चैप्टर 14 गुनाहों का देवता धर्मवीर भारती का उपन्यास | Chapter 14 Gunahon Ka Devta Novel By Dharmveer Bharti Read Online

चैप्टर 14 गुनाहों का देवता धर्मवीर भारती का उपन्यास | Chapter 14 Gunahon Ka Devta Novel By Dharmveer Bharti Read Online

Chapter 14 Gunahon Ka Devta Novel By Dharmveer Bharti

Chapter 14 Gunahon Ka Devta Novel By Dharmveer Bharti

पापा को खाना खिलाने के बाद चंदर और सुधा खाने बैठे। महराजिन चली गयी थी। इसलिए बिनती सेंक-सेंककर रोटी दे रही थी। सुधा एक रेशमी सनिया पहने चौके के अन्दर खा रही थी। और चंदर चौके के बाहर। सुबह के कच्चे खाने में डॉक्टर शुक्ला बहुत छूत-छात का विचार रखते थे।

”देखो, आज बिनती ने रोटी बनायी है तो कितनी मीठी लग रही है, एक तुम बनाती हो कि मालूम ही नहीं पड़ता रोटी है कि सोख्ता!” चंदर ने सुधा को चिढ़ाते हुए कहा।

सुधा ने हँसकर कहा, ”हमें बिनती से लड़ाने की कोशिश कर रहे हो! बिनती की हमसे जिंदगी-भर लड़ाई नहीं हो सकती!”

”अरे हम सब समझते हैं इनकी बात!” बिनती ने रोटी पटकते हुए कहा और जब सुधा सिर झुकाकर खाने लगी तो बिनती ने आँख के इशारे से पूछा, ”कब दिखाओगे?”

चंदर ने सिर हिलाया और फिर सुधा से बोला, ”तुम उन्हें चिट्ठी लिखोगी?”

”किन्हें?”

”कैलाश मिश्रा को, वही बरेली वाले? उन्होंने हमें खत लिखा था उसमें तुम्हें प्रणाम लिखा था।” चंदर6बोला।

”नहीं, खत-वत नहीं लिखते। उन्हें एक दफे बुलाओ तो यहाँ।”

”हाँ, बुलायेंगे, अब महीने-दो महीने बाद, तब तुमसे खूब परिचय करा देंगे और तुम्हें उसकी पार्टी में भी भरती करा देंगे।” चंदर ने कहा।

”क्या? हम मजाक नहीं करते? हम सचमुच समाजवादी दल में शामिल होंगे।” सुधा बोली, ”अब हम सोचते हैं कुछ काम करना चाहिए, बहुत खेल-कूद लिये, बचपन निभा लिया।”

”उन्होंने अपना चित्र भेजा है। देखोगी?” चंदर ने जेब में हाथ डालते हुए पूछा।

”कहाँ?” सुधा ने बहुत उत्सुकता से पूछा, ”निकालो देखें।”

”पहले बताओ, हमें क्या इनाम दोगी? बहुत मुश्किल से भेजा उन्होंने चित्र!” चंदर ने कहा।

”इनाम देंगे इन्हें!” सुधा बोली और झट से झपटकर चित्र छीन लिया।

”अरे, छू लिया चौके में से?” बिनती ने दबी जबान से कहा।

सुधा ने थाली छोड़ दी। अब छू गयी थी वह; अब खा नहीं सकती थी।

”अच्छी फोटो देखी दीदी। सामने की थाली छूट गयी!” बिनती ने कहा।

सुधा ने हाथ धोकर आँचल के छोर से पकडक़र फोटो देखी और बोली, चंदर सचमुच देखो! कितने अच्छे लग रहे हैं। कितना तेज है चेहरे पर, और माथा देखो कितना ऊँचा है।” सुधा फोटो देखती हुई बोली।

”अच्छी लगी फोटो? पसन्द है?” चंदर ने बहुत गम्भीरता से पूछा।

”हाँ, हाँ, और समाजवादियों की तरह नहीं लगते ये।” सुधा बोली।

”अच्छा सुधा, यहाँ आओ।” और चंदर के साथ सुधा अपने कमरे में जाकर पलँग पर बैठ गयी। चंदर उसके पास बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसकी अँगूठी घुमाते हुए बोला, ”सुधा, एक बात कहें, मानोगी?”

