लीला का दोस्त आर. के. नारायण की कहानी | Leela Ka Dost R K Narayan Story In Hindi

लीला का दोस्त आर. के. नारायण की कहानी, Leela Ka Dost R K Narayan Story In Hindi, English Story In Hindi 

Leela Ka Dost R K Narayan Story In Hindi

Leela Ka Dost R K Narayan Story In Hindi

सिद्दा उसी वक्त फाटक के सामने से गुजरा, जब शिव शंकर जी अपने घर के बरामदे में नौकर की समस्या पर सोचते हुए खड़े थे।

‘सर, आपको नौकर चाहिए?” उसने पूछा।

‘आओ, भीतर आ जाओ, ‘ शिव शंकर जी ने कहा। सिद्दा फाटक खोलकर भीतर आया, तो उन्होंने उसे ऊपर से नीचे देखकर अपने-आप से कहा, ‘आदमी बुरा तो नहीं लगता. जो हो, चुस्त नजर आता है।’

‘पहले कहाँ काम किया है?’ उसने पूछा।

सिद्दा ने पीछे की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘वहाँ एक बंगले में किया है. डॉक्टर साहब के घर में।’

‘नाम क्या है उनका ?’

‘नाम मैं नहीं जानता, मालिक। मार्केट के पास रहते हैं।’

‘तुम्हें क्यों छोड़ना पड़ा काम?’

‘वे शहर से चले गये, मालिक,’ सिद्दा ने आमतौर पर दिया जाने वाला जवाब दे दिया।

शिव शंकर जी खुद फैसला करने से हिचकने लगे। उन्होंने अपनी बीवी को बुला लिया। उसने सिद्दा पर नजर डालकर कहा, ‘मुझे उन दूसरों से तो बुरा नहीं लगता जिनसे हम काम कराते रहे हैं।’

तभी उनकी पाँच साल की बच्ची लीला बाहर निकल आयी और सिद्दा को देखकर खुशी से चीख पड़ी। बोली, ‘पापा, मुझे पसंद है यह। इसे वापस मत कीजिए, रख लीजिए।’ फैसला हो गया।

सिद्दा को दो वक्त का खाना और चार रुपये महीने मिलते थे, जिनके बदले में वह कपड़े धोता, बगीचे को सँभालता, सौदा-सुलफ लाता, लकड़ी काटता और लीला को खिलाता था।

‘सिद्दा, आओ खेलें, ” लीला आवाज लगाती, तो सिद्दा दूसरे सब काम एकदम छोड़कर उसके पास चला जाता, जहाँ लीला लाल रंग की गेंद हाथ में लिये बगीचे में खड़ी होती थी। उसे देखकर वह बड़ी खुश होती। वह उसकी तरफ गेंद फेंकती, सिद्दा भी उसी तरह गेंद वापस फेंकता। फिर लीला कहती, ‘अब गेंद को आसमान में फेंको।” 

सिद्दा गेंद हाथ में लेता, आँखें बंद करके निशाना साधता और जोर से गेंद को ऊपर फेंकता। जब वह वापस नीचे आती तो कहता, ‘ऊपर यह चंद्रमा को छूकर आयी है। देखो, इसमें चंद्रमा का जरा-सा हिस्सा लगा भी है।’ 

लीला ध्यान से गेंद को उलट-पुलट कर देखती कि चंद्रमा कहाँ उसमें लगा है, फिर कहती, ‘मुझे तो कहीं दिखाई नहीं देता!”

सिद्दा कहता, ‘बहुत जल्दी देखने से पता चलता है, नहीं तो यह उड़कर फिर चाँद तक पहुँच जाता है। चलो, अब जल्दी करो, देखो।’ यह कहकर वह गेंद हाथ में इस तरह पकड़ता कि जरा-सी सँध रह जाये, उसमें से लीला को दिखाता तो वह कहती, ‘हाँ चंद्रमा दिखायी पड़ा. लेकिन यह तो गीला है।’

‘दिखायी दिया न?’ सिद्दा ने पूछा।

‘सिद्दा, आसमान में क्या होता है?’

‘वहाँ भगवान् जी रहते हैं। ‘ सिद्दा कहता।

‘अगर हम छत पर खड़े हो जायें और हाथ ऊपर उठायें, तो हम आसमान छू सकते हैं?’

‘नहीं, छत पर खड़े होकर नहीं छू सकते। नारियल के पेड़ के ऊपर खड़े होकर छू सकते हैं।”

‘तुमने छूकर देखा है क्या?”

