लंदन की एक रात निर्मल वर्मा की कहानी | London Ki Ek Raat Hindi Story By Nirmal Verma

लंदन की एक रात निर्मल वर्मा की कहानी (London Ki Ek Raat Story By Nirmal Verma) London Ki Ek Raat Nirmal Verma Ki Kahani

London Ki Ek Raat Story By Nirmal Verma

London Ki Ek Raat Story By Nirmal Verma

मैं दूसरी बार वहाँ गया था। पहली रात देर से पहुँचा था। जाने से पहले ही सारा काम बंट चुका था। मैं फिर भी अनिश्चित-सा गेट के बाहर खड़ा था। सोच रहा था, शायद आखिरी क्षण उन्हें किसी आदमी की जरूरत पड़ेगी और वे मुझे बुला लेंगे। देर तक धड़धड़ाती मशीनों के भीतर सोडे की बोतलों का स्वर सुनाई दे रहा था। हममें से जिन्हें काम मिल गया था, वे जल्दी-जल्दी अपने सूट उतारकर काम के कपड़े पहन रहे थे।

बाहर दालान में बोतलें थीं – फीकी चाँदनी में चमकती हुई, एक के ऊपर दूसरी-सिलसिलेवार, फैक्टरी की दीवार से सटी हुईं। दूर से देखने पर लगता था, जैसे कांच के किसी लंबे टीले पर बहुत-सी बिल्लियाँ एक-दूसरे का गला पकड़े बैठी हों।

मैं खड़ा रहा। फिर कुछ देर बाद एक अंग्रेज सज्जन मेरे पास आए – “तुम अभी तक खड़े हो? …मैंने कहा न, आज कुछ भी नहीं है।” उसने अपना हाथ मेरे कंधे पर रख दिया।

“नहीं, मैं सिर्फ देख रहा था।” मैंने धीरे-से उसका हाथ अपने कंधे से अलग कर दिया।

“कल पंद्रह मिनट पहले आ जाना। अगर कुछ लोग कल नहीं आए, तो तुम्हें ले लिया जाएगा। गुड नाइट।” और वह चला गया।

यह दूसरी रात थी। ट्यूब-स्टेशन की सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर आया, तो देखा कल की चाँदनी आज पूरी तरह निखरकर फैली है। दूर मिल की चिमनियों के बीच लंदन का धूमिल आकाश सिमट आया था।

मुझे दुबारा रास्ता टटोलना पड़ा। मैं उन सड़कों पर दुबारा चलने लगा, जिन पर कल चला था, जो अब परिचित थीं, किंतु चाँदनी में अजीब-सी, अनजानी दिखाई दे रही थीं।

किंतु नार्थ एक्टन से जरा आगे चलकर मेरे पाँव खुद-ब-खुद ठिठक गए। सोचा था, आज मैं जल्दी आ गया हूँ और गेट पर मेरे अलावा कोई दूसरा नहीं होगा। किंतु मेरा अनुमान सही न था। वहाँ पहले से ही बीस-पच्चीस बेरोजगार युवकों की भीड़ जमा थी। अंग्रेज लड़के, कुछ छात्र, जो देखने में बर्मी जान पड़ते थे, दक्षिणी अफ्रीका और वेस्ट इंडीज के नीग्रो-सब अलग-अलग गुच्छों में खड़े थे। सबकी आँखें गेट पर टिकी थीं। कुछ के चेहरे जाने-पहचाने लगते थे। उन्हें शायद कल रात देखा था। उन सबकी आँखें मुझ पर उठ आईं, खामोश और तनी हुईं। मुझे लगा, जैसे उस खामोशी में एक अजीब-सा भय उभर आया है, मेरे प्रति उतना नहीं, जितना उस अज्ञात नियति के प्रति, जिसका निर्णय अगले चंद लमहों में होने वाला था।

मैं भी उनके संग एक कोने में खड़ा रहा, उनसे डरता हुआ, फिर भी उनसे बंधा हुआ।

पौने नौ के करीब मैनेजर हमारे पास आए। मुझे तनिक निराशा हुई। वह कलवाले सज्जन नहीं थे, जिन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा था। उनके हाथ में कागज का एक पुरजा था। हम सब उनके पास खिसक आए – चिड़ियाघर के उन मूक, निरीह जंतुओं की भांति, जो कुछ भी पाने के लालच से यंत्र-चालित गति में सींखचों के पास घिसटते आते हैं। एक क्षण के लिए उन्होंने हमें देखा। हमारे खुले, नंगे, भावहीन चेहरे उन्हें अजीब-से भयावह लगे होंगे, क्योंकि उन्होंने अपनी आँखें जल्दी ही कागज पर झुका लीं और तेजी से एक के बाद एक नाम पढ़ने लगे।

वे सब लोग छांट लिए गए, जिन्होंने पिछली रात काम किया था। उनके अलावा सिर्फ तीन और लड़कों को चुना गया – दो लावारिस-से दिखने वाले अंग्रेज युवक और एक दक्षिणी अफ्रीका का विद्यार्थी, जो सबसे आगे खड़ा था और बार-बार झुककर मैनेजर के कानों में कुछ फुसफुसा देता था।

“आज इतना ही।” उन्होंने सहानुभूतिपूर्ण भाव से हमारी ओर देखा, “आप लोग कल आइए, शायद कुछ आदमियों की जरूरत पड़ेगी।”

भीड़ में से तीन-चार युवकों ने आगे बढ़कर उनसे बहस करने की कोशिश की, किंतु उन्होंने बहुत असहाय भाव से अपने हाथ हिला दिए और मुस्कराती आँखों से हमारी ओर देखते हुए भीतर चले गए।

हमारी प्रतीक्षा का अंत आ पहुँचा है, इसे जानते हुए भी हममें से कोई उस पर विश्वास नहीं कर सका। मैनेजर के जाने के बाद भी हममें से कोई अपनी जगह से नहीं हिला। लगता था, जैसे पिछले तीन मिनटों में जो-कुछ भी घटा-बढ़ा है, वह अभी अपूर्ण है। एक ऐसा अवास्तविक तथ्य, जिसका शायद हमसे कोई वास्ता नहीं… अभी कुछ ऐसा है, जो बाकी है, जो प्रतीक्षा के बाद भी अपने दरवाजे खुले रखता है… हममें से बहुत-से ऐसे थे, जो ट्यूब में तीन या चार शिलिंग का टिकट लेकर लंदन के सुदूर कोनों से यहाँ आए थे। हम सबके हाथों में एक-एक थैला था, जिसमें हमने रात की ड्यूटी के कपड़े और खाने का सामान बांध रखा था। हममें से किसी के लिए भी यह विश्वास करना कठिन था कि हमें अगली ट्यूब से वापस लौट जाना होगा। पाइप से निकलता गुनगुना पानी, चाँदनी में झिलमिलाते कीचड़ के गढ़े… यहाँ तक कि नाली में पड़ी एक खाली बोतल हमें काफी अप्रासंगिक और बेतुके-से जान पड़े। हम शायद यह भी भूल गए कि हम यहाँ किसलिए आए थे। चंद लम्हों पहले जो नौकरी न मिलने का दुख था, अब वह सिर्फ एक बेडौल, विकृत बोझ-सा हमारी टाँगों के इर्द-गिर्द लिपट गया था, जिसे हमें दुबारा घर तक घसीट ले जाना होगा।

उस क्षण भूख और निराशा के बावजूद हमारे मन में कहीं भी कोई खीझ या कटुता नहीं थी।

किंतु कुछ लम्हों के लिए ही। सहसा वह मायावी क्षण टूट गया। हम फिर वापस अपने-अपने में लौट आए। एक लंबी, बोझिल-सी साँस उस अदृश्य, बेडौल भीड़ के ऊपर उठी और चंद अश्लील, अनर्गल गालियों में खो गई। एक-दूसरे की देह की गंध, जिसे हम पास-पास खड़े सूंघ सकते थे, गालियों के बावजूद अपना सकते थे, अब अलग-अलग रास्तों पर छितराने लगी थी। केवल हम तीन व्यक्ति अब भी अहाते के भीतर अनिश्चित-सी मुद्रा में खड़े रहे। मेरे पीछे हल्की-सी सरसराहट हुई।

“ब्लडी-बास्टर्ड!” पहले व्यक्ति ने कुछ दबे, कुछ भर्राए-से स्वर में कहा। वह आगे बढ़ आया। भयभीत, आशंकित आँखों से चारों ओर देखा और फिर बोतल की टोकरियों के ढेर से सोडे की एक बोतल निकालकर पीने लगा। दूसरी बोतल उसने तीसरे व्यक्ति के हाथ में जबरदस्ती पकड़ा दी, “पियो यार, उन सालों को कुछ भी पता नहीं चलेगा!”

तीसरा व्यक्ति, जो कम उम्र का नीग्रो छात्र-सा दिखता था, बोतल लेने में झिझक रहा था, किंतु फिर न जाने क्या सोचकर उसने अपने सिर को हल्का-सा झटका दिया और एक दूध-पीते शिशु की तरह बोतल को दोनों हाथों से पकड़कर होंठों से लगा लिया। एक लंबा घूंट लेकर उसने नंगी बाँह से अपना मुँह पोंछा और बोतल मेरे सामने कर दी।

“यह तीसरी बार है, जब यहाँ मैं आया हूँ। कल जिस बाबू ने काम देने का वायदा किया था, आज वह दिखाई नहीं दिया।”

“कल भी ऐसा ही होगा। कोई नया बास्टर्ड आएगा और उसे पता नहीं चलेगा कि हम आज रात आए थे।”

” कल कौन आएगा? मैं तो इस तरफ झांकूँगा भी नहीं। डैम दीज…”

पहले व्यक्ति ने अपने ओवरकोट के बटन खोल दिए। इतनी गरमी में ओवरकोट पहने था। इससे मुझे खास आश्चर्य नहीं हुआ। उसका व्यक्तित्व कुछ ऐसे ढंग से ओवरकोट से जुड़ा था कि एक को दूसरे से अलग करना ही आश्चर्यजनक होता। वह एक लंबा हृष्ट-पुष्ट युवक था, छोटी-सी ‘गोरी’ दाढ़ी थी, जिसके पीछे आँखें एक सूखी, तिक्त बौखलाहट में झपकती रहतीं। बौखलाहट भी नहीं, एक अजीब-सा नर्वस तनाव जो अकसर शिकार किए जाने वाले जानवरों में मिलता है। हॉलीवुड के विलेन-सा उसका डीलडौल अँधेरे में किसी भी अजनबी को काफी भयावह लग सकता था।

हम धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए नार्थ एक्टन के पुल पर आ गए थे। लंदन की डबल-डैकर बस हमारे पास से गुजर गई। अगस्त महीने के पीले-करारे पत्तों का रेला देर तक बस के पीछे भागता रहा।

तीसरा व्यक्ति, नीग्रो युवक, अब भी काफी उदास था और चुपचाप सड़क पर आँखें झुकाए चल रहा था।

“लंदन में कब से हो?” दाढ़ीवाले युवक ने (बाद में जिसने अपना नाम विली बताया था) नीग्रो के कंधे पर हाथ रखकर पूछा।

वह चुप रहा।

“कहाँ से आए हो?”

