चैप्टर 2 प्यार की अजब कहानी फैंटेसी लव स्टोरी नॉवेल | Chapter 2 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Love Story Novel In Hindi Read Online

चैप्टर 2 प्यार की अजब कहानी फैंटेसी लव स्टोरी नॉवेल | Chapter 2 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Love Story Novel In Hindi, Fantasy Romance Book Hindi 

Chapter 2 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Love Story Novel 

Chapter 2 Pyar Ki Ajab Kahani Fantasy Love Story Novel 

फोन पर प्रिया को ऋषभ की नहीं, बल्कि एक औरत की आवाज सुनाई पड़ी, “ये क्या बोल रही हो तुम?”

प्रिया घबरा गई। उसने धीमी आवाज में पूछा, “आप कौन?”

“मैं शालिनी मेहरा बोल रही हूँ भोपाल से।”

“नमस्ते आंटी! मैं प्रिया बोल रही हूँ।”

“प्रिया बेटा! कुछ प्रॉब्लम है क्या?”

“नहीं आंटी! वो बस…कुछ फ्रेंड्स कॉल करके परेशान कर रहे  थे।” प्रिया हिचकते हुए बोली, “वैसे अपने लैंड लाइन पर कैसे कॉल कर लिया?”

“बेटा! तुम्हारे पापा और मम्मी दोनों का मोबाइल नहीं लग रहा।“ शालिनी ने कहा।

“आंटी वो हॉटल से घर लौट रहे होंगे। उस एरिया में कभी-कभी सिग्नल प्रॉब्लम हो जाती है।“

“अच्छा ठीक है! मैं थोड़ी देर बाद कॉल कर लूंगी। वैसे तुम उन्हें बता देना कि मैं और दर्पण कल दिल्ली के लिए निकलेंगे। वहाँ नाईट स्टे करेंगे, फिर अगले दिन शिमला पहुँचेंगे।“

“जी आंटी! दर्पण को हलो कहियेगा।“ 

“हाँ बेटा!”

कॉल काटकर शालिनी बाहर होती रिमझिम बारिश की फुहारों को देखने लगी।

“दर्पण! इतनी नफ़रत हो गई तुझे मुझसे कि तू मुझसे दूर जाना चाहती है बेटा।“ बुदबुदाते हुए उसकी आँखों में आँसू छलक आये।

आँसू दर्पण की आँखों में भी छलक रहे थे, जो अपने कमरे में स्टडी टेबल के सामने रखी कुर्सी पर ख़ामोशी से सिर झुकाये बैठी हुई थी। आँसुओं को संभालने के लिए उसने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढांप लिया था। कुछ देर वह यूं ही बैठी रही। फिर चेहरे से हाथ हटाकर आँसुओं को पोंछा, टेबल पर रखी डायरी खोली, कलम उठाई और डायरी के सफ़ेद पन्ने को अपने ज़ज्बातों के रंग से रंगने लगी। 

डियर डायरी,

माय बेस्ट फ्रेंड!

देखो आज मैं फ़िर तुम्हारे साथ हूँ। कहाँ जाऊं? तुम ही मेरी हमदर्द हो, तुम ही मेरी हमनवां। एक तुम ही तो हो, जहाँ अपनी हर ख़ुशी, हर ग़म, हर ज़ज्बात, हर अहसास बांट सकती हूँ; एक तुम ही तो हो, जिसके सामने मैं अपना दिल खोलकर रख सकती हूँ; एक तुम ही तो हो, जहाँ अपने आँसुओं के निशां छोड़ सकती हूँ। हमारा हार्ट-टू-हार्ट कनेक्शन जो है।

हाँ ये सच है कि तुम्हारा दिल मेरे दिल की तरह नहीं धड़कता। पर वो है ज़रूर, जो बड़ी ही ख़ामोशी से मेरे हर अहसास ख़ुद में समेट लेता है। बस इसलिए खिंची चली आती हूँ तुम्हारे पास। जानती हूँ कि एक शब्द नहीं कहोगी तुम, पर मुझे समझोगी ज़रूर।

जानती हो! कल इस शहर को अलविदा कहने का दिन है। जाने क्यों अलविदा कहना इतना मुश्किल होता है? ये शब्द सोचकर ही मेरा दिल दु:खता है। शायद, इसलिए कि इसमें अपनों को खो देने का, अकेले कहीं छूट जाने का अहसास छुपा है; मैं इस अहसास को जीने से डरती हूँ। मैं अपनों को छोड़कर अनजानों के बीच जाने से डरती हूँ। सच तो ये है कि मैं इस डर से ही डरती हूँ।

कहीं छूट सी गई हूँ मैं, बिल्कुल अकेली बिल्कुल तन्हा। दिल बार-बार पूछता है – मम्मा, क्यों किया आपने मेरे साथ ऐसा? आखिर क्यों? मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि आप मुझे यूं छोड़ देंगी। कभी माफ़ नहीं करूंगी मैं आपको, कभी नहीं। आई हेट यू मम्मा! आई हेट यू!

