चैप्टर 9 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 9 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 9 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

Prev | Next | All Chapters

रात के खाने के समय सन्नाटा रहा। सबने बड़ी खामोशी से खाना खत्म किया और फिर कॉफ़ी पीने के लिए बरामदे में जा बैठे।

“सूफी!” कर्नल डिक्सन बोला, “मैं कहता हूँ कि पुलिस को इसकी खबर ज़रूर मिलनी चाहिए।”

“मेरी भी यही राय है।” बारतोश ने कहा। वह बहुत कम बोलता था।

“मैं क्या करूं?” सोफ़िया ने उकताये हुए लहज़े में कहा, “डैड इस मामले को आम नहीं करना चाहते। पुलिस के तो सिरे से खिलाफ़ हैं। उन्होंने तो एक बार यह भी कहा था कि अगर मैं कभी अचानक गायब हो जाऊं, तो तुम लोग फ़िक्रमंद मत होना। मैं ख़तरा दूर होते ही वापस आ जाऊंगा। लेकिन पुलिस को उसकी ख़बर हरगिज़ न हो।”

इमरान ने सोफ़िया की तरफ प्रशंसात्मक नज़रों से देखा।

“ज़रगाम हमेशा रहस्यमय रहा है।” कर्नल डिक्सन बड़बड़ाया।

“यहाँ सभी रहस्यमय हैं।” इमरान ने कहा और मार्था की तरफ देखकर हँसने लगा।

“मैं सच कहता हूँ कि तुम्हें अभी तक नहीं समझ सका।” कर्नल डिक्सन ने कहा, “मुझे हैरत है कि ज़रगाम ने तुम्हें अपना सेक्रेटरी कैसे बना रखा है? वह तो बहुत ही गुस्से वाला है।”

“मैं उन्हें कन्फ्यूशियस सुनाया करता हूँ।” इमरान ने संजीदगी से कहा।

“तुमने फिर उसका नाम लिया। क्या तुम मुझे चिढ़ाते हो?” कर्नल बिफ़र गया।

“नहीं अंकल!” सोफ़िया जल्दी से बोली, “यह इनकी आदत है।”

“गंदी आदत है।”

इमरान लापरवाही से कॉफ़ी पीता रहा।

“यह एमएससी और पीएचडी हैं।” आरिफ़ हँसकर बोला।

“फिर तुमने बकवास शुरू की।” अनवर ने दांत पीसकर कहा।

“बोलने दो! मैं बुरा नहीं मानता..कन्फ्यूशियस…अर्र…नहीं हिप!” इमरान ने कहा और बौखलाहट की एक्टिंग के साथ अपना मुँह दोनों हाथों से बंद कर लिया। मार्था और सोफिया हँस पड़ी। इस बार कर्नल भी हँसने लगा। बारतोश का चेहरा बंज़र का बंज़र ही रहा। हल्की मुस्कुराहट की झलक भी न दिखाई दी।

अचानक उन्होंने फाटक पर कदमों की आवाज सुनी। आने वाला इधर ही आ रहा था। वह अंधेरे में आँखें फाड़ने लगे। बरामदे में लगे हुए बल्बों की रोशनी वहाँ तक नहीं पहुँचती थी। फिर आने वाले की टांगें दिखाई देने लगी। उसने रास्ता देखने के लिए छोटी सी सी टॉर्च जला रखी थी। आने वाला रोशनी में आ गया। वह उन सबके लिए अजनबी ही था। एक स्वस्थ आदमी, जिसने कत्थई सर्ज़ का सूट पहन रखा था।

“माफ कीजिएगा।” उसने बरामदे के करीब आकर कहा, “शायद मैंने डिस्टर्ब किया। क्या कर्नल साहब तशरीफ़ रखते हैं।”

“जी नहीं!” सोफ़िया जल्दी से बोली, “तशरीफ़ लाइए।”

आने वाला एक कुर्सी पर बैठ गया। सोफ़िया बोली –

“वह बाहर गए हैं।”

“कब तक तशरीफ़ लाएंगे?”

“कुछ कहा नहीं जा सकता। हो सकता है कल आ जायें। हो सकता है एक हफ्ते के बाद।”

“ओह…यह तो बुरा हुआ।” अजनबी ने कहा और मौजूद लोगों पर उचटती से नज़रें डाली। इमरान को देखकर एक पल उस पर नज़र जमाये रहा। फिर बोला, “कहाँ गए हैं?”