“दक्षिण अफ्रीका से… यहाँ पढ़ता हूँ।”

वह शायद बात को यहीं खत्म करना चाहता था। उसने जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला और हम दोनों के आगे कर दिया। हमने धन्यवाद देकर आँखें मोड़ लीं। यह उसकी आखिरी सिगरेट थी और अपनी भूखी लालसा के बावजूद हममें इतनी शिष्टता बाकी थी कि उसे लेने से इंकार कर दें। किंतु यह शिष्टाचार अधिक देर तक न चल सका। कुछ देर बाद हम तीनों उस सिगरेट को बारी-बारी से पी रहे थे।

सामने लंदन की रात थी – बोझिल, गंदली, शांत। वह शहर का एक उजाड़ कोना था और सड़क खाली थी। खाली, लेकिन वीरान नहीं। पत्तों की सरसराहट, पुराने मकानों की बासी गंध। लगता था, जैसे बीच में हम अनेक निष्प्राण चीजों को ठेलते हुए आगे बढ़ रहे हैं। हालाँकि बीच में हवा और लैंप-पोस्ट के दायरों के अलावा कुछ भी न था…

“तुम कहाँ जाओगे?”

“वारेन स्ट्रीट!” उसने कहा, “पिछले दो दिनों से आ रहा हूँ। अब तक पाँच पॉप्स सिर्फ आने-जाने में खर्च हो गए। इतने पैसों से तो मैं टेनिस खेलने जा सकता था।”

उस समय टेनिस खेलने की चर्चा काफी विचित्र जान पड़ी। उसके चेहरे से भ्रम होता था कि पिछले कई दिनों से उसे भर-पेट खाने को भी नहीं मिला है।

“मेरे दोस्त को काम मिल गया है।” नीग्रो छात्र ने तनिक उत्साहपूर्वक कहा, “हम दोनों साथ रहते हैं। कल शायद वह मुझे कुछ शिलिंग उधार दे सकेगा।”

“डेम हिम… इफ ही डजंट!” विली ने अजीब खीझे स्वर में कहा, ” मैं तो कल किसी हालत में नहीं आऊँगा। प्लीज कम टुमारो!” मैनेजर की नकल उतारते हुए उसने मुँह सिकोड़ लिया, ” टुमारो बि डैम्ड! तुम कल आओगे?” उसने पहली बार मेरी ओर उन्मुख होकर पूछा।

“शायद आऊँगा।” मैंने जान-बूझकर उसे कुछ अधिक खिझाने के लिए कहा। उसके इस समय ‘कल’ की बात करने से मुझे काफी अफसोस हुआ था।

“साले कितना देते हैं?”

“ढाई पाउंड।” नीग्रो छात्र ने कहा।

“हर सुबह?”

“हाँ, हर सुबह। आधी रात के समय चाय और सेंडविचेज भी देते हैं।” मेरा दोस्त बता रहा था, “कल मैं और वह संग आए थे, उसे ले लिया गया, मैं रह गया।”

“नीग्रो था?”

“नहीं, वह बर्मी है।”

“और आप?” विली ने संदिग्ध भाव से मेरी ओर देखा, जैसे अपनी नजरों से मुझे तौल रहा हो, “आप क्या जापानी हैं?”

मैंने सिर हिला दिया। इतनी-सी बात पर उसका प्रतिवाद करना मुझे निरर्थक जान पड़ा।

कुछ देर तक हम चुपचाप ट्यूब स्टेशन की ओर चलते रहे। जब कभी गरम हवा का झोंका आता, हम सिहर जाते। तब हमारी भूख अपने सब पैबंद तोड़कर उघड़ जाती। लगता, जैसे हवा लैंप-पोस्ट के पीले, मद्धिम आलोक को तोड़ जाती हो, तोड़कर अपने संग बहा ले जाती हो…

“गरमी काफी है… पिछले पाँच साल से ऐसी गरमी नहीं देखी।”

“पिछले पाँच साल से लंदन में हो?”

“शायद ज्यादा… तब से कई काम कर चुका हूँ। अब ज्यादा नहीं रहूंगा।”

“क्या वापस घर जाओगे?” विली ने पूछा।

” घर?” नीग्रो छात्र, जार्ज के स्वर में एक सूना-सा खोखलापन उभर आया, मानो ‘घर’ शब्द बहुत विचित्र हो, जैसे उसने पहली बार उसे सुना हो – मैं चाहता था, यहीं रहूं। लेकिन वे हमें चाहते नहीं।

“वे… आह!” विली ने कहा।

वे… अनायास हमने चारों ओर देखा। कोई भी न था, हालाँकि वे हर जगह हर समय हमारे संग थे। हमारे बाहर उतने ही, जितने भीतर।

“तुम यहीं थे, जब जारिंग हिल में फसाद हुआ?” विली के सफेद दांत चमक उठे।

“नहीं, तब मैं लंदन नहीं आया था।”

“मैं वहीं रहता हूँ। तीन दिन तक एक अंग्रेज लड़की के घर छिपा रहा। जब वे एक-एक नीग्रो को चुनकर लिंच कर रहे थे, मैं उस सफेद ‘ह्वोर’ के संग सोता रहा। उसने सोचा था, मैं उसे चाहता हूँ… लेकिन मैंने उसे उसके बाद देखा तक नहीं। उसे नहीं मालूम, मैं बदला ले रहा था… उसकी सफेद चमड़ी के संग… और उसने हाथ से इशारा किया – अश्लील उतना नहीं जितना जुगुप्सामय।”

दूर कारखानों के धुएँ के परे ट्यूब-स्टेशन की बत्तियाँ चमक रही थीं। लगता था, जैसे धरती का कोई टुकड़ा अचानक बीच में से फट गया हो और उसके नीचे से हीरों की चमचमाती झालर ऊपर निकल आई हो।

“तुम यहाँ पढ़ते हो?”

“हाँ… लेकिन गरमियों की छुट्टियों में काम करता हूँ। पहले डांस के लिए जाता था।” जार्ज ने कहा। उसका स्वर भी काफी उदास था, जैसे काम न मिलने का दुख अभी पूरी तरह न मिटा हो।

“कांटीनेंट में क्यों नहीं जाते, यार?” विली ने कहा, ” मेरा एक दोस्त जर्मनी गया है, वहाँ नौकरियों की कमी नहीं। सुना है, वहाँ लड़कियाँ काले रंग के पीछे भागती हैं। सिर्फ इशारा करने की देर है।”

“शायद पिछली लड़ाई की वजह से।” जार्ज ने कहा, “कुछ साल पहले मेरे फादर वहाँ गए थे। कहते थे, कहीं आदमी नजर नहीं आता। हर तरफ औरतें…”

“ओह, हाऊ आई विश फार एनदर वार… एनदर एंड देन एनदर!” विली ने कहा।

जार्ज ने आश्चर्य से विली की ओर देखा, फिर मेरी ओर। वह शायद कुछ कहना चाहता था, किंतु फिर कुछ सोचकर उसने सिर्फ सिर हिला दिया। कहा कुछ भी नहीं।

और शायद यह ठीक भी था। लंदन की उस खामोश गरम रात में ‘वार’ बहुत दूर की चीज लगती थी – अर्थहीन और हास्यास्पद। उस पर बहस करना कोई भी मानी नहीं रखता था। हुआ भी यही। हम बहुत जल्द विली की बात को भूल गए। उसके बाद हम देर तक अलग-अलग देशों की लड़कियों के बारे में बातें करते रहे। लगता था, जैसे पुरानी भूख के भीतर से एकाएक नई भूख जाग गई हो।

मैं स्पेन जाना चाहता था। उधर की लड़कियाँ… आह! पैशन! लेकिन सालों ने वीसा नहीं दिया। अपने देश की कुँवारियों की वर्जिनिटी का उन्हें बहुत खयाल है!

स्पेन… किसी ने जैसे कुछ बहुत पुरानी राख कुरेद दी हो।

“तुम गए हो?”

“मैं जाना चाहता था – बहुत पहले।”

“सिविल वार में?”

“तब मैं बहुत छोटा था।”

” सिविल वार हमारे देश में शायद…” और जार्ज अचानक चुप हो गया। उसके घुंघराले बालों पर पसीने की बूंदे चमक रही थीं।

“आई डोंट लाइक सिविल वार।” विली ने कहा।

हमारी बात फिर वहीं आ अटकी थी – बैगाटेल की उस गोली की तरह, जो चारों ओर घूम-फिरकर एक ही छेद में आ फंसती है। हमारा उससे कोई वास्ता नहीं था। वह लंदन की बहुत खामोश और गरम रात थी और वार बहुत दूर की चीज लगती थी…

रास्ते के दाईं ओर एक पुरानी टेबर्न से हँसी और संगीत का मिला-जुला स्वर बह आता था। टेबर्न के पीछे गली-गली के अंधेरे कोने में दो छायाएँ – एक-दूसरे से लिपटी हुई – बार-बार हिल उठती थीं। ऊपर उठी हुई स्कर्ट के नीचे एक सुडौल नंगी टाँग रह-रहकर कांप जाती थी और फिर टटोलते हुए विह्वल हाथों के नीचे भिंच जाती थी।

“चलो, कुछ बियर पी जाए। बिना कुछ पिए मैं ठीक से सो नहीं सकता।” विली ने कहा।

मुझे हल्की-सी दुविधा हुई। मेरी जेब में आखिरी दो शिलिंग पड़े थे, जो मैंने ट्यूब के लिए बचा रखे थे। जार्ज का हाल ज्यादा बेहतर नहीं दिखाई दिया। विली के प्रस्ताव को सुना-अनसुना किए वह अंधेरे में सीटी बजा रहा था।

विली शायद समझ गया। जार्ज के कंधे पर हाथ रखकर उसने कहा, “फिक्र की कोई बात नहीं। यहाँ के लोग मुझे जानते हैं। एक जमाने में मैं यहाँ अकसर आता था।”

जार्ज का उपेक्षा-भाव अचानक मिट गया, एक अजीब बचकानी-सी खुशी चेहरे पर फैल गई।

“मैं थोड़ी-सी जिन लूंगा। आशा है, कल मेरा मित्र कुछ शिलिंग उधार दे सकेगा।”

हमारे पाँव पब की ओर मुड़ गए।

दरवाजा खोलते ही आवाजों के एक गरम उफनते रेले ने हमें अपने में समेट लिया – धुएँ में गुंथती, उलझती, एक-दूसरी को छीलती आवाजें, जो कहीं निस्तार न पाकर गंदले, उबलते पानी की तरह एक ही गड्ढे में इकट्ठी होती गई थीं। रोशनी थी, मद्धिम, धुएँ के घेरे में घिरी, जिसमें किसी एक चेहरे को पहचानना, उसे दूसरे से अलग कर पाना असंभव था।

नीचे बेसमेंट था, कुछ सीढ़ियाँ उतरकर। कभी-कभार नाचते हुए जोड़ों की छायाएँ जीने पर गिर जाती थीं। कभी बेडौल और लंबी, कभी इतनी छोटी कि लगता, जैसे पारदर्शी जल-तले मछलियाँ ऊपर उठती हों और दूसरे क्षण ही डूब जाती हों।

हम कोने की मेज के इर्द-गिर्द बैठ गए। विली कुछ देर बाद बियर की तीन बोतलें और गिलास ले आया। हम पीने लगे।

” पहले मैं यहाँ काम करता था। कुछ महीने रहा, फिर मन ऊब गया। इस पब का मालिक इटालियन है। बुरा नहीं है, लेकिन डरता बहुत है। इस तरफ आया तो तुमसे मिलवाऊंगा।” विली ने कहा।

“काफी टिप मिलता होगा?”