”क्या?” सुधा ने बहुत दुलार और भोलेपन से पूछा।

”पहले बता दो कि मानोगी?” चंदर ने उसकी अँगूठी की ओर एकटक देखते हुए कहा।

”फिर, हमने कभी कोई बात तुम्हारी टाली है! क्या बात है?”

”तुम मानोगी, चाहे कुछ भी हो?” चंदर6ने पूछा।

”हाँ-हाँ, कह तो दिया। अब कौन-सी तुम्हारी ऐसी बात है जो तुम्हारी सुधा नहीं मान सकती!” आँखों में, वाणी में, अंग-अंग से सुधा के आत्मसमर्पण छलक रहा था।

”फिर अपनी बात पर कायम रहना, सुधा! देखो!” उसने सुधा की उँगलियाँ अपनी पलकों से लगाते हुए कहा, ”सुधी मेरी! तुम उस लड़के से ब्याह कर लो!”

”क्या?” सुधा चोट खायी नागिन की तरह तड़प उठी-”इस लड़के से? यही शक्ल है इसकी हमसे ब्याह करने की! चंदर, हम ऐसा मजाक नापसन्द करते हैं, समझे कि नहीं! इसलिए बड़े प्यार से बुला लाये, बड़ा दुलार कर रहे थे!”

”तुम अभी वायदा कर चुकी हो!” चंदर ने बहुत आजिजी से कहा।

”वायदा कैसा? तुम कब अपने वायदे निभाते हो? और फिर यह धोखा देकर वायदा कराना क्या? हिम्मत थी तो साफ-साफ कहते हमसे! हमारे मन में आता सो कहते। हमें इस तरह से बाँध कर क्यों बलिदान चढ़ा रहे हो!” और सुधा मारे गुस्से के रोने लगी।

चंदर स्तब्ध। उसने इस दृश्य की कल्पना ही नहीं की थी। वह क्षण भर खड़ा रहा। वह क्या कहे सुधा से, कुछ समझ ही में नहीं आता था। वह गया और रोती हुई सुधा के कंधे पर हाथ रख दिया।

 ”हटो उधर!” सुधा ने बहुत रुखाई से हाथ हटा दिया और आँचल से सिर ढकती हुई बोली, ”मैं ब्याह नहीं करूँगी, कभी नहीं करूँगी। किसी से नहीं करूँगी। तुम सभी लोगों ने मिलकर मुझे मार डालने की ठानी है। तो मैं अभी सिर पटककर मर जाऊँगी।” और मारे तैश के सचमुच सुधा ने अपना सिर दीवार पर पटक दिया। 

”अरे!” दौड़ कर चंदर, ने सुधा को पकड़ लिया। मगर सुधा ने गरजकर कहा, ”दूर हटो चंदर छूना मत मुझे।” और जैसे उसमें जाने कहाँ की ताकत आ गयी है, उसने अपने को छुड़ा लिया।

चंदर ने दबी जबान से कहा, ”छिह सुधा! यह तुमसे उम्मीद नहीं थी मुझे। यह भावुकता तुम्हें शोभा नहीं देती। बातें कैसी कर रही हो तुम! हम वही चंदर हैं न!”

”हाँ, वही चंदर हो! और तभी तो! इस सारी दुनिया में तुम्हीं एक रह गये हो मुझे फोटो दिखाकर पसन्द कराने को।” सुधा सिसक-सिसककर रोने लगी-”पापा ने भी धोखा दे दिया। हमें पापा से यह उम्मीद नहीं थी।”

”पगली! कौन अपनी लड़की को हमेशा अपने पास रख पाया है!” चंदर बोला।

”तुम चुप रहो, चंदर। हमें तुम्हारी बोली जहर लगती है। ‘सुधा, यह फोटो तुम्हें पसन्द है?’ तुम्हारी जबान हिली कैसे? शरम नहीं आयी तुम्हें। हम कितना मानते थे पापा को, कितना मानते थे तुम्हें? हमें यह नहीं मालूम था कि तुम लोग ऐसा करोगे।” थोड़ी देर चुपचाप सिसकती रही सुधा और फिर धधककर उठी-”कहाँ है वह फोटो? लाओ, अभी मैं जाऊँगी पापा के पास! मैं कहूँगी उनसे हाँ, मैं इस लड़के को पसन्द करती हूँ। वह बहुत अच्छा है, बहुत सुन्दर है। लेकिन मैं उससे शादी नहीं करूँगी, मैं किसी से शादी नहीं करूँगी! झूठी बात है…” और उठकर पापा के कमरे की ओर जाने लगी।

