डेढ़ इंच ऊपर निर्मल वर्मा कहानी | Dedh Inch Upar Nirmal Verma Ki Kahani

डेढ़ इंच ऊपर निर्मल वर्मा कहानी (Dedh Inch Upar Nirmal Verma Ki Kahani Short Hindi Story)

Dedh Inch Upar Nirmal Verma Ki Kahani

Dedh Inch Upar Nirmal Verma Ki Kahani

अगर आप चाहें तो इस मेज़ पर आ सकते हैं। जगह काफ़ी है। आखिर एक आदमी को कितनी जगह चाहिए? नहीं … नहीं … मुझे कोई तकलीफ नहीं होगी। बेशक, अगर आप चाहें, तो चुप रह सकते हैं। मैं खुद चुप रहना पसन्द करता हूँ … आदमी बात कर सकता है और चुप रह सकता है, एक ही वक्त में। इसे बहत कम लोग समझते हैं। मैं बरसों से यह करता आ रहा हूँ। बेशक आप नहीं … आप अभी जवान हैं। आपकी उम्र में चुप रहने का मतलब है चुप रहना और बात करने का मतलब है बात करना। दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं। आप छोटे मग से पी रहे हैं? आपको शायद अभी लत नहीं पड़ी। मैं आपको देखते ही पहचान गया था कि आप इस जगह के नहीं हैं। इस घड़ी यहाँ जो लोग आते हैं, उन सबको मैं पहचानता हूँ। उनसे आप कोई बात नहीं कर सकते। उन्होंने पहले से ही बहुत पी रखी होती है। वे यहाँ आते हैं, अपनी आखिरी बिअर के लिए — दूसरे पब बन्द हो जाते हैं और वे कहीं और नहीं जा सकते। वे बहुत जल्दी खत्म हो जाते हैं। मेज़ पर। बाहर सड़क पर। ट्राम में।

कई बार मुझे उन्हें उठाकर उनके घर पहुँचाना पड़ता है। बेशक, अगले दिन वे मुझे पहचानते भी नहीं। आप गलत न समझें। मेरा इशारा आपकी तरफ नहीं था। आपको मैंने यहाँ पहली बार देखा है। आप आकर चुपचाप मेज़ पर बैठ गए। मुझे यह बुरा-सा लगा। नहीं, आप घबराइए नहीं … मैं अपने को आप पर थोपूँगा नहीं। हम एक-दूसरे के साथ बैठकर भी अपनी- अपनी बिअर पर अकेले रह सकते हैं। मेरी उम्र में यह ज़रा मुश्किल है, क्योंकि हर बूढ़ा आदमी थोड़ा-बहुत डरा हुआ होता है … धीरे-धीरे गरिमा के साथ बूढ़ा होना बहुत बड़ा ‘ ग्रेस है, हर आदमी के बस का नहीं। वह अपने-आप नहीं आता, बूढ़ा होना एक कला है, जिसे काफी मेहनत से सीखना पड़ता है। क्या कहा आपने? मेरी उम्र? ज़रा अन्दाज़ा तो लगाइए? अरे नहीं साहब आप मुझे नाहक खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। यों आपने मुझे खुश ज़रूर कर दिया है और अगर अपनी इस खुशी को मनाने के लिए मैं एक बिअर और लूँ, तो आपको कोई एतराज़ तो नहीं होगा? और आप? आप नहीं लेंगे? नहीं … मैं ज़िद नहीं करूंगा।

रात के तीन बजे … यह भयानक घड़ी है। मैं तो आपको अनुभव से कहता हूँ। दो बजे लगता है, अभी रात है और चार बजे सुबह होने लगती है, लेकिन तीन बजे आपको लगता है कि आप न इधर हैं, न उधर। मुझे हमेशा लगता है कि मृत्यु आने की कोई घड़ी है, तो यही घड़ी है।

हर आदमी को अपनी ज़िन्दगी और अपनी शराब चुनने की आज़ादी होनी चाहिए … दोनों को सिर्फ एक बार चुना जा सकता है। बाद में हम सिर्फ उसे दुहराते रहते हैं, जो एक बार पी चुके हैं, या एक बार जी चुके हैं। आप दूसरी ज़िन्दगी को मानते हैं? मेरा मतलब है, मौत के बाद भी? उम्मीद है, आप मुझे यह घिसा-पिटा जवाब नहीं देंगे कि आप किसी धर्म में विश्वास नहीं करते। मैं खुद कैथोलिक हूँ, लेकिन मुझे आप लोगों का यह विश्वास बेहद दिलचस्प लगता है कि मौत के बाद भी आदमी पूरी तरह से मर नहीं जाता … हम पहले एक ज़िन्दगी पूरी करते हैं, फिर दूसरी, फिर तीसरी। अक्सर रात के समय मैं इस समस्या के बारे में सोचता हूँ … आप जानते हैं, मेरी उम्र में नींद आसानी से नहीं आती। नींद के लिए छटाँक-भर लापरवाही चाहिए, आधा छटाँक थकान : अगर आपके पास दोनों चीजें नहीं हैं, तो आप उसका मुआवज़ा डेढ़ छटाँक बिअर पीकर कर सकते हैं … इसलिए मैं हर रोज़ आधी रात के वक्त यहाँ चला आता हूँ, पिछले पन्द्रह वर्षों से लगातार।

