चैप्टर 9 नारी सियारामशरण गुप्त का उपन्यास | Chapter 9 Nari Siyaramsharan Gupt Novel
Chapter 9 Nari Siyaramsharan Gupt Novel
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जगराम को अपने पति के साथ जमना पहले भी कभी देख चुकी थी । परन्तु उस दिन अजीत के साथ उसको अपने घर के भीतर से देखकर उसे यह नहीं जान पड़ा कि यह उसका देखा हुआ आदमी है। जैसे गत जन्म का कोई प्राणी उसे नई योनि में दिखाई दिया। उसका रूप, उसका पहनावा, उसका बोलचाल, सब कुछ बदल चुका था ।
अजीत ने पौर के दरवाजे से भीतर झाँकते हुए कहा – लो, ये जगराम आ गये।
जमना को जगराम से बात करने की उत्कण्ठा बहुत थी सही, परन्तु इस समय उससे बचने के लिए वह स्वयं अत्यन्त अधीर हो उठी। उसे भय हुआ कि यह निर्दय अमीन न जानें उसके किस विश्वास को बेदखल करने आ गया है।
जगराम ने कौतुक के साथ घर देखकर कहा- भाई, हाथ तो बढ़िया माल पर फेरा ! इसी समय घूँघट से आधा मुँह ढँके हुए जमना वहाँ धीरे-धीरे आती दिखाई दी। जगराम चुप हो गया। किन्तु यह इसलिए नहीं कि जमना ने उसकी बात सुन ली, वरन् इसलिए कि ऐसे रूप की उसने कल्पना तक न की थी। उसके घूरने का ढंग अजीत को अत्यन्त लज्जाजनक जान पड़ा। यह देखकर उसने सन्तोष की एक हल्की-सी साँस ली कि जमना की दृष्टि किसी ओर नहीं ।
जमना के चुपचाप बैठ जाने पर अजीत ने काम की बात तुरन्त छेड़ दी। बोला- ये कहतीं हैं, मुझे किसी की फिकर नहीं है, तुमसे बिन्द्रावन की बात नहीं पूछी। अब तुम आ गये हो, तुम्हीं कहो तब इन्हें विसवास होगा ।
“क्या बेहूदगी की बात है!” कहकर जगराम ने कोने में थूक दिया।
अजीत को चुप देखकर उसने फिर कहा- क्या घुघ्घू की अजीब सूरत लेकर बैठे हो । किसी के घर कोई आता है तो पान – पत्ते से उसकी खातिर की जाती है। भलमनसाहत की बात तो यही है। अपने मुनाफे के लिए, हाँ गहरे मुनाफे के लिए, यहाँ तक घसीट तो लाये और टरका देना चाहते हो सूखे सूखे ही अच्छा देखा जायगा !
जगराम अपने परिहास से अपने आप हँसने लगा। अजीत कठिनाई में पड़ गया ! वह जानता था, पान- तमाखू का प्रबन्ध यहाँ सम्भव नहीं है ! उसने सोचा, किसी तरह वृन्दावन का समाचार जमना को सुनवाकर वह इसे टाल दे तो उसकी जान बचे।
परन्तु बहुत इधर-उधर की टाल-टूल करने के बाद जगराम मुख्य विषय पर आया। जमना को ही सम्बोधन करके उसने कहा- तुम जानती ही हो, बिन्दा ने एक गन्दे कुली से दोस्ती जोड़ी थी । कुली के एक जवान लड़की थी, – समझीं ? – वही सब फिसाद की जड़ हुई । दोस्ती होने के थोड़े दिन बाद ही कुली बीमार पड़ा; बीमार पड़ा या सब बहाना था, यह मैं नहीं जानता। बिन्दा उन दोनों को उनके घर पहुँचा आने के लिए अपनी गाँठ का पैसा लगाकर तैयार हो गया। बात क्या थी यह सब जानते हैं। रहने वाले वे लोग किसी देसी रियासत के थे ! वहाँ की पुलिस भी यहाँ की से कम सज्जन नहीं