चैप्टर 6 प्रभावती सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का उपन्यास | Chapter 6 Prabhavati Suryakant Tripathi Nirala Novel In Hindi 

चैप्टर 6 प्रभावती सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का उपन्यास | Chapter 6 Prabhavati Suryakant Tripathi Nirala Novel In Hindi 

Chapter 6 Prabhavati Suryakant Tripathi Nirala Novel In Hindi 

Chapter 6 Prabhavati Suryakant Tripathi Nirala Novel In Hindi 

जरा देर में जरा समाँ बदल गया। चारों ओर हँसी-खुशी छा गई। राजकुमार चुपचाप देवी यमुना से दबे बैठे हैं-मन-ही-मन उस विजयिनी प्रतिभा की प्रशंसा करते हुए। राजकुमार को पान के लिए पूछते हुए प्रभावती को संकोच हो रहा है। बैठी माला की लड़ी हाथ में लिए नीची निगाह देख रही है। मन बार-बार यमुना की सहायता चाहता है।

नारी अपनी महिमा नहीं छोड़ सकती, प्रभा को देखते ही यमुना समझ गई। जो कार्य क्रमशः होते हैं, उनका भी उसे ज्ञान है। सब क्रम प्रभा यमुना को सुना चुकी है। अपने चातुर्य के कारण यमुना प्रभावती का दाहिना हाथ है।

किसी विशिष्ट विषय के बाद, दूसरी बातचीत चलने पर भी मौका देखकर अनुकूल बात की जाती है; यह मर्म छिपी राजकुमारी यमुना कितना समझ सकती है और राजकुमारी प्रभावती को बार-बार समझाकर ही अपना सकी थी, इसका उल्लेख अनावश्यक है। प्रथम प्रगाढ़ भक्ति-भाव का उसी ने रुख बदला; अब इस प्रतीक्षा में है कि वह उपहासवाला आनन्द भी कुमार-प्रमा तथा सेविकाओं के मन से निकल जाए, प्रतिक्रिया के भरे मुहूर्त में नवीन रचना शुरू करेगी।

यह वही क्षण है।

नाव की छत पर बैठक है। राजकुमार और प्रभावती को यमुना ने सामने-सामने बैठाया था। चार सेविकाएँ चार कोने में बैठी हैं; इन्हीं में यमुना राजकुमारी के दाहिनी बगल। एक पीछे पतवार सँभाले हुए, एक सामने गति-निरीक्षण करती हुई। नाव अपने-आप बहाव में बही जा रही है।

यमुना ने एक सेविका से मदिरा, हलका आसव, घृतपक्व, चबेना और भूना मांस ले आने के लिए कहा। दूसरी, तीसरी और चौथी को राजकुमारी वाली वीणा, मृदंग और नुपूर-मंजीरे ले आने की आज्ञा दी।

सेविकाओं ने वैसा ही किया। यमुना उठकर पूरब को -बहाव की ओर मुँह किए राजकुमार और प्रभावती के बीच, कुछ फासले पर, आ बैठी और दोनों के पान और भोजन सजाकर सामने रख दिए; फिर प्याली में मदिरा ढालकर उठाकर राजकुमार के हाथ में दे दी। देवी की इच्छा समझकर मुस्कुराकर, नीची नजर राजकुमार ने प्याली पकड़ ली। फिर होंठ काटकर मुस्कुराती हुई प्रभावती की ओर देखकर उसकी भी रत्न-जटित प्याली आसव से भरकर दी। ढीले हाथ प्रभावती अपनी प्याली लेकर राजकुमार को भरी हँसी की नत दृष्टि से देखने लगी। राजकुमार तब तक लिए ही बैठे थे। यमुना ने राजकुमार से कुछ आगे आने के लिए प्रार्थना की। फिर बाएँ से प्रभावती और दाहिने से कुमार का प्यालीवाला हाथ पकड़कर दोनों की प्यालियाँ मिलाते हुई बोली, “पीने, गाने और विहार न करने में भी अकेली हमारी राजकुमारी आपके साथ होंगी, आप ऐसी जगह कभी इनको छोड़कर न जाएँगे, आज के अमृतजल देनेवाली नीचे गंगाजी, ऊपर मयूखवर्षी चन्द्र, एक दूसरे के लिए प्रेम बहानेवाले आप दोनों और रंगीनी भरनेवाली सुरा-सुन्दरी गवाह हैं। कुमार, मन में कौल करके पान कीजिए।”

