वॉक्सहाल गार्डेंस चार्ल्स डिकेंस की कहानी | Vauxhall Gardens Charles Dickens Story In Hindi

वॉक्सहाल गार्डेंस चार्ल्स डिकेंस की कहानी, Vauxhall Gardens Charles Dickens Story In Hindi, Vauxhall Gardens Charles Dickens Ki Kahani 

Vauxhall Gardens Charles Dickens Story In Hindi

दिन के समय

एक समय ऐसा था, जब यदि दिन के समय कोई वॉक्सहाल गार्डेंस जाना चाहता था तो लोग उसे इस बेवकूफी भरे विचार के लिए तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे। यह ऐसे ही था जैसे कि स्पीकर के बिना लोकसभा, एक गैस लैंप बिना गैस के या फिर कोई जिसके सिर पर कोई बोझ/बरतन न हो। नॉनसेंसबकवास! ऐसी बात तो कभी सोची भी नहीं जा सकती थी और उन दिनों यह अफवाह भी फैली हुई थी कि दिन के समय वहाँ पर गोपनीय बातें और गुप्त छिपे हुए प्रयोग होते रहते थे। वहाँ पर दिन के समय ऐसे-ऐसे रहस्यमय गोश्त के काटनेवाले (कास) होते थे, जो सुअर के गोश्त के एक टुकड़े को ऐसा पतला-पतला काटते थे कि वे सारे गार्डेन में बिछा दिए जा सकते थे या कुछ पेड़ के साए के नीचे यह रासायनिक प्रयोग करते दिख जाते थे कि एक नीगस (Negus) का कटोरा अपने में कितना पानी समा सकता था तथा किसी अन्य अलग-थलग कोने में कुछ लोग पक्षियों के आने-जाने का अध्ययन करते रहते थे और कुछ अन्य साधुसंन्यासी टाइप लोग किसी बड़े पक्षी की चमड़ी-हड्डी का मिश्रण बनाते रहते थे।

इसी तरह की उड़ती-पड़ती अफवाहों से वॉक्सहाल गार्डेंस पर एक रहस्यमय परदा पड़ गया था और बहुत सारे लोगों के लिए, जो वहाँ दिन में जाना चाहते थे, के आमोद-प्रमोद में खलल डाल सकता था। और निस्संदेह वे लोग वहाँ जाने से बचना चाहेंगे।

हम लोग भी इसी श्रेणी में आते थे। हम शाम को वहाँ पर दीप्तिमान पेड़ों और झुरमुट के बीच घूमना पसंद करते थे, जहाँ पर दिन में इस तरह के प्रयोग चल रहे हों। और हम वहाँ उस Supper में ढूँढ़ना चाहते थे, जो उन्होंने दिन में अपनी प्रयोगशाला में बनाया होता था।

इस सब गतिविधियों के कारण शायद ही ऐसा कोई शख्स होगा, जो वॉक्सहाल गार्डेंस दिन में जाना चाहता हो। हम घूमते-घामते यों ही वहाँ पर पहुँच गए और हम उन दीप्तिमान झुरमुटों के अंदर से गुजरने और उन धैर्यवान् व मेहनती रिसर्च करने में लगे लोगों को देखते रहते थे और फिर उनके द्वारा परोसे गए सांध्यकालीन भोजन की प्रतीक्षा करते थे, जो उन्होंने दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद बनाया होता था, जो कि रात की धुंधली रोशनी में और रात्रिकालीन संगीत के साथ परोसा जाता था। मंदिर, सैलून और कोस्मॉरस वहाँ प्रकाश में चमकते रहते थे।

महिला गायकों की सुंदरता और भद्रलोकों के शालीनता से चलने-फिरने ने हमारे दिलों को बाँध लिया था। कुछ एक हजारों लाइटों ने हमारी इंद्रियों/आँखों को चकाचौंध कर दिया और मिश्रित शराब पंच के दो-चार जामों की खुमारी हमारे ऊपर चढ़ रही थी।

पता नहीं किस बुरी घड़ी, में वॉक्सहाल गार्डेंस का मालिक हमें वहाँ दिन में ले गया, जिसका हमें जिंदगी भर अफसोस रहा; क्योंकि वहाँ पर केवल दुपहरिया की धूप और स्वर्गीय मिस्टर लिप्सन ही कभी जा पाए थे। पर पता नहीं क्यों, इस क्षण में हम वहाँ जाने पर हिचकिचाए। शायद आगे चलकर हमें जो निराशा-आशंका या इन तीनों का मिला-जुला असर था, हम तब तक खैर अंदर नहीं गए- दो-तीन घोषणाओं के बाद भी, जब तक कि दो बैलूनों की रेस की घोषणा ने हमें अंदर खींच नहीं लिया।

