Chapter 8 Fareedi Aur Leonard Ibne Safi Novel
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चिड़चिड़ा नवाब
दो घंटे का सफ़र तय करके फ़रीदी दाराब नगर स्टेशन पर उतरा। रात के लगभग दस बज चुके थे। स्टेशन पर उसे फटीचर सी टैक्सी दिखाई दी। वह उसमें बैठा और नवाब रशीदुज्जमा के महल की तरफ रवाना हो गया।
नवाब साहब बहुत बड़े जागीरदार थे और नंबरी कंजूस। उनकी बेशुमार दौलत की कहानियाँ दूर-दूर तक मशहूर थी। बहुत से लोगों का तो यहाँ तक मालूम था कि नवाब साहब इतनी दौलत जौ की रोटी खा-खाकर जमा की है। उनके और वारिस तो शाहाना ज़िन्दगी गुज़ारते थे। मगर वे खुद बहुत ही सादा ज़िन्दगी बसर करने के आदी थे। आज वे अभी तक नहीं सोये थे और दोपहर ही से वह किसी ख़ास चीज में उलझे हुए थे। बात-बात पर लोगों से उलझ जाते थे। उस वक्त वे बेचैनी के साथ दीवानखाने में टहल रहे थे।
अचानक एक नौकर प्लेट में किसी का विजिटिंग कार्ड रखकर लाया और मेज़ पर रखकर खामोशी से खड़ा हो गया।
“हूं…!” नवाब साहब ने कार्ड उठाते हुए कहा, “कर्नल ई.एम. खान, लाहौल विला कूवत…यह भी कोई मिलने का वक्त है। जाओ भेज दो।”
कुछ देर बाद फ़रीदी कर्नल खान के भेष में दीवानखाने में आया।
नवाब साहब ने जबरदस्ती चेहरे पर मुस्कुराहट पैदा करने की कोशिश की।
“फ़रमाइए कैसे आना हुआ?” नवाब साहब ने पूछा।
“मैं एक बहुत ही ख़ास काम के सिलसिले में हाजिर हुआ हूँ।”
“फ़रमाइए!” नवाब साहब ने चौंककर कहा।
“मैं बहुत दूर से आया हूँ। ज़रा दम ले लूं, तो कुछ कहूं।” फ़रीदी ने आराम कुर्सी पर तकरीबन लेटते हुए कहा।
नवाब साहब की भौहें तन गई। लेकिन उन्होंने फिर फौरन ही अपने चेहरे पर नरमी के आसार पैदा कर लिये। उन्होंने घंटी बजाई। एक नौकर आया।
“कुछ पीजिएगा।” नवाब साहब ने फ़रीदी से पूछा।
“सिर्फ पानी…!” फ़रीदी ने जवाब दिया और नौकर चला गया।
पानी पीने के बाद फ़रीदी ने सिगार जलाया।
“हाँ, अब फरमाइए।” नवाब साहब बेताबी से बोले।
“इन्हें पहचानते हैं आप?” फ़रीदी ने जेब से एक तस्वीर निकाल कर नवाब साहब की तरफ बढ़ाते हुए कहा।
नवाब साहब ने जैसे ही तस्वीर हाथ में ली, उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वह फ़रीदी को घूरने लगे।
“आप ठहरिये…मैं अभी आकर इसका जवाब देता हूँ।” नवाब साहब ने कहा और दीवानखाने से चले गये। फ़रीदी सिगार का कश लेता हुआ दीवानखाने की दीवारों पर लगी तस्वीरों का जायज़ा लेने लगा।
थोड़ी देर बाद नवाब साहब वापस आये। उनके हाथ में पिस्तौल था। फ़रीदी चौंक पड़ा।
