बोलता लिहाफ़ भीष्म साहनी की कहानी  | Bolta Lihaaf Bhisham Sahni Ki Kahani 

बोलता लिहाफ़ भीष्म साहनी की कहानी, Bolta Lihaaf Bhisham Sahni Ki Kahani, Bolta Lihaaf Bhisham Sahni Story In Hindi 

Bolta Lihaaf Bhisham Sahni Ki Kahani 

गहरी रात गए एक सौदागर, घोड़ा-गाड़ी पर बैठकर एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव पर जा रहा था। बला की सरदी पड़ रही थी और वह ठिठुर रहा था।

कुछ समय बाद एक सराय के बाहर घोड़ा-गाड़ी रुकी। ठंड इतनी ज़्यादा थी कि मुसाफ़िर ने उसी पड़ाव पर रात काटने का फ़ैसला किया।

पर सराय के अन्दर जाने पर पता चला कि सराय के सभी कमरे खचाखच भरे हैं और सराय का मालिक उसे कहीं पर भी ठहराने की स्थिति में नहीं है, पर अब यात्री जाए तो जाए कहाँ? तभी सराय के मालिक ने सुझाव दिया, “हाँ, ऊपरवाली छत पर जहाँ सराय का सामान पड़ा रहता है, वहाँ मैं तुम्हारे लिए रात काटने का बन्दोबस्त कर सकता हूँ।”

और वह उसे ऊपरवाली छत पर एक छोटे-से कमरे में ले गया। बिछौने के लिए और तो कुछ नहीं था, एक फटा-पुराना लिहाफ़ पड़ा था, वही देते हुए बोला, “आज रात इसी में काट लो, कल कोई बेहतर इंतज़ाम कर दूँगा।”

थका-माँदा सौदागर वहीं पसर गया। वह कुछ ही देर तक सो पाया होगा कि उसकी नींद टूट गई और उसे लगा जैसे कमरे में कोई बातें कर रहा है, आवाज़ें बच्चों की थीं। एक बच्चा दूसरे से कह रहा था, “भैया, क्या आपको बहुत ठंड लग रही है?”

कुछ देर बाद, इसके उत्तर में, दूसरा बच्चा कहता, “क्या तुम्हें भी बहुत ठंड लग रही है?”

अजीब चौंकानेवाला अनुभव था। पहले तो सौदागर ने सोचा, बाहर कहीं से आवाज़ें आयी होंगी और फिर से अपने को ढाँपकर सोने की चेष्टा करने लगा पर कुछ ही देर बाद फिर से वही दो बच्चों की आवाज़ें सुनायी पड़ने लगीं।

“भैया, क्या आपको बहत ठंड लग रही है?”

“और तुम्हें भी बहुत ठंड लग रही है?”

दो-तीन बार जब ऐसा अनुभव हुआ तो सौदागर उठ बैठा और ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगा।

आवाज़ें उसी के लिहाफ़ में से आ रही थीं, जो वह ओढ़े हुए था।

उसके बाद वह मुसाफ़िर सो नहीं पाया। जब नींद गहराने लगती तो बच्चों की आवाज़ें जगा देतीं। वह परेशान हो उठा, पर करे तो क्या करे! सौदागर को इस बात का भी डर लगने लगा था कि सराय के मालिक ने कोई जादुई ओढ़नी उसे जान-बूझकर न दे दी हो। उसने रात बड़ी परेशानी से काटी।

दूसरे दिन प्रातः वह बौखलाया हुआ सराय के मालिक के पास गया।

“तुमने मेरे साथ धोखा किया है। ऐसा लिहाफ़ मुझे दिया कि मैं रात-भर सो नहीं पाया। रात-भर जागता रहा।”

और उसने अपना अनुभव कह सुनाया।

उसकी कैफ़ियत सुनकर ख़ुद सराय का मालिक हैरान रह गया। उसे भी मालूम नहीं था कि लिहाफ़ में से आवाज़ें आती हैं। उसने वह लिहाफ़ एक कबाड़ी की दुकान पर से ख़रीदकर यहाँ पटक दिया था।

उस रोज़ बहुत बोलने-झगड़ने के बाद सौदागर ने तो अपनी राह ली और अगले पड़ाव की ओर निकल गया। पर सराय के मालिक ने यह जानने के लिए कि बोलता लिहाफ़ उसके पास कैसे पहुँच गया, वह उसी दोपहर, लिहाफ़ उठाए उस कबाड़ी की दुकान पर जा पहुँचा।

“यह कैसा लिहाफ़ तुमने मेरे मत्थे मढ़ दिया! इसे ओढ़कर तो कोई सो ही नहीं सकता। इसमें से आवाज़ें आती हैं।”

कबाड़ी लिहाफ़ का भेद जानता था।

“हाँ, मैं जानता हूँ, आवाज़ें आती थीं पर मैंने सोचा, तुम अपनी सराय में ले जाओगे तो आवाज़ें आनी बन्द हो जाएँगी।”

फिर कबाड़ी बोला, “यह लिहाफ़ दो छोटे-छोटे बच्चों का था। इनमें वे सिकुड़े एक-दूसरे से चिपटे पड़े रहते थे। दोनों एक टूटी-फूटी कोठरी में रहते थे। उनके माँ-बाप उन्हें छोड़कर कहीं चले गए थे, फिर लौटकर नहीं आए। दोनों बच्चे जैसे-तैसे अपने दिन बिता रहे थे कि एक दिन कोठरी का मालिक पहुँच गया। वह डराने-धमकाने और कोठरी का किराया तलब करने लगा। और फिर यह लिहाफ़ बग़ल में दबा लिया और दोनों बच्चों को कोठरी से धकेलकर बाहर निकाल दिया।… बच्चों से उनका एकमात्र सहारा लिहाफ़ तो छिन गया पर उनकी आवाज़ें लिहाफ़ को छोड़ नहीं पायीं।”

**समाप्त**

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