कुमार ने प्याली खाली कर दी। प्रभा ने भी पात्र रिक्त कर दिया। दोनों एक-एक टुकड़ा मांस लेकर खाने लगे। यमुना दूसरे दौर की तैयारी करने लगी।

दोनों की उचित मात्रा हो चुकने पर यमुना ने पूछकर पात्र, प्याली और तश्तरियाँ उठवा दीं। दोनों के मुँह धुलवा दिए। रंगीन दृष्टि से दोनों एक-दूसरे को देखते हुए, यमुना के दिए पान लेकर खाते हुए, एक दूसरे की आत्मा में बैठने लगे। आँखोंवाली लाज दूर हो गई।

नाव धीरे-धीरे बहती जा रही है। वसन्त ऋतु, शीतल समीर, चाँदनी रात, गंगा-वक्ष ज्योति से झलमल, नाव पर राजकुमार और राजकुमारी की पहली रात और इसे वे दोनों शराब की आबदार आँखों से देखें तो कितना सुन्दर होगा?

यमुना ने प्रभावती को वीणा बढ़ा दी। एक दूसरी सेविका से मृदंग की ओर इशारा करके राजकुमार को देने के लिए कहा, स्वयं नुपूर-गुच्छ ले लिये।

वीणा चढ़ी हुई थी, मृदंग लैस किया हुआ था। तारों में पहले तीन-चार बार प्रभावती ने अलाप ली। फिर देश पर त्रिताल की एक गति बजाने लगी। हाथों में नुपूर-गुच्छ लिए-लिए यमुना ताल द्विमात्रा मात्रा, अर्द्धमात्रा तथा दीर्घ रणन से झंकृत करती रही। कुमार देव सोलह-मात्रा पर मृदंग के बँधे बोल लघु थपकियों से निकालने लगे। गति द्रुत से द्रुततर होती गई, मृदंग में परन पर परन, छन्द पर छन्द उठते गए। तरुणी तरुणी की ही मुखर रागिनी से जैसे दिशाएँ मधुर-मधुर गूँजती रहीं। सेविकाएँ निश्चल गति-वादन-एकता में डूबीं। व्यथापूर्ण मादक देश की मीड़ें, तान आदि, युगल प्रेमियों के प्राणों में क्या काम करती थीं, वर्णनातीत है। प्रायः आधी घड़ी तक गति बजती रही। ताल पर वीणा बन्द कर, ध्यान में डूबी प्रभावती कुछ काल तक बैठी रही। आसव और राग का रग-रग में मधुर उन्माद भरा था। कुमार क्षीण वीणा-स्वर और नुपूर-निक्वणों से मिले अपने हृदय के ही सान्द्र रव-जैसे मृदंग के जलद-मन्द्र से तृप्त होकर निकले। प्राणों में सुरा का समररंग।

यमुना ने दोनों को फिर पान दिए। कुछ देर तक मौन रहकर प्रभा ने यमुना को गाने के लिए कहा। ध्वनि में संकोच था। आप ही आप आज यमुना ‘तू’ से ‘तुम’ के आसन पर चढ़ गई है। आज वह वैसी तुच्छ होकर निकटवर्तिनी नहीं; राजकुमार के दिए सम्मान की मौन प्रेरणा और कार्यों के ममत्व ने उसे उच्च कर दिया है।

यमुना ने प्रभा को ही पहले गाने के लिए कहा। क्योंकि आज की सभा उसी के हाथ है, इसलिए नेतृत्व उसे ही लेना चाहिए। ज्यों-ज्यों यमुना समझती गई, प्रभा को संकोच जकड़ता गया। राजकुमार कुछ कह नहीं सकते, क्योंकि यमुना को ‘आप’ कहना पड़ेगा। बार-बार देखकर रह जाते हैं। कभी यमुना का गाना सुना न था, वे गाती भी बहुत अच्छी होंगी, सोच-सोचकर मन से उत्सुक हो रहे थे। जैसे समझकर यमुना बोली, “मेरे नकटे-दादरे पहले हो जाएँगे, तो आपकी बहार जो बिगड़ जाएगी, इसके बाद न हो, लीपे-पोते में करवट कर लिया जाएगा, तब तक दो-चार बढ़िया-बढ़िया ब्याहवाले गीत गाइए। जिसका ब्याह, वही गावनहार, मुझे बहुत अच्छा लगता है।” राजकुमार सिर गड़ाकर मुस्कुराए। प्रभा मुस्कुरा दी-न रहा गया। जैसे संकोच दूर हो गया। एक स्वतन्त्र आनन्द की धारा बहने लगी। सिमटकर वीणा उठा ली। कुमार ने मृदंग गोद पर रख लिया। प्रभावती स्वर झंकारें भरती रही; फिर एक चौताल और एक झप गाया। तीन ताल की भी दो चीजें हुईं। सभ्य सँभले गले पर राजकुमार मुग्ध हो गए। पुनः कुछ देर विश्राम रहा। फिर यमुना को गाने के लिए प्रभा ने कहा। नुपूरों के गुच्छे पास की सेविका को देकर स्थिर होकर यमुना खिंची तीन ताल की बागीश्वरी गाने लगी-मृदंग की लहरों पर मात्रा मात्रा से रागिनी बह-सी चली। प्रभा स्वर भरती रही। सेविका ताल-ताल पर नुपूरों के गुच्छे हिलाती रहीं :