“अंग्रेज ज्यादा नहीं देते। बहुत हुआ तो एक छह पेनी। लेकिन कांटीनेंट से जो टूरिस्ट आते हैं, उनकी बात दूसरी है। दिल उनका खुला होता है, लेकिन बेवकूफ वे भी होते हैं।”

“मुझे अब कोई भी काम मिल जाए, मैं कर लूंगा – जार्ज ने कहा।”

भीतर की गांठोंजबीच बियर ने रास्ता बनाया है, जहाँ पहले बंद सींकचा था, अब वहाँ फड़फड़ाते पंख हैं – उड़ने को आतुर।

“मैं अब ज्यादा दिन यहाँ नहीं रहूँगा” विली ने कहा, “मेरा दोस्त जर्मनी में है। हो सका, तो एक दिन वहाँ जाऊंगा।” विली ने गिलास खत्म कर दिया। फिर उसे मेज पर उल्टा कर दिया, एक भी बूंद नहीं गिरी। बियर का झाग दाढ़ी पर छितर आया था, जैसे रेत के कण हों – गीले और सफेद।

“मैं जर्मनों को नहीं सहन कर सकता।” जार्ज ने कहा।

“देयर इज रियल लाइफ! हर कोने पर जवान लड़कियाँ खड़ी रहती हैं।” विली ने कहा।

“मैं जर्मनों को सहन नहीं कर सकता।” जार्ज ने फिर कहा।

मैं हँसने लगा।

जार्ज ने मेरी ओर देखा। उसकी आँखें बहुत निरीह-सी हो आई थीं।

“सब लोग एक-जैसे ही हैं।” विली ने कहा।

“लेकिन वे लोग…” जार्ज ने इशारा किया, “बाहर की ओर, दरवाजे के बाहर, जहाँ महज अंधेरा था।

” वे लोग भी… तुम सिर्फ डरते हो।” विली ने कहा।

एक पल के लिए जार्ज का हाथ, जो गिलास पर टिका था, सिहर गया।

“यू आर ए राटर।”जार्ज ने कहा।

उसके स्वर में कुछ रहा होगा कि विली का चेहरा अचानक पीला पड़ गया।

“देखो, मैं काफी बुरा आदमी हूँ। इस लफ्ज को दुबारा मुँह पर कभी न लाना।”

“ओह!… सचमुच?” जार्ज की आवाज कांप रही थी, जैसे वह हवा में लटकी रस्सी पर चल रही हो और नीचे गड्ढा हो, जहाँ वह कभी भी फिसल सकती है, “प्रेस, यू आर ए राटर।”

विली गिलास लेकर अचानक खड़ा हो गया, जैसे यह कोई खेल हो, और नियम के अनुसार उसे खड़ा होना ही हो।

एक बार फिर कहो… उसका गिलास जार्ज के सिर के पास सरक आया था। कांच पर चिपकी बियर का फेन रोशनी में चमक रहा था।

जार्ज की अधमुँदी आँखें उस पर उठ आईं, “यस, यू आर ए राटर ऑल राइट!”

गिलास तले उसका सिर हिल रहा था। आदमी का सिर पूरे धड़ से अलग होकर केवल अपनी धुरी पर इस तरह कांप सकता है, यह मुझे काफी हास्यास्पद-सा लगा।

विली ने गहरे विस्मय से उसकी ओर देखा और फिर हँसने लगा, ” शायद तुम ठीक हो… मे बि, आई एम!” वह फिर अपनी कुर्सी पर बैठ गया।

हमने ज्यादा नहीं पी थी। सिर्फ किसी ने हमारे इर्द-गिर्द एक भयावह-सा फंदा डाल दिया, जिसे छूते ही खून बहने लगता था।

कुछ देर बाद पब का मालिक हमारी मेज के पास आकर खड़ा हो गया। गोल-मटोल देह, किंतु काफी सुगठित, रंग काफी पीला। छोटे-से माथे पर तेल से भीगे, स्याह घुंघराले बाल झुक आए थे।

“और चाहिए?” उसने मुस्कराते हुए विली की ओर देखा।

“अभी है…बाद में!” विली ने कहा। उसके स्वर में पहले-सा तनाव नहीं था, हालांकि तिरस्कार का स्पर्श हमसे छिपा नहीं रह सका, “ये मेरे दोस्त हैं।”

इटालियन ने हमारी ओर देखा, किंतु उसकी आँखों में कोई उत्सुकता नहीं जगी।

“विली हमारे यहाँ काम करता था।” उसने गर्व से विली की ओर देखा, मानो उसे हम लोग विली की तुलना में काफी तुच्छ जान पड़ रहे थे।

“काफी देर से हो?” उसने पूछा।

जार्ज चुप रहा (ईश्वर भला करे, उसका सिर अब नहीं काँप रहा था) मैं खाली गिलास से खेल रहा था, मेरे हाथ रुक गए।

“सिर्फ कुछ दिन!”मैंने कहा।

” इजण्टिट फाइन?”

“इट इज फाइन!” मैंने कहा।

“कोई काम?” वह मेरी कमीज के कालर को देख रहा था। न जाने कितने देशों की धूल उस पर जमा थी।

“अभी कुछ नहीं…”

“विली को काम मिल सकता है, लेकिन यह एक जगह टिकता नहीं।” उसने विली की ओर देखा, कुछ प्यार से, कुछ उलाहने से।

“मैं तुम्हारे यहाँ रह सकता था। सिर्फ तुम… ” विली ने कहा।

इटालियन का चेहरा अचानक क्षुब्ध-सा हो आया, ” तुम जानते हो… ” उसने कहा।

“आह!” विली ने कहा, “तुम सब लोग एक-जैसे ही हो।”

“बहुत गर्मी है।” जार्ज ने कहा।

“तुम जानते हो… ” इटालियन ने बहुत आग्रह से कहा।

” न… मैं कुछ भी नहीं जानता। मैं सिर्फ इतना जानता हूँ कि मैं अभी डांस करूंगा।” विली ने अपनी कुर्सी पीछे ठेल दी और उठ खड़ा हुआ।

किंतु इटालियन ने झपटकर उसे कंधों से पकड़ लिया। उसकी आँखें सहसा आक्रांत-सी हो उठीं। विली की लंबी, पतली देह के सम्मुख उसका ठिगना, गेंदनुमा शरीर एकाएक बहुत दयनीय-सा दीखने लगा।

“विली! …तुम जानते हो, यहाँ पर…”

विली ने धक्का देकर झटके से अपना कंधा छुड़ा लिया। उसकी पीठ हमारी मेज के सहारे टिक गई। जार्ज ने बियर की बोतल को हाथों से पकड़ लिया। एक क्षण के लिए लगा, जैसे हम किसी जहाज के डगमगाते डेक पर बैठे हों।

आरकेस्ट्रा शुरू होते ही पब के अलग-अलग कोनों के लड़के-लड़कियों के जोड़े बेसमेंट की सीढ़ियों पर उतरने लगे थे।

इटालियन ने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। वह सिर्फ हवा में ताक रहा था।

विली कहीं भी नहीं था।

उसका खाली गिलास हमारी मेज पर रखा था। जार्ज ने बोतल से हाथ उठा लिया। उसकी हथेली के पसीने की पूरी छाप काँच पर एक सफेद धब्बे की तरह अंकित हो गई थी।

इटालियन ने हमारी ओर देखा। लगा, जैसे वह हमें पहचान न पा रहा हो। फिर अवश भाव से दोनों हाथ फैला दिए थे।

“पागल है… है नहीं?”

हम चुप रहे। उस समय वहाँ कुछ था, जिसका हमसे कुछ संबंध नहीं था, जिसकी म्लान छाया चुपचाप हमारे बीच आ सिमटी थी। वह भारी, थके कदमों से काउंटर की ओर मुड़ गया।

_बहुत गर्मी है।” जार्ज ने कहा, “तुम्हारे पास कितने पैसे हैं?”

“क्यों?” मुझे अचानक खीझ-सी हो आई सब पर।

“डेढ़ शिलिंग मेरे पास है। इसमें लागर आ सकती है?” उसने पूछा।

मैं विली के खाली गिलास को देख रहा था… कहाँ हो सकता है?

मद्धिम रोशनी के नीचे जूतों और सैंडिलों की खटखटाहट, इर्द-गिर्द टूटती, बेशक्ल आवाजों का सैलाब फैल गया था, जिसके एक छोर पर हम थे – एक मेज, जार्ज, लागर के दो गिलास। सबकुछ वैसा ही था, जैसा हमने पहले-पहल देखा था।

सिर्फ अब एक कुर्सी खाली थी।

“शायद वह नाराज था… मैं अपने को रोक नहीं सका।” जार्ज ने कहा।

“तुमने उसे कुछ भी नहीं कहा?”

“मैं अपने को रोक नहीं सकता।_ उसने मेज पर पड़ा मेरा हाथ जोर से पकड़ लिया। मेरी अँगुलियाँ उसकी हथेलियों-तले चिपचिपाने लगीं।

“तुम्हें नहीं मालूम… मुझे बॉक्सिंग का बहुत शौक है। …जब मैं पहले-पहल लंदन आया था और बेकार नहीं था, तो मैं हर रोज बॉक्सिंग के लिए जाता था। लेकिन मैं आज तक एक बार भी नहीं जीत सका हूँ। सुनते हो, एक बार भी नहीं। …मुझमें एक अजीब तनाव-सा फैलने लगा है। मैं प्रतीक्षा करता हूँ, कुछ लमहों तक, कि दूसरा आदमी मुझे हिट करे… और जब वह नहीं करता तो मेरा खून खौलने लगता है। मैं आने वाले खतरे का मुँह नहीं जोह सकता। ठीक मौका आने से पहले ही मैं अंधाधुंध टूट पड़ता हूँ… हालांकि मैं जानता हूँ, यह गलत है कि लड़ना इस तरह नहीं होता। और इसीलिए मैं घर से भागकर यहाँ आ गया हूँ। मैं अपने पिता की तरह प्रतीक्षा नहीं कर सकता।

“और वह… तुम्हारे पिता किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं?”

