चैप्टर 25 नीलकंठ गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 25 Neelkanth Gulshan Nanda Novel In Hindi Read Online

चैप्टर 25 नीलकंठ गुलशन नंदा का उपन्यास, Chapter 25 Neelkanth Gulshan Nanda Novel In Hindi Read Online, Neelkanth Gulshan Nanda Ka Upanyas

Chapter 25 Neelkanth Gulshan Nanda 

Chapter 45 Neelkanth Gulshan Nanda Novel In Hindi

‘लो मिस्टर हुमायूं… इसे यह दे दो, आज के दिन किसी को ‘न’ नहीं करनी चाहिए।’ बेला ने एक रुपया हुमायूं को देते हुए कहा।

‘भीख ही देनी है तो अपने हाथों…।’

बेला यह सुनकर मुस्करा पड़ी और वही रुपया उसने स्वयं उसकी हथेली पर रख दिया। बढ़े हुए बाल और नाखून, धंसी हुई आँखें-आनंद की भयानक सूरत देखकर बेला घबरा-सी गई, किंतु घबराहट को मुस्कान में दबाते हुए बोली-‘बाबा आशीर्वाद दो कि पहली ही फिल्म मुझे उन्नति के शिखर पर ले जाए।’

फिर तीनों कार के पास जा रुके। आनंद उन्हें देखता रहा। तीनों ने आपस में कुछ खुसर-फुसर की और फिर भिखारी की ओर देखा।

चन्द क्षण की बातचीत के बाद सेठ साहब की गाड़ी बेला को लिए फाटक से बाहर चली गई। हुमायूं आनंद के पास जाकर उसे ध्यानपूर्वक देखने लगा। आनंद ने मुँह दूसरी ओर फेर लिया।

‘कौन हो तुम?’ हुमायूं ने नम्रता से पूछा।

‘तुम्हें इससे क्या?’ अपनी उंगलियों को तोड़ते हुए आनंद ने उत्तर दिया।

‘तुम पर तरस आ गया, सोचा तुम्हारी कुछ सहायता कर दूं।’

‘क्या फिल्म कंपनी में काम दिलवा दोगे?’ वह बड़बड़ाया।

‘इसलिए तो तुम्हारे पास आया हूँ। जानते हो ये कौन थे-हमारी कंपनी के मालिक और हमारी फिल्म ‘सपेरन’ की हीरोइन बेला।’ बेला का नाम सुनते ही उसने मुँह हुमायूं की ओर फेर लिया और उसकी आँखों में देखने लगा, ‘मुझे एक पागल भिखारी की खोज है, थोड़े ही समय का सीन है, हीरोइन का गला दबाना है।’

‘गला…’ इसके साथ ही आनंद अपनी उंगलियों को अंधेरे में चलाने लगा। हुमायूं ने उसे यों केकड़े के समान उंगलियाँ चलाते देखा तो बोला-‘तुम तो अभी से एक्टिंग करने लगे।’

‘हाँ-हाँ, मैं उसका गला दबा दूँगा। उसे जान से मार दूँगा।’

‘बाबा जान से नहीं मारना, वरना हम सब जेल में होंगे और तुम फांसी पर, यह तो एक्टिंग है। कल तुम्हें समझा देंगे, यहाँ आ जाना, पैसे भी अच्छे दिलवा दूँगा।’

हुमायूं ने जेब से अपने नाम का एक कार्ड निकालकर उसे दिया और तेज कदमों से चलता हुआ दूसरी कार की ओर बढ़ गया।

दूसरी सवेरे जैसे ही हुमायूं नाश्ते के लिए मेज पर बैठा, किसी ने घंटी बजाई। हुमायूं ने उठकर द्वार खोला और आश्चर्य से उसे देखता रह गया। लंबे-लंबे बालों और दाढ़ी में छिपी दो मोटी-मोटी आँखें अंदर धंसी हुई उसे घूर रही थीं। दो-चार क्षण के बाद मौन को तोड़ते हुए कुछ कंपित स्वर में हुमायूं ने उससे पूछा-‘तुम कौन हो? ‘क्या चाहिए?’

आनंद ने उसी का दिया हुआ कार्ड उसके सामने कर दिया।

‘ओह वह रात वाला पागल भिखारी, पर मैंने तो तुम्हें स्टूडियो में बुलाया था, यहाँ नहीं-और हाँ, तुम्हें मेरे घर का पता कैसे चला?’