”खबरदार, जो कदम बढ़ाया!” चंदर6 ने डाँटकर कहा, ”बैठो इधर।”

”मैं नहीं रुकूँगी!” सुधा ने अकड़कर कहा।

”नहीं रुकोगी?”

”नहीं रुकूँगी।”

और चंदर का हाथ तैश में उठा और एक भरपूर तमाचा सुधा के गाल पर पड़ा। सुधा के गाल पर नीली उँगलियाँ उपट आयीं। वह स्तब्ध! जैसे पत्थर बन गयी हो। आँख में आँसू जम गये। पलकों में निगाहें जम गयीं। होठों में आवाजें जम गयीं और सीने में सिसकियाँ जम गयीं।

चंदर ने एक बार सुधा की ओर देखा और कुर्सी पर जैसे गिर पड़ा और सिर पटककर बैठ गया। सुधा कुर्सी के पास जमीन पर बैठ गयी। चंदर के घुटनों पर सिर रख दिया। बड़ी भारी आवाज में बोली, “चंदर, देखें तुम्हारे हाथ में चोट तो नहीं आयी।”

चंदर ने सुधा की ओर देखा, एक ऐसी निगाह से जिसमें कब्र मुँह फाड़कर जमुहाई ले रही थी। सुधा एकाएक फिर सिसक पड़ी और चंदर के पैरों पर सिर रखकर बोली, चंदर सचमुच मुझे अपने आश्रय से निकालकर ही मानोगे! चंदर, मजाक की बात दूसरी है, जिंदगी में तो दुश्मनी मत निकाला करो।”

चंदर एक गहरी साँस लेकर चुप हो गया। और सिर थामकर बैठ गया। पाँच मिनट बीत गये। कमरे में सन्नाटा, गहन खामोशी। सुधा चंदर के पाँवों को छाती से चिपकाये सूनी-सूनी निगाहों से जाने कुछ देख रही थी दीवारों के पार, दिशाओं के पार, क्षितिजों से परे…दीवार पर घड़ी चल रही थी टिक…टिक…

चंदर ने सिर उठाया और कहा, ”सुधा, हमारी तरफ देखो-” सुधा ने सिर ऊपर उठाया। चंदर बोला, ”सुधा, तुम हमें जाने क्या समझ रही होगी, लेकिन अगर तुम समझ पाती कि मैं क्या सोचता हूँ! क्या समझता हूँ।” 

सुधा कुछ नहीं बोली, चंदर कहता गया, ”मैं तुम्हारे मन को समझता हूँ, सुधा! तुम्हारे मन ने जो तुमसे नहीं कहा, वह मुझसे कह दिया था-लेकिन सुधा, हम दोनों एक-दूसरे की जिंदगी में क्या इसीलिए आये कि एक-दूसरे को कमजोर बना दें या हम लोगों ने स्वर्ग की ऊँचाइयों पर साथ बैठकर आत्मा का संगीत सुना सिर्फ इसीलिए कि उसे अपने ब्याह की शहनाई में बदल दें?”

”गलत मत समझो चंदर, मैं गेसू नहीं कि अख्तर से ब्याह के सपने देखूँ और न तुम्हीं अख्तर हो, चंदर! मैं जानती हूँ कि मैं तुम्हारे लिए राखी के सूत से भी ज्यादा पवित्र रही हूँ, लेकिन मैं जैसी हूँ, मुझे वैसी ही क्यों नहीं रहने देते! मैं किसी से शादी नहीं करूँगी। मैं पापा के पास रहूँगी। शादी को मेरा मन नहीं कहता, मैं क्यों करूँ? तुम गुस्सा मत हो, दुखी मत हो, तुम आज्ञा दोगे, तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ, लेकिन हत्या करने से पहले यह तो देख लो कि मेरे हृदय में क्या है?” सुधा ने चंदर6 के पाँवों को अपने हृदय से और भी दबाकर कहा।