“मुझे नहीं मालूम… मुझे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है। उसका माथा लागर के गिलास के पीछे छिप गया।”

मैंने अपना हाथ धीरे-से छुड़ा लिया… वह पसीने में भीगा था। मैं उसे अपने पास ले आया, जैसे वह कोई पालतू चीज हो – अँगुलियों से गुँथा हुआ, एक सफेद मांस का लोथ, उसके ऊपर भूरे बाल, बहुत-से बाल, जो उसके स्पर्श से अभी तक दबे थे। और मैंने सोचा, हम सचमुच कितनी कम बार अपने हाथों को इस तरह देखते हैं, जैसे वे हैं, जैसे वे असल में हैं और तब भ्रम होता है कि जो भी चीज उनकी पकड़ में आएगी वह हमारी नहीं हो सकती।

“जानते हो, मैंने विली को राटर क्यों कहा?”

“इट इज नथिंग!”मैं उसके चेहरे को सीधी आँखों से नहीं देख पा रहा था।

“क्योंकि… असल में मैं खुद एक हूँ। मैंने अभी तुमसे कहा था कि मैं अपने पिता की बहुत कद्र करता हूँ (हालाँकि यह उसने मुझे कभी नहीं कहा था) तुम उन्हें नहीं जानते। वह जीवित भी हैं या नहीं, मुझे नहीं मालूम। वे उनके पीछे थे।”

“वे कौन?”

“वे… एक बहुत ही ठंडा आतंक, साँप की कुंडली-सा उसकी आँखों में बैठ गया था।”

“तुमने कभी नहीं देखा।” उसने मेरे हाथ को अपनी हथेलियों में बहुत ही सख्ती से जकड़ लिया। उसके काले चेहरे पर सिर्फ सफेद दाँत नजर आ रहे थे – एक कान से दूसरे कान तक खिंचे हुए और मैं समझ नहीं सका कि वह हँस रहा है या सिर्फ एक भूले क्षण में उसके दाँत खुद-ब-खुद खुले रह गए हैं।

जेडमैं यहाँ सुरक्षित हूँ… एंड फार दैट आई हेट हिम, आई हेट हिम लाइक हेल।जेड

हम चुपचाप पीते रहे। मेरे आगे घड़ी की डायल थी, जिसे मैंने पहली बार देखा था। मैं सोचता हूँ, मुझे एक सिगरेट पीनी चाहिए… मुझे लगता है, मैंने लंबी मुद्दत से सिगरेट नहीं पी।

जेड तुम क्या सोचते हो?” उसके स्वर में बच्चों का-सा आग्रह था।

“कुछ भी तो नहीं।”

“यदि तुम मेरी जगह होते, तो क्या करते?”

“तुम्हारी जगह पर?” मैं हँसने लगा। मुझे आज तक यह भी नहीं मालूम कि मुझे अपनी जगह पर क्या करना चाहिए।

“लेकिन तुमने अवश्य निर्णय कर लिया होगा… अपना देश छोड़ने से पहले?”

“शायद बचने के लिए।”

“किससे बचने के लिए?”

“अपने देश के लोगों से… शायद और चीजों से भी, जो अब मुझे याद नहीं।”

और तब उस क्षण मुझे लगा कि ज्यादा पीना शायद संभव नहीं होगा। सुबह से कुछ भी नहीं खाया था। खाली अंतड़ियों को लागर भिगो गई थी। एक नीली-हरी-सी धुंध कहीं भीतर से रास्ता टटोलती हुई हर उस खिड़की के आगे जमा हो गई थी, जहाँ से मैं बाहर देख सकता था। वहाँ घड़ी की डायल थी… बहुत सफेद… हवा में डोलते एक बहुत पुराने मुरदे की मानिंद, जो न जाने कब से मेरे संग घिसट रहा था…

“तुम हँस क्यों रहे हो?”

मुझे यह जानकर काफी आश्चर्य हुआ कि मैं हँस रहा हूँ… और जब मैंने जान लिया कि मैं हँस रहा हूँ, तो फिर अपने को रोकना बेमानी-सा लगा।

“क्या बात है?”

“कुछ नहीं, कुछ याद आ गया था।” मैंने टहलते हुए कहा। याद मुझे कुछ भी नहीं आया था।

“क्या याद आ गया था?” वह मुझ पर झुक आया, जैसे अभी गले पर लटक जाएगा, “बताओ, क्या याद आ गया था?”

“जानते हो… तीन दिन पहले मैं जेल जाने वाला था। मैं बाल-बाल बच गया।”

“असह्य दबाव तले कोई भी चीज याद की जा सकती है… ” और मुझे सचमुच तीन दिन पहले की एक घटना याद हो आई।

“हाँ, सचमुच मैं बाल-बाल बच गया।” (मुझे इस तरह के मुहावरे बहुत पसंद हैं, और मैं उन्हें मौके-बेमौके दुहराता रहता हँ)।

“जानते हो, लंदन में मैं अपने एक दोस्त के घर ठहरा हूँ। पिछले कुछ दिनों से उसकी गर्ल-फ्रेंड फिनलैंड से उसके संग रहने आई थी। कमरा एक ही था, इसलिए मैं बाहर रहता था। मैं दिन-भर म्यूजियम की लायब्रेरी में रहता और रात को सोने के लिए यूस्टेंड स्टेशन चला जाता था। हर रोज नियत समय पर मेरा मित्र मुझे कुछ शिलिंग दे जाता था। उस शाम किसी कारणवश वह मेरे पास नहीं आ सका। मेरे पास सिर्फ दस पेनी बचे थे। दिन-भर म्यूजियम में बैठे भूख का कुछ पता नहीं चला, लेकिन रात होते-होते मैं अपने को नहीं रोक सका। उस समय तक किंग्स क्रॉस के सस्ते रेस्तराँ बंद हो चुके थे और बस में बैठकर शहर के ‘सेंटर’ में जाने की सामर्थ्य नहीं थी। मैं काफी देर तक वारेन स्ट्रीट स्टेशन के इर्द-गिर्द बदहवास-सा घूमता रहा। आखिर में एक ग्रीक रेस्तरा दिखाई दिया, जो ऊपर से काफी सस्ता दिखाई देता था। आलू के चिप्स और टोस्ट का आर्डर देकर मैं भीतर बैठ गया। तुम जानते हो ये चीजें सबसे सस्ती होती हैं – ज्यादा-से-ज्यादा आठ पेनी। मैं काफी निश्चिंत था। कुछ देर बाद अनायास मेरी निगाह सामने दीवार पर जा पड़ी प्राइस-लिस्ट पर, जिसे शुरू में घबराहट के कारण मैं नहीं देख सका था। टोस्ट और चिप्स के दाम डेढ़ शिलिंग थे… और मेरे पास दस पेनी से आधी पेनी भी ज्यादा नहीं… फिर जानते हो, मैंने क्या किया? मैं एकदम खड़ा हो गया इस तरह (मैं जार्ज के सन्मुख खड़ा हो गया) और जोर से चिल्लाया, गुड ईवनिंग! अरे बाहर कैसे खड़े हो? (और मैं सचमुच चिल्ला रहा था – जार्ज के मुँह पर) होटल का मालिक उत्सुकता से मेरी ओर देख रहा था। मेरे एक दोस्त बाहर खड़े हैं… उनसे मिलकर अभी आता हूँ। टोस्ट और चिप्स की प्लेट मेज पर छोड़कर मैं आगे बढ़ा, दरवाजे की तरफ, बिलकुल सधो कदमों से इस तरह (और मैं सचमुच चल रहा था – मेजों के बीच) और दरवाजा पार करते ही… तुम जानते हो, मैंने फिर मुड़कर नहीं देखा (मैं फिर मुड़कर जार्ज के पास आ गया था… लागर का एक लंबा घूँट पीकर मैं बैठ गया था) मैं बहुत देर तक भागता रहा था।

“और वह तुम्हारे पीछे था?”

“नहीं। हँसी की बात तो यही है कि वह मेरे पीछे नहीं था और फिर भी मैं एक अंधेरी गली से दूसरी अंधेरी गली में भागता रहा था… और देखो, मेरी जेब में दस पेनी बच गए थे, हालांकि मेरी भूख बिलकुल मिट गई थी।”

“तुम भी खूब हो!” जार्ज ने हँसते हुए कहा।

मुझे काफी खुशी हुई कि वह हँस रहा है। मेरा मित्र और उसकी प्रेमिका भी इसी तरह हँसने लगे थे, जब दूसरे दिन मैंने उन्हें यह घटना सुनाई थी। हालांकि मुझे हमेशा आश्चर्य होता है कि लोग, विशेषकर वे लोग जिन पर ऐसी घटनाएँ बीतती हैं, बाद में किस तरह आसानी से उन्हें हलका-सा रंग दे देते हैं। क्योंकि देखो, उस घड़ी में, बिलकुल उस घड़ी में, जब घटना सचमुच घट रही होती है, आदमी कितना बदहवास-सा हो जाता है, बगलों से ठंडा पसीना टपकता हुआ कमीज से चिपक जाता है और भीतर विह्वल-सी कातरता भर आती है, बावजूद हमारी उम्र के, बावजूद हमारे अनुभव के। …मैं तो जानता हूँ कि उस रात जब मैं दस पेनी जेब में दबाकर अंधेरी सड़क पर भाग रहा था, तो कोई बार-बार मुझसे कह रहा था – यू फकिंग फूल यू ईडियट… यू…

तुम भी कमाल हो! – जार्ज ने कहा। जब उसने तीसरी बार यही बात कही, तो मुझसे नहीं बैठा गया। आँखों के आगे घड़ी का डायल फिर घूमने लगा और मैं टायलेट की तरफ बढ़ गया। टायलेट नीचे बेसमेंट में था। मैं जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ उतरने लगा। मुझे डर था कहीं सीढ़ियों पर कुछ न हो जाए। मैंने मुँह पर हाथ रख लिया और बहुत रहस्यमय ढंग से मुस्कराने लगा।

हुआ कुछ भी नहीं – न सीढ़ियों पर, न वाश-बेसिन में, जिस पर मैं देर तक झुका रहा था – इस इंतजार में कि कुछ बाहर आएगा। और अब घड़ी की सफेद डायल नहीं घूम रही थी। मैंने पंप खोल दिया था ताकि मैं निश्चिंत होकर एक-एक चीज याद कर सकूं और अपनी आवाज न सुन सकूँ (रात की इस घड़ी में मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? नहीं ऐसे नहीं चलेगा, मुझे इस सिलसिले से ब्यौरेवार हर चीज याद करनी चाहिए – जैसे यह बहुत महत्वपूर्ण हो, जैसे कोई बड़ा ‘सत्य’ इस पर निर्भर हो)। ‘ब्यौरेवार’ …यह शब्द मुझे जँच गया था और मैं बार-बार इसे जबान पर फेर रहा था, क्योंकि मैं कितनी देर तक चीजों को याद करने के बजाय यही दुहराता रहा कि मुझे हर चीज ‘ब्यौरेवार’ याद करनी चाहिए।

टायलेट से बाहर आया, तो पाँव ठिठके-से रह गए। नाचते हुए जोड़ों के भँवर में मैं घिर गया था। लोग धक्का देकर आगे निकल जाते थे और मैं कभी दाएँ, कभी बायें, एक कठपुतली की तरह घूम जाता था। जब कभी अपने पाँव जमाने का यत्न करता, तो डांसिंग-फ्लोर पैरों तले सिकुड़ने लगता और लगता, जैसे मैं एक बहुत तेजी से घूमते लट्टू पर खड़ा हूँ। तभी मुझे अपने कंधों पर एक अजीब-सा बोझ मालूम हुआ।

“तुम यहाँ हो?” विली की दाढ़ी मेरे माथे को छू रही थी, “और जार्ज?”

