चैप्टर 2 दो सखियाँ मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास | Chapter 2 Do Sakhiyan Munshi Premchand Ka Upanyas

Chapter 2 Do Sakhiyan Munshi Premchand  Prev | Next| All Chapters  गोरखपुर 5-7-25 प्रिय पद्मा, भला एक युग के बाद तुम्हें मेरी सुधि तो आई। मैंने तो समझा था, शायद तुमने परलोक-यात्रा कर ली। यह उस निष्ठुरता का दंड ही है, जो कुसुम तुम्हें दे रही है। 15 अप्रेल को कॉलेज बंद हुआ और एक … Read more