‘किहि तन पिय-मन धारों? – री कहु

उठत न दृग लखि, पग डगमग, सखि,

किमि निज सुगति सँवारों?- री कहु

मौन पौन में डसत बिखयधर;

फैलति ज्वाल, होत तन जरजर;

सबद सुनत काँपत हिय थरथर,

किमि सर खर निरवारों?-री कहु’

गीत समाप्त कर, देर हुई जान, यमुना ने दोनों से भोजन कर लेने की प्रार्थना की। कुछ विश्राम भी जरूरी है, समझाकर दोनों को नीचे ले गई। आसनों पर बैठाल भोजन और पान मँगवाकर कुछ सुरा दोनों को और पिलाई। भोजन के समय अनेक प्रकार के प्रेमालाप सुनाती रही-आज की रात, कहते हैं, आज पति-पत्नी को सोना न चाहिए-अवश्य सोना सम्भव नहीं, इसलिए कहा गया है, क्योंकि तमाम रात भी बातचीत के लिए पूरी नहीं पड़ती-आदि-आदि। भोजन के पश्चात् दोनों के हाथ धुलवाकर पान खिला दिए। फिर खिड़कियों के दूसरे पर्दे खिंचवाकर अपना तथा दासियों का भोजन छत पर मँगवा लिया।

नाव बहती हुई प्रायः आठ कोस का फासला पार कर गई। भोजन समाप्त कर अपनी-अपनी बारी से पतवार सँभालने तथा सिरा देखने के लिए यमुना ने दो-दो दासियों का समय नियत कर दिया। छत पर यमुना के इधर-उधर फिसफिसाती हुई विश्रामवाली सेविकाएँ सो रहीं।

रात का पिछला पहर आ गया। यमुना सचेत पड़ी दूर-दूर की कल्पना में लीन है। कुछ-कुछ ठंडक पड़ रही है। सब गर्म वस्त्र ओढ़े हुए हैं। इसी समय कुछ दूर पर मोड़ से फिरी बड़ी नाव आती हुई देख पड़ी। सामने और पीछे की दोनों दासियों ने कहा, कोई बड़ी नाव आ रही है। यमुना उठकर बैठ गई। गौर से देखने लगी। सामनेवाली दासी ने कहा, “सुबह के धोखे में जल्द खोल दी होगी या मल्लाहों ने सोचा होगा, ठंडे में गुन खींचकर दलमऊ में आराम करेंगे।”

नाव नजदीक आ चुकी थी। यमुना नीचे उतर गई। द्वार से ‘कुमारजी’ कहकर प्रभा को आवाज दी। प्रभा जग रही थी। राजकुमार भी जगते थे। प्रभा ने बुलाया। उठकर बैठ गई। राजकुमार भी बैठ गए। यमुना ने कहा, “एक नाव आ रही है। मुझे जान पड़ता है, बलवन्त की नाव है।”

