चैप्टर 6 फ़रीदी और लियोनार्ड इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़ | Chapter 6 Fareedi Aur Leonard Ibne Safi Novel

Chapter 6 Fareedi Aur Leonard Ibne Safi Novel

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धोखा

रात देर तक जागते रहने की वजह से फ़रीदी दिन चढ़े तक सोता रहा। अगर हमीद आकर जगा न देता, तो शायद वह और देर तक सोता रहता। फ़रीदी ने लेटे-लेटे एक बड़ी अंगड़ाई ली और हमीद को मेज़ पर से सिगार की डिब्बा उठाने के लिए कहा।

“मैं उस तरफ नहीं जा सकता।”

“क्यों?”

“उधर किसी औरत के कपड़े रखे हैं और मुझे शर्म आती है।” हमीद जनाना अंदाज में नाक पर उंगली रखते हुए बोला।

फ़रीदी मुस्कुराने लगा।

“उठाते हो या उठ कर मरम्मत कर दूं तुम्हारी।”

“माफ कीजिएगा…अफसरी और मातहती दुनिया ही तक है।” हमीद ने संजीदगी, “जहन्नुम की आग आपके गुस्से से ज्यादा भयानक न होगी।”

“अच्छा, मौलाना ए मोहतरम, दफा हो जाओ यहाँ से। वरना…” फ़रीदी ने उठते हुए कहा।

“तो इसमें नाराज होने की क्या बात है। लीजिए सिगार।” हमीद ने सिगार का डिब्बा उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा।

“देखो अगर वह साड़ी सूख गई हो, तो उसे तह कर कर दो।” फ़रीदी बोला।

“जी!” हमीद ज़ोर से चीखा, “कसम है उस खुदा की, जिसने मुझे मर्द और आपको औरत बनाया…अरे लाहौल विला कूवत…दोनों को मर्द बनाया…मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता।”

“क्या बकते हो।”

“अब मैं यहाँ नहीं रह सकता।” हमीद ने कहा।

“क्यों?” फ़रीदी मुस्कुराकर बोला।

“इसलिए कि अब यहाँ अय्याशी होने लगी है।” हमीद ने संजीदगी से कहा, “अगर वालिद साहब को खबर हो गई, तो वे मुझे क़त्ल कर देंगे।”

“क्या फिजूल बकबक लगा रखी है।”

“सब फिजूल तो है ही…रात वाली तस्वीर लियोनार्ड की धमकी थी।” हमीद ने मुँह बना कर कहा, “और यह साड़ी…यह ब्लाउज…यह लेडीज कोट…यह सब भी शायद धमकी है। हाय…तौबा तौबा…अरे अल्लाह मियां, आखिर कयामत कब आएगी।”

फ़रीदी हँसने लगा।

“अरे भाई, तो क्या मैं आदमी नहीं हूँ।” फ़रीदी ने कहा।

“आप आदमी कब से हो गए।” हमीद बोला, “आप तो कहा करते थे कि मैं जासूस हूँ।”

“गधे जासूस नहीं हुआ करते।”

“यह बात आज ही समझ में आई है।”

फ़रीदी ख़ामोश हो गया। वह सोच रहा था कि हमीद को रात का वाकया बताये या न बताये। आखिर उसने यही फैसला किया कि हमीद को भी उससे आगाह कर दे, क्योंकि फ़रीदी को उससे बहुत ही अहम काम लेने थे।

हमीद सारी दास्तान सुन चुकने  के बाद कुर्सी से ब्लाउज उठाकर सूंघने लगा।

“यह क्या हरकत है?” फ़रीदी ने संजीदगी से कहा।

“सूंघ रहा हूँ कि उसकी उम्र क्या हो सकती है।” हमीद ने कहा, “रात वाली तस्वीर देखने के बाद से मैं आपकी तरफ से थोड़ा सा बे-इत्मीनान हो गया हूँ।”

“अबे गधे, कभी तो संजीदा हो जाया कर।” फ़रीदी ने कड़क आवाज में कहा।

“अगर मैं गधा हूँ, तो मेरी संजीदगी में आपको शक न होना चाहिए।”

“अच्छा बकवास बंद करते हो या तुम्हारा गला दबा दूं।” फ़रीदी ने उठते हुए कहा।

“बस खुदा की कसम! एक झलक मुझे भी दिखा दीजिए।” हमीद ने हँसकर कहा।

“क्यों? आप क्या करेंगे देख कर?”