मैं थोड़ा-बहुत सोता ज़रूर हूँ लेकिन तीन बजे के आस-पास मेरी नींद टूट जाती है … उसके बाद मैं घर में अकेला नहीं रह सकता। रात के तीन बजे … यह भयानक घड़ी है। मैं तो आपको अनुभव से कहता हूँ। दो बजे लगता है, अभी रात है और चार बजे सुबह होने लगती है, लेकिन तीन बजे आपको लगता है कि आप न इधर हैं, न उधर। मुझे हमेशा लगता है कि मृत्यु आने की कोई घड़ी है, तो यही घड़ी है। क्या कहा आपने? नहीं जनाब, मैं बिल्कुल अकेला नहीं रहता। आप जानते हैं, पेंशनयाफ्ता लोगों के अपने शौक होते हैं। मेरे पास एक बिल्ली है बरसों से मेरे पास रह रही है। जब ज़रा देखिए, मैं यहाँ बिअर पीते हुए आपसे लम्बी-चौड़ी बातें कर रहा हूँ उधर वह मेरे इन्तज़ार में दरवाज़े पर बैठी होगी। आपके बारे में मुझे मालूम नहीं, लेकिन मुझे यह ख्याल काफी तसल्ली देता है कि कोई मेरे इन्तज़ार में बाहर सड़क पर आँखें लगाए बैठा है।

मैं ऐसे लोगों की कल्पना नहीं कर सकता, जिनका इन्तज़ार कोई नहीं कर रहा हो या जो खुद किसी का इन्तज़ार नहीं कर रहे हों। जिस क्षण आप इन्तज़ार करना छोड़ देते हैं, उस क्षण आप जीना भी छोड़ देते हैं। बिल्लियाँ काफी देर तक और बहुत सब्र के साथ इन्तज़ार कर सकती हैं। इस लिहाज़ से वे औरतों की तरह हैं। लेकिन सिर्फ इस लिहाज़ से नहीं औरतों की ही तरह उनमें अपनी तरफ खींचने और आकर्षित करने की असाधारण ताकत रहती है। डर और मोह दोनों ही हम अकेले में उन्हें देखकर बंधे-लुटे-से खड़े रहते हैं। यों डर आपको कुतों या दूसरे जानवरों से भी लगता होगा। लेकिन वह निचले दर्जे का डर है। आप एक ओर किनारा करके चले जाते हैं, कुत्ता दूसरी ओर किनारा करके चला जाता है। उसे डर लगा रहता है कि कहीं आप उस पर बेईमानी न कर बैठे, और आप इसलिए सहमे-से रहते हैं कि कहीं वह आँख बचाकर आप पर न झपट पड़े। लेकिन उस डर में कोई रहस्य, कोई रोमांच, कोई सम्भावना नहीं है … जैसी अक्सर बिल्ली या साँप को देखने से उत्पन्न होती है।

सच बात यह है … और यह मैं अनुभव से कह रहा हूँ कि बिल्ली को औरतों की तरह आप आखिर तक सही-सही नहीं पहचान सकते, चाहे आप उसके साथ वर्षों से ही क्यों न रह रहे हों। इसलिए नहीं कि वे खुद जान-बूझकर कोई चीज़ छिपाए रखती हैं, बल्कि खुद आप में ही इतना हौसला नहीं रहता कि आप आखिर तक उनके भीतर लगे दरवाज़ों को खोल सकें। आपको यह बात ज़रा अजीब नहीं लगती कि ज़्यादातर हमें वहीं चीजें अपनी तरफ खींचती हैं, जिनमें थोड़ा-सा आतंक छिपा रहता है … अगर आप बुरा न मानें तो मैं एक और बिअर लूँगा। कुछ देर में यह पब बन्द हो जाएगी और फिर सारे शहर में सुबह तक एक बूंद भी दिखाई नहीं देगी। आप डरिए नहीं … मैं पीने की अपनी सीमा जानता हूँ … आदमी को ज़मीन से करीब डेढ़ इंच ऊपर उठ जाना चाहिए। इससे ज़्यादा नहीं, वरना वह ऊपर उठता जाएगा और फिर इस उड़ान का अन्त होगा पुलिस-स्टेशन में या किसी नाली में … जो ज़्यादा दिलचस्प चीज़ नहीं। लेकिन कुछ लोग डर के मारे ज़मीन पर ही पाँव जमाए रहते हैं … ऐसे लोगों के लिए पीना-न-पीना बराबर है। जी हाँ सही फासला है डेढ़ इंच।