हमने प्रवेश पर एक-एक शिलिंग का टिकट लिया और गेट, जो ऐसे ही लकड़ी से लगाकर बनाया गया था, उसे धकेलकर अंदर दाखिल हो गए। हमने ऑर्केस्ट्रा (वाद्य-वृंद) और ऊपरवाले कमरे की ओर देखा और आगे बढ़ गए। फायर वर्क्स (आतिशबाजी) वाले मैदान से हम झुककर आगे गुजरे और आश्चर्यचकित होकर वहाँ पहुँच गए, जहाँ पर यह तमाशा-बैलून रेस-शुरू होने वाला था। वहाँ पर एक मूरिश टावर और लकड़ी का दरवाजा था, जिस पर सुर्ख लाल रंग और पीला रंग ऐसे पुता हुआ था, जैसे वह किसी घड़ी का केस हो। यहाँ पर प्रति रात को मि. ब्लैकमूर बैलून में उड़ते थे। चारों तरफ आग जल रही थी और तमाम बारूद रखा हुआ था तथा वहाँ पर गोला-बारूद बनानेवाली महिला के सफेद कपड़े भी रखे हुए थे, जो अकसर हवा में उड़ते रहते थे। फिर उसने लाल-नीले और रंग-बिरंगे प्रकाश अपने टेंपल को रोशन करने के लिए जलवाए। पर तभी घंटी बज उठी और सभी लोग धक्का-मुक्की करके वहाँ जाने को भागने को उतावले हो उठे, जहाँ से घंटी की आवाज आई थी। और हमने भी पाया कि हम उन सबसे आगे भाग रहे थे, जैसे कि हम जान बचाकर भाग रहे थे।

यह आवाज वहाँ से आई थी, जहाँ ऑर्केस्ट्रा था और संगीत-गायन का कार्यक्रम होना था। कुछ बेकार-से दिख रहे आदमी टानक्रेडी की धुन बजा रहे थे। इसी को देखने के लिए तमाम आदमी-औरत सपरिवार अपने-अपने खाने के डिब्बे और अधभरे मग लेकर भागकर आए थे। उसी वक्त एक जेंटलमैन ड्रेस कोट पहने हुए एक लंबी औरत के साथ, जिसने अजीबो-गरीब ड्रेस पहनी हुई थी और सिर पर एक बड़ा हैट लगाया हुआ था तथा जिसमें सफेद फर लगा हुआ, उन लोगों ने मिलकर एक मामूली सा डुएट गाना गाया।

हम लोगों ने पहले भी उसके पोस्टर देखे थे, जिसमें उसका मुँह खुला हुआ था, जैसे वह कोई गाना गा रहा हो और एक हाथ में वाइन का गिलास पकड़ा हुआ था और बैकग्राउंड में एक मेज पर डिकैंटर्स (शराब परोसनेवाला) तथा 4 अनन्नास रखे हुए थे। ये फोटो उसके संगीत रिकॉर्डों पर भी छपे रहते थे। उस लंबी महिला को भी हमने कई बार सुंदर-सुंदर परिधान पहने हुए तथा अच्छे गाने गाते हुए देखा था। इस बार भी उसका द्वय (डुएट) संगीत बहुत अच्छा था। अब पहले उस जेंटलमैन ने उस महिला से एक सवाल पूछा, फिर उस महिला ने उसका कुछ माकूल जवाब दिया। उसके बाद दोनों ने मिलकर एक बहुत सुंदर मधुर गीत गाया। इसके बाद उस आदमी और महिला ने बारी-बारी से शेक पिया तथा फिर दोनों एकदम से हवा में विलीन हो गए। फिर बाजेवाले भी अपने-अपने साज उठाने लग गए और लोगों ने जोरों से तालियाँ बजाकर उनका अभिनंदन किया।

इसके बाद जो कॉमिक सिंगर या हास्य गायक था, वह सबसे लोकप्रिय था। हमें लगा कि एक आदमी, जिसने रूमाल में अपना खाना बाँध रखा था, वह हँसते-हँसते लोट-पोट होकर बेहोश होने लगा था। वह कॉमिक सिंगर बहुत विनोदी स्वभाव का था, ऐसा हमारा खयाल था। उसने एक विग पहना हुआ था, जिससे वह बूढ़ा दिखता था और उसका नाम भी एक काउंटी के नाम पर था। उसने सात अवस्थाओं के बारे में एक बहुत अच्छा गाना गाया था। उसके पहले आधे घंटे ने तो लोगों का शुद्ध मनोरंजन किया। शेष आधे घंटे के प्रदर्शन या गायन के बारे में हम कुछ नहीं कह सकते, क्योंकि फिर हम लोग वहाँ से खिसक चुके थे।

