चैप्टर 14 दिलेर मुज़रिम इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़

Chapter 14 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi

Chapter 14 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi

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खुलासा

एक हफ्ते बाद नजमा और डॉक्टर शौकत कोठी के पास बाग में चहलकदमी कर रहे थे।

“बहुत शरारती हो तुम नज़मा।” शौकत ने कहा, “आखिर बेचारे मालियों को तंग करने से क्या फायदा? ये क्यारियाँ जो तुमने बिगाड़ दी है, माली का गुस्सा किसी और के ऊपर उतरेगा।”

“मैंने इसलिए बिगाड़ी हैं क्यारियाँ, क्योंकि मैं तुम्हारा इम्तिहान लेना चाहती हूँ।”

“क्या मतलब!” डॉक्टर शौकत ने कहा।

“यही कि तुम उनका ऑपरेशन करके उन्हें फिर ठीक कर दो।” नज़मा ने शोखी कहा।

“मुझे तो नहीं, लेकिन शादी हो जाने को तुम्हारा ऑपरेशन कर तुम्हें बंदरिया ज़रूर बना दूंगा।”

“शादी…बहुत खूब…शादी…तुम यह समझते हो कि मैं सच में शादी कर लूंगी।”

“तुम करो या ना करो, लेकिन मैं तो कर ही लूंगा।”

“तो मुझे बंदरिया बनाने से क्या फ़ायदा? क्यों न तुम्हारे लिए एक बंदरिया पकड़वा ली जाए। ऑपरेशन की ज़हमत से बच जाओगे।”

“अच्छा ठहरो…बताता हूँ। हेलो भाई फ़रीदी…आओ आओ हम तुम्हारा इंतज़ार कर रहे थे।”

फ़रीदी और हमीद कार से उतर रहे थे।

“नवाब साहब का क्या हाल है?” फ़रीदी ने शौकत से हाथ मिलाते हुए कहा।

“अच्छे हैं तुम याद कर रहे थे। आओ चलो, अंदर चलें।”

नवाब साहब गाँव तकिये से टेक लगाए अंगूर खा रहे थे। फ़रीदी को देख कर बोले, “आओ मियां फ़रीदी…मैं आज तुम्हें याद कर रहा था। मैंने तुम्हें उस वक्त देखा था, जब मुझे बोलने की इजाज़त नहीं थी। आजकल तो मेरे बेटे का हुक्म मुझ पर चल रहा है।”

नवाब साहब ने शौकत की तरफ प्यार से देखते हुए कहा।

“आपको अच्छा देख कर मुझे बहुत खुशी हुई।” फ़रीदी ने सोफे पर बैठते हुए कहा।

थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करने के बाद नवाब साहब ने कहा, “फ़रीदी मियां, तुम्हें इस बात का पता तो नहीं चला कि शौकत मेरा बेटा है।”

“मैं कहानी का बाकी हिस्सा आप की जुबानी सुनना चाहता था।” फ़रीदी ने कहा।

“नहीं भई…पहले तुम बताओ।” नवाब साहब बोले।

“मेरी कहानी ज्यादा लंबी नहीं सिर्फ दो लफ्जो में खत्म हो जाएगी। जब मैं पहली बार सलीम से रिपोर्टर के भेष में मिला था, उस वक्त मैंने आपके वालिद साहब की तस्वीर देखकर अंदाज़ा लगा लिया था कि इस कोठी का कोई मेंबर डॉक्टर शौकत को क्यों खत्म करना चाहता है। शौकत की शक्ल हूबहू नवाब साहब मरहूम से मिलती है। लेकिन मुझे हैरत है कि जिस बात का पता डॉक्टर शौकत को नहीं था, उसका पता सलीम को कैसे हुआ?”