इतनी चेतना अवश्य रहनी चाहिए कि आप अपनी चेतना को माचिस की तीली की तरह बुझते हुए देख सकें … जब लौ अँगुलियों के पास सरक आए तो उसे छोड़ देना चाहिए। उससे पहले नहीं। न बाद में ही। कब तक पकड़े रहना और कब छोड़ना चाहिए, पीने का रहस्य इस पहचान में छिपा है। मुश्किल यह है, हम उस समय तक नहीं पहचान पाते, जब तक डेढ़ इंच से ऊपर नहीं उठ जाते … और फिर वह किसी काम नहीं। शायद यह बात सुनकर आप हँसेंगे कि पहचान तभी आती है, जब हम पहचान के परे चले जाते हैं। मुझे बुरा नहीं लगेगा अगर आप हँसकर मेरी बात को टाल दें … मैं खुद कभी-कभी कोशिश करता हूँ कि इस आशा के साथ रहना सीख लूँ कि कई चीज़ों को न जानना ही अपने को सुरक्षित रखने का रास्ता है। आप रफ्ता-रफ्ता इस आशा के साथ रहना सीख लेते हैं … जैसे आप अपनी पत्नी के साथ रहना सीख लेते हैं। एक ही घर में बरसों तक … हालाँकि एक संशय बना रहता है कि वह भी आपका खेल खेल रही है।

कभी-कभी आप इस संशय से छुटकारा पाने के लिए दूसरी या तीसरी स्त्री से प्रेम करने लगते हैं। यह निराश होने की शुरुआत है क्योंकि दूसरी स्त्री का अपना रहस्य है और तीसरी स्त्री का अपना। यह शतरंज के खेल की तरह है … आप एक चाल चलते हैं जिससे आपके विरोधी के सामने अन्तहीन सम्भावनाएँ खुल जाती हैं। एक खेल हारने के बाद आप दूसरे खेल में जीतने की आशा करने लगते हैं। आप यह भूल जाते हैं कि दूसरी बाज़ी की अपनी सम्भावनाएँ हैं, पहली बाज़ी की तरह अन्तहीन और रहस्यपूर्ण। देखिए … इसीलिए मैं कहता हूँ कि आप ज़िन्दगी में चाहे कितनी औरतों के सम्पर्क में आएँ, असल में आपका सम्पर्क सिर्फ एक औरत से ही होता है … क्या कहा आपने?

जी नहीं, मैं आपको पहले ही कह चुका है, कि घर में मैं अकेला रहता है, अगर आप मेरी बिल्ली को छोड़ दें। जी हॉ … मैं विवाहित हैं … मेरी पत्नी अब जीवित नहीं है … यह मेरा अनुमान है। आप कुछ हैरान-से हो रहे हैं। अनुमान मैं इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि मैंने उसे मरते हुए नहीं देखा। जब आपने किसी को आँखों से मरते नहीं देखा, अपने हाथों से दफनाया नहीं, तो आप सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं कि वह जीवित नहीं। आपको शायद हँसी आएगी, लेकिन मुझे लगता है कि जब तक आप खुद अपने परिचित की मरते न देख लें, एक धुंधली-सी आशा बनी रहती है कि वह अभी जीवित है … आप दरवाज़ा खोलेंगे और वह रसोई से भागकर तौलिए से हाथ पोंछती हुई आपके सामने आ खड़ी होगी। बेशक, यह भ्रम है। ऐसा होता नहीं। उसके बजाय अब बिल्ली आती है, जो दरवाज़े के पीछे देहरी पर सिर टिकाए अपनी आँखों का रंग बदलती रहती है। मैंने लोगों से कहते सुना है कि समय बहुत-कुछ सोख लेता है … क्या आप भी ऐसा सोचते हैं? मुझे मालूम नहीं … लेकिन मुझे कभी-कभी लगता है कि वह सोखता उतना नहीं, जितना बुहार देता है — अँधेरे कोनों में, या कालीन के नीचे, ताकि बाहर से किसी को दिखाई न दे। लेकिन उसके पंजे हमेशा बाहर रहते हैं, किसी भी अजानी घड़ी में वे आपको दबोच सकते हैं। शायद मैं भटक रहा हूँ … बिअर पीने का यह एक सुख है।