आनंद ने देखा कि हुमायूं की आवाज अभी तक कांप रही है। वह भीतर आ गया। हुमायूं की कंपकंपी बढ़ गई-वह यहाँ कैसे आ गया।

‘तुम्हें यहाँ का पता कैसे चला?’ हुमायूं ने अपने प्रश्न को दोहराया।

‘एक समय से जानता हूँ, यहाँ मेरा एक मित्र रहता था।’ आनंद के स्वर में निश्चय और कठोरता थी।

‘कौन है! कब! मैं तो बड़े समय से रहता हूँ।’

‘शायद वह मर गया हो।’

‘मर गया हो-नहीं, तुम झूठ कहते हो, वह मरा नहीं। ऐसा जान पड़ता है कि मैं तुम्हें अच्छी प्रकार जानता हूँ-तुम…तुम मेरे आनंद हो।’ हुमायूं ने चिल्लाते हुए उसे देखा, दोनों गले मिल गए।

‘लेकिन यह पागलों की-सी हालत?’

‘तुम जैसा मित्र मर जाए तो अपनी यही दशा होगी।’

‘ऐसा मत कहो’, हुमायूं ने आनंद का संकेत समझते हुए कहा और हाथ से पकड़कर उसे पास कुर्सी पर बिठा लिया। ‘आनंद! शायद तुम नहीं जानते कि भाभी को मैंने कितना रोका है। मेरे मना करने पर उसने खुद सेठ साहब को खत लिखे, मुझे तो उस दिन पता चला जब वह यहाँ दफ्तर में आ धमकी और सेठ साहिब ने बतलाया कि सपेरन की हीरोइन बेला होगी।’

‘ओह! मैं उसे मार डालूँगा।’

‘सब्र से काम लो, गुस्सा थूक दो। मेरे होते भाभी पर आंच नहीं आ सकती। अब भी कुछ नहीं गया, फिल्म खत्म होने वाली है, दूसरा कांट्रेक्ट मिलने से पहले उसे यहाँ से ले जाओ।’

हुमायूं की इस बात पर आनंद पागलों की भांति हंसने लगा, फिर कठिनाई से हंसी रोकते हुए बोला-‘हुमायूं! पक्षी पिंजरे से निकल चुका है। अब उसके पर न कट सकेंगे और फिर उड़ने दो उस पक्षी को दूर आकाश की नीली गहराईयों में-थककर धरती पर गिरेगा तो मैं इसे ठोकर भी न लगाऊँगा। हुमायूं मेरे प्रिय मित्र, अब तुम्हें क्या कहूँ, मैं क्या था और क्या बन गया हूँ? मुझ पर क्या-क्या बीती, कितना दुःखी हूँ, दुनिया भर के बहुरूपिये फिल्मी जगत में लाते हो, तुम्हारे हाथों में कमाल है, मुझे भी कोई-सा रूप दो कि मैं आनंद न रहूँ, संसार मुझे पहचान न सके, वह भूल न जाए कि आनंद कौन था-कोई मुझ पर हंस न सके।’

‘पहले कोई क्या हंसेगा तुम पर…मैं तुम्हारा रूप बदल देता हूँ, तुम्हें कोई भी पहचान न सकेगा, पर इससे क्या होगा, दुनिया भूल सकती है, मैं भूल सकता हूँ, लेकिन तुम अपने आपको कैसे भूल सकोगे, इस बहुरूप में भी तुम्हें क्योंकर यकीन होगा कि तुम आनंद नहीं। तुम्हारी बेला लाखों के दिलों की रानी बन चुकी है, हर कोई तुम्हारे नसीब की हंसी उड़ा रहा है।’

‘तो इसे बैठकर कोसूं, और बस बैठा रहूं, यह मुझसे न होगा।’

‘कौन कहता है तुम्हें ऐसा करने को।’

‘तो क्या करूँ?’

‘इस नसीब को बदल डालो।’

‘कैसे?’

‘ठीक हो जाएगा-उठो, अपनी हालत बदलो-नाश्ता तैयार है।’

जब हुमायूं स्टूडियो पहुँचा तो उसके साथ एक भिखारी को देखकर सब उधर ही देखने लगे। उसने आनंद की बिगड़ी हुई सूरत में और व्यंग्य भर दिए थे और मेकअप से उसे पागल भिखारी-जैसा बना दिया था, जिससे उसे कोई भी पहचान न सकें। बेला भी देखने लगी पर उसे पहचान न पाई और उसकी सूरत देखकर सेठ साहिब से बोली-

‘मुझे तो अभी से डर लगता है। स्टेज पर क्या होगा?’