“शायद में बेहोशी के दौरान कुछ बक गया हूंगा। मुझे मालूम हुआ कि सलीम ज्यादातर मेरे करीब ही रहता था। फ़रीदी मियां यह एक बहुत ही दर्द भरी दास्तान है। मैं तुम्हें शुरू से सुनाता हूँ। शौकत की माँ हमारे खानदान की न थी, लेकिन वह किसी पिछड़ी जाति से भी ताल्लुक न रखती थी। उनमें सिर्फ इतनी खराबी थी कि उनके माता-पिता हमारी तरह दौलतमंद न थे। हम दोनों एक-दूसरे को बेहद चाहते थे, लेकिन वालिद साहब मरहूम के डर से खुल्लम-खुल्ला शादी न कर सकते थे। इसलिए हमने छिपकर शादी कर ली। एक साल के बाद शौकत पैदा हुआ, लेकिन उसकी पैदाइश के छः महीने बाद ही शौकत की माँ को एक ख़तरनाक बीमारी हो गई। उसी हालत में वह दो साल तक ज़िन्दा रही। उसकी ख्वाहिश थी कि वह अपने बेटे को जागीरदाराना माहौल से अलग रखकर ऊँची तालीम दिलायें। वह एक रहमदिल औरत थी। वह चाहती थी कि उसका बेटा डॉक्टरी की तालीम हासिल करके गरीबों की मदद करें। यह उसका ख़याल था और भी कुछ ठीक था कि जागीरदारी माहौल में पले बच्चे के दिल में गरीबों का दर्द नहीं हो सकता। जब वह दम तोड़ रही थी, तो उसने मुझसे वादा ले लिया था कि उस वक्त तक मैं शौकत पर यह बात ज़ाहिर न करूं, जब तक वह उसकी ख्वाहिश के मुताबिक एक अच्छे किरदार का मालिक न हो जाये। फिर उन्होंने शौकत को सविता देवी के सुपुत्र कर दिया। मैं उठ गया तो आपको सविता देवी की मदद किया करता था। ख़ुदा जन्नत नसीब करें उसे, बड़ी खूबियों की मालिक की। आखिरकार उसने शौकत के लिए जान दे दी। शौकत की माँ के इंतकाल के बाद मेरा दिल टूट गया और फिर मैंने दूसरी शादी नहीं की और दुनिया यही समझती रही कि मैं ताज़िंदगी कुंवारा ही रहा।”

नवाब साहब ने फिर शौकत और नज़मा की ओर प्यार भरी नज़रों से देखकर कहा, “अब मेरी ज़िन्दगी में फिर से बाहर आ गई है…ए ख़ुदा…ए ख़ुदा।” उनकी आवाज रूंध गई और आँखों में आँसू छलक पड़े।

“फ़रीदी मियां!” नवाब साहब बोले, “इस सिलसिले में तुम्हें जो परेशानियाँ उठानी पड़ी है, उनका हाल मुझे मालूम है। बाख़ुदा मैं तुम्हें शौकत से कम नहीं समझता। तुम भी मुझे उतने ही अजीज़ हो, जितने की शौकत और नज़मा!”

“यह आपकी मोहब्बत है जनाब।” फ़रीदी ने सिर झुकाकर धीरे से कहा।

“हाँ भई…वे बेचारे प्रोफ़ेसर का क्या हुआ?”

“वह किसी तरह रिहा नहीं हो सकता।” फ़रीदी ने कहा, “लेकिन मैं उसे बचाने की भरपूर कोशिश करूंगा।”

“अच्छा भई अब तुम लोग जाकर चाय पियो। अरे हाँ एक बात तो भूल ही गया, अगले महीने शौकत का नज़मा की शादी हो रही है।” जवाब

साहब ने नज़मा और शौकत को देखते हुए कहा, “अभी से कह देता हूँ फ़रीदी मियां कि तुम्हें और हमीद साहब को शादी से एक हफ्ता पहले ही छुट्टी लेकर आना पड़ेगा।”

“ज़रूर ज़रूर!” फ़रीदी ने दोनों की तरफ देखते हुए कहा, “मुबारक हो!”

नज़मा और शौकत ने शरमाकर सिर झुका लिया।

थोड़ी देर बाद चारों ड्राइंग रूम में बैठे चाय पी रहे थे।

“भाई फ़रीदी तुम कब शादी कर रहे हो?” डॉक्टर शौकत चाय का घूंट लेकर प्याली मेज पर रखते हुए कहा।

“किसकी शादी?” फ़रीदी मुस्कुराकर बोला।

“अपनी भई!”