‘हाँ बहुत दफा देखा है। जब-जब चाँद बड़ा होता है तो मैं नारियल के पेड़ पर चढ़कर उसे छू लेता हूँ।’

‘चंद्रमा तुम्हें जानता है?’

‘हाँ खूब जानता है।. अच्छा, अब मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें एक नयी चीज दिखाऊँगा।” वे गुलाब के पौधे के पास खड़े थे। उसने ऊपर इशारा करते हुए कहा, ‘ऊपर चंद्रमा दिखायी देता है, है न ?’

‘हाँ देता है।’

‘अब चलो, ‘ यह कहकर वह उसे बंगले के पीछे ले गया। कुएँ के पास रुककर उसने ऊपर इशारा किया। चंद्रमा यहाँ भी था। लीला ने खुश होकर ताली बजायी और आश्चर्य में भरकर पूछने लगी, ‘चाँद तो यहाँ भी है। वहाँ भी था। यह क्या बात है ?’

‘मैंने उससे कहा था कि हमारे साथ चलो।”

लीला दौड़कर भीतर गयी और माँ से बोली, ‘सिद्दा चाँद का दोस्त है।’

शाम हुई तो वह सिद्दा को भीतर ले गयी। उसे क्लास में बच्चे की तरह पढ़ाने लगी। एक डिब्बे में रंगीन किताबें और तरह-तरह के रंगों की पेंसिलें थीं। उसने सिद्दा को जमीन पर बैठाया, उसके हाथ में एक किताब और रंगीन पेंसिल सही ढंग से पकड़ायी, खुद एक पेंसिल और किताब हाथ में ली और टीचर की तरह जोर से कहा, ‘अब लिखना शुरू करो।’ फिर जो भी वह खुद लिखती, वही सब सिद्दा से अपनी किताब में नकल करवाती। उसे दो-तीन अक्षर लिखना तथा बिल्ली और कौआ बनाना आ गये थे।

लेकिन सिद्दा ये नहीं बना पाता तो वह देखकर डाँटती, ‘क्या मैंने भी ऐसा कौआ बनाया है? मैंने भी B ऐसा ही बनाया है?’ वह उसे दोबारा सही-सही बनाने को कहती लेकिन यह भला आदमी, जो चंद्रमा का दोस्त था, पेंसिल चलाने में बिलकुल ही निकम्मा था। इसलिए वह उसे तब तक सीट पर बिठाकर पेंसिल चलवाती रहती, जब तक कि उसका हाथ दर्द न करने लगता। थककर वह कहता ‘मेरा ख्याल है, माँ तुम्हें बुला रही हैं। ‘ यह सुनते ही वह कमरे से भाग जाती और क्लास खत्म हो जाती।

रात को खाना खाकर लीला सोने चली जाती। सिद्दा उसे सुनाने के लिए एक कहानी तैयार रखता। वह बिस्तर के पास जमीन पर बैठ जाता और एक से-एक बढ़कर जंगल में जानवरों की, आसमान में देवी-देवताओं की, और ऐसे जादूगरों की, जो सोने के महल बनाकर उनमें राजकुमारियाँ पैदा कर सकते थे, कहानियाँ सुनाता।

दिनों दिन लीला सिद्दा के पास आती चली गयी। वह चाहने लगी कि पूरे समय सिद्दा उसी के साथ रहे। जब वह बगीचे में पानी दे रहा होता या लकड़ी काट रहा होता या कुछ लाने बाजार जाता, तब भी वह हमेशा उसके साथ रहती थी।

एक शाम वह चीनी लाने बाजार गया और लीला उसके साथ थी। जब वे वापस लौटे, तो लीला की माँ ने देखा कि उसके गले में सोने की चेन, जो लीला पहने रहती थी, अब नहीं है। 

‘तुम्हारी चेन कहाँ है?” माँ ने पूछा तो लीला ने अपनी फ्रॉक में देखा, इधर-उधर भी देखा, फिर कहा, ‘पता नहीं।’ 

माँ ने उसे एक चपत लगायी और चिल्लाकर कहा, ‘कितनी दफा कहा है कि चेन निकालकर बक्स में रख दो।”‘

फिर एक मिनट बाद आवाज लगायी, ‘सिद्दा, सिद्दा!’ 