‘सीन अच्छा फिल्माया जाएगा, वास्तविक रंग दिखलाने को ही मैंने इसे सड़क से पकड़ा है।’

शूटिंग आरंभ होने से पहले ही हुमायूं ने आनंद को समझा दिया कि वह ऐसी बात न कर बैठे, जो उसकी वास्तविकता को प्रकट कर दे। उसे अपने-आपको प्रकट करना चाहिए तो केवल बेला पर, जो उसे देख ले, समझ ले, किंतु कुछ कह न सकें।

हुमायूं का विश्वास था कि बेला आनंद को ऐसी दशा में देखकर बेचैन होगी, संभव है उसकी बेचैनी उसे फिर ठीक मार्ग पर ले आए।

डायरेक्टर ने आवाज दी और सब तैयार हो गए-स्टेज बिजली के उजाले से जगमगा उठी। आनंद एक दीवार की ओट में छिपकर खड़ा हो गया। बेला इठलाती हुई पाजेब की झंकार के साथ आगे बढ़ी। डायरेक्टर ने आनंद को संकेत किया। वह संकेत पाते ही लपका और बांह से खींचकर उसके गले को अपने दोनों हाथों में ले लिया।

उसकी मोटी-मोटी आँखें और क्रोध से भरी हुई सूरत देखकर बेला सचमुच डर गई। उसे विश्वास हो गया कि वह आनंद ही था। जैसे ही उसने जोर से अपनी उंगलियाँ उसके गले में गाढ़ीं, उसकी चीख निकल गई। डायरेक्टर ने ‘ओ.के.’ की आवाज के साथ ही ‘कट’ कहा और सब उधर लपके। आनंद अभी तक उसका गला दबा रहा था। हुमायूं ने बढ़कर खींच लिया। बेला धरती पर बेसुध पड़ी थी।

आनंद ने क्रोध में हुमायूं का हाथ झटका और लंबे-लंबे डग भरता हॉल से बाहर चला गया। चन्द क्षण तक तो लोग उसे देखते रहे और फिर बेला की ओर बढ़े। सेठ साहब उसके मुँह पर पानी के छींटे डाल रहे थे।

जब उसे होश आया तो वह घबराहट में विस्फारित दृष्टि से इधर-उधर देखने लगी। वह पागल भिखारी वहाँ से जा चुका था। सेठ साहब की जुबान से यह सुनने पर भी घबराहट न गई। एक हुमायूं था, जो उसकी व्यग्र आँखों में छिपी हुई हलचल को समझता था।

आज की शूटिंग का प्रोग्राम बंद कर दिया गया। जैसे ही बेला हुमायूं के पास अकेले में बैठी तो उससे बोली-

‘जानते हो यह कौन था?’

‘हाँ, तुम्हारा आनंद।’ हुमायूं ने बिना किसी घबराहट के उत्तर दिया।

‘ओह!’ उसके कांपते हुए होंठों ने एक सिसकी ली, ‘तो आप जान-बूझकर उसे यहाँ लाए थे।’

‘नहीं, बल्कि किस्मत उसे यहाँ खींच लाई है। मैं क्या जानता था कि कल रात जिस बदनसीब की हथेली पर मुस्कराते हुए तुम रुपया रखोगी, वह और कोई नहीं, तुम्हारा पति है।’

‘मिस्टर हुमायूं! जरा धीरे, लोग क्या कहेंगे।’

‘यही कि हिन्दुस्तान की इतनी मशहूर एक्ट्रेस का पति एक पागल है, भिखारी है, दाने-दाने को मोहताज है।’

‘यों न कहिए। उन्हें इस दशा में मैं नहीं लाई, वह स्वयं आए हैं। मैं न जानती थी कि वह दिल के इतने छोटे हैं।’

‘दिल का छोटा या बड़ा होना, सब वक्त के अख्तियार में है। मुझे अफसोस तो इस बात का है कि तुमने एक देवता को किस कदर गलत समझा, वह क्या था और उसे क्या बना दिया।’

‘परंतु अब वह कहाँ है?’

‘नसीब की ठोकरें खा रहा होगा। जानती हो आज सुबह उसने नाश्ता मेरे साथ किया, पूरे दस दिन के बाद। न जाने वह इस पागलपन में क्या कर बैठे, और कहीं…।’

हुमायूं एकाएक कांपकर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। उसका मस्तिष्क उस समय कहीं और घूम रहा था। कहीं आनंद कुछ कर न बैठे-जीवन से लाचार होकर मानव क्या कुछ नहीं कर जाता।

रात के दस बजे हुमायूं ने बंबई का कोना-कोना छान मारा, परंतु उसे आनंद का कहीं पता न चला। थक-हार वह अपने घर की खिड़की के पास बैठ गया। उसकी आँखों से आँसू फूट पड़े। उससे आनंद की यह दशा देखी न गई थी। वह अभी तक इसी प्रतीक्षा में था कि शायद किसी समय आनंद आकर उसका द्वार खटखटाए, पर वह न आया।

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