शरीफ़ज़ादे अनातोले फ्रांस की कहानी (Shareefzaade Anatole France Story In Hindi)
यह कहानी एक ऐसे समय की झलक है, जब सत्ता और भय का राज था। लेकिन पाओलिन दे लुजी जैसी महिलाओं ने अपनी समझदारी, निडरता, और सहानुभूति से न केवल ख़ुद को, बल्कि दूसरों को भी बचाने का साहस दिखाया। कहानी यह सिखाती है कि प्रेम केवल शब्दों से नहीं, बल्कि कर्तव्यों और बलिदानों से सिद्ध होता है।
Shareefzaade Anatole France Story In Hindi
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उस दिन जब मैं पाओलिन दे लुजी के घर पहुँचा, तो उसने अपनी मुलायम मुस्कान के साथ हाथ हिलाकर मेरा स्वागत किया। कमरा शांत था, मानो किसी तूफ़ान से पहले की खामोशी हो। उसके स्कार्फ और तौलियों से बना टोप आरामकुर्सी पर लापरवाही से पड़ा था।
कुछ देर तक हम दोनों के बीच ख़ामोशी छाई रही। मैं अतीत की परछाइयों में खोया हुआ था। धीरे-धीरे मैंने बोलना शुरू किया, “मादाम, क्या आपको याद है? ठीक दो साल पहले, इसी दिन, इसी जगह, पहाड़ी के नीचे बहती नदी के किनारे, जहाँ आज आपकी आँखें देख रही हैं, आपने मुझसे क्या कहा था? क्या आपको याद है कि पैग़ंबरी मुद्रा में आपने मुझे उस दिन क्या आदेश दिया था?”
मैंने रुककर उसकी ओर देखा। वह स्थिर थी। उसकी आँखों में कोई हलचल नहीं थी।
“आपने मुझे कहा था।” मैंने फिर अपनी बात को आगे बढ़ाया, “कि मेरे प्रेम का इज़हार मेरे होंठों में ही दबा रहना चाहिए। आपने मुझे आदेश दिया था कि मैं न्याय और स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन को समर्पित करूँ। आपने मुझे मेरे आँसुओं के साथ छोड़ दिया था। और मैं चला गया था, बिना कुछ कहे।”
“दो साल से मैं उन ग़रीबों और भूखों के बीच रहा हूँ, जिन्हें समाज ने नज़रअंदाज़ कर दिया है। लेकिन आज भी मैं आपकी वह बात नहीं भूला।”
उसने मेरे शब्दों को बीच में ही काटते हुए हाथ से इशारा किया कि मैं चुप हो जाऊँ। तभी बगीचे की सुगंधित हवा में दूर से आती चीख़ों ने कमरे के सन्नाटे को तोड़ दिया। आवाज़ें पास आती जा रही थीं, “मारो! इन शरीफ़ज़ादों को फाँसी पर चढ़ा दो। उनकी गर्दनें उतार दो।”
उसकी आँखें सहम गईं और चेहरा पीला पड़ गया।
“कोई बड़ी बात नहीं है।” मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा, “शायद ये लोग किसी कमीने को सबक सिखा रहे होंगे। आजकल पेरिस में ऐसी घटनाएँ आम हो गई हैं। लेकिन मादाम, अगर ये लोग यहाँ आए, तो शायद मैं आपकी कोई मदद न कर पाऊँ।”
“रुको!” उसने दृढ़ता से कहा।
हम दोनों यह सोच ही रहे थे कि क्या करना चाहिए, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते, एक अधनंगा व्यक्ति हड़बड़ाते हुए कमरे में घुस आया। उसकी हालत इतनी ख़राब थी कि उसके दाँत किटकिटा रहे थे और घुटने टकरा रहे थे। वह काँपती आवाज़ में बोला, “मुझे बचा लो! वे मेरे पीछे हैं। उन्होंने मेरे घर का बगीचा उजाड़ दिया और अब मुझे ढूँढ़ रहे हैं।”
पाओलिन ने उसे पहचान लिया। यह प्लाँचो था, एक बूढ़ा दार्शनिक, जो पड़ोस में रहता था। उसने फुसफुसाकर उससे पूछा, “कहीं मेरी नौकरानी ने तुम्हें देखा तो नहीं?”