“वहीं है..” मैंने ऊपर की ओर इशारा किया।

जिस लड़की के संग वह नाच रहा था, उसका चेहरा उसके सीने-तले छिप गया था,  सिर्फ उसके ब्लोंड बाल दिखाई दे जाते थे।

“तुम आओगे नहीं?…तुम्हारी लागर…” मैंने कहा।

“आऊंगा।…तुम नाचोगे नहीं?”

इस बार लड़की ने चेहरा ऊपर उठाया। उसके नंगे कंधों पर पाउडर के हलके निशान थे और उसने सस्ती छींट की समर-स्कर्ट पहन रखी थी। होंठों पर पसीने की बूँदें थीं, जो शायद देर तक नाचने के कारण लिपस्टिक के ऊपर छितरा आई थीं।

भीड़ में खड़े रहना असंभव था। वे मेरे नजदीक ही बहुत धीमे कदमों से नाचने लगे थे – एक बहुत तंग घेरे के भीतर-कभी विली का सिर मेरे पास सरक आता, कभी लड़की के ब्लोंड बाल।

“कैसी है?” विली ने धीरे-से उसके बालों को झिंझोड़ दिया।

वह हँस रही थी।

“यह बहुत खराब है… है न?” उसने हँसते हुए कहा और पहली बार मुझे लगा, जैसे उसकी आँखें सोती-जागती गुड़िया-सी हैं, जो सिर पीछे होते ही मुँद जायेंगी और सीधा होते ही खुल जायेंगी।

“नाचोगे? …मे बि विद हर!” विली ने कहा।

वे दोनों घूम रहे थे… बहुत ही हलके स्टेप्स के संग। जब जिसका चेहरा मेरे पास आता, वह मेरे कानों में कह देता।

“इसके हमजोली वहाँ बैठे हैं… मर जायेंगे मुझे इसके संग देखकर।“ विली ने कहा।

“तुम नाचोगे नहीं? मे बि विद मी” लड़की ने कहा।

“वह इटालियन मना करता था?” मैंने विली से कहा।

“मरने दो उसे” – विली ने कहा।

आरकेस्ट्रा की उस घिसी-पिटी धुन में जाने कैसे मौत्सार्ट के ‘लिटल नाइट’ म्यूजिक की हलकी-सी आहट ऊपर तिर आती थी – महज आधे मिनट के लिए – और तब मुझे लगता था, जैसे किसी ने मेरी साँस को धागे की तरह अँगुली में लपेटकर खींच लिया हो।

“जिन पिओगे? …पैसे यह देगी” विली ने धीमे स्वर में फुसफुसाते हुए कहा।

“मे बि विद मी” लड़की ने वैसे ही उदासीन स्वर में कहा।

इससे पहले कि मैं कुछ कह पाता, नाचते हुए जोड़ों की भीड़ उन्हें मुझसे बहुत दूर घसीट ले गई। वे अचानक आँखों से ओझल हो गए।

मेरा सिर अब भी घूम रहा था, किंतु यह चकराहट वैसी नहीं थी, जैसी टायलेट जाने से पहले। अब इस चकराहट में एक विचित्र-सा हलकापन था, जैसे धुंध की जगह वहाँ सिर्फ छितरे, बरसे हुए बादल हों और असीम खुलापन हो।

भीड़ के भीतर रास्ता टटोलना सुगम नहीं था। बेसमेंट की सीढ़ियों के पास आकर मैं रुक गया। एक अदम्य इच्छा हुई वहीं सीढ़ियों पर लेट जाने की, सो जाने की।

“हलो!” मेरे हाथ को किसी ने जकड़ लिया था। पीछे मुड़कर देखा, पब का मालिक इटालियन खड़ा था। शायद वह दूर से भागकर मेरे पास आया था। हाथों पर कमीज की मुड़ी हुई बाँहें लटक आई थीं। वह हाँफ रहा था, जैसे आस-पास की हवा उसके साँस लेने के लिए बिलकुल नाकाफी हो।

“सुनो, वह तुम्हारा दोस्त है?”

मैंने कंधे सिकोड़ लिए।

क्या तुम उसे यहाँ से नहीं ले जा सकते – मेरा मतलब है, इस जगह से?

हमारे चारों ओर नाचते हुए लोगों का दायरा कभी बहुत तंग हो जाता, कभी एकदम फैल जाता था। बैंड के आगे कोई व्यक्ति लाउडस्पीकर को दोनों हाथों से पकड़कर गाने लगा था।

हम दोनों के बीच हमारी निगाहों के अलावा कोई और नहीं था।

“तुम क्यों नहीं कह देते?” मैंने कहा।

“मैं उससे कुछ भी नहीं कह सकता… वह मेरी बात कभी नहीं मानेगा।”

“लेकिन क्यों… वह यहाँ क्यों नहीं रह सकता?”

“यह जगह उसके लिए ठीक नहीं है – एक अवश-सी कातरता उसके स्वर में उभर आई – मैं उसे पहले भी कई बार मना कर चुका हूँ।”

मेरे मन में फिर इच्छा हुई – वहीं सीढ़ियों पर लेट जाने की।

देखिए – मैं कुछ भी नहीं कर सकता। हमारी मुलाकात कुछ घंटे पहले हुई थी। आप विश्वास नहीं करते? – एक क्षण के लिए मुझे उसके दयनीय चेहरे से घृणा हुई, जैसे मैंने किसी गिलगिली-सी चीज को छू लिया हो – मैं उसे ठीक से भी नहीं जानता, यह भी नहीं जानता कि उसका पूरा नाम क्या है – मैंने कुछ इस तरह कहा, जैसे जिंदगी में पूरा नाम जानना बहुत महत्वपूर्ण हो, जैसे उसके बिना कुछ भी नहीं हो सकता।

एकाएक उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए। वह बिलकुल मेरे पास सरक आया -तुम… तुम यहीं रहोगे?

“हाँ!” मैंने सिर हिलाया, “जब तक तुम बाहर न फेंक दो।”

उसकी पकड़ ढीली हो गई। किंतु उसकी आँखें अब भी मुझे टटोल रही थीं। मैं सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। …मुझे बराबर यह लगता रहा कि अब भी उसने मुझे पीछे से पकड़ रखा है… हे ईश्वर, मैं एक सिगरेट पी सकता! …लगता है, मैंने एक मुद्दत से सिगरेट नहीं पी।

जब मैं धक्के खाता और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दूसरों को धक्के देता हुआ अपनी मेज के पास पहुँचा, तो जार्ज सबके प्रति तटस्थ होकर सो रहा था। उसका सिर मेज के किनारे पर टिका था, उसकी देह कुर्सी पर सिकुड़ गई थी, अधमुँदी आँखों के बीच सफेद पुतलियाँ मैली रुई के फाहों-सी उभर आई थीं। पहले मुझे भ्रम हुआ कि वह मुझे देख रहा है, जो सच नहीं था। उसके होंठों के कोरों पर थूक बह आया था – चाक की महीन रेखा-सा, सूखा और सफेद, जो मैंने रूमाल से, सबकी आँख बचाकर, पोंछ दिया।

उस रात पहली बार मुझे लगा कि वह उम्र में बहुत छोटा है – हास्यास्पद रूप से छोटा और अनजान।

मेरा गिलास खाली था। …मैंने थोड़ी-सी लागर उसके गिलास से अपने गिलास में उँड़ेल ली। एक क्षण के लिए लगा, जैसे वह अधमुँदी आँखों से मुझे देखता हुआ मुस्करा रहा है… और उसमें हलका-सा व्यंग्य छिपा है। शायद बन रहा है, मैंने सोचा, सो नहीं रहा और मुझे देख रहा है… लेकिन शायद यह भी मेरा भ्रम हो, मैंने सोचा और पीने लगा। फिर मुझे कुछ अकेला-सा लगा। सोचा, अपने मित्र को टेलीफोन कर दूँ, हो सकता है, उसकी गर्ल-फ्रेंड अब तक चली गई हो और मैं उसके कमरे में सो सकता हूँ लेकिन यदि वह हुई, तो उसे बुरा लगेगा। …इसे उठा दूँ, यह कब तक ऐसे सोता रहेगा, मैंने सोचा, इतनी उम्र में घर से भाग आया है और अब – अब सो रहा है। …मुझे एक बहुत पुरानी बात याद हो आई। यूरोप आने से पहले वह घर में आखिरी रात थी। माँ बार-बार उठती थी और पानी पीने के बहाने मुझे देखती थी। …अपने घर की छत पर मेरी आखिरी रात थी – वह जुलाई की रात थी और मुझे दूसरे दिन चले जाना था… और बाबू मेरे बिस्तर के पास खड़े रहे थे, सोचा था, मैं सो रहा हूँ… मैं सबकुछ देख सकता था… वैसे भी हमारे शहर में जुलाई की रातें बहुत उजली होती थीं – आँखें मूँद भी लो तो भी सबकुछ दीखता था। …फिर सहसा इच्छा हुई कि मैं बाहर चला जाऊँ… यह बहुत आसान था। पहले मैं अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हूँगा, फिर दरवाजा खोलूँगा और बाहर चला आऊँगा… जस्ट टू कम आउट… यह बड़ी बात है, मैंने सोचा… उसके मुँह पर थूक फिर बह आया था, होंठों से बहता हुआ ठुड्डी तक, जहाँ नीले काँटों से बाल उग आए थे… मैं रूमाल से फिर उसका मुँह पोंछ देता हूँ।…

आवाजें… एक बदहवास-सी चीख!

बेसमेंट की दीवार पर छायाएँ डोलती जाती हैं – एक भयंकर दुःस्वप्न-सी। कुर्सियों को खींचने की आवाज, अटपटी-सी हँसी… लेकिन है कुछ नहीं। मैं उठता नहीं… गिलास में अब भी लागर बची है और मैं उठ नहीं सकता… और तब अचानक उस क्षण मुझे अपने में एक अजीब-सी शांति महसूस होती है… घनी चिलचिलाती, गरम रेत के अंतहीन फैलाव-सी और मैं उसे पकड़े रहता हूँ।

जस्ट टु कम आउट, जस्ट टु…

मैं पूरी शक्ति से जार्ज को झिंझोड़ने लगता हूँ।

वह एकदम हड़बड़ाकर उठ बैठा और विमूढ़ भाव से मुझे देखने लगा – कुछ-कुछ उस ट्रेंड जानवर की तरह, जो ऐन मौके पर अपना ‘पाठ’ भूलकर आस-पास खड़े तमाशबीनों को देखने लगता है। फिर सहसा उसकी आँखें अजीब-सी आतंक-ग्रस्त हो आईं।

“बात क्या है?”