आप रास्ते से भटक जाते हैं और चक्कर लगाते रहते हैं … एक ही दायरे के इर्द-गिर्द राउण्ड एण्ड राउण्ड। आप बच्चों का वह खेल जानते हैं जब वे एक दायरा बनाकर बैठ जाते हैं और सिर्फ एक बच्चा रूमाल लेकर चारों तरफ चक्कर काटता है। आपके देश में भी खेला जाता है? वाह … देखिए न … हम चाहे कितने ही अलग क्यों न हों, बच्चों के खेल हर जगह एक जैसे ही रहते हैं। उन दिनों हम सबकी कुछ वैसी ही हालत थी … क्योंकि हममें से कोई भी नहीं जानता था कि वे कब अचानक किसके पीछे अपना फन्दा छोड़ जाएँगे। हममें से हर आदमी एक भयभीत बच्चे की तरह बार-बार पीछे मुड़कर देख लेता था कि कहीं उसके पीछे तो नहीं है … जी हाँ, इन्हीं दिनों यहाँ जर्मन आए थे। आप तो उस दिनों बहुत छोटे रहे होंगे। मेरी उम्र भी बहुत ज़्यादा नहीं थी और हालाँकि लड़ाई के कारण सुबह से शाम तक काम में जुटना पड़ता था, मैं एक जवान बैल की तरह डटा रहता था।

एक उम्र होती है, जब हर आदमी एक औसत सुख के दायरे में रहना सीख लेता है … उसके परे देखने की फुरसत उसके पास नहीं होती, यानी उस क्षण तक महसूस नहीं होती जब तक खुद उसके दायरे में … आपने अक्सर देखा होगा कि जिसे हम सुख कहते हैं वह एक खास लमहे की चीज़ है — यों अपने में बहुत ठोस है, लेकिन उस लमहे के गुज़र जाने के बाद वह बहुत फीका और कुछ-कुछ हैंगओवर-सा धुंधला लगता है। किन्तु जिसे हम दु:ख या तकलीफ या यातना कहते हैं, उसका कोई खास मौका नहीं होता … मेरा मतलब है वह हूबहू दुर्घटना के वक्त महसूस नहीं होती। ऐन दुर्घटना के वक्त हम बदहवास-से हो जाते हैं, हम उससे पैदा होने वाली यातना के लिए कोई बना-बनाया फ्रेम नहीं ढूँढ़ पाते जिसमें हम उसे सही-सही फिट कर सकें। किसी दुर्घटना का होना एक बात है, उसका सही-सही परिणाम अपनी पूरी ज़िन्दगी में भोगना या भोग पाने के काबिल हो सकना — बिल्कुल दूसरी बात। यह असम्भव है … ऐसा होता नहीं। मेरा मतलब है … अपने को बार-बार दूसरे की स्थिति में रखकर उतने ही कष्ट की कल्पना करना, जितना दूसरे ने भोगा था। वह कुछ कम होगा, या कुछ ज़्यादा … लेकिन उतना नहीं और वैसा नहीं, जितना दूसरे ने भोगा था। नहीं … नहीं … आप गलत न समझें। मैंने अपनी पत्नी को कष्ट भोगते नहीं देखा।

मैं जब घर पहुँचा, वे उसे ले जा चुके थे। सात बरस की विवाहित ज़िन्दगी में यह पहला मौका था जब मैं खाली घर में घुसा था। बिल्ली? नहीं, उन दिनों वह मेरे पास नहीं थी। मैंने उसे काफी वर्षों बाद पालना शुरू किया था। दूसरे घरों के पड़ोसी ज़रूर अपनी अपनी खिड़कियों से झाँकते हुए मुझे देख रहे थे। यह स्वाभाविक भी था। मैं खुद ऐसे लोगों को खिड़की से झाँककर देखा करता था, जिनके रिश्तेदारों को गेस्टापो-पुलिस पकड़कर बन्द गाड़ी में ले जाती थी। लेकिन मैंने यह कभी कल्पना भी न की थी कि एक दिन मैं घर लौटूंगा और मेरी पत्नी का कमरा खाली पड़ा होगा। देखिए … मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ क्या यह अजीब बात नहीं है कि जब हम कभी मौत, यातना या दुर्घटना की बात सुनते हैं या सुबह अखबार में पढ़ते हैं, तो हमें यह विचार कभी नहीं आता कि ये चीजें हम पर हो सकती हैं या हो सकती थीं … नहीं, हमें हमेशा लगता है कि ये दूसरों के लिए हैं … अहा … मुझे खुशी है कि आप एक बिअर ले रहे हैं। आखिर आप खाली गिलास के सामने सारी रात नहीं बैठ सकते … क्या कहा आपने? मैं जानता था, आप यह सवाल ज़रूर पूछेगे। अगर आप न पूछते तो कुछ आश्चर्य होता।

