चैप्टर 9 रूठी रानी मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास

Chapter 9 Ruthi Rani Novel By Munshi Premchand

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राव जी का देहांत

सवंत् १६०२ में शेरशाह इस दुनिया से सिधारा। उसने सल्तनत का बंदोबस्त बड़ी धूमधाम से किया था और उसकी न्यायप्रियता हिन्दोस्तान के इतिहास में हमेशा याद ही की जाएगी। राजा टोडरमल इसी बादशाह के दरबार में पहले नौकर था और लगान के वह कानून जो अकबर के नाम से जुड़े हुए है, इसी बादशाह की तदबीर के नतीजे हैं।

शेरशाह की मौत की खबर फैलते ही राव जी के राजपूत इधर-उधर से खवास खां पर हमला करने लगे। वह भी कुछ दिनों तक उनका बड़ी जवांमर्दी से सामना करता रहा। आखिरकार जोधपुर के बाजार में मारा गया। रूठी रानी की हिदायत से उसने जोधपुर वालों के साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया था। इसलिए वह लोग उसकी लाश को बड़ी इज्जत से खवासपुर ले गए। वहां उसका मकबरा बनवाया, उसके नाम का गांव बसाया, बाग लगवाया, एक और यादगारी कब्र जोधपुर में बनवाई। दोनों जगह उसकी कब्र पर मन्नते चढ़ने लगी। हिन्दू-मुसलमान दोनों आज तक वहां चढ़ावे चढ़ाते हैं और उसका नाम इज्जत से लेते हैं। यह सब उसकी नेकी का फल है जो बहुत कम बादशाहों को मयस्सर हुआ है।

राव जी भी सेवाने से रास्ते के अफगानी थानों को उठाते हुए लड़ते-भिड़ते जोधपुर पहुंच गए और फिर से जोधपुर में राठौरों का राज हुआ। इसके साथ ही खानगी झगड़े भी शुरू हुए जिनका कारण झाली रानी सरूपदेई थी।

राव जी का बड़ा बेटा कुमार राम रानी लाछलदेई कछवाही से पैदा हुआ था। वह ज्यादातर रूठी रानी के पास रहा करता था। उससे छोटा रायमल झाली रानी हीरादेई से था और उदयसेन और चन्द्रसेन रानी सरूपदेई से थे। हीरादेई और सरूपदेई दोनों चचेरी बहनें थीं। वे अपने-अपने बेटों के फायदे के ख्याल से राव जी को कुमार राम की तरफ से झूठी-सच्ची बातें बना-बनाकर विमुख किया करती थीं। राम भी राव जी को अपनी तरफ से खिंचा देखकर खिंचा रहता था और राजदरबारी राव जी के सनकी स्वभाव और कमजोरी को देखकर राम को भड़काते रहते थे।

मारवाड़ में अमीर घराने में मर्दों के लिए दाढ़ी तरशवाने और औरतों के लिए हाथीं दांत का चूड़ा पहनने के दो बड़ी खुशी के मौके होते हैं। इन अवसरों पर खूब महफिलें जमती हैं, खूब दावतें खिलाई जाती हैं। संवत् १६०४ में राम सोलह बरस का हो गया। उसके थोड़ी-थोड़ी दाढी-मूंछ भी निकल आयी। दाढ़ी जब तक ठुड्डी का हो गया। उसके थोड़ी-थोड़ी दाढ़ी-मूंछ भी निकल आयी। दाढ़ी जब तक ठु़ड्टी के ऊपर बीच में से नहीं तराशी जाती उस वक्त तक हिन्दू-मुसलमानों में कोई फर्क नहीं रहता कि जैसे हिन्दू और मुसलमान में दाढ़ी की पहचान है। रानी लाछलदेई ने अपने बेटे कुमार राम की दाढ़ी छंटवाने का सामान करके राव जी से इस रस्म को अदा करने और जश्न मनाने की इजाजत मांगी। उन्होंने मंजूर कर लिया, मगर चूंकि जोधुपुर में बहुत गर्मी थी, इसलिए राम का प्रस्ताव हुआ कि मन्दौर१, में जाकर खुशियां मनाएं, जो दिलकश बागों और नजारों से भरा हुआ है। (१. मन्दौर मारवाड़ की पुरानी राजधानी है। यह जोधपुर से तीन कोस उत्तर एक पहाड़ी के नीचे बसा है।)