“चलो… यहाँ से चलना होगा।”

” लेकिन… क्या अभी?”

वह कुछ भी नहीं जानता। मैं जल्दी में निश्चय नहीं कर पा रहा था कि क्या उसे कुछ भी बताना उचित होगा।

“क्या मैं सो गया था?” उसने पूछा। न जाने मेरे चेहरे पर क्या था कि वह एकाएक शंकित-सा हो उठा।

“यह शोर कैसा है?”

उसका चेहरा बिलकुल वैसा हो गया, जब हम सोडा-फैक्टरी के बाहर अँधेरे में खड़े थे। …अब वह घड़ी कितनी दूर लगती है और कितनी अप्रासंगिक!

“हमें चलना होगा… बाहर।”

बाहर लंदन की रात है… हमारी प्रतीक्षा करती हुई – हमें निगल जाने के लिए आतुर।

“विली कहाँ है? …हम उसके बिना नहीं जा सकते।”

“वह… वह आ नहीं सकता।”

पब का दरवाजा खुलता है… कुछ लोग हड़बड़ाकर भीतर घुसते हैं।

दे आर देयर… द डैम्ड… एक बहुत ही भद्दी गाली और आवाजें, मक्खियों की भिनभिनाहट की मानिंद अर्थहीन।

मैं उसका हाथ पकड़कर घसीटता हूँ।

“मैं जाऊँगा नहीं…”

“तुम पागल तो नहीं हो?”

“वे कहाँ हैं…”

“वे!” मैं गुस्से में उसे उठा देता हूँ। वह बिलकुल मेरे सामने खड़ा है – बताओ, वे कौन? – मैं उसके कंधे हिलाता हूँ और वह…

“बोलो, वे कौन?”

“यू आर ड्रंक!” उसने कहा और एक झटके से अपने को छुड़ा लिया।

शायद यह सच है, मैंने सोचा… शायद मैंने बहुत पी ली है। इस खयाल से मुझे बहुत सांत्वना मिली है।

“तुम यहीं रहोगे?”

“मैं कहीं भी रहूँ” उसने कहा।

“सुनो!” मैं बीच की कुर्सी हटाने की चेष्टा करता हूँ।

“यू आर ड्रंक!” वह पीछे हट गया।

मैं जाने लगा। वह भी, लेकिन मुझसे अलग। लगा, जैसे यह कोई खेल है, जिसमें दो व्यक्ति आँखों पर पट्टी बाँधकर चलते हैं और वे समझते हैं कि वे एक-दूसरे से दूर जा रहे हैं लेकिन दरअसल वे एक-दूसरे के निकट सरकते आते हैं।

दरवाजे की तरफ… पहले मेजें आती हैं, अधजली सिगरेटों के टोटे, खाली गिलास और बोतलें, कुर्सियों पर रखे शाम के अखबार, फर्श के एक कोने में गिरी हुई लिपस्टिक की डिब्बी, जिसे हड़बड़ाहट में कोई स्त्री उठाना भूल गई थी… और मुझे लगा जैसे कोई घटना अचानक हुई होगी, बिलकुल अप्रत्याशित रूप से, और सब लोग बिना किसी तैयारी के भागती भीड़ के भँवर में फँस गए होंगे।

विली कहाँ है?

और यह इटालियन…

आगे सोचना नहीं हुआ। दरवाजा झपाटे से खुला था और मुझे लगा, जैसे एक झटके से जार्ज मुझसे अलग हो गया है – आखिरी लमहे में (या सबसे शुरू के लमहे में)। मैंने कोशिश की कि उसे अपने से जकड़े रखूँ, जैसे यह अपने में एक महत्वपूर्ण चीज है, किंतु मेरा सिर सनसनाता हुआ नीचे की तरफ घूम गया। जो हाथ मैंने जार्ज को पकड़ने के लिए फैलाया था, वह मुड़ता गया। छत, न यह छत नहीं है, सिर्फ रोशनी है – एक अजीब ढंग से झूलता हुआ बल्ब… और मेरी बाँह मुड़ती गई, (डोंट लेट देम एस्केप – एक फूत्कारती-सी आवाज, फिर वह भी नहीं) और वह एक तख्ते की तरह काँप रही थी और उसे मैं देख सकता था… काँपते हुए… जैसे वह मेरी बाँह न हो। कोई कसता जा रहा है आखिरी बिंदु तक और वहाँ पहुँचने से पहले ही टूट जाती है… समूची देह में… न, यह पीड़ा नहीं है, पीड़ा की एक सीमा होती है और उसके परे उसकी पहचान खत्म हो जाती है…

आई से… लीव हिम एलोन… यह क्या इटालियन की आवाज है? मुझे हलका-सा आश्चर्य होता है। मेरे ऊपर झुके हुए चेहरे एक-एक करके उठ रहे हैं, लेकिन मैं उन्हें देख नहीं सकता… सिवाय उनकी गरम साँसों के, जो गर्दन को बार-बार छू जाती हैं – फिर वह भी नहीं।

“तुम उठ सकते हो?”

मैं अपनी बाँह को देखता हूँ… वह अब फर्श पर पड़ी है – आश्चर्य है, वह अब तक मुझसे जुड़ी है।

मैं बैठ गया हूँ। फिर अनायास मेरे हाथ गालों पर चले जाते हैं। वे गीले हैं… वे आँसू हो सकते हैं, इस पर मैं विश्वास नहीं कर सका – वे बेहूदा ढंग से खुद-ब-खुद निकल आए थे और मुझे पता नहीं चला था… कुछ उस व्यक्ति की तरह जो सुबह अपने बिस्तर को गीला पाता है और विश्वास नहीं कर पाता कि उसने ही…

“कुछ पिओ!” इटालियन मेरे इर्द-गिर्द मँडरा रहा है।

“विली कहाँ है?” मैंने पूछा।

“वे उसे मार डालेंगे… मैंने तुमसे क्या कहा था?” उसका गला अजीब ढंग से रुँधा गया है।

“क्या कहा था? – मुझे अब कुछ भी याद नहीं आता।”

“तुम्हें मालूम है। …तुम अगर उसे अपने संग ले जाते, तो कुछ भी नहीं होता।”

“कुछ भी नहीं होता… लेकिन जो हुआ है, इसे कोई रोक सकेगा, यह कोई भी नहीं जानता।”

“अब मैं जाऊँगा” मैंने कहा।

“कहाँ?” इटालियन दरवाजे के सामने खड़ा था।

” कहीं भी… बाहर – चारों ओर देखा, जार्ज कहीं भी नहीं था। मुझे हलकी-सी खुशी होती है।”

“बाहर?” इटालियन को शायद विश्वास नहीं हुआ, वह शायद निश्चय नहीं कर पा रहा था किस सीमा तक मैं पी चुका हूँ… किस सीमा तक वह मुझे गंभीरता से ले सकता है।

“इस समय नहीं… वे बाहर खड़े हैं।”

“सुनो !” मैंने बहुत सहज भाव से कहा, ” मैं कुछ भी नहीं करूँगा। मैं सीधा घर चला जाऊँगा।”

“कैसी बात करते हो?” इस बार वह एकदम भभक-सा उठा – वे जानते हैं, तुम विली के संग आए हो… तुम उनसे बचकर नहीं जा सकते।

बहस करना व्यर्थ था, वह मानेगा नहीं।

बाहर एकाएक कोलाहल बढ़ गया है…एक क्षण के लिए टेढ़ी-सी उमठन मेरी पीठ पर सरकने लगती है – बर्फ के डले की तरह। इसे मैं पहचानता हूँ। डर है… बहुत शुरू का डर, अपने में बिलकुल नंगा – बिलकुल नीरव।

मुझे लगा, जैसे मैं मुस्करा रहा हूँ।

“देखो… तुम मुझे एक छोटी व्हिस्की दे सकते हो?”

वह कुछ देर तक मुझे घूरता रहा। आगे घिसट आया था। हम दोनों के चेहरे पास थे कि बाहर के शोर के बावजूद मैं उसकी साँसों को सुन सकता था।

“तुम जाओगे नहीं ” संदेह और अनिश्चय से उसका स्वर एक तनाव में खिंच आया था।

“मैं पागल नहीं हूँ।”

वह कुछ देर तक चुपचाप मुझे घूरता रहा।

“तुम्हें यहाँ छोड़कर मैं नहीं जा सकता” उसने कहा।

एकबारगी जी में आया कि मैं उसके पसीने में लथपथ, गोल-मोल, गदराए चेहरे को अलग-अलग हिस्सों में तोड़ दूँ… किंतु मैं वैसे ही मुस्कराता रहा।

मैं यहीं रहूँगा… तुम्हारे लिए नहीं तो व्हिस्की के लिए। तुम मेरा इतना भी विश्वास नहीं करते?

इस बार उसके होंठ एक अप्रत्याशित हँसी में फैल गए। उस हँसी में एक विवश निरीहता छिपी थी, मानो वह हँसकर खुद अपने को विश्वास दिला रहा हो कि उसने मुझ पर विश्वास कर लिया है।

वह काउंटर की ओर बढ़ा, जहाँ विभिन्न शराबों और बियर की बोतलें रखी थीं। वह बार-बार पीछे मुड़कर मेरी ओर देख लेता था।

मैं खड़ा रहा।

स्कॉच की बोतल उसने काउंटर पर रख दी। फिर मेरी ओर देखा जैसे हम दोनों के बीच कोई रहस्यमय समझौता हो।

हमारा मौन जैसे इन आवाजों से बड़ा था, जो लहरों की मानिंद उठती थीं – एक-दूसरे से उलझी हुई… उठती थीं, दरवाजे से टकराती थीं और फिर अंतहीन अंधकार में बिखर जाती थीं।

वह गिलास धो रहा था। पंप से बहता पानी… और चमकीले गिलास पर फिसलती हुई उसकी एक-एक बूँद – मैं उन बूँदों को देखता रहा और मुझे बराबर महसूस होता रहा कि मैं उलटी करूँगा। मैं नंगे काँच पर बहते पानी को नहीं देख सकता… मेरे भीतर एक अजीब-सी झुरझुरी फैलने लगती है… मैं आगे बढ़ता हूँ, दरवाजे की तरफ। उसकी पीठ अब भी मेरी तरफ थी… पंप से बहते पानी की आवाज मेरे दिल की धड़कन को ढकती रही… और तब उस लमहे अचानक मुझे लगा, जैसे अब मैं चाहूँ तो भी नहीं मुड़ सकता, जैसे खुद मेरा अपनी टाँगों पर, अपने पर, कोई नियंत्रण नहीं रहा था… जैसे मैं खुद अपने से मुक्त हूँ।

और दरवाजा खुल गया… दूसरे क्षण मैं बाहर था।

बाहर… अँधेरे में।

जस्ट टू आउट… मैंने अपने से कहा।

वह गर्मियों की एक खुली और नरम रात थी… एक विराट, बनैले जंतु की तरह खामोश… जो दिन-भर की थकान के बाद अपनी माँद में समूची देह फैलाकर सो गया हो।

पसीना सूख रहा था। मैंने भरपूर साँस ली एक बार… दो बार… हल्का-सा पछतावा होता है… मैं व्हिस्की छोड़कर चला आया था… इस समय यदि वह मेरी देह के भीतर होती… मैं फिर साँस खींचता हूँ… काश, मैं एक सिगरेट पी सकता! …मैं बड़ी सड़क छोड़कर एक सँकरी लेन में चला आया हूँ। …अक्सर गलियों के नुक्कड़ पर सिगरेटों की ऑटोमशीनें लगी रहती हैं…

“हियर ही इज… द सन ऑफ ए विच!”