“हाँ, मैं इसे पहचानता हूँ।” नवाब साहब गरजकर बोले, “और तुम जैसे बदमाशों को भी अच्छी तरह जानता हूँ। तुम्हारी मौत तुम्हें यहाँ लाई है।”
फ़रीदी हँसने लगा।
“तुम हँस रहे हो। लेकिन याद रखो, इसके लिए तुम्हारे घर वालों को रोना पड़ेगा।” नवाब साहस ने उसी अंदाज़ में कहा।
“मालूम नहीं आप क्या समझ रहे हैं।” फ़रीदी ने आराम से कहा।
“मैं सब कुछ समझ रहा हूँ।” नवाब साहब ने कहा, “तुम इस तरह मुझसे रुपया नहीं ऐंठ सकते।”
“ओह…समझा!” फ़रीदी ने संजीदगी से कहा, “तो मामला यहाँ तक पहुँच चुका है। बहुत अच्छा हुआ कि मैं बिल्कुल ठीक वक्त पर पहुँच गया।”
“अच्छा, अब कोई दूसरी चाल चलने वाले हो।” नवाब साहब चीखकर बोले, “देखो यहाँ बड़े-बड़े बदमाशों की लाशें दफ्न है।”
“चलिए, यह दूसरी बात मालूम हुई।” फ़रीदी हँसकर बोला।
“अबकी तुम हँसे और मैंने गोली चलाई।” नवाब साहब ने झल्लाकर कहा।
“और फिर कल इस इमारत का चप्पा-चप्पा पुलिस से भरा होगा।” फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा।
“यह गीदड़ भभकी किसी और को देना। मुझे रशीदुज्ज्मा कहते हैं।”
“और मैं आपसे सच कहता हूँ कि मुझे कर्नल खान नहीं कहते।” फ़रीदी ने इत्मीनान से कहा।
“वह तो मैं पहले ही से जानता हूँ।” नवाब साहब ने ऐंठते हुए कहा।
“लेकिन आप कुछ नहीं जानते।” फ़रीदी ने अपनी जेब से दूसरा कार्ड निकाल कर नवाब साहब को देते हुए कहा।
“यह क्या?”
“मेरा दूसरा विजिटिंग कार्ड…!”
“बस बस…रखे रहो।” नवाब साहब ने कहा, “तुम उस वक्त तक मेरी कैद में रहोगे, जब तक मेरी लड़की मुझे वापस न मिल जाये।”
“तो क्या आपको इत्तला मिल गई?” फ़रीदी ने कहा।
“बको मत!” नवाब साहब चीखे।
फ़रीदी सोच में पड़ गया था, इस सिरफिरे को किस तरह सीधे रास्ते पर लाये। नवाब साहब का गुस्सा देखकर उसे उलझन हो रही थी कि कहीं सचमुच गोली न चला दें। अचानक वह लेटे-लेटे उछला और दूसरे पल में नवाब साहब का रिवॉल्वर उसके हाथ में था और खुद नवाब साहब जमीन पर।
“अगर ज़रा भी आवाज निकाली, तो आप अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे।” फ़रीदी ने दबी आवाज में कहा, “मैं खुफिया पुलिस का इंस्पेक्टर फ़रीदी हूँ।”
“यह झूठ है, सरासर झूठ है।” नवाब साहब ने कहा।
“देखी मैं आपसे फिर कहता हूँ कि धीरे बोलिये।” फ़रीदी ने कहा।
नवाब साहब खामोश हो गये। जमीन पर पड़े हुए वे अभी तक फ़रीदी के हाथ में दबे हुए रिवाल्वर की तरफ देख रहे थे।
“उठ कर बैठ जाइये।” फ़रीदी ने सोफे की तरफ इशारा करते हुए कहा।