“ओह मेरी शादी!” फ़रीदी ने हँसकर कहा, “सुनो मियां शौकत, अगर मेरी शादी होती, तो तुम्हारी शादी की नौबत न आती।”

“वह कैसे?”

“सीधी सी बात है। अगर मेरी शादी हो गई होती, तो मैं बच्चों को दूध पिलाता या जासूसी करता। मेरा ख़याल है कि कोई शादीशुदा शख्स कामयाब जासूस हो ही नहीं सकता।”

“तब तो मुझे अभी से इस्तीफा देना चाहिए। मैं शादी के बगैर नहीं रह सकता।” हमीद ने इतनी मासूमियत से कहा कि सब हँसने लगे।

“तो फिर क्या तुम ज़िन्दगी भर कुंवारे ही रहोगे।” शौकत ने कहा।

“इरादा तो यही है।” फ़रीदी ने सिगार सुलगते हुए कहा।

“भाई तुम बुरी तरह सिगार पीते हो। तुम्हारा फेफड़ा बिल्कुल काला हो गया होगा।” डॉक्टर शौकत ने कहा।

“अगर सिगार भी न पियूं, तो फिर ज़िन्दगी में रहे क्या जायेगा?”

“तो फिर यह कहिए कि सिगार ही को बेगम बना लिया है।” नज़मा हँस कर बोली।

हमीद कहकहा मारकर हँसने लगा। बाकी लोग सिर्फ मुस्कुराकर रह गए। हालांकि यह कोई ऐसा जुमला नहीं था कि कहकहा लगाया जाए, लेकिन फ़रीदी हमीद की आदत से वाकिफ़ था। वह औरतों के जुमलों पर खूब खुश हुआ करता था।

“हाँ भई फ़रीदी यह बताओ कि तुम मरे किस तरह थे। मुझे यह आज तक मालूम नहीं हो सका।“ डॉक्टर शौकत ने पूछा।

“यह एक लंबी कहानी है, लेकिन मैं तुमको छोटी करके बताता हूँ। मुझे शुरू ही से सलीम का शक था, लेकिन मैंने शुरू ही में एक बुनियादी गलती की थी, जिसकी बिना पर मुझे मरना पड़ा। हालांकि मैं पहले से जानता था कि नेपाली का कातिल हम लोगों का पीछा कर रहा है और वह हम लोगों को अच्छी तरह पहचानता है। इस सिलसिले में मुझसे जो गलती हुई वह यह थी कि मैं सलीम से रिपोर्टर की भेष पर मिला था। हाँ मुझे पहचान गया और उसने वापसी पर मुझ पर राइफल से फायर किया, लेकिन नाकाम रहा। प्रोफेसर के बारे में तो तुम जानते हो कि वह कुछ पागल सा है। सलीम उसे अपना हथियार बनाए हुए था। कई साल की बात है कि जब प्रोफ़ेसर यहाँ नहीं आया था और अच्छा ख़ासा था। वह उन दिनों एक प्रयोग कर रहा था। उसने चांद का सफ़र करने के लिए गुब्बारा बनाया था। प्रयोग के लिए उसने पहली बार अपने असिस्टेंट नईम को गुब्बारे में बैठाकर उड़ाया था। शायद नईम गुब्बारे को उतारने की कला भूल गया था या यह कि उसकी मशीन खराब हो गई थी। गुब्बारा फिर प्रोफेसर के ख़याल से जमीन की तरफ कभी न लौटा, हालांकि उसका ख़याल गलत था। नईम गुब्बारे समेत मद्रास के गाँव में गिरा। उसे काफ़ी चोटें आई थी, लेकिन गाँव वालों की देखभाल की वजह से वह बच गया। उसी दौरान उसे एक बाजारू लड़की से इश्क हो गया और वह वहीं रह गया। प्रोफेसर इन सब बातों से अनजान था। वो खुद को अपराधी समझ रहा था। इस परेशानी में वह क़रीब-क़रीब पागल हो गया। उसके बाद वो शहर छोड़कर राजरूप नगर में आ गया। नईम ने उसे ख़त लिखे, जो उसने पुराने ठिकाने से फिरते-फिरते यहाँ राजरूप नगर पहुँचे।

