नाउम्मीदी आंतोन चेखव की कहानी | Naummeedi Anton Chekhov Ki Kahani

नाउम्मीदी अंतोन चेखव की कहानी, Naummeedi Anton Chekhov Ki Kahani Russian Story In Hindi

 Naummeedi Anton Chekhov Ki Kahani 

Naummeedi Anton Chekhov Ki Kahani 

डॉक्टर पपोफ़ और डॉक्टर मीलर मरीज़ के बिस्तर के पास खड़े हुए हैं और बहस कर रहे हैं :

पपोफ़ — मैं मानता हूँ कि मैं दकियानूसी आदमी हूँ और इलाज करने के अभी तक चले आ रहे पुराने तरीकों को ही ठीक समझता हूँ।

मीलर — लेकिन मैं, जनाब, आपके दकियानूसीपन के बारे में तो कुछ कह नहीं रहा हूँ … भरोसा करना या न करना, बात को मानना या न मानना ये आपका अपना मामला है … मैं तो मरीज़ के इलाज के दौरान उस तरीके का इस्तेमाल करने की बात कर रहा हूँ, जिससे मरीज़ को ज़रूर फ़ायदा होगा …।

मरीज़ — ओह ! (आह भरता है और कुछ ज़ोर लगाकर बिस्तर पर से उठ खड़ा होता है। फिर वो दरवाज़े की तरफ़ जाता है और कुछ डरते-डरते दूसरे कमरे में झाँकता है।) आजकल दीवारों के भी कान होते हैं।

पपोफ़ — मरीज़ की शिकायत है कि उसकी छाती में ऐंठन हो रही है … सीना जैसे जकड़ा जा रहा है … उसका दम घुट रहा है … बिना तेज़ दवा दिए काम नहीं चलेगा।

मीलर — लेकिन उसे कोई तेज़ दवाई देने से पहले मेरा यह कहना है कि आप उसकी हालत का तो ख़याल कीजिए … क्या उसका बदन आपकी तेज़ दवाइयों को झेल पाएगा?

मरीज़ उनकी आपसी बातचीत सुनकर पीला पड़ गया है। वो कहता है — अरे, भाइयो, इतनी ज़ोर-ज़ोर से मत बोलिए … मैं बाल-बच्चों वाला आदमी हूँ … एक दफ़्तर में बाबू हूँ … नीचे सड़क पर लोग आ-जा रहे हैं … मेरे घर में हालाँकि एक नौकर भी है … ओह !

(और वह अपना हाथ हिलाकर अपनी नाउम्मीदी ज़ाहिर करता है)

1884

(मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय)

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