Chapter 6 Teesri Kasam Novel Phanishwar Nath Renu
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नननपुर के हाट पर आजकल चाय भी बिकने लगी है। हिरामन अपने लोटे में चाय भर कर ले आया।…कंपनी की औरत जानता है वह, सारा दिन, घड़ी घड़ी भर में चाय पीती रहती है। चाय है या जान!
हीरा हँसते-हँसते लोट-पोट हो रही है – ‘अरे, तुमसे किसने कह दिया कि क्वारे आदमी को चाय नहीं पीनी चाहिए?’
हिरामन लजा गया। क्या बोले वह?…लाज की बात। लेकिन वह भोग चुका है एक बार। सरकस कंपनी की मेम के हाथ की चाय पी कर उसने देख लिया है। बडी गर्म तासीर!
‘पीजिए गुरू जी!’ हीरा हँसी!
‘इस्स!’
नननपुर हाट पर ही दीया-बाती जल चुकी थी। हिरामन ने अपना सफरी लालटेन जला कर पिछवा में लटका दिया। आजकल शहर से पाँच कोस दूर के गाँववाले भी अपने को शहरू समझने लगे हैं। बिना रोशनी की गाड़ी को पकड़ कर चालान कर देते हैं। बारह बखेड़ा !
‘आप मुझे गुरू जी मत कहिये।’
‘तुम मेरे उस्ताद हो। हमारे शास्तर में लिखा हुआ है, एक अच्छर सिखाने वाला भी गुरू और एक राग सिखाने वाला भी उस्ताद!’
‘इस्स! सास्तर-पुरान भी जानती हैं! मैंने क्या सिखाया? मैं क्या …?’
हीरा हँस कर गुनगुनाने लगी – ‘हे-अ-अ-अ- सावना-भादवा के-र …!’
हिरामन अचरज के मारे गूंगा हो गया। इस्स! इतना तेज जेहन! हू-ब-हू महुआ घटवारिन!
गाड़ी सीताधार की एक सूखी धारा की उतराई पर गड़गड़ा कर नीचे की ओर उतरी। हीराबाई ने हिरामन का कंधा धर लिया एक हाथ से। बहुत देर तक हिरामन के कंधे पर उसकी उंगलियाँ पड़ी रहीं। हिरामन ने नजर फिरा कर कंधे पर केंद्रित करने की कोशिश की, कई बार। गाड़ी चढ़ाई पर पहुँची, तो हीरा की ढीली उंगलियाँ फिर तन गईं।
सामने फारबिसगंज शहर की रोशनी झिलमिला रही है। शहर से कुछ दूर हट कर मेले की रोशनी…टप्पर में लटके लालटेन की रोशनी में छाया नाचती है आसपास। डबडबाई आँखों से, हर रोशनी सूरजमुखी फूल की तरह दिखाई पड़ती है।
फारबिसगंज तो हिरामन का घर-दुआर है!
न जाने कितनी बार वह फारबिसगंज आया है। मेले की लदनी लादी है। किसी औरत के साथ? हाँ, एक बार। उसकी भाभी जिस साल आई थी गौने में। इसी तरह तिरपाल से गाड़ी को चारों ओर से घेर कर बासा बनाया गया था।
हिरामन अपनी गाड़ी को तिरपाल से घेर रहा है, गाड़ीवान-पट्टी में। सुबह होते ही रौता नौटंकी कंपनी के मैनेजर से बात करके भरती हो जायेगी हीराबाई। परसो मेला खुल रहा है। इस बार मेले में पालचट्टी खूब जमी है। बस, एक रात। आज रात-भर हिरामन की गाड़ी में रहेगी वह। हिरामन की गाड़ी में नहीं, घर में!
‘कहाँ की गाड़ी है?…कौन, हिरामन! किस मेले से? किस चीज की लदनी है?’
गाँव-समाज के गाड़ीवान, एक-दूसरे को खोज कर, आसपास गाड़ी लगा कर बासा डालते हैं। अपने गाँव के लालमोहर, धुन्नीराम और पलटदास वगैरह गाड़ीवानों के दल को देख कर हिरामन अचकचा गया। उधर पलटदास टप्पर में झांक कर भड़का। मानो बाघ पर नजर पड़ गई। हिरामन ने इशारे से सभी को चुप किया। फिर गाड़ी की ओर कनखी मार कर फुसफुसाया – ‘चुप! कंपनी की औरत है, नौटंकी कंपनी की।’
‘कंपनी की -ई-ई-ई!’
‘ ? ? …? ? …!
एक नहीं, अब चार हिरामन! चारों ने अचरज से एक-दूसरे को देखा। कंपनी नाम में कितना असर है! हिरामन ने लक्ष्य किया, तीनों एक साथ सटक-दम हो गए। लालमोहर ने जरा दूर हटकर बतियाने की इच्छा प्रकट की, इशारे से ही। हिरामन ने टप्पर की ओर मुँह करके कहा, ‘होटिल तो नहीं खुला होगा कोई, हलवाई के यहाँ से पक्की ले आवें!’