“वे ख़त किसी तरह सलीम के हाथ लग गए और इस तरह प्रोसेसर के बारे में उसे सब पता चल गया। अब उसने प्रोफेसर पर अपनी धौंस जमाकर ब्लैकमेल करना शुरू किया। मुझे इन सब बातों का पता उस वक्त हुआ, जब मैं एक रात चोरों की तरह इस कोठी में दाखिल हुआ और सलीम के कमरे की तलाशी ली। नईम के लिखे हुए ख़त अचानक मुझे मिल गए। इस तरह मैं भी सब जान गया और उसी वक्त मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि मुझ पर गोली चली सलीम ने चलाई थी क्योंकि प्रोफेसर को राइफल चलाना आता ही नहीं था।

“मैं कहाँ से कहाँ पहुँच गया!” उसने अपने आप से कहा, फिर आकर बोला शुरू किया, “हाँ तो बात मेरे मरने की थी। जब मैं सलीम और डॉक्टर कौशिक से मिलकर वापस जा रहा था, सलीम ने रास्ते में धोखा देकर मुझे रोका और झाड़ियों की आड़ से मुझ पर गोलियाँ चलाने लगा। मैंने भी फायर करने शुरू कर दिए। उसी दौरान अचानक मुझे अपनी गलती का पता चला और मैंने तय कर लिया कि मुझे किसी न किसी तरह यह साबित करना चाहिए कि अब मेरा वजूद इस दुनिया में नहीं, वरना होशियार मुज़रिम हाथ आने से रहा। इसे मैंने एक चीख मारी और भागकर अपनी कार में आया और शहर की तरफ चल पड़ा। मैं सीधा अस्पताल पहुंचा और वहाँ कंपाउंड में मोटर से उतरते वक्त गश खाकर गिर पड़ा। लोगों ने मुझे अंदर पहुँचाया। मैंने डॉक्टर को अपनी सारी स्कीम बता दी और अपनी चीफ को बुलावा भेजा। उनको भी मैंने सब कुछ बताया। फिर वहाँ से मेरे जनाज़े का इंतज़ाम शुरू हुआ। किस्मत मेरे साथ थी। उस दिन इत्तेफ़ाक से अस्पताल में एक लावारिस मरीज़ मर गया था। मेरे डिपार्टमेंट के लोगों उसे स्ट्रेचर पर डालकर अच्छी तरह ढक कर मेरे घर ले आये। पड़ोसियों और दूसरे जानने वाले उसे मेरी लाश ही समझे। मेरी मौत की खबर उसी दिन शाम के अखबारों में छप गई। फिर मैंने उसी रात हमीद को एक नेपाली के भेष में डॉक्टर तौसीफ़ के पास भेजा और उन्हें ताकीद कर दी कि वह मेरे राजीव नगर में आने के बारे में किसी से कुछ ना कहें। इसलिए यह बात छिपी ही रही कि मैं उस दिन मैं राजरूप नगर गया था। इस तरह सलीम धोखा खा गया और उसे यकीन हो गया कि उस पर शक करने वाला अब इस दुनिया में नहीं रहा और वह आसानी से अपना काम अंज़ाम दे सकेगा।

