इंद्र का अचूक हथियार वृंदावनलाल वर्मा की कहानी | Indra Ka Achook Hathiyar Vrindavan Lal Verma Ki Kahani 

इंद्र का अचूक हथियार वृंदावनलाल वर्मा की कहानी Indra Ka Achook Hathiyar Vrindavan Lal Verma Ki Kahani Hindi Story 

Indra Ka Achook Hathiyar Vrindavan Lal Verma Ki Kahani

तपस्वी की साधना की जो प्रतिक्रिया हुई, उससे इंद्र का इंद्रासन डगमगाने लगा। तपस्या भंग करने के उपकरण इंद्र के हाथ में थे ही। उसने प्रयुक्त किए। तपस्वी के पास मेनका अप्सरा अपने साज-बाज के साथ जा पहुँची। ऋतु वसंत की तो न थी, परंतु तपस्वी के स्थान पर मेनका के पहुँचते ही पौधों और वृक्षों में कोंपलें लहलहा उठीं, रंग-बिरंगी कलियों ने उन कोंपलों के आसपास नए-नए रंग बिखेरे और मन को नचानेवाले रूप सँवार दिए। कोयल कूकी, बुलबुल ने हूक लगाई।

तपस्वी ध्यानमग्न था। उसकी आँखें खुल गईं। कलियाँ खिल पड़ीं। कोयलें और बुलबुलें गा-गाकर नाचने लगीं। तपस्वी ने देखा कि अनन्य सुंदरी मेनका भी नाच रही है। मेनका में रूप था, रस था। प्रकृति में गंध थी, सुगंधि थी। तपस्वी ने मेनका से कहा, ‘आओ मेनके!’

मेनका ने सोचा, ‘अरे! यह तो बिना किसी बड़े प्रयास के ही फिसलपट्टी पर फिसल गया।’

मेनका उसके पास जा पहुँची।

कुछ समय उपरांत मेनका ने इंद्र को अपनी करामात की सूचना दी। परंतु इंद्र प्रसन्न नहीं हुआ, उसका आसन अब भी डाँवाँडोल था।

इंद्र ने फिर और कई अप्सराएँ भेजीं। उन्होंने ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत—सभी के नाना रूप दिखलाकर तपस्वी को मोहित करने के पूरे प्रयास किए। तपस्वी ने सभी का स्वागत किया। फिर भी न तो उसका ध्यान टूटा और न तपस्या टूटी।

इंद्र का आसन हिलता-डोलता ही रहा। इंद्र ने दूसरे उपकरणों का प्रयोग किया। उसने तपस्वी के पास एक निंदक भेजा।

निंदक ने चिल्ला-चिल्लाकर कहा, ‘तुम्हारी आँखें छोटी-छोटी हैं, नाक चपटी, गाल पिचके, बाल घास जैसे; पूरी देह जैसे किसी गंदे नाले के आसपास का ऊबड़-खाबड़ जंगल हो। तुम्हारी तपस्या तप की किसी भी परिभाषा में नहीं आती। नियम विरुद्ध है, विधान के प्रतिकूल। तुम तो विरोधाभास की मूर्ति हो। कुछ नहीं पाओगे इस तपस्या से। है ही कुछ नहीं।’

तपस्वी बोला, ‘बके जाओ बेटा, मैं परवाह नहीं करता।’ परंतु उसका ध्यान नहीं टूटा।

निंदक लौट गया। इंद्र को अपनी काररवाई का समाचार दिया। इंद्रासन अब भी हिल रहा था।

परंतु इंद्र निराश नहीं हुआ। उसने सोच-विचारकर अपने एक गण को भेजा, जिसका नाम अहंकार था।

तपस्वी के पास अहंकार पहुँचा और उससे संबोधन किया, ‘अहा हा हा! क्या कहना है आपके सौंदर्य का! देह क्या है, जैसे ब्रह्मा ने किसी साँचे में ढाली हो! आपकी तपस्या का विधान सारे विश्व में अनुपम है। इस प्रकार के तप की पहले किसी ने कल्पना ही नहीं की थी। आपके तप-तेज ने वसंत और अप्सराओं को ऐसे पचा लिया, जैसे कोई पानी पी जाता हो। आपकी तपस्या के शौर्य ने विश्व भर में वाह-वाह की झड़ी लगवा दी है। आप सारी मानवजाति के लिए उदाहरण बन गए हैं। कलाकार आपकी आराधना कर रहे हैं और अनंत काल तक करते रहेंगे।’

तपस्वी की आँखें खुलीं। अहंकार उसके भीतर समा गया था। तपस्वी ने सोचा, मुझसे बढ़कर कोई नहीं।

और उसी क्षण तपस्वी लड़खड़ाकर गिर पड़ा। अब वह केवल एक दुर्बल सा मनुष्य रह गया था और इंद्र का आसन निश्चल हो गया।

**समाप्त**

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