नहीं, जनाब … शुरू में मैं खुद कुछ नहीं समझ सका। मैंने आपसे कहा था न, कि ऐसी दुर्घटना के वक्त आदमी बदहवास-सा हो जाता है। वह ठीक-ठीक अपनी यातना का अनुमान भी नहीं लगा सकता। मेरी पत्नी की चीजें चारों तरफ बिखरी पड़ी थीं … कपड़े, किताबें, मुद्दत पुराने अखबार। अलमारियों और मेज़ों के दराज़ खुले पड़े थे और उनके भीतर की हर छोटी-बड़ी चीज़ फर्श पर उलटी-सीधी पड़ी थी। क्रिसमस के उपहार, सिलाई की मशीन, पुराने फोटो-एल्बम, आप जानते हैं, शादी के बाद कितनी चीजें खुद-ब-खुद इकट्ठा होती जाती हैं। लगता था, उन्होंने हर छोटी-से-छोटी चीज़ को उलट-पलटकर देखा था, कोने-कोने की तलाशी ली थी … कोई चीज़ ऐसी नहीं थी, जो उनके हाथों से बची रह गई हो। उस रात मैं अपने कमरे में बैठा रहा। मेरी पत्नी का बिस्तर खाली पड़ा था। तकिए के नीचे उसका रूमाल, माचिस और सिगरेट का पैकेट रखा था। सोने से पहले वह हमेशा सिगरेट पिया करती थी। शुरू में मुझे उसकी यह आदत अखरती थी, लेकिन धीरे-धीरे मैं उसका आदी हो गया था।

पलंग के पास तिपाई पर उसकी किताब रखी थी, जिसे वह उन दिनों पढ़ा करती थी … जिस पन्ने को उसने पिछली रात पढ़कर छोड़ दिया था, वहाँ निशानी के लिए उसने अपना क्लिप दबा लिया था। क्लिप पर उसके बालों की गन्ध जड़ी थी … आप जानते हैं, किस तरह बरसों बाद भी हमें छोटी-छोटी तफ़सीलें याद रह जाती हैं। यह शायद ठीक भी है। विवाह से पहले हम हमेशा बड़ी और अनुभूतिपूर्ण चीज़ों के बारे में सोचते हैं, लेकिन विवाह के बाद अरसा साथ रहने के कारण ये बड़ी चीजें हाथ से फिसल जाती हैं, सिर्फ कुछ छोटी-मोटी आदतें, ऊपर से सतही दिखने वाली दिनचर्याएं, रोज़मर्रा के आपसी भेद बचे रह जाते हैं जिन्हें हम शर्म के कारण दूसरों से कभी नहीं कहते, किन्तु जिनके बिना हर चीज़ सूनी-सी जान पड़ती है। उस रात मैं अकेले कमरे में अपनी पत्नी की चीज़ों के बीच बैठा रहा … उस घड़ी शायद मैं अपने में नहीं था। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह अपने कमरे में नहीं थी … यह महज़ एक हकीकत थी। मैं उसे समझ सकता था। किन्तु वे उसे पकड़कर क्यों ले गए थे, यह भयानक भेद मेरी पकड़ के बाहर था।

