महाराजा का इलाज यशपाल की कहानी | Maharaja Ka Ilaaj Yashpal Ki Kahani Hindi Story 

महाराजा का इलाज यशपाल की कहानी Maharaja Ka Ilaaj Yashpal Ki Kahani Hindi Story 

Maharaja Ka Ilaaj Yashpal Ki Kahani 

मोहाना की रियासत का बहुत नाम था। रियासत की प्रतिष्ठा के अनुरूप ही महाराजा साहब मोहाना की बीमारी की भी प्रसिद्धि हो गई थी। लखनऊ के गवर्नमेंट हाउस तक में महाराजा की बीमारी की चर्चा थी। युद्ध-काल में गवर्नर के यहां से युद्ध-कोष में चंदा देने के लिए पत्र आया था, तो महाराजा की ओर से पच्चीस हज़ार रुपए का चेक दिया गया। गवर्नर के सेक्रेटरी ने भेंट की गई धन-राशि के लिए धन्यवाद देकर महाराज की बीमारी के लिए चिंता और सहानुभूति भी प्रकट की थी। वह पत्र कांच लगे चौखटे में मढ़वाकर महाराज के, ड्रॉइंग-रूम में लगा दिया गया। ऐसा ही एक पोस्टकार्ड महात्मा गांधी के हस्ताक्षरों में और एक पत्र महामना मदनमोहन मालवीय का भी विशेष अतिथियों को दिखाया जाता था। साधारण लोग-बाग़ की तरह उन्हें कोई साधारण बीमारी नहीं थी। देश और विदेश से आए हुए बड़े से बड़े डॉक्टर भी बीमारी का निदान और उपचार करने में मुंह की खा गए थे। चिकित्सा-शास्त्र के इतिहास में ऐसा रोग अब तक देखा-सुना नहीं गया। ऐसे राज-रोग को कोई साधारण आदमी झेल भी कैसे सकता था।

महाराज गर्मियों में अपनी मसूरी की कोठी में जाकर रहते थे। सितंबर के महीने में महाराज के पहाड़ से नीचे अपनी रियासत में या लखनऊ की कोठी पर लौटने से पहले मसूरी में डॉक्टरों के मेले की धूम मच जाती। बात फैल जाती कि महाराज को देखने के लिए देशभर से बड़े-बड़े डॉक्टर आ रहे हैं। सब डॉक्टर बारी-बारी से महाराज की परीक्षा कर चुकते, तो महाराज की बीमारी के निदान का निश्चय करने के लिए डॉक्टरों का एक सम्मेलन होता और फिर डॉक्टरों की सम्मिलित राय से महाराज की बीमारी पर एक बुलेटिन प्रकाशित किया जाता। सब डॉक्टर अपनी-अपनी फ़ीस, आने-जाने का किराया और आतिथ्य पाकर लौट जाते, परंतु महाराज के स्वास्थ्य में कोई सुधार न होता। न उनके हृदय और सिर की पीड़ा में अंतर आता और न उनके जुड़ गए घुटनों में किसी प्रकार की गति आ पाती। नौ वर्ष से यह इसी प्रकार चल रहा था।

उस वर्ष बम्बई मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर कोराल के सुझाव पर डॉक्टर संघटिया मसूरी पहुंचे थे। वियना में काम कर चुके डॉक्टर संघटिया अनेक रोगों का इलाज साइकोसोमेटिक प्रणाली से करते थे। महाराज के यहां भी वियना से नए डॉक्टर के आने की बात से उत्साह अनुभव किया गया। उन्हें एक बहुत बड़े होटल में टिकाया गया। दूसरे दिन वे महाराज की कोठी में लाए गए। ड्रॉइंग-रूम में एक अमरीकन और एक भारतीय डॉक्टर भी मौजूद थे। डॉक्टर संघटिया ने बहुत ध्यान से दो घंटे से अधिक समय तक रोगी की परीक्षा की। पिछले वर्षों में महाराज के रोग के निदान के सम्बन्ध में डॉक्टरों के बुलेटिन देखे। तीसरे दिन दोपहर बाद डॉक्टरों की एक सभा का आयोजन किया गया। डॉक्टर लोग प्रायः एक घंटे तक चाय, कॉफ़ी, व्हिस्की, जिन की चुस्कियां लेते आपस में बातचीत करते अपने मंतव्य लिखते रहे।

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साढ़े-चार बजे महाराजा साहब को एक पहिए लगी आराम कुर्सी पर हॉल में लाया गया। महाराज के चेहरे पर रोगी की उदासी और दयनीय चिंता नहीं, असाधारण-दुर्बोध रोग के बोझ को उठाने का गर्व और गम्भीरता छाई हुई थी। दो डॉक्टरों ने महाराज को उपचार के लिए न्यू यॉर्क जाकर विद्युत चिकित्सा करवाने की राय दी। एक डॉक्टर का विचार था कि महाराज को एक वर्ष तक चेकोस्लोवाकिया में ‘कालोंविवारी’ के चश्मे में स्नान करना चाहिए। सोवियत का भ्रमण करके आए एक डॉक्टर का सुझाव था कि महाराज की काले समुद्र के किनारे सोची में ‘मातस्यस्ता’ स्रोत के जल से अपना इलाज करवाना चाहिए। महाराज गंभीरता से डॉक्टरों की राय सुन रहे थे। सत्ताइसवें नंबर पर डॉक्टर संघटिया से अपना विचार प्रकट करने का अनुरोध किया गया।

डॉक्टर संघटिया बोले,‘‘महाराज के शरीर की परीक्षा और रोग के इतिहास के आधार पर मेरा विचार हैं कि यह रोग साधारण शारीरिक उपचार द्वारा दूर होना संभव नहीं है।’’

महाराज ने नए, युवा डॉक्टर की विज्ञता के समर्थन में एक गहरा श्वास लिया, उनकी गर्दन ज़रा और ऊंची हो गई। महाराज ध्यान से नए डॉक्टर की बात सुनने लगे।

डॉक्टर संघटिया बोले,‘‘मुझे इस प्रकार के एक रोगी का अनुभव है। कई वर्ष से बम्बई मेडिकल कॉलेज के एक मेहतर को ठीक इसी प्रकार घुटने जुड़ जाने और हृदय तथा सिर की पीड़ा का दुस्साध्य रोग है।।।’’

‘‘चुप बदतमीज़ !’’

सब डॉक्टरों ने सुना। वे विस्मय से देख रहे थे कि महाराज पहिए लगी आराम कुर्सी से उठकर खड़े हो गए थे। उनके बरसों से जुड़े घुटने कांप रहे थे और होंठ फड़फड़ा रहे थे, आंखें सुर्ख़ थीं।

‘‘निकाल दो बाहर बदज़ात को! हमको मेहतर से मिलाता है।।। डॉक्टर बना है,’’ महाराज क्रोध से चीख रहे थे।

महाराज सेवकों द्वारा हॉल से कुर्सी पर ले जाए जाने की परवाह न कर कांपते हुए पैरों से हॉल से बाहर चले गए।

दूसरे डॉक्टर पहले विस्मित रह गए। फिर उन्हें अपने सम्मानित व्यवसाय के अपमान पर क्रोध आया और साथ ही उन के होंठों पर मुस्कान भी फिर गई। डॉक्टर संघटिया ने सबसे अधिक मुस्कुराकर कहा,‘‘ख़ैर, जो हो, बीमारी का इलाज तो हो गया!’’

**समाप्त**

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