”सुधा, तुम एक बात सोचो। अगर तुम सबका प्यार बटोरती चलती हो, तो कुछ तुम्हारी जिम्मेदारी है या नहीं? पापा ने आज तक तुम्हें किस तरह पाला। अब क्या तुम्हारा यह फर्ज है कि तुम उनकी बात को ठुकराओ? और एक बात और सोचो-हम पर कुछ विश्वास करके ही उन्होंने कहा है कि मैं तुमसे फोटो पसन्द कराऊँ? अगर अब तुम इंकार कर देती हो, तो एक तरफ पापा को तुमसे धक्का पहुँचेगा, दूसरी ओर मेरे प्रति उनके विश्वास को कितनी चोट लगेगी। हम उन्हें क्या मुँह दिखाने लायक रहेंगे भला! तो तुम क्या चाहती हो? महज अपनी थोड़ी-सी भावुकता के पीछे तुम सभी की जिंदगी चौपट करने के लिए तैयार हो? यह तुम्हें शोभा नहीं देता है। क्या कहेंगे पापा, कि चंदर ने अभी तक तुम्हें यही सिखाया था? हमें लोग क्या कहेंगे? बताओ। आज तुम शादी न करो। उसके बाद पापा हमेशा के लिए दु:खी रहा करें और दुनिया हमें कहा करे, तब तुम्हें अच्छा लगेगा?”

”नहीं।” सुधा ने भर्राये हुए गले से कहा।

”तब, और फिर एक बात और है न सुधी! सोने की पहचान आग में होती है न! लपटों में अगर उसमें और निखार आये तभी वह सच्चा सोना है। सचमुच मैंने तुम्हारे व्यक्तित्व को बनाया है या तुमने मेरे व्यक्तित्व को बनाया है, यह तो तभी मालूम होगा, जबकि हम लोग कठिनाइयों से, वेदनाओं से, संघर्षों से खेलें और बाद में विजयी हों और तभी मालूम होगा कि सचमुच मैंने तुम्हारे जीवन में प्रकाश और बल दिया था। अगर सदा तुम मेरी बाँहों की सीमा में रहीं और मैं तुम्हारी पलकों की छाँव में रहा और बाहर के संघर्षों से हम लोग डरते रहे तो कायरता है। और मुझे अच्छा लगेगा कि दुनिया कहे कि मेरी सुधा, जिस पर मुझे नाज था, वह कायर है? बोलो। तुम कायर कहलाना पसन्द करोगी?”

”हाँ!” सुधा ने फिर चंदर के घुटनों में मुँह छिपा लिया।

”क्या? यह मैं सुधा के मुँह से सुन रहा हूँ! छिह पगली! अभी तक तेरी निगाहों ने मेरे प्राणों में अमृत भरा है और मेरी साँसों ने तेरे पंखों में तूफानों की तेजी। और हमें-तुम्हें तो आज खुश होना चाहिए कि अब सामने जो रास्ता है, उसमें हम लोगों को यह सिद्ध करने का अवसर मिलेगा कि सचमुच हम लोगों ने एक-दूसरे को ऊँचाई और पवित्रता दी है। मैंने आज तक तुम्हारी सहायता पर विश्वास किया था। आज क्या तुम मेरा विश्वास तोड़ दोगी? सुधा, इतनी क्रूर क्यों हो रही हो आज तुम? तुम साधारण लड़की नहीं हो। तुम ध्रुवतारा से ज्यादा प्रकाशमान हो। तुम यह क्यों चाहती हो कि दुनिया कहे, सुधा भी एक साधारण-सी भावुक लड़की थी और आज मैं अपने कान से सुनूँ! बोलो सुधी?” चन्दर ने सुधा के सिर पर हाथ रखकर कहा।

सुधा ने आँखें उठायीं, बड़ी कातर निगाहों से चंदर की ओर देखा और सिर झुका लिया। सुधा के सिर पर हाथ फेरते हुए चंदर बोला-

