दस साल।

नैना ने सिर झटका और ख़ुद से बोली, “ये डिम्पी के चक्कर में कौन याद आ गया? नैना हटा इसे दिमाग से और जल्दी से खा-पीकर सो जा। कल सुबह रायसेन के लिए निकलना भी है।”    

वह खाना बनाने लगी। खाना खाने के बाद बिस्तर पर लेटकर, जब तक वो नींद के आगोश में समा नहीं गई, ‘साजन मेहता’ नाम उसके ज़ेहन में तैरता रहा।

सुबह पाँच बजे घड़ी का अलार्म बजा। मगर उसकी आँख नहीं खुली। ज़रूरत ही नहीं थी, क्योंकि हाथ ने बखूबी अपना काम कर दिया था, टटोलकर साइड टेबल पर रखी घड़ी का अलार्म बंद करने का काम। 

वह फ़िर से ख़्वाबों की दुनिया की सैर पर निकल गई। साढ़े आठ बजे उसकी आँख खुली, रोज़ उठने के समय से डेढ़ घंटा देरी से। अब भी उसका मन बिस्तर छोड़ने का नहीं था। रविवार का दिन था और वह जी भरकर सोना चाहती थी। मगर जैसे ही घड़ी पर उसकी नज़र पड़ी, वह स्प्रिंग की तरह उछलकर उठ बैठी।

“उफ्फ्.. उफ्फ्…उफ्फ्…इतनी देर हो गई। जिस दिन जल्दी उठने की सोचो, उसी दिन देर हो जाती है। अब तक तो मुझे रायसेन में होना चाहिए था….हे भगवान क्या करूं….मम्मी की कॉल आती ही होगी…..” बड़बड़ाते हुए चादर फेंककर वह बिस्तर से नीचे उतर गई और अपना मोबाइल खोजने लगी।

साइड टेबल पर नहीं था। तकिये के नीचे भी नहीं था। चादर झड़ाई, बेडशीट झड़ाई, मगर मोबाइल नहीं मिला, “कहाँ रख दिया…कहाँ रख दिया?” नैना बड़बड़ाती रही और सोचती रही। सोचते-सोचते उसकी आँखों की पुतलियाँ इधर-उधर भटकती रही।

उसे कुछ याद नहीं आया। अब एक ही ऑप्शन बचा था। वह बालकनी में निकलकर चिल्लाई, “डिम्पी…डिम्पी!” 

बगल के तिमंज़िला मकान की पहली मंज़िल की बालकनी पर डिम्पी निकल आई और बिना कुछ कहे सिर उठाकर सवालिया नज़रों से नैना को देखने लगी। नैना अपने मकान की दूसरी मंज़िल पर रहती थी। 

“डिम्पी एक कॉल देना तो मेरे नंबर पर….” नैना रेलिंग पकड़कर नीचे देखते हुए डिम्पी से बोली।

“आज फ़िर….” डिम्पी ने कहा और अंदर चली गई । उसके अंदर जाते ही मोबाइल की रिंग नैना के कानों में पड़ी। वह भागकर अंदर गई। मोबाइल बाथरूम के वाश बेसिन पर पड़ा भनभना रहा था। 

उसने मोबाइल उठाया और झटपट माँ को मैसेज भेज दिया, “निकल गई हूँ। जल्दी पहुँच जाऊंगी।” 

मैसेज भेजने के फ़ौरन बाद उसने मोबाइल स्विच-ऑफ कर दिया। पता था कि कुछ ही देर में घर से कॉल आने का सिलसिला शुरू हो जायेगा और साथ ही झिड़कियों का भी। मोबाइल ऑन रखकर पूरे रास्ते डांट कौन सुने? सीधे घर पहुँचकर एक बार में ही पूरी डांट खा लेना बेहतर ऑप्शन था। 

दस बजे उसने रायसेन के लिए बस पकड़ी। भोपाल से रायसेन की दूरी महज़ चवालीस किलोमीटर है, तकरीबन एक घंटे का सफ़र। कार से जाया जा सकता था। मगर घर से सख्त हिदायत थी कि ड्राइव करते हुए मत आना। ड्राइवर की व्यवस्था करने की ज़हमत नैना ने नहीं उठाई। बस बेस्ट ऑप्शन था।       

