तेरहवां बयान कुसुम कुमारी देवकीनन्दन खत्री का उपन्यास | Terahva Bayan Kusum Kumari Devaki Nandan Khatri Ka Upanyas

तेरहवां बयान कुसुम कुमारी देवकीनन्दन खत्री का उपन्यास | Terahva Bayan Kusum Kumari Devaki Nandan Khatri Ka Upanyas

Terahva Bayan Kusum Kumari Devaki Nandan Khatri 

Terahva Bayan Kusum Kumari Devaki Nandan Khatri 

पाठक, इन दोनों को जाने दीजिए और आज जरा हमारे साथ चलिए, देखें इन पालकियों में कौन है और यह फौजी सिपाही कहां जा रहे हैं जिनके पैरों की आवाज ने बालेसिंह को चौंकाकर बता दिया था कि तुम लोग रास्ता भूले हुए किसी दूसरी ही तरफ जा रहे हो।

बालेसिंह का खयाल बहुत ठीक है, बेशक ये महारानी कुसुम कुमारी के फौजी आदमी हैं जो दोनों पालकियों को घेरे जा रहे हैं और वे खास महारानी की लौंडियां हैं जो पालकी का पावा पकड़े हुए कदम बढ़ाए जा रही हैं। एक पालकी के अंदर से सिसक-सिसककर रोने की आवाज आ रही है, बेशक इसमें कुसुम कुमारी है। हाय, बेचारी पर कैसी मुसीबत आ पड़ी! रनबीरसिंह जख्मी होकर जो गिरे तो अभी तक होश नहीं आया, लाचार पालकी में रखकर अपने घर ले चली हैं। इस झुंड में कोई बेदर्द हत्यारा कैदी भी हथकड़ी बेड़ी से जकड़ा हुआ नजर नहीं आता जिससे मालूम होता है कि खूनी पकड़ा नहीं गया।

महारानी अपने किले में पहुंची और रनबीरसिंह के इलाज के लिए कई वैद्य और हकीम मुकर्रर किए, मगर पांच दिन बीत जाने पर भी उन्होंने आंखें नहीं खोलीं, इस गम में कुसुम कुमारी ने भी एक दाना अन्न का अपने मुंह में नहीं डाला। बेचारी बिलकुल कमजोर हो गई है, तिस पर भी उसने इरादा कर लिया है कि जब तक उसका प्यारा रनबीरसिंह होश में आकर कुछ न खाएगा तब तक वह भी उपवास ही करेगी, क्योंकि उन्हीं के सहारे अब इसकी जिंदगी है। उसे तनोबदन की सुध नहीं, हरदम रनबीरसिंह के पास बैठी उनका मुंह देखा करती और हाथ उठा-उठाकर ईश्वर से उनकी जिंदगी मनाती रहती है।

कुसुम कुमारी रनबीर सिंह के पास बैठी तलहथी पर गाल रक्खे कुछ सोच रही है, आंखों से आंसू बराबर जारी है, थोड़ी-थोड़ी देर पर लंबी-लंबी सांसे ले रही है, चारों तरफ लौंडियां घेरे बैठी हैं, उसकी प्यारी सखियां भी पास बैठीं उसका मुंह देख रही है, मगर किसी का हौसला नहीं पड़ता कि उसे कुछ कहें या समझावें। यकायक नक्कारे की आवाज ने उसे चौंका दिया।

यह नक्कारे की आवाज कहां से आई? क्या मेरी फौज किसी से लड़ने के लिए तैयार हुई है? मगर मैंने तो अपनी फौज को ऐसा कोई हुक्म नहीं दिया! क्या मेरा सेनापति बीरसेन, फौज लेकर लौट आया? लेकिन अगर लौट ही आया तो नक्कारे पर चोट देने की क्या जरूरत थी? लो फिर आवाज आई! मगर वह आवाज बहुत दूर की मालूम होती है!!