मैं रुक जाता हूँ… न, यह डर नहीं है। मैं बहुत शांत हूँ… सिर्फ एक ठंडी-सी चीज मेरी रीढ़ की हड्डी पर फिसल रही है – एक गिलगिली छिपकली की तरह तटस्थ।

वे वहाँ थे… दीवार से सटी छायाएँ आगे सरकती हैं।

होल्ड हिम! – एक फटी-सी चीख… और मैं अचानक पीछे मुड़ गया हूँ… एक सरसराती-सी हवा मेरी बगलों के बीच से निकल जाती है।

गॉडेम्ड निगर…

वेट, जस्ट वेट…

वह पीछे से आया था – मुझे पता भी नहीं चला कि मेरा सिर पीछे की ओर मुड़ता गया है… एक क्षण और… और मैं दो हिस्सों में बँट जाऊँगा…

काश, मैं उसके चेहरे को देख पाता…?

हाथ है, जो नम है… मैं अपनी कनपटियों में सरसराता खून सुन सकता था। मैं थोड़ा-सा हिलता हूँ… और कुछ आगे की तरफ घिसट आता हूँ। वह भी मेरे संग घिसट आता है – यह कोई अन्य व्यक्ति है, इसने सिर्फ मेरे हाथ जकड़ रखे थे।

एक क्षण के लिए मुझे गहरा आश्चर्य होता है – यह क्या मेरी देह है, जो इस तरह थरथरा रही है?

“यू शिटिंग स्वाइन!”

मैं एक झटके से अपने को खींचता हूँ… लेकिन मेरे बाल… मेरे बाल उसके हाथों में फँस गए हैं – उसकी नंगी बाँह मेरे मुँह के सामने हिलती है… और अनायास मैं अपने दाँत उसमें गड़ा देता हूँ… ओह, लीव इट, बगर…! एक टूटती-सी साँस… वह मुझे हिलाता है एक बार, दो बार – और हर बार मैं शराबी-सा उसकी बाँह पर झूल जाता हूँ।

“लीव हिम एलोन, यू सन ऑव ए ह्वाइट ह्वोर!”

क्या यह विली की आवाज है? …मैं पूरी शक्ति से चीखने की चेष्टा करता हूँ, किंतु सिवाय एक भयावह घुर्र-घुर्र के मेरे मुँह से कोई भी स्वर नहीं निकल पाता।

और तब सहसा मुझे लगा, उसकी पकड़ ढीली पड़ गई है… मैं अपने को उठा सकता हूँ। मेरी आँख खुलती है। अँधेरे का एक नीला दरिया मेरे सामने से गुजर जाता है और उसके परे लाल, हरे, गुलाबी धब्बे तिरते जाते हैं – मैंने इन्हें कभी देखा है, मुद्दत पहले कभी देखा है, जैसे यह कोई पहचाना-सा दुःस्वप्न है, जिसे मैं दुहरा रहा हूँ… शुरू से अंत तक।

मुझसे दो गज के फासले पर वह खड़ा था – गली की दीवार से सटा हुआ। एक क्षण के लिए विश्वास नहीं हो सका कि वह विली है, वही व्यक्ति जिसके संग कुछ देर पहले मैं लागर पी रहा था…

किंतु क्या वह मुझे पहचान सकता है?…

और वह ब्लोंड लड़की… और जार्ज… क्या वे स्मृति के घेरे से बाहर कहीं रात में डूब गए हैं… हमें यहाँ छोड़कर… जो इस क्षण खुद अपने को नहीं पहचान पाते?

सिर्फ दो गज… और बीच का अँधेरा।

भीड़, आधा चेहरा और एक लंबा युवक, जो विली पर झुका है… विली की कमीज का कालर हाथ में पकड़कर वह उसे दीवार के पास घसीट लाता है – खटाक… खटाक…

वह स्कार्फ फूल जाता है… स्कार्फ जो उस लंबे व्यक्ति ने गले में बाँध रखा है… रंगीन – उस पर गुलाब के फूल छपे हैं…

गुलाब के फूल… और खून, जो विली के होंठों से फिसलता हुआ उसकी ‘गोटी’ तक बह आया है…

एक क्षण के झलमले में सबकुछ उभर आया है… आवाजें, पसीना, लेन की खट्टी-सी गंध… और हँसी…

और तब वह आया था… एक ठिगना-सा व्यक्ति, जो अभी तक भीड़ के अँधेरे में छिपा था। उसकी घनी भौंहों के बीच छोटी अस्थिर आँखें चमक रही थीं… भौंहों के बाल इतने लंबे और घने होकर उसकी आँखों पर झुक आए थे कि लगता था, जैसे उसने अपने चेहरे पर किसी कुत्ते का मॉस्क पहन रखा हो…

वह बहुत ही धीमे कदमों से विली की ओर बढ़ रहा था…

“कहाँ गई तुम्हारी डार्लिंग?” उसने झटके से विली की ठुड्डी को ऊपर उठा दिया।

“बोलो… कहाँ गई?”

हर बार ‘कहाँ गई’ कहते समय वह विली के सिर को दीवार पर धकेल देता था… हर बार विली की देह एक शराबी की तरह झूम जाती थी।

और वे हँस रहे थे…

“बैश हिम देयर!” दूसरे ने अपने … की ओर इशारा किया। खट-खट सिर के दीवार से टकराने की आवाज। खट-खट मेरे दिल की पगली ज्वर-ग्रस्त धड़कन। पसीने और खून से लिथड़ी विली की कमीज और एक अनवरत, कभी न खत्म होनेवाली खट-खट और एक भुतैली-सी हँसी…

“बोलो, कहाँ गई? …स्पीक! स्पीक! स्पीक! यू फिल्दी… हा-हा-हा… खट-खट-खट…”

स्कॉर्फ में झूलते हुए रंगीन गुलाब के फूल…

मुझे अब कुछ भी याद नहीं… सच पूछो, तो मुझे यही नहीं मालूम कि मैं स्वयं चिल्लाया था या कोई बाहर की चीख मुझे सहसा झिंझोड़ गई थी। (नहीं… आज भी मैं विश्वास नहीं कर पाता कि वह भयावह चीख मेरे गले से निकली होगी।) मुझे सिर्फ इतना-भर लगा था कि मेरी साँस… एक अंधे चिमगादड़ की तरह मेरी छाती की दीवार से टकराती हुई बेतहाशा फड़फड़ाने लगी थी। और मैंने एक धक्के से उन दोनों हाथों को अपनी गर्दन से छुड़ा लिया, जिन्होंने अब तक मुझे रोक रखा था…

सिर्फ दो गज… और बीच का अँधेरा।

मैं विली की तरफ बढ़ा था। मैं उससे कुछ कहना चाहता हूँ। उसे छूना चाहता हूँ। मुझे लगता है यह बहुत महत्वपूर्ण है।

बीच का अँधेरा – और वे ठंडे हाथ और तब वह चीख…

मेरा सिर उस अदृश्य व्यक्ति की ठुड्डी से टकराया था, जिसने मुझे बीच में पकड़ लिया था। दूसरे हाथ से उसने मेरा चेहरा भींच लिया… मेरा मुँह उसकी कमीज पर घिसटता गया। आई विल टीच यू – हाउ टु रन… बास्टर्ड… न जाने क्यों, मैं अपनी टाँगों को बेतहाशा, मिरगी के मरीज की तरह, हवा में घुमाने लगा – कुछ नहीं होगा… मैंने सोचा… वह मुझे छोड़ेगा नहीं… और तब मुझे लगा, जैसे अब मैं साँस नहीं ले सकूँगा। किंतु यह गलत था, हर दूसरी साँस पहली साँस की गिरफ्त से अपने को छुड़ाकर ऊपर आती थी और फिर मुझसे चिपक जाती थी और मैं सोचता था, यह आखिरी है, लेकिन तीसरी साँस फिर छटपटाते हुए अपने को दूसरी साँस के पिंजरे से छुड़ा लेती थी और मुझे आश्चर्य हुआ कि कोई भी साँस पीछे रहकर आखिरी नहीं बनना चाहती… और तब एक भयंकर-सी खुशी ने मुझे अपने में लपेट लिया, जैसे मैं अब तक सिर्फ इस लमहे के लिए जी रहा था और अब वह आ गया है और आनेवाली घड़ियों में कोई भी ऐसी चीज नहीं होगी, जिसके मानी वही होंगे, जो पहले थे, कोई भी डर पहले जैसा डर नहीं होगा… मैं भूल गया था कि मैं अकेला हूँ… मैं सिर्फ यह जानता था कि वे मुझे अकेला नहीं छोड़ेंगे और मैं बच नहीं सकता और उस रात मुझे पहली बार लगा कि अकेला होना ही काफी नहीं है… काफी नहीं है क्योंकि वे हर जगह हैं और यह मैं जानता था, सिर्फ यह नहीं जानता था कि एक दिन वे मुझे पकड़ लेंगे… अब वह पहले जैसा आकारहीन नहीं था – वह डर। अब वह ठोस था और सीमित था – उतना ही बड़ा जितना मैं हूँ। हम दोनों अँधेरे में जानवरों की तरह साँस ले रहे थे और मुझे लगा, जैसे मैं आखिर तक अपनी टाँगों को इसी हवा में घुमाता रहँगा… आह डियर, हाऊ फनी इट इज… हाऊ फनी! कोई हँस रहा है – (क्या यह मैं हूँ?) हँसी, जिसकी कोई आवाज नहीं। घूँसे… गालियाँ… और फिर वही हँसी!