“नहीं, मुझे किसी ने नहीं देखा,” प्लाँचो ने जवाब दिया।
“अच्छा है,” पाओलिन ने राहत की साँस ली।
हम दोनों ने जल्दी से योजना बनाई कि उसे कहाँ छिपाया जाए। प्लाँचो इतना डरा हुआ था कि खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। वह बार-बार कह रहा था, “मुझ पर झूठे आरोप लगाए गए हैं। वे कहते हैं कि मैंने गणतंत्र के खिलाफ षड्यंत्र किया है। यह सब झूठ है। यह ल्यूबिन की साज़िश है।”
पाओलिन ने उसे अपने कमरे में छिपाने का फैसला किया। लेकिन यह आसान काम नहीं था।
अचानक सीढ़ियों पर भारी बूटों की आवाज़ सुनाई दी। पाओलिन की नौकरानी दरवाजे के बाहर खड़ी थी और कह रही थी, “मादाम, नगरपालिका के अधिकारी और नेशनल गार्ड्स बाहर खड़े हैं। वे कहते हैं कि प्लाँचो इस घर में छिपा है। मैंने उन्हें बताया कि ऐसा नहीं हो सकता, लेकिन वे मेरी बात पर यकीन नहीं कर रहे।”
पाओलिन ने बिना घबराए जवाब दिया, “उन्हें अंदर आने दो। पूरे घर को दिखा दो।”
प्लाँचो का डर बढ़ता जा रहा था। वह पसीने से लथपथ था। हम उसे पलंग के नीचे छिपाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह जगह पर्याप्त नहीं थी।
पाओलिन ने जल्दी से पलंग को खिसकाकर गद्दों के बीच जगह बनाई। फिर उसने कहा, “तुम बिस्तर के बीच में छिप जाओ। लेकिन यह काफी नहीं होगा। मुझे खुद बिस्तर पर लेटना पड़ेगा ताकि किसी को शक न हो।”
यह कहते हुए उसने शांत और निडर तरीके से अपने कपड़े उतारे और बिस्तर पर लेट गई। फिर उसने मुझसे कहा, “तुम्हें भी जूते और टाई उतारनी होगी। हमें ऐसा दिखाना होगा कि हम प्रेमी हैं।”
सैनिक अंदर आए। उनके साथ ल्यूबिन भी था, जो अब क्रांति का नेता बन चुका था। उसने कमरे का मुआयना करना शुरू किया।
“यहाँ क्या हो रहा है?” उसने मुस्कुराते हुए कहा। “लगता है हमने किसी प्रेमी जोड़े के एकांत को भंग कर दिया है। पर पहले गणतंत्र का काम, बाकी सब बाद में।”
ल्यूबिन और उसके सैनिकों ने हर जगह तलाशी ली। उन्होंने मेजों और कुर्सियों के नीचे झाँका, गद्दों पर संगीनें घोंपीं, और यहाँ तक कि तहखाने में जाकर शराब की बोतलें भी खाली कर दीं। लेकिन पाओलिन की चालाकी काम कर गई।
जब सैनिक थक गए, तो वे बाहर चले गए। उनके जाते ही मैंने जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया और पाओलिन के पास वापस आया।
“सब ठीक है। वे चले गए,” मैंने उसे बताया।
पाओलिन ने तुरंत गद्दे को हटाया और प्लाँचो को बाहर निकाला। वह इतनी बुरी हालत में था कि उसकी साँसें चलना भी बंद हो गई थीं।
“मोस्यो प्लाँचो, आप ठीक तो हैं?” उसने चिंता से पूछा।
प्लाँचो ने हल्की सिसकी भरते हुए आँखें खोलीं।
“शुक्र है, ईश्वर ने हमें बचा लिया।”
पाओलिन ने मेरी ओर देखा। उसकी आँखों में वही दृढ़ता थी जो मैंने पहली बार देखी थी।
“देखो,” उसने कहा, “तुम हमेशा कहते हो कि तुम मुझसे प्यार करते हो। लेकिन आज तुमने देखा कि असली हिम्मत और त्याग क्या होता है। तुम्हारा यह प्रेम अब तुम्हारे लिए केवल शब्द बनकर रह जाएगा।”
मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। शायद यह उसकी आँखों में छिपी सच्चाई थी जिसने मुझे चुप कर दिया। वह एक ऐसी औरत थी जिसने न केवल साहस से काम लिया, बल्कि दिखा दिया कि इंसानियत और बुद्धिमत्ता सबसे बड़ी ताकत है।
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