चैप्टर 8 रेबेका उपन्यास डेफ्ने ड्यू मौरिएर, Chapter 8 Rebecca Novel In Hindi Daphne du Maurier, Rebecca Upanyas Daphne du Maurier
Chapter 8 Rebecca Novel In Hindi Daphne du Maurier
बैरा नाश्ता ले आया। मैं अपने हाथ अपनी गोद में रखी बैठी रही और शून्य दृष्टि से बैरे को मेज़ पर कॉफी तथा दूध के बर्तन रखते देखती रही।
बैरे के जाने के बाद मैंने कहा, ” आप समझते नहीं। मेरी जैसी लड़कियों से पुरुष ब्याह करना पसंद नहीं करते।”
“तुम्हारा क्या मतलब है?” अपनी चम्मच नीचे रखकर उन्होंने मेरी ओर देखते हुए कहा।
“मैं स्वयं नहीं जानती कि आपको कैसे समझाऊं। मुझे किसी बात को बताने का ढंग नहीं आता। फिर भी एक बात तो मैं आपसे कहीं ही सकती हूं, मेरा आपके संसार से मैं नहीं बैठता।”
“मेरा संसार क्या है?”
” मैंदरले! मेरा मतलब समझ गए होंगे आप!”
उन्होंने अपनी चम्मच उठा कर फिर मार्मलेड खाना शुरु कर दिया।
” श्रीमती हार्पर की तरह तुम भी बिल्कुल नासमझ और कमअक्ल हो। तुम मैंदरले के बारे में क्या जानती हो? यह तय करने वाला तो मैं हूं कि तुम वहां रहने योग्य हो या नहीं। शायद तुम सोच रही हो कि मैंने यह बात क्षणिक आवेश में कह दी है या शायद यह सुनकर कि तुम न्यूयॉर्क जाना नहीं चाहती। तुम समझती हो कि तुमसे शादी करने की बात भी मैंने उसी भाव से कही है जिस भाव से मैं तुम्हें कार में घुमाने ले गया था या उस पहली शाम को अपने साथ खाना खिलाया था। उदारता दिखाने के लिए, यही सोचती हो ना?”
“हां !” मैंने उत्तर दिया।
“तो एक दिन तुम्हें पता चल जाएगा कि उदारता मेरा सबसे बड़ा गुण नहीं है। इस समय तो शायद तुम कुछ भी नहीं समझ पा रही हो। हां तो तुमने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। तो मुझसे विवाह करोगी या नहीं?”
इस संभावना की तो मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। अपने भीषण से भीषण क्षणों में भी नहीं। हां एक बार उनके साथ मोटर में बैठे हुए जब हम कई मील तक एक दूसरे से बिना बोले बिल्कुल चुपचाप चलते चले गए थे। मेरी आंखों के सामने यह काल्पनिक चित्र अवश्य आया था कि वह बहुत बीमार है, एकदम बेहोश! उन्होंने मुझे अपनी तीमारदारी के लिए बुला भेजा है और मैं उनके माथे पर यूडीकोलोन की पट्टी रख रही हूं। चित्र अभी यहीं तक दिखा था कि हम होटल पहुंच गए थे और जैसे एक सपना सा भंग हो गया था। ऐसे ही एक बार और मैंने कल्पना की थी कि मैं मैंदरले के अहाते में ही किसी कमरे में रहती हूं और वह कभी-कभी मुझसे मिलने आते हैं और अंगीठी के पास बैठकर मुझसे बातें करते हैं। सहसा विवाह की इस चर्चा से मैं चकित रह गई और मेरे मन को उससे धक्का सा लगा। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे किसी राजा ने मुझसे विवाह का प्रस्ताव किया हो और इसलिए मुझे वह वास्तविक नहीं मालूम दिया। जहां तक उनका सवाल है, वह शांत भाव से मार्मलेड खाते रहे मानो कहीं कोई अस्वाभाविकता ही ना हो। पुस्तकों में मैंने पढ़ा तो था कि चांदनी रात में प्रेमी अपनी प्रेमिका के सामने घुटने टेक कर विवाह का प्रस्ताव करते हैं, लेकिन इस तरह नाश्ते के समय तो ऐसा कभी नहीं होता।
“मेरा प्रस्ताव शायद तुम्हें पसंद नहीं आया।” उन्होंने कहा, ” मुझे बड़ा खेद है मैं समझता हूं कि तुम मुझसे प्रेम करती हो, लेकिन तुमने मेरी अहमन्यता को चूर चूर कर दिया है।”
“मैं आपसे प्रेम करती हूं मैं आपके प्रेम में पागल हूं। आपके कारण मैंने सारी रात रो-रो कर बिताई है, क्योंकि मैं जानती थी कि मैं आपको फिर नहीं देख पाऊंगी।”
मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरे यह कहने पर वह हंस दिए थे और मेज़ के उस पार से मेरी तरफ हाथ बढ़ाकर उन्होंने कहा था, ” इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! जब तुम पैंतीस की हो जाओगी, जैसा कि तुम चाहती हो, तब एक दिन मैं तुम्हें इन बातों की याद दिलाऊंगा और तुम विश्वास नहीं करोगी। क्या कहूं, बड़ी तो तुम होगी ही।”
मुझे बड़ी लज्जा आई और उनके हंसने पर क्रोध भी। भला कोई स्त्री किसी पुरुष के सामने अपना प्रेम इस तरह स्वीकार करती है। मैं भी कितनी बच्ची थी।
“तो अब तय हो गया ना।” उन्होंने मार्मलेड खाते हुए कहा, ” अब तुम श्रीमती हार्पर की जगह मेरी साथिन बनोगी और तुम्हारा काम भी करीब-करीब वही रहेगा। मुझे भी अपनी लाइब्रेरी में नई नई किताबें, ड्राइंग रूम में फूलों और खाने के बाद ताश खेलने का शौक है। मुझे भी किसी ऐसे साथी की जरूरत है, जो मेरे प्याले में अपने हाथ से चाय उड़ेल कर दे। अंतर केवल इतना है कि मुझे टैक्सोल की बजाय इनोज़ चाहिए और हां तुम्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि दांतों का जो मंजन मैं करता हूं, वह कभी चुकने ना पाए।”
मैं अपनी अंगुलियों से मेज पर ठकठकाती रही क्योंकि मुझे अभी तक उनके और अपने बारे में कुछ निश्चय नहीं हो सका था। वह मेरी हंसी तो नहीं उड़ा रहे हैं। यह सिर्फ मजाक तो नहीं है। उन्होंने ऊपर नजर उठाई और मेरे मुख पर चिंता की रेखा देखकर कहा, “शायद मैं तुमसे असंभव जैसा बर्ताव कर रहा हूं तुम्हारी समझ में विवाह के प्रस्ताव इस तरह नहीं किए जाने चाहिए। हम किसी कुंज में होते, तुमने सफेद फ्रॉक पहन रखा होता, तुम्हारे हाथ में एक गुलाब का फूल होता, दूर से वायलिन पर हंसी खुशी की कोई सुरीली धुन आ रही होती और मैं किसी तरह वृक्ष के पीछे से तुम से अपने पागल प्रेम की बातें करता होता। उस समय शायद तुम्हें यह अनुभव होता कि तुम्हारा मूल्य ठीक से आंका गया है। खैर, इस बात की चिंता मत करो। मैं तुम्हें हनीमून के लिए वेनिस से जाऊंगा और हम दोनों एक छोटी सी नाव में बैठकर उसे खुद अपने हाथों से खेयेंगे। लेकिन वहां हम अधिक नहीं ठहरेंगे, क्योंकि मैं तुम्हें मैंदरले दिखाना चाहता हूं।”
वह मुझे मैंदरले दिखाना चाहते हैं..! सहसा मुझे विश्वास हो गया कि यह सब कुछ होकर ही रहेगा। मैं उनकी पत्नी बनूंगी। हम दोनों साथ-साथ बाग में घूमेंगे। कलेऊ के बाद सीढ़ियों पर खड़ी होकर मैं चिड़ियों को चुग्गा डालूंगी और फिर सिर पर टोपी ओढ़े और हाथ में कैंची लिए मैं घर सजाने के लिए फूल काटती फिरूंगी और यह सोचते सोचते एकाएक मेरी समझ में आया कि बचपन में मैंने वह रंगीन पोस्टकार्ड क्यों खरीदा था? निश्चय ही वह मेरे भविष्य का संकेत था।
वह मुझे मैंदरले दिखाना चाहते हैं…! मेरे मस्तिष्क में उथल-पुथल मचने लगी और मेरी आंखों के सामने एक के बाद एक न मालूम कितने चित्र नाच उठे। किंतु वह ज्यों के त्यों बैठे हुए टैंगरीन खाते रहे और बीच-बीच में मुझे भी एक दो टुकड़े देते रहे। वह ह-रहकर मेरी ओर देख लेते थे, लेकिन मैं थी कि अपने विचारों में लीन थी। हम आदमियों से घिरे होंगे और वह लोगों से कह रहे होंगे – “शायद अभी तक आप मेरी पत्नी से नहीं मिले। यह रही श्रीमती द विंतर।” श्रीमती द विंतर ! हां मैं श्रीमती द विंतर बन जाऊंगी और तब मुझे ध्यान आया कि किस तरह मैं चेकों और निमंत्रण पत्रों पर हस्ताक्षर किया करूंगी। अपनी कल्पना में मैं इतनी डूब गई कि मुझे ऐसा लगा, जैसे मैं टेलिफोन पर किसी से कह रही हूं – अगले शनिवार को मैंदरले आइए ना। हमेशा आदमियों की भीड़ भाड़ रहेगी और उसके किसी एक कोने में कुछ लोग मेरे बारे में कानाफूसी कर रहे होंगे – “ओह! वह तो बहुत सुंदर है। उसे जरूर मिलना चाहिए।” और यह सुनते ही मैं दूसरी तरफ ऐसे मुड़ जाऊंगी, जैसे मैंने कुछ सुना ही ना हो।