“अफ़सोस कि वे अपना प्रोग्राम किसी को नहीं बताते।” सोफ़िया ने कहा, “आप अपना कार्ड छोड़ जाइये। आते ही उन्हें बता दिया जायेगा।”

“बहुत जल्दी का काम है।” अजनबी ने अफ़सोस ज़ाहिर किया।

“आप वह काम मुझसे कह सकते हैं।” इमरान बोला, “मैं कर्नलल का प्राइवेट सेक्रेट्री हूँ।”

“ओह!” अजनबी ने आश्चर्य व्यक्त किया। फिर संभल कर बोला, “तब तो ठीक है। क्या आप अलग थोड़ी सी तकलीफ़ करेंगे।”

“बस इतना ही सा काम था।” इमरान ने बेवफूफों की तरह कहा, “लेकिन मैं अलग थोड़ी सी तकलीफ़ का मतलब नहीं समझ सका। वह तकलीफ़ किस किस्म की होगी? गला तो न घोंट दिया जायेगा?”

“ओह…मेरा मतलब है, ज़रा अलग चलेंगे।”

“मैं अलग ही चलता हूँ। आज तक किसी से टांग बांधकर नहीं चला।”

“अरे साहब! कहने का मतलब यह है कि ज़रा मेरे साथ आइये।”

“ओह! तो पहले क्यों नहीं कहा।” इमरान उठता हुआ बोला, “चलिए…चलिए।”

मैं दोनों उठकर बाग के फाटक पर आ गये।

“आप अली इमरान साहब हैं?” अजनबी ने पूछा।

“मैं कर्नल का सेक्रेटरी हूँ।”

“सो तो ठीक है…देखे मेरा ताल्लुक गुप्तचर विभाग से है और नाम है ख़ालिद। हमें फेडरल डिपार्टमेंट के कैप्टन की तरफ से हिदायत मिली है कि हम आपकी हर तरह मदद करें।”

“ओह…फैयाज़! हा हा…बड़ा ग्रेट आदमी है और यारों का यार है। मुझे नहीं मालूम था कि वह इतनी सी बात के लिए अपने महकमे के आदमियों को खत लिख देगा। वाह भाई!”

“बात क्या है?” इंस्पेक्टर ख़ालिद ने पूछा।

“क्या उसने…वो बात नहीं लिखी?”

“जी नहीं!”

“लिखता ही क्या…बात यह है मिस्टर ख़ालिद कि मुझे बटेर खाने और बटेर लड़ाने दोनों का शौक है और आपके यहाँ बटेरों के शिकार पर पाबंदी है। फैयाज़ ने कहा था कि मैं इजाज़त दिला दूंगा।”

ख़ालिद कुछ पल हैरत से इमरान को देखता रहा। फिर बोला, “आपने यह क्यों कहा था कि आप कर्नल के सेक्रेटरी हैं?”

“फिर क्या कहता? शायद आपको दूसरी हैसियत से ऐतराज़ है। बिल्कुल ठीक मिस्टर ख़ालिद! बात दरअसल यह है कि मैं यहाँ आया था मेहमान की हैसियत से। लेकिन बाद में नौकरी मिल गई। कर्नल ने मुझे बेहद पसंद किया है। मैं उनके लिए दिनभर एयरगन से मक्खियाँ मारता रहता हूँ।”

“आप मुझे टाल रहे हैं जनाब।” ख़ालिद हँसकर बोला। फिर उसने गंभीरता से कहा, “हालांकि यह मामला बहुत अहम है।”

“कैसा मामला?” इमरान ने हैरत से कहा।

“कुछ भी हो। आप बहुत गहरे आदमी मालूम होते हैं। इसका मुझे यकीन है कि आप कैप्टन फैयाज़ के ख़ास आदमियों में से हैं। अच्छा चलिए, मैं आपसे सिर्फ एक सवाल करूंगा।”

“ज़रूर कीजिए!”

“क्या कर्नल ने सीधे फेडरल डिपार्टमेंट से मदद मांगी थी?”

इमरान चौंककर उसे घूरने लगा।

“मदद? मैं नहीं समझा।” उसने कहा।

“देखिये जनाब!” ख़ालिद ने कहा, “हो सकता है कि आप इस महकमे में मैं बहुत दिनों से हों, लेकिन मैं अभी अनाड़ी हूँ। यकीनन आप मुझसे सीनियर ही होंगे। इसलिए मैं आपसे मुकाबला नहीं कर सकता। लिहाज़ा अब खुलकर बात कीजिए, तो शुक्रगुज़ार हूंगा।”

“अच्छा मैं खुलकर बात करूंगा। लेकिन पहले मुझे बात तो समझने दीजिए। आपके ज़ेहन में कर्नल के बारे में क्या है?”

