शेर और लड़का मुंशी प्रेमचंद की कहानी (Sher Aur Ladka Munshi Premchand Short Story In Hindi)
Sher Aur Ladka Munshi Premchand Short Story
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बच्चो, शेर तो शायद तुमने न देखा हो, लेकिन उसका नाम तो सुना ही होगा। शायद उसकी तस्वीर देखी हो और उसका हाल भी पढ़ा हो। शेर अक्सर जंगलों और कछारों में रहता है। कभी-कभी वह उन जंगलों के आस-पास के गाँवों में आ जाता है और आदमी और जानवरों को उठा ले जाता है। कभी-कभी उन जानवरों को मारकर खा जाता है, जो जंगलों में चरने जाया करते हैं।
थोड़े दिनों की बात है कि एक गड़रिये का लड़का गाय-बैलों को लेकर जंगल में गया और उन्हें जंगल में छोड़कर आप एक झरने के किनारे मछलियों का शिकार खेलने लगा। जब शाम होने को आई, तो उसने अपने जानवरों को इकट्ठा किया, मगर एक गाय का पता न था। उसने इधर-उधर दौड़-धूप की, मगर गाय का पता न चला। बेचारा बहुत घबराया। मालिक अब मुझे जीता न छोड़ेंगे। उस वक्त ढूंढने का मौका न था, क्योंकि जानवर फिर इधर-उधर चले जाते; इसलिए वह उन्हें लेकर घर लौटा और उन्हें बाड़े में बाँधकर, बिना किसी से कुछ कहे हुए गाय की तलाश में निकल पड़ा। उस छोटे लड़के की यह हिम्मत देखो; अँधेरा हो रहा है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, जंगल भाँय-भाँय कर रहा है. गीदड़ों का हौवाना सुनाई दे रहा है, पर वह बेखौफ जंगल में बढ़ा चला जाता है।
कुछ देर तक तो वह गाय को ढूंढता रहा, लेकिन जब और अँधेरा हो गया तो उसे डर मालूम होने लगा। जंगल में अच्छे-अच्छे आदमी डर जाते हैं, उस छोटे-से बच्चे का कहना ही क्या। मगर जाए कहाँ? जब कुछ न सूझी, तो एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया और उसी पर रात काटने की ठान ली। उसने पक्का इरादा कर लिया था कि बगैर गाय को लिए घर न लौटूंगा। दिन भर का थका-माँदा तो था, उसे जल्दी नींद आ गई। नींद चारपाई और बिछावन नहीं ढूँढती।
अचानक पेड़ इतनी जोर से हिलने लगा कि उसकी नींद खुल गई। वह गिरते-गिरते बच गया। सोचने लगा, पेड़ कौन हिला रहा है? आँखें मलकर नीचे की तरफ देखा तो उसके रोएँ खड़े हो गये। एक शेर पेड़ के नीचे खड़ा उसकी तरफ ललचाई हुई आँखों से ताक रहा था। उसकी जान सूख गई। वह दोनों हाथों से डाल से चिमट गया। नींद भाग गई।
कई घण्टे गुजर गये, पर शेर वहाँ से ज़रा भी न हिला। वह बार-बार गुर्राता और उछल-उछलकर लड़के को पकड़ने की कोशिश करता। कभी-कभी तो वह इतने नज़दीक आ जाता कि लड़का जोर से चिल्ला उठता।
रात ज्यों-त्यों करके कटी, सबेरा हुआ। लड़के को कुछ भरोसा हुआ कि शायद शेर उसे छोड़कर चला जाए। मगर शेर ने हिलने का नाम तक न लिया। सारे दिन वह उसी पेड़ के नीचे बैठा रहा। शिकार सामने देखकर वह कहाँ जाता। पेड़ पर बैठे-बैठे लड़के की देह अकड़ गई थी, भूख के मारे बुरा हाल था, मगर शेर था कि वहाँ से जौ भर भी न हटता था। उस जगह से थोड़ी दूर पर एक छोटा-सा झरना था। शेर कभी-कभी उस तरफ ताकने लगता था। लड़के ने सोचा कि शेर प्यासा है। उसे कुछ आस बंधी कि ज्यों ही वह पानी पीने जाएगा, मैं भी यहाँ से खिसक चलूँगा। आखिर शेर उधर चला। लड़का पेड़ पर से उतरने की फिक्र कर ही रहा था कि शेर पानी पीकर लौट आया। शायद उसने भी लड़के का मतलब समझ लिया था। वह आते ही इतने जोर से चिल्लाया और ऐसा उछला कि लड़के के हाथ-पाँव ढीले पड़ गये, जैसे वह नीचे गिरा जा रहा हो। मालूम होता था, हाथ-पाँव पेट में घुसे जा रहे हैं। ज्यों-त्यों करके वह दिन भी बीत गया। ज्यों-ज्यों रात होती जाती थी, शेर की भूख भी तेज़ होती जाती थी। शायद उसे यह सोच-सोचकर गुस्सा आ रहा था कि खाने की चीज़ सामने रखी है और मैं दो दिन से भूखा बैठा हूँ। क्या आज भी एकादशी रहेगी? वह रात भी उसे ताकते ही बीत गई।
तीसरा दिन भी निकल आया। मारे भूख के उसकी आँखों में तितलियाँ-सी उड़ने लगीं। डाल पर बैठना भी उसे मुश्किल मालूम होता था। कभी-कभी तो उसके जी में आता कि शेर मुझे पकड़ ले और खा जाए। उसने हाथ जोड़कर ईश्वर से विनय की, भगवान, क्या तुम मुझ गरीब पर दया न करोगे?