जब वह आया तो लीला की माँ ने उसे इस तरह घूरकर देखा और सोचा कि आज इसकी शक्ल बदली-सी लगती है। उससे चेन के बारे में पूछा। उसका गला सूख गया। आँख झपकाकर बोला कि उसे पता नहीं। उसे पुलिस की धमकी दी और डाँटने लगी। फिर एक मिनट के लिए रसोई में चली गयी, क्योंकि वहाँ कुछ पकने के लिए रख आयी थी। लीला उसके पीछे-पीछे गयी और बोली, ‘मुझे भूख लगी है, कुछ खाने को दो।’ 

जब वे बाहर निकले और आवाज दी, ‘सिद्दा, सिद्दा!’ तो वहाँ कोई नहीं था। सिद्दा बाहर जा चुका था।

घंटे भर बाद जब शिव शंकर जी घर आये, तो चेन की बात सुनकर बहुत उत्तेजित हुए और पुलिस स्टेशन जाकर शिकायत दर्ज करा आये।

लीला ने खाना तो खा लिया, लेकिन सोने से इंकार कर दिया। बोली, ‘जब तक सिद्दा कहानी नहीं सुनायेगा, मैं नहीं सोऊँगी.। तुम मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती, माँ! हर वक्त सिद्दा को झिड़कती रहती हो। तुम इतनी सख्त क्यों हो?’

‘वह तुम्हारी चेन चुरा ले गया है।’

‘ले जाने दो। मुझे चेन नहीं चाहिए। मुझे कहानी सुननी है।’

‘अब सो जाओ, ‘ माँ ने उसे अपनी गोद में लेकर थपथपाते हुए कहा।

‘पहले एक कहानी सुनाओ।” 

लेकिन माँ के लिए इस वक्त कोई कहानी सोच पाना संभव ही न था। उसका दिमाग परेशान था। सिद्दा की बात से वह डर गयी थी। उसे सब पता है कि घर में कहाँ क्या रखा है, वह कभी भी रात में आकर हमें लूट सकता है। वह यह सोचकर काँपने लगी कि उसने कैसे शैतान को घर में रख रखा था। भगवान् ने दया की कि चेन के लिए उसने बच्ची के साथ कुछ नहीं किया।

 ‘सो जा बेटा, सो जा!” वह लीला को पुचकार कर सुलाने लगी।

‘मुझे हाथी की कहानी सुना दो।’

‘नहीं।’

लीला ने अपनी नाराजी जाहिर की और बोली, ‘सिद्दा हमारी कुर्सी पर क्यों नहीं बैठ सकता, यह बताओ। ” 

माँ ने इस बात को कोई जवाब नहीं दिया। लीला एक मिनट बाद बोली, ‘सिद्दा इसलिए चला गया क्योंकि वह घर में हमारी तरह सो नहीं सकता। उसे हमेशा घर के बाहर सोना पड़ता है, क्यों? वह हमसे नाराज हो गया है।’

जब शिव शंकर जी लौटकर आये, लीला सो चुकी थी। वे बोले, ‘इस आदमी को रखकर हमने कितना खतरा मोल ले लिया। वह पुराना अपराधी लगता है। बच्चों के जेवर चुराने के अपराध में वह आधा दर्जन बार जेल जा चुका है। मैंने जब यह बात बतायी, इंसपेक्टर ने फौरन उसकी पहचान कर ली।’

‘इस वक्त वह कहाँ है?” पत्नी ने पूछा।

‘पुलिस उसके ठिकाने जानती है। बहुत जल्द ढूंढ़ निकालेगी, फिक्र मत करो। इंस्पेक्टर नाराज हो रहा था कि उसे रखने से पहले हमने उसकी पड़ताल क्यों नहीं करवायी।’

चार दिन बाद जब शिव शंकर जी दफ्तर से घर लौटे, पुलिस इंस्पेक्टर और एक सिपाही सिद्दा को लेकर घर आये। सिद्दा सिर झुकाये खड़ा था। लीला उसे देखकर बड़ी खुश हुई। ‘सिद्दा, सिद्दा’ चिल्लाती हुई वह उससे मिलने दौड़ आयी।

इंस्पेक्टर ने उसे रोकते हुए कहा, ‘उसके पास मत जाओ।”

‘क्यों न जाऊँ?’