आखिर मेरी पत्नी ही क्यों? मैं उस रात बार-बार अपने से यह प्रश्न पूछता रहा। आपको तनिक आश्चर्य होगा कि सात वर्षों की वैवाहिक ज़िन्दगी में पहली बार मुझे अपनी पत्नी पर सन्देह हुआ था … मानो उसने कोई चीज़ मुझसे छिपाकर रखी हो, कोई ऐसी चीज़ जिसका मुझसे कोई सरोकार नहीं था। बाद में मुझे पता चला कि गेस्टापो-पुलिस बहुत दिनों से उसकी ताक में थी। उसके पास कुछ गैर-कानूनी पैम्फ्लेट और पर्चियाँ पाई गई थीं जो उन दिनों अज्ञात रूप से लोगों में बाँटी जाती थीं, जर्मन अधिकारियों की आँखों में यह सबसे संगीन अपराध था। पुलिस ने ये सब चीजें खुद मेरी पत्नी के कमरे से बरामद की थीं … और आपको शायद यह बात काफ़ी दिलचस्प जान पड़ेगी कि खुद मुझे उनके बारे में कुछ मालूम नहीं था। उस रात से पहले तक मैं और वह एक ही कमरे में सोते थे, प्रेम करते थे … और इसी कमरे में कुछ ऐसी चीजें थीं जो उसका रहस्य थीं, जिसमें मेरा कोई साझा नहीं था। क्या आपको यह बात दिलचस्प नहीं लगती कि वे मेरी पत्नी को मुझसे कहीं अधिक अच्छी तरह जानते थे? ज़रा ठहरिए … मैं अपना गिलास खत्म कर लेता हूँ, मैं फिर आपका साथ दूंगा। कुछ देर बाद वे बन्द कर देंगे और फिर नहीं, इतनी जल्दी नहीं है। पीने का लुत्फ इत्मीनान से पीने में है। हमारी भाषा में एक कहावत है … हमें जी भरकर पीना चाहिए, क्योंकि सौ बरस बाद हम इस दुनिया में नहीं होंगे। सौ बरस … यह काफी लम्बा अरसा है, आप नहीं सोचते? हममें से कोई भी इतने अरसे तक ज़िन्दा रह सकेगा, मुझे शक है। आदमी जीता है … खाता है … पीता है और एक दिन अचानक फट ! नहीं जनाब, भयानक चीज़ मरना नहीं है। लाखों लोग रोज़ मरते हैं और आप चूं भी नहीं करते।

भयानक चीज़ यह है कि मृत आदमी अपना भेद हमेशा के लिए अपने साथ ले जाता है और हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। एक तरह से वह हमसे मुक्त हो जाता है। उस रात मैं अपने घर के एक कमरे से दूसरे कमरे में चक्कर लगाता रहा … आपको शायद हँसी आएगी कि पुलिस के बाद मैं दूसरा आदमी था जिसने अपनी पत्नी की चीज़ों की दुबारा तलाशी ली थी … एक-एक चीज़ को उलट- पलटकर पूरी गहराई से उन्हें देखा-परखा था। मुसे विश्वास नहीं हो रहा था कि अपने पीछे वह मेरे लिए एक भी ऐसा निशान नहीं छोड़ जाएगी, जिसके सहारे मैं कोई ऐसी चीज़ पा सकू जिसमें मेरा भी साझा रहा था। उसके विवाह की पोशाक, ड्रेसिंग-टेबुल के दराज़ में रखे कुछ पत्र, जो विवाह से पहले मैंने उसे लिखे थे, कुछ पंख और पत्थर, जिन्हें वह जमा किया करती थी .. ज़रा देखिए, सात वर्ष की विवाहित ज़िन्दगी के बाद मैं उस रात अपनी पत्नी की चीज़ों को कुछ इस तरह टटोल रहा था जैसे मैं उसका पति न होकर भेदिया, पुलिस का कोई पेशेवर नौकर हूँ … मुझे रह-रहकर विश्वास नहीं हो पा रहा था कि अब मैं उससे कुछ नहीं पूछ सकूँगा। वह उनके हाथों से बच नहीं सकेगी, यह मैं जानता था।

वे जिन लोगों को पकड़कर ले जाते थे, उनमें से मैंने एक को भी वापस लौटते नहीं देखा था। लेकिन उस रात मुझे इस चीज़ ने इतना भयभीत नहीं किया कि मृत्यु उसके बहुत नज़दीक है, जितना इस चीज़ ने कि मैं कभी उसके बारे में पूरा सत्य नहीं जान सकूँगा। मृत्यु हमेशा के लिए उसके भेद पर ताला लगा देगी और वह अपने पीछे एक भी ऐसा सुराग नहीं छोड़ जाएगी जिसकी मदद से मैं उस ताले को खोल सकूँगा। दूसरे दिन रात के समय उन्होंने मेरा दरवाज़ा खटखटाया। मैं तैयार होकर उनकी प्रतीक्षा में बैठा था। मुझे मालूम था, वे आएंगे। अगर मेरी पत्नी उनके सामने सब कुछ कबूल कर लेती, तो शायद उन्हें मेरी ज़रूरत न पड़ती। किन्तु मुझे मालूम था कि मेरी पत्नी अपने मुँह से एक भी शब्द नहीं निकालेगी। मैं उसके रहस्य से अपरिचित रहा है, उसकी आदतों से अच्छी तरह वाकिफ़ था। वह चुप रहना जानती थी … चाहे यातना कितनी ही भयंकर क्यों न हो। नहीं जनाब, मैंने अपनी आँखों से उसकी यातना को नहीं देखा, किन्तु मैं थोड़ा-बहुत अनुमान लगा सकता हूँ।

