प्रेस की शक्ति ओ. हेनरी की कहानी | A Newspaper Story O Henry Ki Kahani 

प्रेस की शक्ति ओ. हेनरी की कहानी A Newspaper Story O Henry In Hindi, Press Ki Shakti O Henry Ki Kahani 

A Newspaper Story O Henry Ki Kahani 

A Newspaper Story O Henry Ki Kahani 

सुबह के आठ बजे दुकान पर समाचार पत्र के ताज़ा अंक रस्सी पर लटक रहे थे। ग्राहक चलते फिरते समाचार पत्र के शीर्षक देखते या फिर एक पेन्नी का सिक्का डिब्बे में डाल कर एक अंक खींच लेते। अपनी कुर्सी पर बैठा दुकानदार ग्राहक की ईमानदारी पर नज़र रखे हुए था।

हम जिस समाचार पत्र की बात कर रहे हैं वह एक ऐसा पत्र है जो समाज के हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ परोसता है। इसलिए इस पत्र को एक शिक्षक, पथप्रदर्शक, हिमायती, सलाहकार और घरेलु परामर्शदाता का दर्जा मिला हुआ है।

आज के समाचार पत्र में तीन अलग-अलग सम्पादकीय हैं – एक में शुद्ध एवं सरल भाषा में माता-पिता और शिक्षकों से अपील की गई है कि बच्चों का पालन-पोषण बिना मार-पीट के किया जाय। दूसरा सम्पादकीय मज़दूर नेताओं के नाम है जिसमें यह आह्वान किया गया कि वो मज़दूरों को हड़ताल करने के लिए न उकसाए। तीसरे सम्पादकीय में पुलिस बल से मांग की गई है कि वे बल के प्रयोग से बचें और जनता से अपील है कि वे पुलिस को अपना मित्र समझें।

इन सम्पादकियों के अतिरिक्त ऐसे लेख भी हैं जिनमें युवकों को अपनी प्रेमिका का दिल जीतने के गुर बताए गए हैं; महिलाओं को सौंदर्य साधन के प्रयोग और सदाबहार सुंदरता के नुस्खे दिए गए हैं…. आदि आदि।

एक पन्ने के कोने में एक बक्से में ‘निजी’ संदेश छपा है जिसमें कहा गया है- “प्रिय जैक, मुझे माफ कर दो। तुम सही थे। आज सुबह ८-३० बजे मेडीसन के चौथे एवन्यु के नुक्कड़ पर मुझसे मिलो। हम दोपहर को निकल पड़ेंगे। – पश्चातापी।”

सुबह के आठ बजे दुकान पर एक युवक आया। उसके बाल बिखरे हुए थे, दाढ़ी बड़ी हुई थी और आँखों से लग रहा था कि वह रात भर जागता रहा है। उसने एक पेन्नी का सिक्का बक्से में डाला और समाचार पत्र लेकर निकल पड़ा। उसे नौ बजे दफ़्तर पहुँचना था और रास्ते में नाई की दुकान पर दाढ़ी भी बनवाना था। उसके पास अब समाचार पढ़ने के लिए समय नहीं था। इसलिए समाचार पत्र को उसने अपनी पैंट के पिछले जेब में ठूंस लिया।

वह नाई की दुकान में घुसा और फिर दफ़्तर की ओर निकल पड़ा। उसे पता ही नहीं चला कि समाचार पत्र कब उसकी जेब छोड़कर सड़क की धूल फाँक रहा है। तेज़ी से चलते-चलते उसने अपनी जेब पर हाथ लगाया तो पत्र गायब था। वह कुढ़कुढ़ाता हुआ लौट ही रहा था कि उसके होंटों पर मुस्कान की बारीक लकीर उभर आई। नुक्कड पर उसकी प्रेमिका खड़ी दिखाई दी। वह दौड़ी-दौड़ी आई और उसके हाथ थाम कर बोली, “मैं जानती थी जैक, तुम मुझे माफ कर दोगे और मुझसे मिलने ज़रूर आओगे।” वह बुदबुदा रहा था- ‘क्या कह रही है, समझ नहीं आता।….ठीक है, ठीक है।’

खैर, अब हम अपने समाचार पत्र की खबर लेते हैं। तेज़ हवा का झोंका आया और समाचार पत्र सड़क पर उड़ने लगा। पुलिसवाले ने इसे ट्रेफिक में व्यवधान मान कर अपनी लम्बी बाँहें पसारी और उसे दबोच लिया। एक पन्ने का शीर्षक था- ‘आप की सहायता के लिए पुलिस की सहायता कीजिए’। इतने में पुलिसवाले को देखते ही बगल के बार की खिड़की से आवाज़ आई- “एक पेग आपके लिए है श्रीमानजी”। एक ही घूँट में उसे गले के नीचे उतारते हुए वह पुनः अपनी ड्यूटी पर लग गया। शायद सम्पादक महोदय का संदेश बिन पढ़े भी ठीक स्थान पर पहुँच गया था या फिर उस पेग का असर था! पुलिसवाले ने अपने अच्छे मूड का प्रदर्शन करते हुए राह चलते एक लड़के की बगल में वह समाचार पत्र अटका दिया। जॉनी ने घर पहुँच कर अपनी बहन ग्लेडिस को वह समाचार पत्र थमा दिया। एक पन्ने पर सुंदरता के टिप्स दिए गए थे। ग्लेडिस ने बिना देखे वह पन्ना फाडकर अपना लंच पैक लपेटा और सड़क पर निकल पड़ी; मनचले सीटी बजा रहे थे। काश! ‘सुंदरता के टिप्स’ का पन्ना लिखनेवाला सम्पादक इस दृश्य को देखता।

जॉनी और ग्लेडिस का पिता मज़दूर नेता था। उसने समाचार पत्र के उस पन्ने को खींचा जिस पर मज़दूरों पर सम्पादकीय लिखा था। उसे फाड़ कर उसने पज़ल का अंश ले लिया और उसे हल करने बैठ गया। इसका परिणाम यह हुआ कि तीन घंटों की प्रतीक्षा के बाद भी यह नेता मज़दूरों के संघर्ष पर निर्णय लेने नहीं पहुँचा। अन्य नेताओं ने यह फैसला लिया कि आंदोलन को रद्द कर दिया जाय।

जॉनी ने बचे हुए पन्नों को उस जगह खोंस लिया, जहाँ मास्टर की बेंत पड़ने की अधिक सम्भावना होती है। इस प्रकार आज उस सम्पादकीय की सार्थकता सिद्ध हुई, जिसमें शिक्षकों को बच्चों से क्रूर व्यवहार न करने की बात कही गई थी।

इसके बाद अब प्रेस की शक्ति से क्या कोई इंकार कर सकता है???

(अनुवाद: चंद्र मौलेश्वर प्रसाद)

**समाप्त**

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