प्रभावती निकलकर देखने लगी। नाव बहुत करीब पहुँच चुकी थी। राजकुमार छत पर चले गए।

“यमुना!” प्रभा यमुना को पकड़कर रो दी।

“छिः! कोई हिम्मत हारता है? मैं समझ गई, जल्द भारी गहने उतार डालो-नाव दाहिने करो जहाँ तक हो,” -यमुना ने पतवारवाली को आवाज दी, “वे दाहिने से गुन खींचकर आ रहे हैं,” प्रभावती को समझाया, “मौका अच्छा न जान पड़े, तो कूदकर तैर जाना, कुमार के लिए चिन्ता नहीं,” धीरे-धीरे जल्द-जल्द यमुना कहती गई, “हाँ, पिताजी साथ होंगे।” प्रभावती जल्द-जल्द गहने उतार रही थी। नाव आ पहुँची, “कौन है?” आवाज आई। धीरे-से एक खिड़की से प्रभा के गंगा में बैठने का शब्द हुआ। ध्यान लगाए यमुना और दासियों ने सुना। राजकुमार किनारे बिस्तर के नीचे से अस्त्र निकाल रहे थे। नाव भी आनेवाली नाव के काफी बाएँ हो चुकी थी। पूछने के साथ ही बिना यमुना की सलाह कुमार ने कह दिया, “देवकुमार लालगढ़।” प्रभा डुबकी लगाकर दूर निकली, चित्त होकर जरा साँस लेकर फिर डुबकी लगाती गंगा पार करने लगी।

कुमार ने देखा- बलवन्त सिंह सामने खड़ा है। “अच्छा दोस्त!” बलवन्त ने ध्वनि में गुस्ताखी की। बलवन्त लालगढ़ के खिलाफ था। कुमार की आँखों में क्रोध आ गया। सजी नाव अपना परिचय दे रही थी- यमुना बलवन्त का इशारा समझ गई, ऊपर कुमार की बगल से कहा, “और तुम्हारी बहन साथ हैं।”

“बाँदी!”

“नीच कुल-कलंक!” यमुना ने भाला मारा। बलवन्त बैठ गया। पीछे खड़ा सिपाही बिंधकर गिर गया। “खबरदार कुमार, मैं जाती हूँ, पार जाने तक, किसी को बढ़ने न देना। सखी सती होंगी या तुम्हें छुड़ाएँगी। वे पिता से बचने के लिए गई हैं। लो तीर-कमान,” कहती यमुना कूद गई। कुमार ने यमुना पर चलाया भाला रोका। बात कहती, वार से पहले यमुना कूद गई थी। ‘पकड़ो,’ बलवन्त ने आवाज दी। पर वह कहीं उमड़ी हुई न देख पड़ी। तैयार कुछ लोग बाईं ओर देखते रहे। कुमार ने आवाज के साथ ही दूनी गरज से कहा,”बलवन्त, यहाँ हम अकेले हैं, पर वीरसिंह को तुम अच्छी तरह जानते हो।”

‘मारो।’ कई वार एक साथ हुए। कुछ सँभाले, कुछ न सँभले, अकेले यमुना देवी को पार जाने तक न बचा सके। कई चोटें खाकर कुमार मूर्छित हो गए।

नाव को बलवन्त ने अपने अधिकार में कर लिया। महेश्वरसिंह के सामने दासियों के बयान सुनकर क्षोभ से जल गया। महेश्वरसिंह भी अत्यन्त रुष्ट हुए। पर उपाय न था। नाव अब तक दूर निकल आई थी। पार जाकर प्रभावती जंगल में छिप गई होगी, सोचकर चुप हो गए। दिल धड़क रहा था। बलवन्त बड़े गर्व से उन्हें देख रहा था, जैसे उनके अपराध की क्षमा न हो। कुमार देव बन्दी अवस्था में नीचे मूर्च्छित लिटा दिए गए।

यमुना कूदकर, डुबकी लगाकर किनारे की तरफ नहीं गई। सीधे बलवन्त की नाव की तरफ गई। बलवन्त की नाव इतनी निकट थी कि वह एक डुबकी से नाव के पीछे पहुँच गई। यह स्रोत के अनुकूल जाना था। उसने सोच लिया था कि इतने निकट से कटकर पार के लिए जाएगी, तो कुमार बचा न सकेंगे-बलवन्त की नाव के कुछ ही फासले से होकर जाना होगा; मुमकिन है, पकड़ जाए। यह सब क्षणमात्र में सोचकर बलवन्त की नाव की बगल में, पतवार के पास निकली और धीरे से पतवार का सहारा लिए साथ चलती रही। जब कुमार घायल और गिरफ्तार हो चुके, प्रभावती की नाव पास के लट्ठे में बाँध दी गई, दासियों के बयान हो चुके, तब एक बार सोचा कि कुछ दूर चलकर, नाव छोड़कर सावधानी से दलमऊ की तरफ जाकर और दौड़ती हुई, इस नाव के पहुँचने के पहले पहुँचे और महाराज को बचावे। पर प्रभावती की विबशता की याद आई। पतवार छोड़कर डूबकर बहती-तैरती हुई उसी किनारे जा चढ़ी।

क्रमश: 

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