होती। बच्चाजी वहाँ दो दिन में ही फाँसकर बन्द कर दिये गये । बन्द कर देने के साथ ही बोल दी गई लम्बी चौड़ी सजा । लम्बी चौड़ी सजा वहाँ कानून की तामील करने को ही सुनाई जाती है, मगर वहाँ की जेलें इतनी भली हैं कि हट्टे-कट्टे आदमी को भी वहाँ एक महीने के भीतर-भीतर इस दुनियाँ से छुटकारा मिल जाता है। बस आगे की बात मुझे नहीं मालूम। उसके कहने में कुछ फायदा भी नहीं है।
यह प्रसङ्ग छिड़ने के पहले ही जमना का जी घबराने लगा था। पूरी बात सुने बिना ही बीच में, “जी न जानें कैसा करता है”- कहकर वह उठ गई ।
भीतर जाते समय जमना का मुँह देखकर अजीत के ऊपर चाबुक- सा पड़ा। दुःख इतने शीघ्र किसी का रक्त चूस सकता है, यह उसने पहली बार देखा ।
वहाँ से निकलकर उसने जगराम से कहा- तुमने यह कैसे गँवारपन की बातचीत की, कुछ अच्छी तरह नहीं बोल सकते थे?
“यही मुझमें ऐब है” – दाँत निकालकर जगराम ने कहा- “झूठ से नफरत करता हूँ। जो भीतर वही बाहर । बनाकर बात करना जालसाजी है । और देखा तुमने इसका ढोंग? कैसी बनी हुई निकली ! नाटक थेटर में अच्छा कमा सकती है। यह मेरी आँख में धूल झोंकेगी ? – अरे राम कहो । मैं औरत की रग पहचानता हूँ। अब तक न जानें किस किसके साथ क्या क्या खेल खेल चुकी होगी और दिखावा करती है ऐसा। दो दिन मुझे गाँव में रहने दो और देख लो कि मैं-
जगराम समझ रहा था, इन बातों से अजीत प्रसन्न होगा, परन्तु वह बीच में ही क्रुद्ध होकर बोल उठा – बकते क्या हो? भले घर की बहू- बेटी के लिए जजान सँभालकर खोलो। मैं नहीं जानता था, सहराती होकर तुम ऐसे हूस हो गये होगे। मेरा यह डंडा देखो, अब तुमने कोई ऐसी-वैसी बात मुँह से निकाली और मैंने तुम्हारे दाँत तोड़ दिये ।
जगराम सिटपिटा तो गया, परन्तु सँभलकर हँसने की चेष्टा करते हुए उसने कहा- वाह दोस्त मैं हँस रहा, तुम बिगड़ पड़े।
अजीत बोला- यह चालाकी किसी दूसरे के साथ करना, यहाँ ऐसे बुद्धू नहीं बसते । किराये के दाम तुम्हारे पास है; हटो, यहाँ से मुँह काला करो।
गँवार आदमी के सामने से हट जाने में ही जगराम ने भलाई समझी। वह पहले नहीं जान सका था कि यह इतना भयंकर आदमी है। नहीं तो सैर-सपाटे के लोभ से भी यह यहाँ न आता ।
अजीत की आँखों में आँसू आ गये। क्यों वह इस आदमी को बुला लाया? उसका विश्वास भी यही था कि वृन्दावन अब इस पृथ्वी पर नहीं है। यह बात जमना के गले के भीतर उतारने में उसने अब तक कोई कसर नहीं रख छोड़ी थी । परन्तु इस समय स्वयं वही अपनी उस धारणा को समूल नष्ट कर देने के लिए अनेक सम्भव और असम्भव बातें एक साथ सोचने लगा। उसके जी में आया कि जाकर वह जमना से कह दे कि मैं अपना स्वार्थ साधने के लिए सिखा-पढ़ाकर इसे तुम्हारे पास लाया था। परन्तु ऐसा वह कर नहीं सका। व्यथित चित्त लेकर सीधा घर लौट गया।
क्रमश:
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