नवाब साहब खामोशी से उठ कर बैठ गये।
“मालूम होता है कि अब बदमाशों ने आपको धमकी दी है।” फ़रीदी ने कहा, “गज़ाला बेचारी पहले मेरे ही पास मदद के लिए आई थी। बदमाशों को मालूम हो गया और उन्होंने उसे गायब कर दिया।”
“मैं कैसे यकीन करूं कि तुम फ़रीदी हो।” नवाब साहब ने कहा।
“आप यकीन करें या न करें, मुझे तो अपना काम करना ही है।” फ़रीदी ने कहा, “और यह भी आपको बता दूं कि खुफिया पुलिस को आपकी लड़की पर शक हो गया है कि वह मुझे धोखा देने आई थी।”
“भला वह क्यों तुम्हें धोखा देने लगी।” नवाब साहब ने कहा।
फ़रीदी ने उन्हें सारा किस्सा सुना दिया।
“अच्छा है, वह कमबख्त उन्हीं की कैद में मर जाये। उसने खानदान की इज्जत पर बट्टा लगा दिया।” नवाब साहब बोले।
“अव्वल तो वह बेकुसूर है।” फ़रीदी ने कहा, “और अगर इस मामले की तह में वाकई कोई बात है, तो उसके सौ फीसदी जिम्मेदार आप हैं। आपने उसे क्यों इतनी आजादी दी थी कि वह एक नौजवान प्राइवेट सेक्रेटरी के साथ स्विजरलैंड गई।”
“हाँ मेरा ही कसूर है।” नवाब साहब ने कहा, “लेकिन तुम यह किस तरह कह रहे हो कि वह बेकसूर है।”
“वह तस्वीर तो रुपया ऐंठने के लिए खींची गई थी। गज़ाला एक तफ़रीहगाह में किसी वजह से बेहोश हो गई थी। प्राइवेट सेक्रेटरी उसे उठाकर गाड़ी की तरफ जा रहा था कि किसी ने उसी हालत में दोनों की तस्वीर ले ली।”
“ख़ुदा करे, तुम ठीक कह रहे हो।” नवाब साहब एकदम से बोले।
“आपने यूरोप के मशहूर ब्लैकमेलर लियोनार्ड का नाम सुना है।” फ़रीदी ने कहा।
“हाँ मैंने अखबारों में पढ़ा है उसके बारे में।”
“तो यह हरकत उसी की है। आजकल वह हिंदुस्तान आया हुआ है और हम लोग उसे गिरफ्तार कर लेने की फिक्र में है।” फ़रीदी ने कहा।
“मुझे अब भी यकीन नहीं आता कि तुम फ़रीदी हो।” नवाब साहब ने कहा, “क्योंकि मैं नवाब वाजहत मिर्जा की जुबानी सुन चुका हूँ कि फ़रीदी जवान आदमी है और शायद मैंने उसकी तस्वीर भी डॉक्टर शौकत के एल्बम में देखी थी।”
“यह बात है तो मुझे बहुत ही खुफिया जगह पर ले चलिये। मैं आपको अपनी शक्ल दिखा दूं।” फ़रीदी ने हँसकर कहा और रिवॉल्वर नवाब साहब को वापस कर दिया।
नवाब साहब उसे हैरत से देखने लगे।
“अच्छा, आओ मेरे साथ।” नवाब साहब ने उठते हुए कहा।
फ़रीदी उनके पीछे चल पड़ा।
एक खूबसूरत छोटे से कमरे में पहुँचकर नवाब साहब ने दरवाजा बंद कर लिया।
“ज़रा थोड़ा सा पानी मंगवाइये।” फ़रीदी ने कहा।
“पीने के लिये?” नवाब साहब ने पूछा।
“जी हाँ!”