”सुधा, मैं जानता हूँ मैं तुम पर शायद बहुत सख्ती कर रहा हूँ, लेकिन तुम्हारे सिवा और कौन है मेरा? बताओ। तुम्हीं पर अपना अधिकार भी आजमा सकता हूँ। विश्वास करो मुझ पर सुधा, जीवन में अलगाव, दूरी, दुख और पीड़ा आदमी को महान बना सकती है। भावुकता और सुख हमें ऊँचे नहीं उठाते। बताओ सुधा, तुम्हें क्या पसन्द है? मैं ऊँचा उठूँ तुम्हारे विश्वास के सहारे, तुम ऊँची उठो मेरे विश्वास के सहारे, इससे अच्छा और क्या है सुधा! चाहो तो मेरे जीवन को एक पवित्र साधन बना दो, चाहो तो एक छिछली अनुभूति।”

सुधा ने एक गहरी साँस ली, क्षण-भर घड़ी की ओर देखा और बोली, ”इतनी जल्दी क्या है अभी, चंदर? तुम जो कहोगे, मैं कर लूँगी!” और फिर वह सिसकने लगी-”लेकिन इतनी जल्दी क्या हैï? अभी मुझे पढ़ लेने दो!”

”नहीं, इतना अच्छा लड़का फिर मिलेगा नहीं। और इस लड़के के साथ तुम वहाँ पढ़ भी सकती हो। मैं जानता हूँ उसे। वह देवताओं-सा निश्छल है। बोलो, मैं पापा से कह दूँ कि तुम्हें पसन्द है?”

सुधा कुछ नहीं बोली।

”मौन का मतलब हाँ है न?” चंदर ने पूछा।

सुधा ने कुछ नहीं कहा। झुककर चंदर के पैरों को अपने होठों से छू लिया और पलकों से दो आँसू चू पड़े। चंदर ने सुधा को उठा लिया और उसके माथे पर हाथ रखकर कहा, ”ईश्वर तुम्हारी आत्मा को सदा ऊँचा बनाएगा, सुधा!” उसने एक गहरी साँस लेकर कहा, ”मुझे तुम पर गर्व है,” और फोटो उठाकर बाहर चलने लगा।

”कहाँ जा रहे हो! जाओ मत!” सुधा ने उसका कुरता पकड़ कर बड़ी आजिजी से कहा, ”मेरे पास रहो, तबीयत घबराती है?”

चंदर पलँग पर बैठ गया। सुधा तकिये पर सिर रखकर लेट गयी और फटी-फटी पथराई आँखों से जाने क्या देखने लगी। चंदर भी चुप था, बिल्कुल खामोश। कमरे में सिर्फ घड़ी चल रही थी, टिक…टिक…

थोड़ी देर बाद सुधा ने चंदर के पैरों को अपने तकिये के पास खींच लिया और उसके तलवों पर होंठ रखकर उसमें मुँह छिपाकर चुपचाप लेटी रही। बिनती आयी। सुधा हिली भी नहीं! चंदर ने देखा, वह सो गयी थी। बिनती ने फोटो उठाकर इशारे से पूछा, ”मंजूर?” ”हाँ।” बिनती ने बजाय खुश होने के चंदर की ओर देखकर सिर झुका लिया और चली गयी।

सुधा सो रही थी और चंदर के तलवों में उसकी नरम क्वाँरी साँसें गूँज रही थीं। चंदर बैठा रहा चुपचाप। उसकी हिम्मत न पड़ी कि वह हिले और सुधा की नींद तोड़ दे। थोड़ी देर बाद सुधा ने करवट बदली, तो वह उठकर आँगन के सोफे पर जाकर लेट रहा और जाने क्या सोचता रहा।

जब उठा तो देखा धूप ढल गयी है और सुधा उसके सिरहाने बैठी उसे पंखा झल रही है। उसने सुधा की ओर एक अपराधी जैसी कातर निगाहों से देखा और सुधा ने बहुत दर्द से आँखें फेर लीं और ऊँचाइयों पर आखिरी साँसें लेती हुई मरणासन्न धूप की ओर देखने लगी।

चंदर उठा और सोचने लगा, तो सुधा बोली, ”कल आओगे कि नहीं?”

”क्यों नहीं आऊँगा?” चंदर बोला।

”मैंने सोचा शायद अभी से दूर होना चाहते हो।” एक गहरी साँस लेकर सुधा बोली और पंखे की ओट में आँसू पोंछ लिये।

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