साँप का मणि मुंशी प्रेमचंद की कहानी | Saamp Ka Mani Munshi Premchand Ki Kahani

साँप का मणि मुंशी प्रेमचंद की कहानी (Saamp Ka Mani Munshi Premchand Story In Hindi Kahani)

Saamp Ka Mani Munshi Premchand Story 

Saamp Ka Mani Munshi Premchand Story 

मैं जब जहाज़ पर नौकर था, तो एक बार कोलंबो भी गया था। बहुत दिनों से वहाँ जाने को मन चाहता था, खासकर रावण की लंकापुरी देखने के लिए। कलकत्ते से सात दिन में जहाज कोलम्बो पहुँचा। मेरा एक दोस्त वहां किसी कारखाने में नौकर था, मैंने पहले ही उसे खत डाल दिया था। वह घाट पर आ पहुँचा था। दम दोनों गले मिले और कोलम्बो की सैर करने चले। जहाज़ वहां चार दिन रुकनेवाला था। मैंने कप्तान साहब से चार दिन की छुट्टी ले ली ।

जब हम दोनों खा-पी चुके, तो गप शप होने लगी। वहाँ के सीप और मोती की बात छिड़ गई। मेरे दोस्त ने कहा-यह सब चीज़ें तो यहाँ समुद्र में निकलती ही हैं और आसानी से मिल जायेंगी, मगर मैं तुम्हें एक ऐसी चीज़ दूंगा, जो शायद तुमने कभी न देखी हो। हाँ, उसका हाल किताबों में पढ़ा होगा।

मैंने ताअजुब्ब से पूछा-वह कौन-सी चीज है ?

‘साँप का मणि।”

मैं चौंक उठा और बोला-साँप का मणि! उसका जिक्र तो मैंने किस्से-कहानियों में सुना है और यह भी सुना है कि उसका मोल सात बादशाहों के बराबर होता है। क्या साँप का असली मणि?

वह बोले-हां भाई, असली मणि। तुम्हें मिल जाए, तब तो मानोगे।

मुझे विश्वास न हुआ। वह फिर बोले-यहाँ पचासों किस्म के सांप हैं, मगर मणि एक ही तरह के साँपों के पास होता है। उसे कालिया कहते हैं। यह बात सच है कि यह चीज़ मुश्किल से मिलती है। पचासों में शायद एक के पास निकले । मगर मिलती जरूर है।

मैंने सुना था कि साँप मणि को अपने सिर पर रखता है, मगर यह बात ग़लत निकली। मेरे दोस्त ने कहा-यह चीज़ उसके मुँह में होती है।

मैंने पूछा-तो मुँह के अन्दर से चमक कैसे नज़र आती है !

दोस्‍त ने हँसकर कहा-जब उसे रोशनी की ज़रूरत होती है, तो वह किसी साफ़ पत्थर पर उसे सामने रख देता है। उस वक्त ज़रा भी खटका हो, तो वह झट उसे मुँह में दबाकर भाग जाता है। उसकी यह आदत है कि जहाँ एक बार मणि को निकालता है, वहीं बार-बार आता है। मैं आज ही अपने आदमियों से कहे देता हूँ और वे लोग कहीं न-कहीं से ज़रूर खबर लायेंगे।

दो दिन गुजर गये, तीसरे दिन शाम को मेरे दोस्‍त ने मुझसे कहा-लो भाई, मणि का पता चल गया।

मैं झट उठ खड़ा हुआ और अपने दोस्‍त के साथ बाहर आया, तो वहां आदमी खड़ा था, जो मणि की ख़बर लाया था। वह कहने लगा–अभी मैं एक साँप को मणि से खेलते देख आया हूँ। अगर आप इसी वक्त चलें, तो मणि हाथ आ सकता है। हम फौरन उसके साथ चल दिये । थोड़ी देर में हम एक जंगल में पहुँचे। उस आदमी ने एक तरफ़ उंगली से इशारा करके कहा-वह देखिए, साँप मणि रखे बैठा है। मैंने उस तरफ़ देखा, तो सचमुच कोई २० गज की दूरी पर एक साँप फन उठाये बैठा है और उसके आसपास उजाला हो रहा है। पहले तो मैंने समझा कि शायद जुगुनू हो, पर वह रोशनी ठहरी हुई है। जुगुनू की चमक चंचल होती है-कभी दिखाई देती है, कभी ग़ायब हो जाती है। मैं बड़ी देर तक सोचता रहा कि किस उपाय से मणि हाथ लगे। आखिर मैंने उस आदमी से कहा-मुझसे बड़ी ग़लती हुई कि बन्दूक नहीं लाया, नहीं तो इसे मारकर मणि को उठा लेता। उस आदमी ने कहा-बन्दूक की कोई ज़रूरत नहीं है साहब, आप थोड़ी देर रुकिए, मैं अभी आया। यह कहकर वह कहीं चला गया।

थोड़ी देर के बाद वह कुछ हाथ में लिये लौटा ।

मैंने पूछा-तुम्हारे हाथ में क्‍या है ?

उसने कहा-कीचड़ ।

मैंने पूछा-कीचड़, क्‍या होगा?

उसने कहा-चुप चाप देखिए, मैं क्या करता हूँ।

वह चुपके से एक पेड़ पर चढ़ गया और मुझे भी चढ़ने का इशारा किया। मैं भी ऊपर चढ़ा। तब वह डालियों पर होता हुआ ठीक साँप के ऊपर आ गया, और एकाएक उस मणि पर कीचड़ फेंक दिया। अंधेरा छा गया। साँप घबड़ाकर इधर-उधर दौड़ने लगा। थोड़ी देर के बाद पत्तियों की खड़खड़ाहट बन्द हो गई। मैंने समझा सांप चला गया। पेड़ से उतरने लगा। उस आदमी ने मुझे पकड़ लिया और कहा-भूलकर भी नीचे न जाईएगा, नहीं तो घर तक न पहुँचिएगा। वह सांप यहीं पर कहीं न कहीं छिपा बैठा है।

इम दोनों ने उसी पेड़ पर रात काटी।

दूसरे दिन सुबह होते ही हम दोनों इधर उघर देखकर नीचे उतरे। साथी ने कीचड़ हटा दिया। मणि नीचे पड़ा था। मैं मारे खुशी के मतवाला हो गया।

जब हम दोनों घर पहुँचे, तो मेरे दोस्त ने कहा-अब तो तुम्हें विश्वास आया या अब भी नहीं ?

मैंने कहा-हाँ, साँप के पास से इसे लाया हूँ जरूर, मगर मुझे अभी तक सन्देह है कि यह वही मणि है, जिसका मोल सात बादशाहों के बराबर है ।

दर्याफ्त करने पर मालूम हुआ कि वह एक किस्म का पत्थर है, जो गर्म होकर अंधेरे में जलने लगता है। जब तक वह ठंडा नहीं हो जाता, वह इसी तरह रोशन रहता है। सांप इसे दिनभर अपने मुँह में रखता है, ताकि यह गर्म रहे। रात को वह इसे किसी जंगल में निकालता है और इसकी रोशनी में कीड़े-मकोड़े पकड़कर खाता है।

**समाप्त**

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