शेर को भी थकावट मालूम हो रही थी। बैठे-बैठे उसका जी ऊब गया। वह चाहता था किसी तरह जल्दी से शिकार मिल जाए। लड़के ने इधर-उधर बहुत निगाह दौड़ाई कि कोई नज़र आ जाए, मगर कोई नजर न आया। तब वह चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगा। मगर वहाँ उसका रोना कौन सुनता था।
आखिर उसे एक तदबीर सूझी। वह पेड़ की फुनगी पर चढ़ गया और अपनी धोती खोलकर उसे हवा में उड़ाने लगा कि शायद किसी शिकारी की नजर पड़ जाए। एकाएक वह खुशी से उछल पड़ा। उसकी सारी भूख, सारी कमजोरी गायब हो गई। कई आदमी झरने के पास खड़े उस उड़ती हुई झण्डी को देख रहे थे। शायद उन्हें अचम्भा हो रहा था कि जंगल के इस पेड़ पर झण्डी कहाँ से आई। लड़के ने उन आदमियों को गिना एक, दो, तीन, चार।
जिस पेड़ पर लड़का बैठा था, वहाँ की जमीन कुछ नीची थी। उसे ख्याल आया कि अगर वे लोग मुझे देख भी लें, तो उनको यह कैसे मालूम होगा कि इसके नीचे तीन दिन का भूखा शेर बैठा हुआ है। अगर मैं उन्हें होशियार न कर दूँ, तो यह दुष्ट किसी-न-किसी को जरूर चट कर जाएगा। यह सोचकर वह पूरी ताकत से चिल्लाने लगा। उसकी आवाज सुनते ही वे लोग रुक गये और अपनी-अपनी बन्दूकें सम्हालकर उसकी तरफ ताकने लगे।
लड़के ने चिल्ला कर कहा-होशियार रहो! होशियार रहो! इस पेड़ के नीचे एक शेर बैठा हुआ है!
शेर का नाम सुनते ही वे लोग सँभल गये, चटपट बन्दूकों में गोलियाँ भरी और चौकन्ने होकर आगे बढ़ने लगे।
शेर को क्या ख़बर कि नीचे क्या हो रहा है। वह तो अपने शिकार की ताक में घात लगाये बैठा था। यकायक पैरों की आहट पाते ही वह चौंक उठा और उन चारों आदमियों को एक टोले की आड़ में देखा। फिर क्या कहना था। उसे मुँह माँगी मुराद मिली। भूख में सब्र कहाँ। वह इतने ज़ोर से गरजा कि सारा जंगल हिल गया और उन आदमियों की तरफ़ ज़ोर से जस्त मारी। मगर वे लोग पहिले ही से तैयार थे। चारों ने एक साथ गोली चलाई। दन! दन! इन! दन! आवाज़ हुई। चिड़ियाँ पेड़ों से उड़-उड़कर भागने लगीं । लड़के ने नीचे देखा, शेर ज़मीन पर गिर पड़ा था। वह एक बार फिर उछला और फिर गिर पड़ा। फिर वह हिला तक नहीं।
लड़के की खुशी का क्या पूछना। भूख-प्यास का नाम तक न था। चटपट पेड़ से उतरा तो देखा सामने उसका मालिक खड़ा है। वह रोता हुआ उसके पैरों पर गिर पड़ा। मालिक ने उसे उठाकर छाती से लगा लिया। और बोला–क्या तू तीन दिन से इसी पेड़ पर था?
लड़के ने कहा–हाँ, उतरता कैसे ? शेर तो नीचे बैठा हुआ था।
मालिक–हमने तो समझा था कि किसी शेर ने तुझे मार कर खा लिया। हम चारों आदमी तीन दिन से तुझे ढूंढ रहे हैं। तूने हमसे कहा तक नहीं और निकल खड़ा हुआ।
लड़का- मैं डरता था, गाय जो खोई थी ।
मालिक–अरे पागल, गाय तो उसी दिन आप ही आप चली आई थी।
भूख-प्यास से शक्ति तक न रहने पर भी लड़का हँस पड़ा।
**समाप्त**
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