श्रीमती द विंतर! श्रीमती द विंतर बन जाऊंगी। खाने के कमरे में चमचमाती मेज होगी और उस पर लंबी-लंबी मोमबत्तियां जल रही होंगी। चौबीस आदमियों की पार्टी में मैक्सिम किनारे पर बैठे होंगे। मेरे बालों में फूल लगे होंगे और अपने हाथों में गिलास थामे हर व्यक्ति मेरी तरफ देख कर कह रहा होगा – “हमें दुल्हन की सेहत का जाम पीना है।” और सब के चले जाने पर मैक्सिम कहेंगे – “ओह! तुम कितनी सुंदर लग रही थी।” फूलों से सजे भी ठंडे कमरे जाड़ों में अंगीठी से गर्म किया हुआ मेरा सोने का कमरा, जिसका दरवाजा कोई खटखटा रहा है। एक स्त्री मुस्कुराती हुई अंदर आती है। वह मैक्सिम की बहन है, वह कृतज्ञता भरे शब्दों में कह रही है – “सचमुच तुमने उसे कितना सुखी बना दिया है। हम सब सुखी हैं। तुम कितनी सफल ग्रहणी हो। सफल गृहणी…श्रीमती विंतर..मैं श्रीमती द विंतर बन जाऊंगी।
खिड़की के पास बैठ गई।
कमरे की दीवारें मोटी मोटी थी और मुझे उनकी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। मैं समझ नहीं पा रही थी कि वह श्रीमती हार्पर से क्या कह रहे होंगे। किस तरह उन्होंने अपने शब्दों का जाल बुना होगा। शायद उन्होंने कहा होगा – क्या बताऊं श्रीमती हार्पर, पहले दिन आंखें चार होते ही मैं उसे प्रेम करने लगा था और इस बीच हम एक दूसरे से रोजाना मिलते रहे।” मैं आप ही आप मुस्कुरा उठी और सोचने लगी कि सचमुच कितनी अदभुत घटना है यह। ओह! कितनी सुखी होने जा रही हूं मैं! जिसे मैं प्रेम करती हूं, उसी से मेरा ब्याह होगा। मैं श्रीमती द विंतर बनूंगी श्रीमती द विंतर! और कितने हर्ष की बात है यह। फिर भी इस तरह टुंडी के नीचे दर्द होने देना मूर्खता नहीं तो और क्या है। मैं डरपोक हूं, तभी तो यहां बैठी हुई इस तरह प्रतीक्षा कर रही हूं, जैसे कोई डॉक्टर के कमरे के बराबर बैठकर प्रतीक्षा करता है। अच्छा होता, निश्चय ही अधिक स्वभाविक होता, यदि हम हाथ में हाथ पकड़े एक दूसरे से हंसते बोलते बैठक में जाते और श्री विंतर कहते – ” हम एक दूसरे से बहुत प्रेम हो गया था और अब हम शादी करने जा रहे हैं।”
प्रेम! उन्होंने तो अभी एक बार भी प्रेम की चर्चा नहीं की। लेकिन इसके लिए समय ही कहां मिला? सारी बातें तो हड़बड़ी में नाश्ते की मेज पर बैठे-बैठे ही हुई। उन्होंने प्रेम का राग नहीं अलापा, सीधे कह दिया कि मैं तुमसे ब्याह करुंगा। कितनी मौलिकता है इसमें! कितना संक्षिप्त और निश्चित प्रस्ताव। ऐसे ही प्रस्ताव ज्यादा अच्छे और सच्चे होते हैं। उनमें उन नवयुवकों वाली बात नहीं होती, जो बकवास तो बहुत करते हैं, लेकिन जिसमें सच्चाई आधी भी नहीं होती। जो कभी कुछ कहते हैं कभी कुछ और जो आवेश में आकर असंभव से असंभव शपथें ले डालते हैं। यह प्रस्ताव उससे भी भिन्न था, जो स्वयं श्री द विंतर ने पहली बार रेबेका से किया होगा। लेकिन मुझे यह बात नहीं सोचना चाहिए। इस तरह के विचार मेरे मन में नहीं उठने चाहिए। ओह शैतान तू दूर ही रह मुझसे। मैं ऐसी बातें कभी नहीं सोचूंगी कभी नहीं कभी नहीं! वह मुझसे प्रेम करते हैं मुझे मैंदरले दिखाना चाहते हैं! पता नहीं उनकी बातचीत अभी पूरी हुई या नहीं? पता नहीं वह मुझे भी बुलाएंगे या नहीं।
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