हम लोग वहाँ से निकलकर इधर-उधर घूमते रहे; पर हर जगह निराशा ही हाथ लगी। जगह-जगह पेंट किया हुआ था, जो दाग-धब्बे जैसे दिख रहे थे और चमक रहे थे। वे उस वक्त केवल नल के पाइप की तरह दिख रहे थे, जैसे वे फट गए हों और उनसे पानी फव्वारे की तरह बह रहा हो। सारी सजावट फीकी-फीकी थी और जहाँ-जहाँ भी हम घूम रहे थे, वे पगडंडियाँ उदास व सूनी-सूनी थीं। एक ओपन थिएटर में रोप-डांस (रस्सी पर नाचने का कार्यक्रम) चल रहा था। नर्तकों के सलमे-सितारे व पोशाकों पर सूरज की रोशनी चमक रही थी, जैसे किसी तहखाने में कंट्री डांस हो रहा हो। सब मिलाकर कुछ-कुछ भुतहा-सा प्रतीत हो रहा था। अतः हम वापस आतिशबाजी (फायर वक्स) ग्राउंड में चले गए, जहाँ लोगों की छोटी-मोटी भीड़ मिस्टर ग्रीन की अपेक्षा कर रही थी।

कुछ मुट्ठी भर लोग एक पूर्णतया भरे हुए बैलून (गुब्बारे) को रोकने के लिए उतावले हो रहे थे। बैलून एक कार के साथ जोड़ दिया गया था अफवाह थी कि एक लॉर्ड उसमें उड़ने वाले थे। भीड़ असाधारण से उत्सुक और बातचीत में व्यस्त थी। एक आदमी, जिसने फेडेड ब्लैक कलर के कपड़े पहने थे, गंदा सा चेहरा था और मैला-कुचैला लाल बॉर्डरवाला गुलुबंद लगाया हुआ था, बारी-बारी से सबसे बात कर रहा था तथा सबके सवालों का जवाब दे रहा था। वह हाथ बाँधे हुए खड़ा होकर बैलून को बड़े ध्यान से देख रहा था और उस हवाबाज के लिए प्रशंसा से भरा हुआ था।

उस आदमी (हवाबाज) ने हरे रंग के कपड़े पहने हुए हैं। यह उसका दसवाँ ऊपर जाने का मौका होगा और उसे अभी तक कभी भी दाँत का दर्द तक नहीं हुआ और न अगले सौ सालों में कभी होगा। जब हम कभी इस तरह के प्रतिभामान् व्यक्ति से मिलें तो हमें उसे खूब प्रोत्साहित करना चाहिए। उसके इस तरह से खूब जोशीले भाषण देने की वजह से भीड़ ने सोचा जरूर कि यह कोई दैव वाणी है।

हाँ सर, आप बिल्कुल सही बात कर रहे हैं। एक आदमी, जो अपनी पत्नी, बच्चों, माँ, सालियों और अन्य कई लोगों के साथ खड़ा था, ने कहा, “मि. ग्रीन एक बहुत सधे हुए आदमी हैं और उनके बारे में कोई राय या आशंका नहीं है।”

“डर, भय!” उस छोटे आदमी ने कहा, “यह क्या बहुत ही बढिया बात नहीं है कि वे और उसकी पत्नी इकट्ठे ही आज उड़ने जा रहे हैं और उनका बेटा तथा उसकी पत्नी एक दूसरे बैलून में उड़ने वाले हैं? और वे सब दो-तीन घंटे में 20-30 मील उड़ने वाले हैं और फिर वे वापस लौट आने वाले हैं। मुझे पता नहीं यह वैज्ञानिक तरक्की कहाँ जाकर रुकने वाली है। यही चीज मुझे परेशान किए हुए है।”

अब जॉकेट पहने औरतें भी आपस में काफी बातचीत करने लग गई थीं-

“लेडीज किस बात पर इतना हँस रही है, सर?” उस छोटे आदमी ने सम्मानपूर्वक पूछा।

“यह मेरी बहन मैरी है।” एक छोटी सी लड़की ने कहा, “और वह यह कह रही है कि लॉर्डशिप को गुब्बारे में जाते वक्त कोई डर तो नहीं लगेगा और वह कहीं उससे बाहर तो नहीं निकल आएँगे?”