नवाब साहब खुद बाहर चले गये। इतनी देर में फ़रीदी ने अपना मेकअप बिगाड़ दिया।
वापसी में नवाब साहब दरवाजे ही पर ठिठक कर खड़े हो गये।
“अरे!” उनकी जबान से निकला और फ़रीदी ने बढ़कर पानी का गिलास उनके हाथ से ले लिया।
“वही…बिल्कुल वही!” नवाब साहब बड़बड़ाये, “मैंने तुम्हारी तस्वीर गौर से देखी थी। वाकई तुम फ़रीदी हो…बैठो बैठो।”
फ़रीदी मुस्कुराता हुआ बैठ गया।
“भई माफ करना। मैंने तुम्हें बिना जाने हुए काफ़ी बुरा-भला कहा है।” नवाब साहब ने माफी मांगी।
“और मैंने भी तो सिर्फ जान जाने के डर से आप की शान में गुस्ताखी की है, जिसकी माफी चाहता हूँ।”
“कोई बात नहीं…कोई बात नहीं! अब मैं बिल्कुल मुतमईन हूँ।” नवाब साहब ने कहा, “जिस वक्त मुझे बदमाशों का खत और गज़ाला की तस्वीर मिली थी, मेरे दिल में सबसे पहले तुम्हारा ही ख़याल आया था कि क्यों न तुमसे मदद लूं।”
“बहरहाल मैं हाजिर हूँ।” फ़रीदी हँसकर बोला।
“मगर वाकई तुम बहुत बहादुर हो। जैसा सुना था, वैसा ही पाया।”
“सब आप बुजुर्गों की दुआयें हैं।”
“मुझे वजाहत मिर्जा की जबानी मालूम हुआ कि तुम नवाब आदिब अली खां मरहूम के लड़के हो।” नवाब साहब ने कहा, “मरहूम मेरे क्लास फेलो थे और मेरे दूर के रिश्तेदार भी होते थे। अरे भई, तुम तो अपने बच्चे हो।”
“इस रिश्ते पर मुझे और खुशी हुई।” फ़रीदी ने खुश होकर कहा।
“मुझे यह भी मालूम हुआ है कि तुम सिर्फ शौकिया इस डिपार्टमेंट में काम कर रहे हो। तुम्हारे वालिद मरहूम को भी इन्वेस्टिगेशन का बड़ा शौक था। आखिर क्यों न हो, उन्हीं के तो लड़के हो।”
फ़रीदी को डर मालूम हुआ कि कहीं अब नवाब साहब वालिद मरहूम की जासूसी का कोई वाक्या न सुनाने लगे, इसलिए वह जल्दी से बोला, “हाँ तो ज़रा वह खत मुझे दिखाइये।” फ़रीदी ने कहा।
“मैं अभी लाया।” कहकर नवाब साहब कमरे से चले गये।
कुछ मिनट बाद वे वापस आये और उन्होंने एक लिफाफ़ा फ़रीदी की तरह बढ़ा दिया। उसमें एक टाइप किया हुआ खत था और एक तस्वीर वैसी ही थी, जैसे गज़ाला में फ़रीदी को दिखाई थी।
फ़रीदी खत पढ़ने लगा।
“नवाब साहब!
अपनी बेटी की करतूत देखें। बेशुमार तस्वीरों में से यह एक तस्वीर आपको रवाना कर रहा हूँ। तस्वीर में जो आदमी दिख रहा है, आप शायद उसे भी पहचानते होंगे। यह तस्वीर स्विजरलैंड में ली गई थी। मैंने इन तस्वीरों की कीमत बीस करोड़ रखी है। आपकी साहबजादी बजाय इसके कि आपसे सलाह लेती, खुफिया पुलिस के पास जा पहुँची। मजबूरन हमें उसे गिरफ्तार कर लेना पड़ा। अगर आप अपनी बेटी की वापसी इन तस्वीरों समेत चाहते हैं, तो कल रात के नौ बजे मांगी रकम के साथ शहर आइए और विक्टोरिया पार्क में विक्टोरिया के बुत पीछे मिलिये। आपको तस्वीरों के साथ नेगेटिव वापस मिल जायेंगे और आपकी साहबजादी भी रिहा कर दी जायेगी। अगर आपने भी कोई चाल चलने की कोशिश की, तो फिर नतीजों के आप खुद जिम्मेदार होंगे। इस सिलसिले में आप की जान भी जा सकती है और आपके साहबजादी की इज्ज़त भी। रुपया कल हमें मिल जाना चाहिए। वरना देर होने की सूरत में फिर आपको मौजूदा रकम का डेढ़ गुना अदा करना पड़ेगा। जब आप मांगी गई रकम लेकर आए, तो आपको अकेला होना चाहिए। एक बार फिर हिदायत दी जाती है कि काफ़ी एहतियात से काम लिया जाये।”
