चैप्टर 27 आँख की किरकिरी उपन्यास (चोखेर बाली उपन्यास) रवींद्रनाथ टैगोर | Chapter 27 Aankh Ki Kirkiri (Chokher Bali) Novel By Rabindranath Tagore

चैप्टर 27 आँख की किरकिरी उपन्यास (चोखेर बाली उपन्यास) रवींद्रनाथ टैगोर | Chapter 27 Aankh Ki Kirkiri (Chokher Bali) Novel By Rabindranath Tagore

Chapter 27 Aankh Ki Kirkiri (Chokher Bali) Novel 

Chapter 27 Aankh Ki Kirkiri

महेंद्र वापस आ गया और कुछ ही दिनों में आशा काशी पहुँच गई, इससे अन्नपूर्णा को बड़ी आशंका हुई। आशा से वह तरह-तरह के सवाल पूछने लगी –

‘क्यों री चुन्नी, और तेरी वह आँख की किरकिरी! तेरी राय में जिसके मुकाबले दूसरी गुणवंती नहीं?’

‘सच मौसी, मैंने बढ़ा कर बिलकुल नहीं कहा है। जैसी बुद्धि, वैसा ही रूप! काम-काज में उतनी ही कुशल।’

‘तेरी तो सखी ठहरी। तू तो गुणवंती बताएगी ही। घर के और दूसरे लोग क्या कहते हैं?’

‘माँ तो उसकी तारीफ करते नहीं थकतीं कभी। जब भी वह अपने घर जाने को कहती है, माँ परेशान हो उठती हैं। उसके जैसी सेवा कोई नहीं कर सकता। घर की नौकर-नौकरानी भी बीमार पड़ जाएँ, तो माँ-सी, बहन-सी उसकी सेवा करती है।’

‘और महेंद्र की क्या राय है?’

‘उन्हें तो तुम जानती ही हो, निहायत अपना कोई न हो तो उन्हें नहीं जँचता। हर कोई उसे चाहता है, लेकिन उनसे अब तक ठीक पटरी नहीं बैठी।’

‘सो क्यों?’

‘जोर-जबरदस्ती मैं कभी मिला भी देती हूँ, पर बोल-चाल लगभग बंद ही समझो! कितने कम बोलने वाले हैं, मालूम ही है तुम्हें! लोग समझते हैं, दंभी हैं। मगर बात वैसी नहीं, दो-एक खास-खास आदमियों के सिवा औरों को वे बर्दाश्त नहीं कर पाते।’

अंतिम बात कह कर आशा को अचानक लाज लगी – दोनों गाल तमतमा उठे। अन्नपूर्णा खुश हो कर मन-ही-मन हँसीं। बोलीं – ‘ठीक कहती हो, महेंद्र जब आया था यहाँ, उसका नाम कभी उसकी जबान पर भी न आया।’

आशा ने दुखी हो कर कहा – ‘यही उनमें खामी है। जिसे नहीं चाहते वह मानो है ही नहीं। उसे मानो न कभी देखा, न जाना।’ शांत स्निग्ध मुस्कान से अन्नपूर्णा ने कहा – ‘और जिसे चाहता है, मानो जन्म-जन्मांतर उसी को देखता-जानता रहा है, यह भाव भी उसमें है, है न चुन्नी?’

आशा ने उत्तर न दे कर नजर झुका ली।

अन्नपूर्णा ने पूछा – ‘और बिहारी का क्या हाल है, चुन्नी? वह शादी करेगा ही नहीं?’

सुनते ही आशा का चेहरा गंभीर हो गया। वह सोच ही न पाई कि क्या जवाब दे।

आशा को निरुत्तर देख कर अन्नपूर्णा घबरा गईं। पूछा – ‘सच-सच बता चुन्नी, बिहारी बीमार-वीमार तो नहीं है।’

आशा ने कहा – ‘देख मौसी, उनकी बात उन्हीं से पूछ।’

अचरज से अन्नपूर्णा ने कहा – ‘क्यों?’

आशा बोली – ‘यह मैं नहीं बता सकती।’ कह कर वह कमरे से बाहर चली गई।

अन्नपूर्णा चुपचाप बैठी सोचने लगीं – हीरे जैसा लड़का बिहारी, कैसा हो गया है कि उसका नाम सुनते ही चुन्नी उठ कर बाहर चली गई। किस्मत का फेर!

साँझ को अन्नपूर्णा पूजा पर बैठी थीं कि कोई गाड़ी बाहर आ कर रुकी। गाड़ीवान घर वाले को पुकारता हुआ दरवाजे पर थपकी देने लगा। पूजा करती हुई अन्नपूर्णा बोल उठीं – ‘अरे लो! मैं तो भूल ही गई थी एकबारगी। आज कुंज की सास और उसकी बहन की दो लड़कियों के आने की बात थी इलाहाबाद से। शायद आ गईं सब। चुन्नी, बत्ती ले कर दरवाजा खोल जरा!’

लालटेन लिए आशा ने दरवाजा खोल दिया। बाहर बिहारी खड़ा है। वह बोल उठा – ‘अरे यह क्या भाभी, मैंने तो सुना था, तुम काशी नहीं आओगी?’

आशा के हाथ से लालटेन छूट गई। उसे मानो भूत दिख गया। एक साँस में वह दुतल्ले पर भागी और घबरा कर चीख पड़ी – ‘मौसी! तुम्हारे पैर पड़ती हूँ मैं, इनसे कह दो, आज ही चले जाएं।’

पूजा के आसन पर अन्नपूर्णा चौंक उठीं। कहा – ‘अरे, किनसे कह दूँ चुन्नी, किनसे?’

आशा ने कहा – ‘बिहारी बाबू यहाँ भी आ गए!’

और बगल के कमरे में जा कर उसने दरवाजा बंद कर लिया।

नीचे खड़े बिहारी ने सब सुन लिया। वह उल्टे पाँवों भाग जाने को तैयार हो गया, लेकिन पूजा छोड़ कर अन्नपूर्णा जब नीचे उतर आईं तो देखा, बिहारी दरवाजे के पास जमीन पर बैठा है। उसके शरीर की सारी शक्ति चली गई है।

वह रोशनी नहीं ले आई थीं। अँधेरे में बिहारी के चेहरे का भाव न देख सकीं, बिहारी भी उन्हें न देख सका।

अन्नपूर्णा ने आवाज दी – ‘बिहारी!’

बिहारी का बेबस शरीर एड़ी से चोटी तक बिजली की चोट से चौंक पड़ा। बोला – ‘चाची, बस और एक शब्द भी न कहो, मैं चला।’

बिहारी ने जमीन पर ही माथा टेका, अन्नपूर्णा के पाँव भी न छुए। माँ जिस तरह गंगासागर में बच्चे को डाल आती है, अन्नपूर्णा ने उसी तरह रात के उस अँधेरे में चुप-चाप बिहारी का विसर्जन किया – पलट कर उसे पुकारा नहीं। देखते-ही-देखते गाड़ी बिहारी को ले कर ओझल हो गई।

आशा ने उसी रात महेंद्र को पत्र लिखा –

‘आज शाम को एकाएक बिहारी यहाँ आए थे। बड़े चाचा कब तक कलकत्ता लौटेंगे, ठिकाना नहीं। तुम जल्दी आ कर मुझे यहाँ से ले जाओ।’

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