 ‘वह चोर है। उसने तुम्हारी सोने की चेन चुरायी है।’

‘चुरा लेने दो। मेरे लिए नयी चेन आ जायेगी।’ लीला के यह कहते ही लोग हँसने लगे। 

इसके बाद शिव शंकर जी ने सिद्दा से कुछ बात की और उनकी पत्नी ने भी धोखा देने के लिए उसकी मलामत की। फिर उससे पूछा कि चेन उसने कहाँ छिपायी है।

‘मैंने चेन नहीं ली है, ‘ सिद्दा ने नीचे देखते हुए धीरे से कहा। ‘फिर तुम हमें बताये बिना क्यों चले गये?’ लीला की माँ ने पूछा। उसने कोई जवाब नहीं दिया।

लीला का चेहरा लाल हो आया था। वह बोला, ‘पुलिस जी, अब उसे छोड़ दो। मैं उसके साथ खेलूँगी।’

‘बेटी, यह आदमी चोर है,’ इंस्पेक्टर ने कहा।

‘फिर क्या हुआ, होने दो, ‘ लीला ने अकड़कर जवाब दिया।

इंस्पेक्टर कहने लगा, ‘ऐसी प्यारी बच्ची की चेन चुराते हुए तुम्हें शरम नहीं आयी ? अब भी कुछ नहीं हुआ है, चेन वापस कर दो। तुम फिर कभी कुछ न करने का वादा करोगे तो हम तुम्हें छोड़ भी देंगे।”

लीला की माँ और पिता ने भी उससे यही कहा। लीला यह सब सुनकर बहुत परेशान हो रही थी। बोली, ‘अब उसे छोड़ दो। उसने चेन नहीं ली है।’

‘बच्चे, तुम भरोसे के गवाह नहीं हो,’ इंस्पेक्टर ने बात को हल्का रुख देते हुए कहा।

‘नहीं, उसने नहीं ली है,” लीला चीखी।

अब पिता ने दखल दिया, ‘बेबी, तुम चुप नहीं रहोगी, तो मैं बहुत गुस्सा करूंगा।’

आधे घंटे बाद इंस्पेक्टर ने सिपाही से कहा, इसे स्टेशन ले जाओ। मेरा ख्याल है, मुझे रात में इसके साथ बैठना पड़ेगा। सिपाही हाथ पकड़कर सिद्दा को ले जाने लगा तो लीला उसके पीछे चिल्लाते हुए दौड़ी, ‘इसे मत ले जाओ। यहीं छोड़ दो छोड़ दो।’ वह सिद्दा का हाथ पकड़कर खींचने लगी। 

सिद्दा खाली आँखों से जानवर की तरह उसे देखने लगा। शिव शंकर लीला का हाथ पकड़कर भीतर ले गये। वह रोती रही।

हर शाम जब शिव शंकर जी घर आते तो पत्नी पूछती, ‘चेन का कुछ पता चला?’ और लीला का सवाल होता, ‘सिद्दा कहाँ है?’

‘वह अभी हवालात में है। सिद्दा बड़ा जिद्दी साबित हो रहा है और कुछ नहीं बता रहा है।’

‘कैसा खतरनाक आदमी निकला, ‘पत्नी ने सिहरते हुए कहा।

‘ये लोग जो दो-एक दफा जेल हो आते हैं, ऐसे ही हो जाते हैं।’ शिव शंकर जी बोले।

कुछ दिन बाद रसोई में इमली के बर्तन में हाथ डालते ही चेन पत्नी के हाथ में आ गयी। उसने चेन निकाल ली और नल पर जाकर पानी से उस पर लगे दाग धोने लगी। यही लीला की चेन थी। जब लीला को दिखायी, वह बोली, ‘मुझे दे दो, यह मेरी है। मैं अभी पहनूँगी।’

‘यह इमली के बर्तन में कैसे पहुँच गयी?” माँ ने उससे पूछा।

‘किसी तरह पहुँची होगी।’ लीला ने जवाब दिया।

‘तुमने इसे इसमें डाला था?”

‘हाँ।’

‘कब ?’

‘कई दिन पहले. उस दिन…।”

‘तो पहले बताया क्यों नहीं?’

‘मुझे नहीं मालूम,” लीला ने कहा।

जब पिता घर आये और उन्हें बताया गया, तो उन्होंने कहा, ‘बच्चे को अब कभी कोई चेन मत देना। मैंने तुम्हें बताया भी था कि मैंने उसे एक-दो बार इसे हाथ में लिये देखा था? और कभी उससे बर्तन में गिर गयी होगी. इसकी वजह से कितनी परेशानी हुई!”

‘सिद्दा का क्या होगा?” पत्नी ने पूछा।

‘मैं कल इंस्पेक्टर से कह दूँगा। जो हो, ऐसे आदमी को फिर घर में नहीं रखा जा सकता।’

**समाप्त**

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