पहला प्रश्न उन्होंने मुझसे जो पूछा, वह बिल्कुल साफ था — क्या मैं श्रीमती … का पति हूँ? मैं सिर्फ उनके इस प्रश्न का उत्तर हाँ, में दे सका। बाकी प्रश्न मेरी समझ के बाहर थे। किन्तु वे मुझे आसानी से छोड़ने वाले नहीं थे। उन्होंने मेरी इस बात को हँसी में उड़ा दिया। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं अपनी पत्नी की इन कार्यवाहियों के बारे में कुछ भी नहीं जानता, उन्होंने सोचा, मैं अपनी खाल बचाने के लिए कन्नी काट रहा हूँ। वे मुझे एक अलग सेल में ले गए। पूरे हफ्ते-भर दिन-रात वे मुझे सिर्फ एक ही तरह के सवाल अलग-अलग ढंग से पूछते थे … मैं अपनी पत्नी के बारे में क्या कुछ जानता हूँ? वह कहाँ जाती थी? किन लोगों से मिलती थी? किस आदमी ने उसे लीफलेट दिए थे। मुझसे किसी तरह का भी उत्तर खींचने के लिए वे जो तरीके अपनाते थे, उनके बारे में मैं आपको कुछ भी नहीं बता सकता। मैं चाहे कितनी तफ़सील के साथ आपको क्यों न बताऊँ, आप उसका रत्ती भर भी अनुमान नहीं लगा सकेंगे … वे मुझे उस समय तक पीटते थे, जब तक मैं चेतना नहीं खो देता था। किन्तु उनमें असीम धैर्य था … वे उस समय तक प्रतीक्षा करते थे जब तक मेरी चेतना वापस नहीं लौट आती थी और फिर वही सिलसिला शुरू हो जाता था। वही पुराने सवाल और अन्तहीन यातना।

उन्हें मुझपर विश्वास नहीं होता था कि मैं जो अपनी पत्नी के साथ अनेक वर्षों तक एक ही घर में रहा हूँ — उसकी गुप्त कार्यवाहियों के बारे में कुछ नहीं जानता। वे समझते थे कि मैं उन्हें बेवकूफ बना रहा हूँ, उनकी आँखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहा हूँ। नहीं जनाब, वे मुझे पीटते थे, मुझे इसकी यातना नहीं थी, मेरी यातना यह थी कि उनके प्रश्नों का जवाब देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं था। कहने के लिए मेरे पास कुछ अतिसाधारण घरेलू बातें थीं, जो शायद हर स्त्री अपने पति के साथ करती है। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था कि रोज़मर्रा दैनिक ज़िन्दगी के साथ-साथ वह एक दूसरी ज़िन्दगी जी रही थी … मुझसे अलग, मुझसे बाहर, मुझसे अछूती — एक ऐसी ज़िन्दगी जिसका मुझसे कोई वास्ता नहीं था। आपको यह बात कुछ हास्यास्पद-सी नहीं लगती कि … अगर वे उसे न पकड़ते, तो मैं ज़िन्दगी-भर यह समझता कि मेरी पत्नी वही है, जिसे मैं जानता हूँ।

आप जानते हैं, वे लड़ाई के अन्तिम दिन थे और गेस्टापो अपने शिकार को जल्दी हाथ से नहीं जाने देते थे … मेरी पत्नी ने आखिर तक कुछ भी कबूल नहीं किया। उन्होंने उससे उम्मीद छोड़ दी थी। लेकिन मुझे वे कच्चा समझते थे। वे शायद मुझे मारना नहीं चाहते थे, लेकिन मृत्यु से कम आदमी को जितना अधिक कष्ट दिया जा सकता था, उसमें उन्होंने कोई कसर नहीं उठा रखी थी। मुझे वे उसी समय छोड़ते थे, जब वे खुद थक जाते थे, या जब मैं बेहोश हो जाता था। मैंने कुछ भी कबूल नहीं किया — यह मेरा साहस नहीं था — सच बात यही थी कि मेरे पास कबूल करने के लिए कुछ भी नहीं था। आप जानते हैं, पहली रात जब मैंने अपनी पत्नी को कमरे में नहीं पाया था, तो मुझे काफी खेद हुआ था। मुझे लगा था कि उसने मुझे अँधेरे में रखकर छलना की है। बार-बार यह ख्याल मुझे कोंचता था कि स्वयं मेरी पत्नी ने मुझे अपना विश्वासपात्र बनाना उचित नहीं समझा। लेकिन बाद में गेस्टापो के सामने पीड़ा और कष्ट के असह्य क्षणों से गुज़रते हुए — मैं उसके प्रति कृतज्ञ-सा हो जाता था कि उसने मुझसे कुछ नहीं कहा। उसने एक तरह से मुझे बचा लिया था।

