विपात्र गजानन माधव मुक्तिबोध का उपन्यास | Vipatra Gajanan Madhav Muktibodh Ka Upanyas Read Online
Vipatra Gajanan Madhav Muktibodh Ka Upanyas
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Summary
गजानन माधव मुक्तिबोध की रचना “विपात्र” आधुनिक हिंदी साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है, जो मनोवैज्ञानिक गहराई और समाजशास्त्रीय विश्लेषण का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह उपन्यास समाज में हाशिए पर खड़े व्यक्तियों की जटिल आंतरिक दुनिया और उनके जीवन-संघर्षों को प्रभावशाली रूप से चित्रित करता है। ‘विपात्र’ का शाब्दिक अर्थ है ‘ऐसा पात्र जो मुख्यधारा या समाज की स्वीकृत भूमिका में फिट न बैठ सके’।
उपन्यास के नायक का जीवन उस मानसिक और सामाजिक पीड़ा का प्रतिनिधित्व करता है, जो समाज के ढांचागत अन्याय और व्यक्ति के अस्तित्व संबंधी उलझनों से उपजती है। कहानी में नायक अपनी अस्मिता और पहचान की तलाश में भटकता है। वह समाज के स्थापित मूल्यों, राजनीतिक व्यवस्था और सांस्कृतिक मान्यताओं के प्रति एक विद्रोही दृष्टिकोण रखता है।
मुक्तिबोध ने इस उपन्यास में व्यक्ति और समाज के बीच द्वंद्व को बड़ी सजीवता से उकेरा है। नायक के अंतर्मन की परतें खोलते हुए लेखक उसे एक ‘विपात्र’ के रूप में चित्रित करता है, जो समाज में अपनी जगह पाने के लिए संघर्षरत है। यह संघर्ष केवल बाहरी नहीं है, बल्कि नायक के भीतर चल रही भावनात्मक और वैचारिक जद्दोजहद को भी दिखाता है।
“विपात्र” न केवल व्यक्ति की त्रासदी को सामने लाता है, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक संरचना और उसके भीतर की विषमताओं पर तीखा प्रहार भी है। इस प्रकार, यह उपन्यास जीवन, समाज और मानवीय संवेदनाओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है।
Chapter List
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