“मैं चाहता था कि तुम्हें किसी तरह राजरूप नगर लेकर आ जाऊं। इसलिए मैंने डॉक्टर तौसीफ़ से दोबारा कहलवा भेजा कि ज़रा जल्दी तुम्हें राजरूपनगर ले जाए। जब तुम आ पहुँचे, तो मैं साये की तरह तुम्हारे पीछे लगा रहा। तुम्हारी कार मैंने ही खराब की थी। मुझे पहले से मालूम था कि इस वक्त कोठी में कोई कार मौजूद नहीं है। इसलिए मैंने यकीन कर लिया कि तुम इस सूरत में पैदल ही जाओगे. मुझे यह भी यकीन था कि सलीम तुम्हें नवाब साहब के ऑपरेशन के पहले ही खत्म करने की कोशिश करेगा। इसलिए मैंने उसे मौका-ए-वारदात पर गिरफ्तार करने की सोची, लेकिन उस कमबख्तत ने वह दांव इस्तेमाल किया, जिसका मुझे पता तक न था। तुम वाकई किस्मत के अच्छे थे कि वह सुई प्रोफेसर के हाथ से गिर गई। तुम खत्म हो जाते और मुझे पता भी नहीं चलता। उसके बाद तुम कस्बे में चले गए और मैं एक माली के खाली झोपड़ी में बैठकर प्लान बनाता रहा। यह तो मुझे तुम्हारी ज़बानी मालूम हो गया था कि तुम शाम को भी पैदल जाओगे। उसी दौरान मुझे प्रोफ़ेसर के बारे में कुछ और बातें भी मालूम हुई, जैसे एक तो यही कि वह कोकीन खाने का आदी था। देखो, बातों ही बातों में बहकता चला जा रहा हूँ। बाकी हालात बताने से क्या फ़ायदा? वे तो तुम जानते ही होंगे..बहरहाल यह थी मेरे बचने की दास्तान।”

“ख़ुदा तुम्हें जन्नत नसीब करें।’ डॉक्टर शौकत ने हँसते हुए कहा।

“तो फ़रीदी भाई…अब तो आपकी तरक्की हो जायेगी। दावत में हमें न भूलियेगा।” नज़मा ने मुस्कुरा कर कहा।

“मैं तरक्की कब चाहता हूँ। अगर तरक्की हो गई, तब तो मुझे शादी करनी पड़ेगी क्योंकि इस सूरत में भी मुझे दफ्तर ही में बैठकर मक्खियाँ मारनी पड़ेगी। फिर दिन भर मक्खियाँ मारने के बाद घर पर तो मुझे मक्खियाँ मारी न जायेंगी और इसका नतीजा यह होगा कि घर पर मक्खियाँ मारने के लिए मुझे एक अदद बीवी का इंतज़ाम करना ही पड़ेगा, जो मेरे बस का रोग नहीं।”

“नज़मा शायद तुम नहीं जानती कि हमारे फ़रीदी साहब जासूसी का शौक पूरा करने के लिए इस विभाग में आए हैं। ” डॉक्टर शौकत ने कहा,

“वरना ये खुद काफ़ी मालदार आदमी हैं और इतने कंजूस है कि ख़ुदा की पनाह।”

“अच्छा यह तो मैं आज एक नई खबर सुन रहा हूँ कि मैं कंजूस हूँ। क्यों भाई मैं कंजूस कैसे?” फ़रीदी ने सवाल दागा।

“शादी न करना कंजूसी नहीं, तो और क्या है?” नज़मा ने कहा।

“अच्छा भाई हमीद, अब चलना चाहिए। वरना कहीं ये लोग सच में मेरी शादी नहीं करा दें।” फ़रीदी ने उठते हुए कहा।

“अभी बैठिए ना…ऐसी जल्दी क्या है?” नज़मा बोली।

“नहीं बहन अब चलूंगा। कई ज़रूरी काम अभी तक अधूरे पड़े हैं।”

शौकत और नज़मा दोनों को कार तक पहुँचाने आये। दोनों के चले जाने के बाद शौकत बोला, “ऐसा हैरतअंगेज आदमी आज तक मेरी नज़र से नहीं गुज़रा। पता नहीं पत्थर का बना है या लोहे का। मैंने आज तक उसे यह कहते सुना कि आज मैं बहुत थका हुआ हूँ।”

“और सार्जेंट हमीद बिल्कुल मुर्गी का बच्चा मालूम होता है।” नज़मा हँस कर बोली।

“क्यों?”

“बहरहाल आदमी खुशमिजाज़ है। अच्छा आओ अब अंदर चलें। सर्दी तेज होती जा रही है।” यह कहकर दोनों कोठी के अंदर दाखिल होने के लिए चल पड़े।

** The End **

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