देवी लघुकथा मुंशी प्रेमचंद (Devi Laghukatha Munshi Premchand
Devi Laghukatha Munshi Premchand
Table of Contents
रात भीग चुकी थी। मैं बरामदे में खडा था। सामने अमीनुददौला पार्क नींद में डूबा खड़ा था। सिर्फ एक औरत एक तकियादार बेंच पर बैठी हुंई थी। पार्क के बाहर सड़क के किनारे एक फ़कीर खड़ा राहगीरों को दुआएं दे रहा था – “खुदा और रसूल का वास्ता……राम और भगवान का वास्ता….. इस अंधे पर रहम करो।”
सड़क पर मोटरों ओर सवारियों का तांता बंद हो चुका था। इक्के–दुक्के आदमी नजर आ जाते थे। फ़कीर की आवाज जो पहले नक्कारखाने में तूती की आवाज थी, अब खुले मैदान की बुलंद पुकार हो रही थी ! एकाएक वह औरत उठी और इधर उधर चौकन्नी आंखो से देखकर फकीर के हाथ में कुछ रख दिया और फिर बहुत धीमे से कुछ कहकर एक तरफ चली गयी। फ़कीर के हाथ मे कागज का टुकड़ा नजर आया, जिसे वह बार-बार मसल रहा था।
क्या उस औरत ने यह कागज दिया है? यह क्या रहस्य है? उसके जानने के कौतूहल से अधीर होकर मैं नीचे आया और फ़कीर के पास खड़ा हो गया।
मेरी आहट पाते ही फ़कीर ने उस कागज के पुर्जे को दो उंगलियों से दबाकर मुझे दिखाया और पूछा – “बाबा, देखो यह क्या चीज है?”
मैंने देखा, दस रुपये का नोट था। बोला– “दस रुपये का नोट है। कहां पाया?”
फ़कीर ने नोट को अपनी झोली में रखते हुए कहा – “कोई खुदा की बंदी दे गई है।”
मैंने और कुछ ने कहा। उस औरत की तरफ दौड़ा, जो अब अंधेरे में बस एक सपना बनकर रह गयी थी।
वह कई गलियों से होती हुई एक टूटे–फूटे गिरे-पड़े मकान के दरवाजे पर रुकी, ताला खोला और अंदर चली गयी।
रात को कुछ पूछना ठीक न समझकर मैं लौट आया।
रातभर मेरा जी उसी तरफ लगा रहा। एकदम तड़के मैं फिर उस गली में जा पहुंचा। मालूम हुआ, वह एक अनाथ विधवा है।
मैंने दरवाजे पर जाकर पुकारा – “देवी, मैं तुम्हारे दर्शन करने आया हूँ। औरत बाहर निकल आयी। ग़रीबी और बेकसी की जिन्दा तस्वीर! मैंने हिचकते हुए कहा – “रात आपने फकीर को…”
देवी ने बात काटते हुए कहा– “अजी वह क्या बात थी, मुझे वह नोट पड़ा मिल गया था, मेरे किस काम का था।”
मैंने उस देवी के कदमों पर सिर झुका दिया।
(प्रेमचालीसा’ से)