वे मुझे घसीटते ले गए हैं – गली के कोने तक।

मैं उठने की कोशिश करता हूँ और बैठ जाता हूँ। फिर इच्छा होती लेट जाने की। वहीं सड़क पर। लेकिन आँखें बंद करते ही लगता है, जैसे और चीज एक ज्वार की तरह ऊपर उठती है – मेरी टाँगों में, छाती में, बाँहों के जोड़ों में – उठती है और बह जाती है… क्या यह पीड़ा है? और मुझे हलका-सा आश्चर्य होता है कि मैंने जिंदगी के इतने बरस बिता डाले और कभी इसे नहीं जाना। लगता है, मेरी चेतना ने इस पीड़ा का एक छोर पकड़ लिया है और घिसटती जा रही है… कभी सिर्फ चेतना रह जाती है – पीड़ा से अलग। तब लगता है जैसे मैंने कुछ खो दिया है। बारिश की शाम है और मैं दुबारा अपने शहर की सड़क पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक भाग रहा हूँ… एक छोटा-सा खोखल मेरे सामने खुल गया है और एक उत्कट भयंकर-सी आकांक्षा मन में जगती है उसमें छिप जाने की… जैसे उसमें छिप जाने से ही सबकुछ सुलझ जाएगा, सबकुछ बहुत सहज हो जाएगा… लेकिन यह खोखल नहीं है। यह पीड़ा है, जो बराबर-बराबर से बँट गई है, मेरी देह के विभिन्न अंगों में – बिलकुल नए किस्म का दर्द, जो अपने में संपूर्ण है और जिसे आज तक मैंने नहीं पहचाना (हाऊ फनी इट इज… हाऊ वंडरफुल फनी!) बीच-बीच में चेतना का परदा खुल जाता है और मुझे आश्चर्य होता है कि यह मैं हूँ… और मुझे सहसा विश्वास नहीं होता कि मैं बाहर आ गया हूँ… अपने से बाहर जहाँ मुझे कोई नहीं बचा सकता।

अँधेरे से बाहर – जहाँ वे हैं।

वह शुरू अगस्त की एक रात थी। वे मुझे गली के एक गँदले, खामोश कोने में छोड़ गए थे। कितनी देर तक मैं वहाँ पड़ा रहा, मुझे कुछ भी याद नहीं। बीच-बीच में मेरी आँख खुल जाती थी, एक पतली और पारदर्शी धुंध के पीछे लंदन का आकाश घिर आता था। फिर आँखें मुँद जाती थीं और… मुझे लगता था, जैसे मैं एक धुंध को छोड़कर दूसरी धुंध में सिमट आया हूँ।

कितनी देर ऐसे ही रहा। फिर मैं सतर्क हो गया। पैरों की आहट मेरे पास चली आई थी। बहुत मंद गति से। मैं ऊँघने लगा था। शायद यह सपना हो। देर तक मालूम नहीं हो सका कि कोई बराबर मेरे कंधों को हिला रहा था…

“क्या ज्यादा चोट आई है?”

“नहीं… ज्यादा नहीं – आँखें खुल गईं। मेरे ऊपर जार्ज का चेहरा झुका था। लागर की हल्की-सी गंध मुझे छू गई। न जाने क्यों, उस गंध के संग एक दूसरी स्मृति उभर आई… मौत्सार्ट के सेरेनाड की एक बहुत पुरानी ट्यून – ट्यून भी नहीं, महज एक टूटी टहनी-सी थिरकन, जिसे कुछ घड़ियों पहले ‘पब’ में अचानक पहचाना था…”

” तुम यहाँ हो?”

“मुझे मालूम था, वे तुम्हें यहाँ लाए हैं। …मैं देख रहा था” उसने कहा।

“विली कहाँ है?”

“लेट हिम गो टु हेल… अगर वह नहीं होता… तो कुछ भी नहीं होता।”

“क्या कुछ नहीं होता?”

अचानक बड़ी सड़क से एक कार गुजर गई। हमारी आँखें चुँधिया गईं। मेरा ध्यान पहली बार अपनी ओर खिंच आया – कमीज का कॉलर ऊपर से फट गया था, पैंट पर गर्द, धूल और बियर के धब्बे थे और मुझे लग रहा था कि बदन के पसीने से चिपकी मेरी बनियान से एक बोझिल, गीली-गीली-सी भाप निकल रही हो।

“तुम वापस क्यों आए?”

“मैं भीतर आना चाहता था – तुम लोगों के पास, लेकिन तुम जानते हो…”

“इट इज ऑल राइट, जार्ज” मैंने उसे बीच में ही रोक दिया। मेरे मुँह का स्वाद एकदम कसैला-सा हो आया, जैसे मैं एक लंबे बुखार के बाद उठा होऊँ। पास ही लैंप-पोस्ट का पीला दायरा था। मैंने उसके बीचोंबीच थूक दिया – बिलकुल लाल, जैसे पान की पीक हो। यह खून है… मुझे बहुत अजीब-सा लगा। मैंने एक बार फिर थूका, इस बार अपने खून को दुबारा देखने का लोभ संवरण न कर सका।

“तुम्हें ज्यादा चोट तो नहीं आई?” जार्ज ने कहा। उसके स्वर में एक बँधी-बँधी-सी कुंठा थी। मुझे वह कुछ अजीब-सी लगी।

मैं चुप रहा और फिर खड़ा हो गया। एक क्षण तक गली की दीवार से मेरा सिर टिका रहा…

खट-खट-खट…

अब भी वह आवाज मेरी नसों के बीच फड़फड़ा रही थी।

हम चुपचाप ट्यूब-स्टेशन की ओर चलने लगे। मेरी जेब में अब भी दो शिलिंग पड़े थे। अनायास मेरी काँपती अँगुलियाँ उन्हें सहला देती थीं।

बाहर सड़क पर अगस्त के पत्ते थे… लंदन का धुआँ रात के परे गिरता जा रहा था।

“तुम मेरा विश्वास नहीं करते… तुम समझते हो… “जार्ज ने जबरदस्ती मेरा कंधा पकड़ लिया।

“इट इज ऑल राइट” मैंने उसका हाथ कंधे से अलग कर दिया। काश, वह इस समय मेरे संग न होता!

हम ट्यूब-स्टेशन की सीढ़ियाँ उतरने लगे।

प्लेटफार्म उजाड़ पड़ा था। बेंचों पर इक्के-दुक्के आदमी बैठे ऊँघ रहे थे। हमारे बिलकुल पास खंभे की आड़ में एक जोड़ा दीवार से सटा था… लड़की अपने बालों पर बार-बार हाथ फेरती थी। उसके सामने खड़ा युवक कुछ दबे स्वर में फुसफुसा रहा था। लड़की बार-बार हँसने लगती थी और फिर चौंककर दोनों ओर देख लेती थी।

टिकट खरीदकर हम पास की खाली बेंच पर बैठ गए।

“तुम लंदन में ही रहोगे?”

वह चुप रहा। उसकी आँखें बत्तियों के परे अंडरग्राउंड की सुरंग पर थिर थीं -अँधेरी, सीली। लगता था, सुरंग का अँधेरा ऊपर शहर के अँधेरे से कट गया हो… जैसे गँदले पानी का ठहरा चहबच्चा हो।

” न जाने विली कहाँ चला गया?”

“विली… मैंने उसे देखा नहीं” उसने कहा।

“लेकिन तुम बाहर खड़े थे, तुमने अभी कहा था?”

“मैंने कुछ भी नहीं देखा।”

हम फिर चुप हो गए। किंतु उस चुप्पी में एक बोझिल-सा तनाव था, जैसे कोई चीज बार-बार हमारे बीच आ जाती हो, और हम बार-बार उसे अलग ठेल देते हों।

“तुम समझते हो… मैं झूठ बोल रहा हूँ?” उसने कहा।

मैं दूसरी ओर देखने लगा।

“तुम कुछ भी समझो, मुझे इसकी कतई परवाह नहीं” उसने कहा।

“डोंट बि सिली ” मैंने कहा।

“तुम मेरा विश्वास नहीं करते – इस बार उसने मेरी ओर देखा।” तुम सोचते हो मैं भाग गया था… उसके होंठ काँप रहे थे।

“डैम इट, आई से डैम इट!”

“उन्होंने मुझे पकड़ रखा था… और मैं तुम्हारे पास…”

” इट इज ऑल राइट, जार्ज!”

” ओ नो… इट इज नाट ऑल राइट” वह जैसे चीख रहा हो। पास की बेंच पर ऊँघता हुआ आदमी उठ बैठा और हमारी ओर देखने लगा।

“जार्ज, सुनो” मैंने उसके कंधे पर हाथ रख दिया। बेंच के हत्थे पर उसका चेहरा दोनों हाथों के बीच दबा था और बार-बार हिल उठता था।

आई वाज अफ्रेड, टेरिब्ली अफ्रेड।

हम दोनों काँप रहे थे।

“अफ्रेड…”

मैं सामने देखता रहा… अंडरग्राउंड का अँधेरा जैसे धीरे-धीरे हिल रहा हो – एक परदे के मानिंद जो अभी उठ जाएगा। मैं उस क्षण जार्ज से डरने लगा, खुद अपने से डरने लगा। मुझे लगा, जैसे मैं अब कभी उसकी ओर नहीं देख सकूँगा। उस क्षण मैं कोई भयंकर चीज कर सकता था – मैं उससे बहुत-कुछ कहना चाहता था, कुछ भी… किंतु अब हम दोनों एक संग होते हुए भी अचानक अकेले पड़ गए थे और वह रो रहा था और मैं कुछ भी नहीं कर सकता था… शायद इससे भयंकर और कोई चीज नहीं, जब दो व्यक्ति एक संग होते हुए भी यह अनुभव कर लें कि उनमें से कोई भी एक-दूसरे को नहीं बचा सकता, जब यह अनुभव कर लें कि बीती घड़ियों की एक भी स्मृति, एक भी क्षण उनके मौजूदा… इस गुजरते हुए क्षण के निकट अकेलेपन में हाथ नहीं बँटा सकता, साझी नहीं हो सकता…

तब हम चौंक गए। दूसरे प्लेटफार्म पर वॉरेन स्ट्रीट जानेवाली ट्यूब आ रही थी। जार्ज को इसी में जाना था। हमारे आस-पास की बेंचों पर ऊँघते हुए लोग सहसा उठ खड़े हुए। ट्यूब की तेज हेडलाइट में न्यू एक्टन की अगली सुरंग का अँधेरा जरा पीछे खिसक गया। सीढ़ियों से कुछ लोग भागते हुए नीचे प्लेटफार्म पर उतर रहे थे, ताकि वॉरेन स्ट्रीट जानेवाली आखिरी ट्यूब को पकड़ सकें।

जार्ज खड़ा हो गया। उसने एक बार भी मुझे नहीं देखा और दूसरे क्षण भीड़ के संग वह भी ट्यूब की तरफ भागने लगा। ट्यूब के ऑटोमेटिक दरवाजे क्षण-भर के लिए खुले और भीड़ को अपने भीतर निगलकर दूसरे क्षण ही बंद हो गए।

पहियों की भड़भड़ाती आवाज धीरे-धीरे मंद पड़ती गई और फिर सब पूर्ववत शांत हो गया। सुरंग के जिस अँधेरे को ट्यूब की हेडलाइट ने पीछे खिसका दिया था, वह फिर वापस लौट आया।

सिर्फ प्लेटफार्म की खुली छत के परे न्यू एक्टन की रोशनियाँ अँधेरे में चुपचाप झिलमिलाती रहीं।

खंभे की आड़ में युवक ने कहा – अगली गाड़ी से – और उसे चूम लिया। लड़की की आँखें मुँद गईं।

उसने देखा भी नहीं…

और मुझे लगा, जैसे मुद्दत से मैंने सिगरेट नहीं पी।

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