दर्पण 

इतना लिखकर दर्पण ने डायरी बंद कर दी और फफक-फफक कर रो पड़ी।

०००

शिमला में अभिराज और डिम्पल घर लौट रहे थे। कार ड्राइवर शंभू चला रहा था। अभिराज का हॉटल “स्काई कैसल” शहर से दूर जंगलों के क़रीब था और जंगलों से होता हुआ शॉर्ट कट रास्ता उसके घर की तरफ जाता था। 

“शॉर्ट कट ले लूं साहब।“ शंभू ने पूछा।

“नहीं शंभू….” अभिराज कह ही रहा था कि डिम्पल बोल उठी, “हाँ शंभू ले लो….”

“डिम्पल रात के वक़्त इन जंगलों से गुज़रना ठीक नहीं।“ अभिराज ने डिम्पल को चेताया।

“तुम नाहक ही परेशान होते हो अभि। इस वक़्त जल्दी घर पहुँचना ज़रूरी है। चलो शंभू…” डिम्पल प्रिया और निशा को लेकर परेशान थी। अभिराज को समझाते हुए उसने शंभू को शॉर्ट कट लेने को कह दिया।   

“कोई परेशानी नहीं है साहब! मैं तो कई बार रात के समय इस रास्ते से गया हूँ।“ शंभू ने कहा और कार जंगल के रास्ते पर मोड़ दी।

कार अंधेरे जंगल के बीच बने संकरे रास्ते पर तेज़ रफ़्तार से दौड़ने लगी। मगर कुछ ही दूरी तय करने के बाद हल्के झटके के साथ कार की रफ़्तार थम गई।   

“ये क्या हुआ?” अभिराज ने चौंककर पूछा।

“देखता हूँ साहब!” शंभू कार का दरवाजा खोलते हुए बोला और कार से उतर गया।

“देखा…इसलिए मैं मना कर रहा था…” अभिराज डिम्पल पर खीझ गया, “अब भुगतो! पता नहीं क्या प्रॉब्लम आ गई है। जल्दी के चक्कर में और लेट हो जायेंगे।“

अभिराज की नाराज़गी देख डिम्पल कुछ कह न सकी। दोनों कार से बाहर आ गये।

“टायर पंचर हो गया है साहब!” शंभू ने बताया।

“अब ये मुसीबत भी इसी वक़्त आनी थी।“ अभिराज झल्ला गया।

“कुछ नहीं साहब! बस कुछ ही देर लगेगी…स्टेपनी है ना…मैं उसे लगा दूंगा। आप बस टॉर्च से लाइट दिखा दीजियेगा मुझे।“

शंभू ने कार की डिक्की खोलकर स्टेपनी निकाल ली और टायर बदलने लगा। अभिराज उसे टॉर्च दिखाने लगा। डिम्पल यूं ही टहलने लगी।

अभिराज ने उसे चेताया, “देखो दूर मत निकल जाना। यहीं आस-पास रहना।“    

डिम्पल ने अभिराज को पलट कर देखा और सिर झटककर मुस्कुरा दी। अभिराज कार की एक तरफ आकर शंभू को टॉर्च दिखाने लगा। डिम्पल कार के दूसरी तरफ आकर घने जंगल को ताकते हुए अभिराज की कही बातें सोचने लगी। अचानक उसे कुछ दूरी पर पेड़ों के पास से सूखे पत्तों के चरमराने की आवाज़ सुनाई पड़ी, यूं जैसे कोई उन पर चल रहा हो। उसने मोबाइल का टॉर्च ऑन कर उस तरफ घुमा दिया। हल्की रोशनी में उसे चार साये दिखाई दिये, जो काला लबादा पहने अपनी पीठ पर बड़े-बड़े बोरे लादे चले जा रहे थे। उनकी पीठ डिम्पल की तरफ थी।

डिम्पल उन्हें देख ही रही थी कि अचानक एक साया पलट गया। आँखें छोड़ उसका पूरा चेहरा ढका हुआ था। साये ने सिर से पैर तक डिम्पल पर ऐसी नज़र फेंकी कि डिम्पल सिहर उठी। साया पलटकर जाने लगा, मगर एक ठोकर से उसके पैर लड़खड़ाये और उसकी पीठ पर लदा बोरा नीचे गिर पड़ा। डिम्पल आँखें फाड़े अब भी वहीं देख रही थी। उसके देखते ही देखते बोरे में से एक हाथ बाहर निकला और झूल गया… 

क्रमश:

किसका हाथ निकला है बोरे से? कौन हैं ये चार साये? वो चार लोग कौन थे, जिनकी कार का एक्सीडेंट हुआ है? डिम्पल अब क्या करेगी? दर्पण क्यों नाराज़ है अपनी मां से? प्रिया और निशा का क्यों झगड़ा हुआ? जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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