इस बहाने वह मन्दौर चला आया और यहां अपने दोस्तों और सहयोगियों और अपना भेद जानने वालों को जमा करके बोला कि राव जी बूढ़े हो गए हैं, उनकी बदइन्तजामी से मुल्क में झगड़े मचे हुए हैं। अपने दोस्त रोज-ब-रोज दुश्मनों से मिलते जाते हैं। लिहाजा आज यहां से चलते ही उन्हें पकड़ लो और कैद कर दो ताकि मुल्क में अमन-चैन हो जाए। यहां यह सलाह होती ही रही उधर राव जी को भी इसकी खबर लग गई। उन्होंने झटपट कछवाही रानी लाछलदेई की ड्योढ़ी पर पालकी भिजवा दी और कहलाया कि अभी किले से नीचे आ जाओ। रानी ने पूछा, मेरी खता? जवाब मिला कि तेरा बेटा तुझसे बतला देगा। रानी को उसी दम किला छोड़ना पड़ा। शाम को राम भी घमण्ड के नशे में झूमता हुआ आया और किले में जाने लगा तो किलेदार ने कहा, ‘‘आपको अंदर जाने का हुक्म नहीं है।’’ राम ने कहा, ‘‘जाकर राव जी से कहो कि मैंने कौन-सी खता की है।’’

उन्होंने जवाब दिया– ‘‘तुम कपूत हो और किले में रहने के काबिल नहीं। बेहतर है कि तुम गोंडौज चले जाओ। वहीं तुम्हारे लिए सब इंतजाम कर दिया जाएगा।’’

मजबूरन राम अपनी माँ के साथ गोंडौज चला गया। झाली रानियों ने जब यह अपनी मर्जी के मुताबिक करा लिया, तो अब रूठी रानी के पीछे पड़ी कि किसी तरह यह सिल छाती पर से सरक जाती, तो फिर किसी बात का खटका न रहता। हमारे हाथ में राव जी हैं ही, जो चाहते करते। चुनांचे राव जी के कान भरने लगीं कि रूठी रानी ही के इशारे से राम ऐसा आज्ञाद्रोही और फसादी हो गया है। रानियों के इशारे से और लोगों ने भी रूठी रानी की शिकायत की। यहां तक कि राव जी ने उसे भी गोंडौज भेज दिया। अब की बार पति की आज्ञा उसने बड़े शौक से मानी क्योंकि कछवाही रानी और कुमार राम से उसको बहुत स्नेह हो गया था। इसके अलावा वह राव जी को इतनी परेशानियों में फंसा देखकर उन्हें तंग करना ठीक न समझती थी। जिस दिन उसके गोंडौज जाने की खबर रनिवास में पहुंची उसकी सौतों के घर घी के चिराग जले।

कुमार राम की शादी राणा उदयसिंह की लड़की से हुई थी। गोंडौज में अपना निबाह न देखकर वह उदयपुर चला गया। राणा ने उसका बड़ा स्वागत सत्कार किया और मौजा कलेवा उसके रहने के लिए दे दिया, जो मारवाड़ से बहुत नजदीक है। थोड़े दिन में राम अपनी मां और उमादे दोनों को उसी जगह ले गया। इस तरह झाली रानियों की आंख का कांटा निकल गया। राव जी भी बाहरी और भीतरी झंझटों से फुरसत पाकर देश जीतने में लग गए और बहुत-से खोए हुए इलाके फिर से जीत लिए बल्कि कई नए इलाके भी फतेह किए।

मगर इन सफलताओं का सिलसिला बहुत जल्द टूट गया। अकबर के तख्त पर आने और जोर पकड़ने से राव जी को अपनी ही पगड़ी सम्हालनी मुश्किल हो गई। धीरे-धीरे कितने ही इलाके हाथ से निकल गए। जवान बादशाह की जोशीली चढ़ाइयों का बूढ़ा राव क्या सामना करता। उसकी जिन्दगी के दिन भी पूरे हो गए थे। आखिर संवत् १६१९ के कार्तिक महीने में राव मालदेव ने बड़ी कामयाबी से राज करने के बाद स्वर्ग की राह ली।

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