इन सब बातों को सोचती हुई महारानी ने सिर उठाया और इधर-उधर देखने लगी। इतने ही में एक लौंडी बदहवास दौड़ी हुई आई और घबराहट की आवाज में डरती हुई बोली, ‘‘दीवान साहब यह खबर सुनाने के लिए हाजिर हुए हैं कि बालेसिंह की फौज शहर के पास आ पहुंची जिसका मुखिया वही दुष्ट जसवंत मुकर्रर किया गया है!’’

यह खबर कुछ ऐसी न थी जिसके सुनने से बेचैनी न हो, जिसमें बेचारी कुसुम कुमारी जैसी औरत के लिए! वह भी इस दशा में कि उसका प्यारा रनबीर जिसे जान से ज्यादे समझे हुए है उसकी आंखों के सामने दुश्मन के हाथ से जख्मी होकर बेहोश पड़ा है और उसकी फौज एक दूसरे ही ठिकाने दूसरी फिक्र में डेरा डाले पड़ी है जो यहां से लगभग पंद्रह कोस के होगा।

दीवान को बुलाकर सब हाल सुना, मगर सिवाय इसके और कुछ न कह सकी कि जो मुनासिब समझो बंदोबस्त करो, मैं तो इस समय आप ही बदहवास हो रही हूं, क्या राय दूं?

बेचारे नेकदिल दीवान ने जो कुछ हो सका बंदोबस्त किया, मगर यह किसे उम्मीद थी कि यकायक बालेसिंह फौज लेकर चढ़ आवेगा और खबर तक न होने पावेगी। इस छोटे से शहर के चारों तरफ बहुत मजबूत और ऊंची दीवार थी, जगह-जगह मौके-मौके पर लड़ने तथा गोली बल्कि तोप चलाने तक की जगह बनी हुई थी और बाहर चारों तरफ खाई भी बनी हुई थी जिसमें अच्छी तरह से जल भरा हुआ था मानों एक मजबूत किले के अंदर यह शहर बसा हुआ हो। महारानी की कुछ ज्यादे फौज न थी मगर इस किले की मजबूती के सबब दुश्मनों की कलई जल्दी लगने नहीं पाती थी। कह सकते हैं कि अगर इस किले के अंदर गल्ले की कमी न हो तो इसका फतह करना जरा टेढ़ी खीर है।

दीवान साहब ने एक जासूस के हाथ बीरसेन के पास चिट्ठी भेजी जिसमें लिखा हुआ था, ‘‘रनबीरसिंह के जख्मी होने से हम लोगों की बनी बनाई बात बिगड़ गई, इतने मेहनत और तरद्दुद से फौज का इकट्ठा करना बिलकुल बेकार हो गया।

एकाएक चढ़ाई करने के पहले ही न मालूम किस दुष्ट ने बालेसिंह को होशियार कर दिया और वह अपनी फौज लेकर इस किले पर चढ़ आया जिसकी कोई उम्मीद न थी। अब हम लोग किला बंद करके जो कुछ थोड़े बहादुर यहां मौजूद हैं उन्हीं को सफीलों पर चढ़ाकर दुश्मन की फौज पर गोला बरसाते हैं, जहां तक जल्द हो सके तुम फौज लेकर उस गुप्त राह से हमारे पास पहुंचो। अफसोस, हमें यकीन नहीं है कि यह चिट्ठी तुम्हारे पास पहुंच सकेगी क्योंकि जहां तक हम समझ सकते हैं, पहर-दो-पहर के अंदर ही बालेसिंह इस किले को घेर लोगों की आमदफ्तर बंद कर देगा। ईश्वर मदद करे और यह खत तुम्हारे पास पहुंच जाए तो आज के तीसरे दिन शनीचर को उसी सुरंग की राह से जिसका दरवाजा आधी रात के समय खुला रहेगा तुम मेरे पास फौज लिए हुए पहुंच जाओ। रनबीरसिंह अभी तक बेहोश पड़े हैं।’’

इस चिट्ठी को रवाना कर दीवान साहब ने किला बंद करने का हुक्म दे दिया, शहरपनाह की दीवारों और बुर्जियों पर तोपें चढ़ने लगीं।

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