फ़रीदी खत पढ़कर कुछ देर तक ख़यालों में उलझता रहा, फिर अचानक बोला, “सबसे पहले तो मैं आपको आपकी साहबजादी की बेगुनाही पर मुबारकबाद देता हूँ।”
“मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा।” नवाब साहब ने कहा।
“बदमाशों के पास इस तस्वीर के अलावा और कोई दूसरी तस्वीर नहीं।“
“मैं अब भी नहीं समझा।”
“यही तस्वीर मुझे गज़ाला खानम ने भी दिखाई थी और यही तस्वीर उन्हें स्विट्जरलैंड में भी मिली थी। इसका मतलब यह है कि बदमाशों के पास इसके अलावा और कोई तस्वीर नहीं और इसका सौ फीसदी मतलब यही है कि तस्वीर के बारे में गज़ाला खानम का बयान सही है।”
“वह तो ठीक है।” नवाब साहब ने कहा, “मुझे भी यकीन नहीं आया था। गज़ाला लाख आजाद ख़याल सही, मगर इतना नहीं गिर सकती। अब सवाल यह पैदा होता है कि आखिर खुलासा किस तरह हो। बीस करोड़ कम से कम मेरे बस की बात नहीं।”
“कोशिश तो यही की जाएगी कि यूं ही काम चल जाये।” फ़रीदी ने कहा, “लेकिन मैंने भी यह खत देखकर जो स्कीम बनाई है, उसके तहत आपको काफ़ी होशियार रहना पड़ेगा।”
“वह किस तरह।” वह बेचैनी से बोले।
“मैं आपका भेष बदल कर जाऊंगा और आपको यहाँ उस वक्त बंद रहना पड़ेगा, जब तक कि मेरी तरफ से आपको खबर न मिले। आपको यहाँ इस तरह छुपे रहना पड़ेगा कि महल के किसी भी शख्स को आपकी मौजूदगी का पता न चल सके। शायद आप समझ गए होंगे।”
“अच्छी तरह समझ गया। लेकिन अगर बदमाशों को पता चल गया, तो क्या होगा। वे लोग काफ़ी ज्यादा मालूम होते हैं।”
“पहली बात तो उन्हें मालूम ही नहीं हो पाएगा क्योंकि मैं इसके लिए शहर में अच्छा खासा जाल बिछा कर आया हूँ।” फ़रीदी ने कुछ सोचते हुए कहा और अगर मालूम भी हो गया, तो कोई और रास्ता निकाला जायेगा।”
“बहरहाल भई, अब तुम जानो। मुझे तो इत्मीनान हो गया है।”
“अच्छा यह बताइए कि आप जब शहर जाते हैं, तो किस होटल में ठहरते हैं?” फ़रीदी ने पूछा।
“ग्रीन में।” नवाब साहब ने जवाब दिया।
फ़रीदी खामोश होकर कुछ सोचने लगा।
“तो गज़ाला कब तक यहाँ पहुँच जायेगी?” नवाब साहब बोले।”
“उसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन जब आपको मुबारकबाद का कोई तार मिले, तो समझ लीजिएगा कि गज़ाला महफूज़ है। मैं खुद उसकी हिफ़ाजत कर रहा हूँ। उस दौरान आपको बिलकुल खामोश रहना पड़ेगा। आप शहर आकर मुझसे मिलने की भी कोशिश न कीजियेगा।”
“बहुत अच्छा! जैसा तुम कर रहे कह रहे हो, वैसा ही करूंगा।” नवाब साहब ने कहा, “तो क्या तुम सुबह ही जाओगे?” उन्होंने फ़रीदी से पूछा।
“जी हाँ!” फ़रीदी बोला, “और उस वक्त तक मैं सारी तैयारियाँ पूरी कर लूंगा। फिलहाल आप मुझे अपने कपड़ों के कुछ ऐसे जोड़े दे दीजिए, जिन्हें आप आम तौर पर पहना करते हैं और दो बड़े सूटकेस भी। एक में कपड़े रखवा दीजिए और दूसरा खाली रहने दीजिए।”
“बहुत अच्छा! मैं भी जाकर इंतजाम करता हूँ।” नवाब साहब जाने के लिए मुड़े।
“ठहरिये…इस इंतजाम की भनक भी किसी के कान में न पड़ने पाये।”
“हरगिज़ नहीं! तुम इत्मीनान रखो।”
नवाब साहब चले गए और फ़रीदी ने सोफे पर गिर कर आँखें बंद कर ली। उसका दिमाग बहुत तेजी से चल रहा था।
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Ibne Safi Novels In Hindi :
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