मैं आज भी इस बात का निर्णय नहीं कर सका हूँ कि अगर मुझे अपनी पत्नी का भेद मालूम होता तो क्या मैं चुप रहने का हौसला बटोर सकता था? ज़रा सोचिए, मेरी यन्त्रणा कितनी अधिक बढ़ जाती अगर मेरे सामने कबूल करने का रास्ता खुला होता ! आप मज़बूरी में बड़ी-से-बड़ी यातना सह सकते हैं, लेकिन अगर आपको मालूम हो कि आप किसी भी क्षण उस यातना से छुटकारा पा सकते हैं, चाहे उसके लिए आपकी अपनी पत्नी, अपने पिता, अपने भाई के साथ ही विश्वासघात क्यों न करना पड़े … तब आप यातना की एक सीमा के बाद वह रास्ता नहीं चुन लेंगे, इसके बारे में कुछ भी कहना असम्भव है। चुनने की खुली छूट से बड़ी पीड़ा कोई दूसरी नहीं। मुझे कभी-कभी लगता है कि निर्णय की इस यातना से मुझे बचाने के लिए ही मेरी पत्नी ने अपना रहस्य कभी मुझे नहीं बताया। देखिए … अक्सर कहा जाता है कि प्रेम में किसी तरह का दुराव-छिपाव नहीं होता, वह आईने की तरह साफ होता है।

मैं सोचता हूँ इससे बढ़कर भ्रान्ति कोई दूसरी नहीं। प्रेम करने का अर्थ अपने को खोलना ही नहीं है, बहुत-कुछ अपने को छिपाना भी है ताकि दूसरे को हम अपने निजी खतरों से मुक्त रख सकें … हर स्त्री इस बात को समझती है और चूंकि वह पुरुष से कहीं अधिक प्रेम करने की क्षमता रखती है, उसमें अपने को छिपाने का भी साहस होता है। आप ऐसा नहीं सोचते? सम्भव है, मैं गलत हूँ … लेकिन जब रात को मुझे नींद नहीं आती तो अक्सर मुझे यह सोचकर हल्की-सी तसल्ली मिलती है कि … छोड़िए, मैं समझा नहीं सकता। जब मैंने आपको अपनी मेज़ पर बुलाया था तो इस आशा से नहीं कि मैं आपको कुछ समझा सकूँगा। क्या कहा आपने? नहीं जनाब … उसके बाद मैंने अपनी पत्नी को दुबारा नहीं देखा। एक दुपहर जब मैं घर लौट रहा था, मेरी निगाहें उस पोस्टर पर जा पड़ी थीं।

उन दिनों अक्सर वे पोस्टर तीसरे-चौथे दिन शहर की दीवारों पर चिपका दिए जाते थे … हर पोस्टर पर तीस-चालीस नाम होते थे जिन्हें पिछली रात गोली से मार दिया गया था … जब मेरी निगाह अपनी पत्नी के नाम पर पड़ी तो मझे कुछ क्षणों तक यह काफी विचित्र-सा लगता रहा कि उस छोटे-से नाम के पीछे मेरी पत्नी का चेहरा हो सकता है … मैंने आपसे कहा न, कि जब तक आप अपनी आँखों से किसी को मरते न देख लें, आपको विश्वास नहीं होता कि वह जीवित नहीं है … एक धुंधली- सी आशा बनी रहती है कि आप दरवाज़ा खोलेंगे … लेकिन देखिए, मैं अपनी बातें दुहराने लगा हूँ। बिअर पीने का यह सुख है कि आप एक ही दायरे के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते रहते हैं … राउण्ड एण्ड राउण्ड एण्ड राउण्ड। आप जा रहे हैं? ज़रा ठहरिए … मैं सलामी के कुछ टुकड़े अपनी बिल्ली के लिए खरीद लेता हूँ … बेचारी इस समय तक भूखी-प्यासी मेरे इन्तज़ार में बैठी होगी। नहीं … नहीं … आपको मेरे साथ आने की ज़रूरत नहीं है। मेरा घर ज़्यादा दूर नहीं है और मैं पीने की अपनी सीमा जानता हूँ। मैंने आपसे कहा था न … सिर्फ डेढ़ इंच ऊपर।

**समाप्त** 

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