‘हिरामन, जरा इधर सुनो। मैं कुछ नहीं खाऊंगी अभी। लो, तुम खा आओ।’
‘क्या है, पैसा? इस्स!’ …पैसा दे कर हिरामन ने कभी फारबिसगंज में कच्ची-पक्की नहीं खाई। उसके गाँव के इतने गाड़ीवान हैं, किस दिन के लिए? वह छू नहीं सकता पैसा। उसने हीराबाई से कहा, ‘बेकार, मेला-बाजार में हुज्जत मत कीजिये। पैसा रखिये।’ मौका पा कर लालमोहर भी टप्पर के करीब आ गया। उसने सलाम करते हुए कहा, ‘चार आदमी के भात में दो आदमी खुसी से खा सकते हैं। बासा पर भात चढा हुआ है। हें-हें-हें! हम लोग एकहि गाँव के हैं। गौंवां-गिरामिन के रहते होटिल और हलवाई के यहाँ खायेगा हिरामन?’
हिरामन ने लालमोहर का हाथ टीप दिया – ‘बेसी भचर-भचर मत बको।’
गाड़ी से चार रस्सी दूर जाते-जाते धुन्नीराम ने अपने कुलबुलाते हुए दिल की बात खोल दी – ‘इस्स! तुम भी खूब हो हिरामन! उस साल कंपनी का बाघ, इस बार कंपनी की जनानी!’
हिरामन ने दबी आवाज में कहा, ‘भाई रे, यह हम लोगों के मुलुक की जनाना नहीं कि लटपट बोली सुन कर भी चुप रह जाए। एक तो पच्छिम की औरत, तिस पर कंपनी की!’
धुन्नीराम ने अपनी शंका प्रकट की – ‘लेकिन कंपनी में तो सुनते हैं पतुरिया रहती है।’
‘धत्!’ सभी ने एक साथ उसको दुरदुरा दिया, ‘कैसा आदमी है! पतुरिया रहेगी कंपनी में भला! देखो इसकी बुद्धि। सुना है, देखा तो नहीं है कभी!’
धुन्नीराम ने अपनी गलती मान ली। पलटदास को बात सूझी – ‘हिरामन भाई, जनाना जात अकेली रहेगी गाड़ी पर? कुछ भी हो, जनाना आखिर जनाना ही है। कोई जरूरत ही पड़ जाये!’
यह बात सभी को अच्छी लगी। हिरामन ने कहा, ‘बात ठीक है। पलट, तुम लौट जाओ, गाड़ी के पास ही रहना। और देखो, गपशप जरा होशियारी से करना। हाँ!’
हिरामन की देह से अतर-गुलाब की खुशबू निकलती है। हिरामन करमसांड है। उस बार महीनों तक उसकी देह से बघाइन गंध नहीं गई। लालमोहर ने हिरामन की गमछी सूंघ ली – ‘ए-ह!’
हिरामन चलते-चलते रूक गया – ‘क्या करें लालमोहर भाई, जरा कहो तो! बड़ी जिद्द करती है, कहती है, नौटंकी देखना ही होगा।’
‘फोकट में ही?’
‘और गाँव नहीं पहुँचेगी यह बात?’
हिरामन बोला, ‘नहीं जी! एक रात नौटंकी देख कर जिंदगी-भर बोली-ठोली कौन सुने? देसी मुर्गी विलायती चाल!’
धुन्नीराम ने पूछा, ‘फोकट में देखने पर भी तुम्हारी भौजाई बात सुनायेगी?’
लालमोहर के बासा के बगल में, एक लकड़ी की दुकान लाद कर आए हुए गाड़ीवानों का बासा है। बासा के मीर-गाड़ीवान मियाँजान बूढ़े ने सफरी गुड़गुड़ी पीते हुए पूछा, ‘क्यों भाई, मीनाबाजार की लदनी लाद कर कौन आया है?’
मीनाबाजार! मीनाबाजार तो पतुरिया-पट्टी को कहते हैं। क्या बोलता है यह बूढ़ा मियाँ? लालमोहर ने हिरामन के कान में फुसफुसा कर कहा, ‘तुम्हारी देह मह-मह-महकती है। सच!’
लहसनवाँ लालमोहर का नौकर-गाड़ीवान है। उम्र में सबसे छोटा है। पहली बार आया है तो क्या? बाबू-बबुआइनों के यहाँ बचपन से नौकरी कर चुका है। वह रह-रह कर वातावरण में कुछ सूंघता है, नाक सिकोड़ कर। हिरामन ने देखा, लहसनवाँ का चेहरा तमतमा गया है, ‘कौन आ रहा है धड़धड़ाता हुआ? कौन, पलटदास? क्या है?’
पलटदास आ कर खड़ा हो गया चुपचाप। उसका मुँह भी तमतमाया हुआ था।
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प्रेमा ~ मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास
निर्मला ~ मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास
प्रतिज्ञा ~ मुंशीप्रेमचंद का उपन्यास
गबन ~ मुंशीप्रेमचंद का उपन्यास