“तुम्हें कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है। आराम से रहो।” उस छोटे आदमी ने कहा, “यदि वह बिना अनुमति के एक इंच भी बाहर निकलकर आए तो मि. ग्रीन उन्हें फिर से पकड़कर ले आएँगे। वे टेलिस्कोप से देख लेंगे और बिना समय लगाए उन्हें बास्केट (टोकरी) में बैठा देंगे। और फिर उन्हें ऊपर भेज देंगे, जब तक कि वे (स्वत:) नीचे नहीं आ जाते।”

“क्या वे आ जाएँगे?” कुछ संदेह से एक अन्य आदमी ने पूछा।

“हाँ, वह जरूर लौट आएँगे।” उस छोटे आदमी ने कहा, “और आपको इस बारे में फिक्र करने की जरूरत नहीं है। मि. ग्रीन की अक्ल वक्त पर काम करती है और कुछ गड़बड़ नहीं होती।”

उसी वक्त सबका ध्यान उस ओर गया, जहाँ उड़ान की तैयारियाँ हो रही थीं।

दूसरे बैलून को भी कार के साथ जोड़ दिया गया था और दोनों गाड़ियों को बैलून के साथ पास-पास खड़ा कर दिया गया था और अब एक मिलिटरी बैंड ने जोर-शोर से अपने बैंड-बाजे बजाने शुरू कर दिए, जिसको सुनकर भीरु-से-भीरु आदमी को भी जोश आ जाए; पर फिर भी, कुछ ऐसे लोग थे, जो इस शोर-शराबे से दूर चले जाना चाहते थे। फिर मि. ग्रीन सीनियर और उनकी पत्नी एक कार में बैठ गए तथा उसके बाद मि. ग्रीन, जूनियर और उनकी बीवी दूसरी कार में बैठ गए। फिर दोनों बैलून ऊपर आसमान में उड़ गए और हवा में उड़नेवाले यात्री अपनी-अपनी बास्केट में खड़े हो गए और बाहर जमीन पर खड़ी भीड़ जोर-जोर से शोर मचाकर तालियाँ बजाने लगी। दो जेंटलमैन, जो उसके पहले कभी उड़े नहीं थे, वे टोकरी में खड़े-खड़े अपने झंडे हिलाने लगे, जिससे लोगों को यह लगे कि वे नर्वस नहीं थे। पर वे रस्सियों को जोर से पकड़े हुए थे और दोनों बैलून धीरे-धीरे हवा में ऊपर उठते चले गए और बाद में तो वे आसमान एक धब्बे या छोटी चिडिया-से नजर आने लगे। पर वह छोटा आदमी अभी भी यह कहे जा रहा था कि वह उनके सफेद हैट को अभी भी देख पा रहा था।

बाग में से अब भीड़ छंटने लगी थी। लड़के-बच्चे इधर-उधर ‘बैलून, बैलून’ चिल्लाते हुए दौड़ रहे थे। बाहर सड़क पर लोग दुकानों से निकल आए थे और अपनी गरदन पीछे की ओर से ऊँची करके उन दो गुब्बारों की ओर देख रहे थे, जो अब केवल काले धब्बों की तरह दिख रहे थे। फिर जब वे दिखना बंद हो गए तो लोग अपनी-अपनी जगह-दुकानों और मकानों में वापस आ गए।

अगले दिन के अखबारों में इस घटना के लोगों के ऊपर उड़ने का समाचार जोर-शोर से छपा था। जनता को बताया गया था कि कैसे वह एक बहुत खूबसूरत दिन था! पर केवल मि. ग्रीन की स्मृतियों को छोड़कर कैसे वह आसमान के ऊपर बादलों के पार चले गए, जब उनका दिखना बंद हो गया और किस तरह से वाष्पों में बैलून का प्रतिबिंब अनोखा लग रहा था। उसमें सूरज की किरणों के परावर्तन का कमाल था और वातावरण की गरमी व चक्रित हवाओं का कैसे हमें सम्मान करना चाहिए।

समाचारों में एक यह भी बड़ी दिलचस्प खबर थी कि कैसे एक आदमी ने, जो नाव में बैठा था, गुब्बारे को देखकर आश्चर्यचकित होकर बोला, “माई आइज (My eyes)…” जिसे मि. ग्रीन जूनियर ने बताया कि उनकी आवाज बैलून में उठ रही थी। आवाज सतह से कार में प्रतिध्वनित हो रही थी। इसके बाद यह भी बताया गया कि अगले बुधवार को फिर एक बार आसमान में उड़ान भरी जाएगी। यदि हम तारीख बताना भूल गए हैं तो हमें अगली गरमियों तक इस अभियान की प्रतीक्षा करनी होगी। तब तक आप इंतजार करिए।

**समाप्त**

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