गुलाब सिंह सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी | Gulab Singh Subhadra Kumari Chauhan Story

गुलाब सिंह सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी (Gulab Singh Subhadra Kumari Chauhan Ki Kahani Hindi Short Story)

Gulab Singh Subhadra Kumari Chauhan Ki Kahani

Gulab Singh Subhadra Kumari Chauhan Ki Kahani

दिन और तारीख की जरूरत नहीं। जब हम अमर-अनंत की कहानी कहने चले हैं, तब एक दिन और एक ही तारीख पकड़कर क्यों चलें?

उसके घर में पिता था, माँ थी, बहन थी । वह पूरे घर का दुलारा था।

एक दिन की बात है, वह बीमार पड़ा। माँ ने उसका खाना बिलकुल रोक दिया था। पर उसका बार-बार कुछ खाने को मांगना छोटी-सी बहन से न सहा गया । बहन का जी न माना। वह चुपके से गुड़ और चने चुरा लाई, और भैया को खिलाने चली। यह बात और है कि उसके बाद भैया का बुखार चढ़ा। इसके लिए यह मां-बाप का गुस्सा सहने को तैयार थी। पर भाई ने भी वह गुड़-चने की बात किसी को न बताई, और बहन बताती ही क्यों? खैर…किसी तरह रोग बढ़ते-बढ़ते खत्म हो गया। रोग गया और बहन की प्रेम की वह बात सदा के लिए भाई के मन पर छप गई ।

ऐसी एक नहीं अनेक बातें, बहन की, माँ की, पिता की उसके मन पर छपी थीं। वह कभी उनसे लड़ता-झगड़ता भी, पर आँखों के आंसू और मन के रंग उसके अंतस् पर छपी तस्वीरों को न धो सके, न धुंधला सके।

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एक दिन ऐसी हवा बही, कि मुरझाए हुए मनों में भी नई जान आ गई। एक हवा ऐसी होती है, जो मुरझाए हुए पौधों में ताजगी ला देती है, और एक हवा ऐसी होती है, जो मुर्दा मन मनुष्यों में नई उमंग भर देती है। यह उमंगों वाली हवा थी। बड़ा भारी जुलूस निकला, कौमी झंडे का जुलूस था वह। पर बादशाह का हुकुम था कि जुलूस न निकले, झंडा न निकले? शहर में आतंक छा गया। बड़ा जालिम था वह बादशाह !

‘बड़ा आया बादशाह! क्यों न निकले जुलूस? क्यों न निकले झंडा?’ भाई से बहन ने कहा। 

बहन क्या कहती है, उसने सुन लिया। बहन फिर बोली, ‘कौन है यह बादशाह ?’

भैया ने कहा, ‘उँह होगा कोई !’

बहन ने फिर पूछा, ‘क्यों न निकले जुलूस? क्यों न निकले झंडा?’

भाई कटु स्वर में बोला, ‘हमारा देश बादशाह का गुलाम जो है।’

बहन का उत्तर था, ‘तब तो जरूर निकले जुलूस! हम जरूर फहराएंगे अपना झंडा ! देखते हैं कौन रोकता है हमें!’

झंडे की तैयारी होने लगी। बहन ने अपनी पुरानी ओढ़नी फाड़कर झंडा बना लिया। लाल- हरा रंग भी चढ़ गया। भाई ने उसे अपने खेलने के डंडे से बाँध लिया। झंडा तैयार था।अब भाई झंडा लेकर चला। बहन आग्रह से बोली, ‘अरे भाई! जाते कहां हो? हम भी साथ चलेंगे।’

‘पर बहन, बड़ी दूर जाना है। तुम थक जाओगी।’

‘नहीं भैया!’

‘नहीं बहन!’

‘जुलूस कौन बनाएगा? तुम झंडा उठाना, हम जुलूस बनाकर पीछे चलेंगे।’

‘नहीं रानी, तुम जुलूस नहीं…तुम एक काम करो। हमें रोली का तिलक लगाकर विदा करो, जैसे राजकुमारी अपने भाई राजकुमार को विदा करती है।’

बहन ने खुशी की किलकारी के साथ ताली बजाई और दौड़कर, थोड़ी-सी रोली, थोड़े-से चावल सजा लाई। थाली में एक दिया भी जल रहा था। भाई की आरती उतारनी थी। मुंह के चारों तरफ़ घूमती थाली एक आभामंडल बनाने लगी। उसने देवी…देवताओं के चित्रों में भी वैसा ही आभामंडल देखा था। भाई के चारों तरफ़ वैसा ही आभामंडल देखकर वह बहुत खुश हुई।

बहन ने भाई के माथे पर तिलक लगाया, चावल बिखराए। तब भाई ने बहन के पैर छुए और विदा ली। बहन ने भाई के सिर पर हाथ फेरा और बलैयाँ लीं।

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अब वह झंडा लेकर चला।

बहन दरवाजे पर खड़ी देखती रह गई। कहानियों की राजकुमारियां इसी तरह विदा करती थीं और देखती खड़ी रह जाती थीं।

दूर तक भाई के लहराते हुए झंडे को जाते हुए देखती रही वह।

बहुत दूर जाने पर बादशाह के सिपाहियों ने झंडे वाले को रोका। वह न रुका, नहीं रुका और बादशाह के सिपाहियों ने गोली चला दी। वह गिरा। झंडा उसके हाथ में था।

गोलियां चल जाने पर किसकी हिम्मत कि सड़क, पर जाता और घायल को संभालता? पर बहन ने उसको गिरते देख लिया था। न जाने क्यों उसका दिल पहले से ही कुछ धक-धक कर रहा था। वह दौड़ पड़ी, अकेली दौड़ती जा पहुंची, भाई खून से लथपथ पड़ा था। पुकारा-‘भैया!’

भाई के प्राण मानो यह अमृतवाणी सुनकर लौट पड़े। बोला, ‘ तू आई, यह झंडा ले।’

बहन ने झंडा ले लिया। पर भाई चला गया। बहन रोई पर झंडा हाथ में लिए रही। बादशाह के सिपाही मानो गढ़ जीतकर चले गए थे। अब बहुत से लोग आए। अर्थी उठी। सामने भाई की बहन वही झंडा लिए चल रही थी।

बादशाह का हुकुम था कि जुलूस नहीं निकलेगा, कौमी झंडा नहीं निकलेगा, पर जुलूस निकला, झंडा भी निकला।

यह कहानी कहाँ की है? किसकी है? हम क्या बतावें ! यह फ्रांस की राज्य-क्रांति की हो सकती है। यह रूस की राज्य-क्रांति की हो सकती है। यह हिन्दुस्तान की सन् ४२ की क्रांति की भी हो सकती है, क्योंकि यह घटना चिरंतन है, अनंत है। यह जैसे पेरिस में मास्को में, वैसे जबलपुर में हो सकती है।

जबलपुर में? तो क्या उस वीर बालक का नाम गुलाबसिंह हो सकता है?

**समाप्त**

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