“कुछ नहीं! लेकिन एक बात।” ख़ालिद कुछ सोचता हुआ बोला, “ठहरिए! मैं बताता हूँ। बात यह है कि आप सोनागिरी में नये आए हैं। हम लोग पिछले एक माह से एक रहस्यमय आदमी या गिरोह शिफ्टेन की तलाश में है, जिसने यहाँ के दौलतमंद लोगों को धमकी भरे खत लिखे हैं। उनसे बड़ी रकमों की मांग की है। धमकी के मुताबिक पैसा न देने पर उन्हें कत्ल कर दिया जायेगा। हाँ तो कहने का मतलब यह है कि उन सबने इसकी रिपोर्ट की है… मगर…”

“मगर क्या?” इमरान जल्दी से बोला।

“हमें कर्नल ज़रगाम की तरफ से इस किस्म की कोई शिकायत नहीं मिली।”

“तो आप जबरदस्ती शिकायत कराना चाहते हैं।” इमरान हँस पड़ा।

“ओह देखिए, आप समझे नहीं। बात यह है कि आखिर कर्नल को क्यों छोड़ा गया और अगर इसी तरह की कोई धमकी उसे मिली है, तो उसने उसकी रिपोर्ट क्यों नहीं की?”

“वाकई आप बहुत गहरे आदमी मालूम होते हैं।” इमरान ने व्यंग्यात्मक लहज़े में कहा, “अच्छा चलिए! फ़र्ज़ कीजिए कि कर्नल को भी धमकी का खत मिला, तो क्या यह ज़रूरी है कि आपके महकमे को इसकी खबर दें। मुमकिन है कि उन्होंने उसे मज़ाक समझा हो और मज़ाक न समझा हो, तो कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें अपने अलावा और किसी पर भरोसा नहीं होता।”

“मैं सिर्फ इतना मालूम करना चाहता हूँ कि कर्नल को भी इस किस्म का कोई खत मिला है या नहीं?”

“मैं भरोसे से नहीं कह सकता।” इमरान बोला, “मुझे इसकी जानकारी ही नहीं।”

“आपको कैप्टन फैयाज़ ने यहाँ क्यों भेजा है?”

“मेरी खोपड़ी के अंदर का भेजा बीच से क्रैक हो गया है। इसलिए गर्मियों में ठंडी हवा ही मुझे रास आती है।”

“ओह…आप कुछ नहीं बतायेंगे…खैर…अच्छा…इस तकलीफ़ का बहुत-बहुत शुक्रिया। मुझे कर्नल की वापसी का ही इंतज़ार करना पड़ेगा।”

“वैसे हम फिर भी मिलते रहेंगे।” इमरान ने हाथ बढ़ाते हुए कहा।

“ओह…ज़रूर…ज़रूर!” ख़ालिद ने कहा और हाथ मिलाकर विदा हो गया।

इमरान फिर बरामदे में लौट आया। यहाँ सब लोग बेचैनी से उसकी वापसी का इंतज़ार कर रहे थे।

“कौन था?” सोफ़िया ने पूछा।

“गुप्तचर विभाग का इंस्पेक्टर ख़ालिद!”

“क्या?” कर्नल डिक्सन ने आश्चर्य व्यक्त किया।

“क्या बात थी?” सोफ़िया ने अधीर होकर पूछा।

इस पर इमरान ने पूरी बात दोहरा दी। वे सब हैरत उसकी तरफ देख रहे थे।

उसने सोफ़िया से पूछा, “क्या कर्नलल को शिफ्टेन की तरफ से कभी कोई खत मिला है?”

“नहीं!”

“यही तो मैं कह रहा था कि आखिर उन्होंने अपने प्यारे सेक्रेटरी से उसका ज़िक्र क्यों नहीं किया!”

“तुमने दूसरे मामले का ज़िक्र नहीं किया।” कर्नल डिक्सन ने पूछा।

“हरगिज़ नहीं! भला किस तरह कर सकता था।”

“तुम वाकई क्रैक मालूम होते हो।”

“जी हाँ! कन्फ्यूशियस…अर्र नहीं, मेरा अपना कॉल है कि अच्छा मुलाज़िम वही होता है, जो मालिक के हुक्म से न एक इंच इधर जाये न एक इंच उधर।”

“जहन्नुम में जाओ।” कर्नल गुर्रा कर बोल और वहाँ से उठ गया।

Prev | Next | All Chapters

Ibne Safi Novels In Hindi :

कुएं का राज़ ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास

जंगल में लाश ~ इब्ने सफ़ी का ऊपन्यास

नकली नाक ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास

खौफ़नाक इमारत ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास

नीले परिंदे ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास

Leave a Comment