सिपाही और हंस कमलेश्वर की कहानी | Sipahi Aur Hans Kamleshwar Ki Kahani

सिपाही और हंस कमलेश्वर की कहानी, Sipahi Aur Hans Kamleshwar Ki Kahani Hindi Short Story 

Sipahi Aur Hans Kamleshwar Ki Kahani

Sipahi Aur Hans Kamleshwar Ki Kahani

तो दोस्तो ! आपको एक कहानी सुनाकर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। हुआ यह कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जा चुके थे।

राजे-महाराजों-नवाबों की रियासतों का विलय विभाजित भारत में हो चुका था। इंदिरा गांधी ने इनके लाखों रुपयों के सालाना प्रीवी-पर्सेज भी खत्म कर दिए थे। पर ज़मीदारों-सामन्तों की नकचढ़ी आदतें अभी भी खत्म नहीं हुई थीं।

उन्हीं में से एक राजा साहब थे। उन्होंने सौ सैनिकों की एक सलामी फौज रख छोड़ी थी। पुराने ज़माने की तरह राजा साहब रोज़ सुबह अपने महल के गवाक्ष में उपस्थित होते थे। सेनापति के नेतृत्व में सौ सैनिकों की वह सलामी फौज उन्हें सैल्यूट करते हुए गुज़रती थी। राजा साहब उसकी सलामी लेते थे।

हुआ यह कि राजा साहब को गठिया का रोग हो गया। बहुत इलाज कराया गया पर रोग काबू में नहीं आया। आखिर एक हकीम जी ने परमानेंट और शर्तियाँ इलाज के लिए उन्हें हंसों का मांस खाने की सलाह दी। राजा साहब ने तत्काल अपने सेनापति को तलब किया।

सेनापति ने हाज़िर होकर ‘हुकुम हुज़ूर’ कहा और पाँच सैनिकों को लेकर हंसों का मांस लाने के लिए मानसरोवर की ओर रवाना हो गए।

लम्बा सफर तय करके वे मानसरोवर के पास पहुँच रहे थे, तो हंसों ने उन्हें आते देखा, तो वे डर के मारे किनारे से हट कर बीच झील में जमा हो गए। सेनापति और उनके पाँचों सैनिक सोचने लगे कि हंसों को कैसे मारा जाए।

झील के बीचोंबीच हंस जमा थे। हंसों की तरह ही श्वेत हिम के टुकड़े भी मानसरोवर के पानी में यहाँ-वहाँ तैर रहे थे। तब एक सैनिक ने कहा–सेनापति जी ! क्यों न हम यहीं से गोली चलाकर दस-पाँच हंसों को मार लें ! तैर कर जाएँ और मरे हुए हंसों को उठा लाएँ !

सेनापति ने कहा-नहीं, नहीं ! यह नादानी ठीक नहीं। मानसरोवर का पानी इतना ठण्डा (यख़) है कि तुम वहाँ तक जिन्दा नहीं पहुँच पाओगे, पहुँच भी गए तो जिन्दा नहीं लौट पाओगे !

दूसरे दिन सेनापति फिर सैनिकों के साथ पहुँचा। किनारे पर तैरते हंसों ने देखा तो वे पहले की तरह ही बीच झील में जाकर जमा हो गए !

तीसरे, चौथे, पाँचवें, छठे दिन भी यही हुआ। तब सातवें दिन सेनापति ने एक तरकीब सोची। वे झील की ओर आते हुए दिखाई दिए, तो रोज़ की तरह हंस बीच झील में जमा हो गए। सेनापति सहित पाँचों सैनिक झील के किनारे खड़े हो गए। हंसों ने फिर उन्हें गौर से देखा और आश्चर्य की बात यह हुई कि आज वे झील से किनारे की ओर लौट आए। सेनापति की तरकीबें काम कर गयी थी।

सैनिकों ने हंसों की गर्दन मरोड़ी और उन्हें बोरों में भर लिया !

दोस्तो ! कहानी तो खत्म हो गई। लेकिन आप मन ही मन सोच रहे होंगे कि यह हुआ कैसे ? तो दोस्तो ! यह हुआ ऐसे कि आज वे सैनिक सेनापति की तरकीब के मुताबिक साधुओं के वेश में आए थे और हंस छले गए थे !…

(‘महफ़िल’ से)

**समाप्त**

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