हाँ! बस बेस्ट ऑप्शन था। पर तब तक, जब तक उसका टायर पंचर नहीं हुआ था। बस का टायर पंचर हो गया और नैना का दिल बैठ गया। ‘अब घर पहुँचने पर डांट पक्की!’ सोच-सोच कर उसने बस को बहुत कोसा। थोड़ा-बहुत ख़ुद को भी, क्योंकि बस से जाने का आईडिया आखिर था तो उसी का।

बारह बजे के आस-पास नैना घर पहुँची और डरते-डरते डोरबेल बजाई। दरवाज़ा खुला। सामने माँ थी – “रानी“, जो उस वक़्त गुस्से में झांसी की रानी लग रही थी। गोरी चिट्टी, दुबली-पतली उम्र के पचासवें पायदान में भी दिखने में आकर्षक थी रानी और उस समय गुस्से से लाल-पीली रानी का आकर्षण तो नेक्स्ट लेवल था, जिसे देखकर नैना सिहर रही थी।

“आ गई…” गुस्से को फुसफुसाहट में दबाते हुए रानी ने कहा।

जवाब में नैना ने बत्तीसी निपोर दी। 

रानी ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा। उसने ब्लैक जींस पर लेमन कलर की टी-शर्ट पहन रखी थी, जिस पर कॉफ़ी कलर के स्टाइलिश फॉण्ट में लिखा था – ‘सॉरी आई एम लेट’।

रानी की नज़र ‘सॉरी आई एम लेट’ पर टिक गई। कहने का तो बहुत कुछ जी कर रहा था उसका, लेकिन मेहमानों के आ चुके होने के कारण पूरी तरह ज़ुबान खुल नहीं पा रही थी।  

“वो लोग आ गए क्या?” नैना ने धीमी आवाज़ में खिसियाकर पूछा। हालांकि उसे अंदाज़ा लग गया था कि मेहमान घर पर पधार चुके हैं।

“आ गये हैं। अब हर कोई तेरे जैसा लेट-लतीफ़ नहीं होता।” माँ ने गुस्से में लपेटकर स्लो मोशन में ताना मारा।

“तो पीछे वाला दरवाज़ा खोल दो ना, वहाँ से मैं ऊपर अपने रूम में चली जाती हूँ।”

“क्यों? चल पहले मेहमानों से मिले ले।”

“मम्मा! मैं सफ़र से आई हूँ। हालत तो देखो मेरी। पहले फ्रेश हो जाऊं, फिर मिल लूंगी।” 

“कुछ नहीं होता…पहले मिल ले…बाद में फ्रेश हो जाना। वैसे भी तुझे देखने थोड़ी न आये हैं।” रानी की इस बात से नैना लाजवाब हो गई। वह अनमने ढंग से उनके पीछे हो ली। उसकी निगाहें नीची थी। रानी की बात का उसे बुरा भी लग रहा था। शादी न करने के फ़ैसले की वजह से नैना को अक्सर रानी से इस तरह की चार बातें सुननी पड़ती थी। इस तरह रानी उसे मनाने की कोशिश करती थी या गुस्सा निकालती थी, ये नैना की समझ के परे था।

वे लोग ड्राइंग रूम में पहुँचे, जहाँ नैना के पापा नरेन्द्र और बहन पिया मेहमानों के साथ ही बैठे थे। मेहमानों में पिया को देखने आया लड़का और उसके मम्मी-पापा थे। लड़का जहाँ बैठा था, वहाँ से उसकी पीठ नैना को नज़र आ रही थी, शक्ल नहीं।

उनके क़रीब पहुँचकर रानी ने कहा, “ये नैना है, हमारी बड़ी बेटी और नैना ये हैं रमेश जी और उनकी पत्नी सलोनी जी…..” 

परिचय का सिलसिला शुरू हो गया। नैना ने होंठों पर हल्की मुस्कान सजा ली और हाथ जोड़ दिये। 

रानी ने परिचय का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए कहा, “…..और ये हैं इनके बेटे…साजन….”

नाम सुनकर नैना चौंकी, फिर एक कदम आगे बढ़ाकर कुछ झांकते हुए, अपनी तरफ़ पीठ किये लड़के को देखने की कोशिश की। वो लड़का भी पलट गया और उसे देखते ही नैना के होश उड़ गये। 

क्रमश:

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Author  – Kripa Dhaani

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कौन है ये साजन मेहता? नैना से इसका क्या रिश्ता है? जानने के लिए पढ़े कहानी का अगला भाग। उम्मीद है, आपको पसंद आया होगा। ऐसे ही Hindi Novels, Hindi Short Stories पढ़ने के लिए हमें subscribe करना ना भूलें। धन्यवाद!

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