“तौबा करूंगा…कान पकड़ लूंगा। उसके नहीं, बल्कि अपने।” हमीद ने कहा, “तौबा इसलिए करूंगा कि अभी तक मैं आपको बिल्कुल गलत समझ रहा हूँ।”

“तुम्हारा दिमाग बिल्कुल खराब होने वाला है।”

“खरी बात कहने वाले हमेशा पागल समझे जाते हैं।”

“अच्छा बरखुरदार…मेरा पीछा छोड़ो। तुम तो नाश्ता कर चुके होंगे, यहाँ भूख के मारे बुरा हाल हो रहा है।”

“लेकिन मैंने सुना है कि आशिकों को भूख लगती ही नहीं।” हमीद ने कहा।

“अच्छा, बकवास बंद करो वरना…”

“आज ही शादी कर लूंगा।” हमीद ने फ़रीदी का जुमला पूरा कर दिया।

फ़रीदी बड़बड़ाता हुआ कमरे से चला गया।

हमीद साड़ी, ब्लाउज और ओवरकोट को बड़ी देर तक उलट-पुलट कर देखता रहा। तभी उसकी आँखों में एक चमक पैदा हो गई। वह हँसता हुआ बरामदे में निकल गया। फ़रीदी बरामदे में बैठा सेव कर रहा था।

“किसी ने ठीक ही कहा है।” हमीद ने बुलंद आवाज में कहा।

“क्या है भई…  बेकार में गला फाड़ रहे हो।” फ़रीदी ने तेज आवाज में कहा।

“किसी ने ठीक ही कहा है कि डाकू और जासूस हमेशा औरतों ही के चक्कर में पड़कर मारे जाते हैं।”

“क्या बकवास लगा रखी है?”

“बकवास नहीं सरकार! आखिर आप भी औरत ही के चक्कर में पड़कर बर्बाद हुए।”

फ़रीदी ने बुरा सा मुँह बनाया और कोई जवाब दिए बगैर सेव करता रहा।

“आप शायद मज़ाक समझ रहे हैं।” हमीद ने कहा।

“आप शायद हवा से बातें कर रहे हैं।” फ़रीदी बोला।

“मैं कोई हातिमताई का घोड़ा हूँ, जो हवा से बातें करूंगा।”

“नहीं तुम वॉल्टर स्कॉट के गधे हो।”

“आप मज़ाक में टाल रहे हैं। बखुदा मैं इस वक्त सौ फ़ीसदी संजीदा हूँ।”

“अच्छा कहो, क्या कहना है।”

“गज़ाला आपको बेवकूफ बना गई।”

“क्या मतलब?” फ़रीदी ने चौंककर कहा।

“देखिए!” हमीद ने उसकी तरफ कागज का एक टुकड़ा बढ़ाते हुए कहा, “आपकी गज़ाला की अंदर की जेब से बरामद हुआ है।”

फ़रीदी कागज को पढ़ने लगा।

“आज रात को फ़रीदी के घर जाकर सारी बातें पता करो…ल।”

फ़रीदी के चेहरे का रंग उड़ गया। लेकिन उसे जल्दी अपनी हालत पर काबू पा लिया।

“इस ‘ल’ का मतलब शायद लियोनार्ड होगा।” हमीद ने कहा।

“लेकिन एक बात तो सोचो, अगर वाकई वह मुझे धोखा देने आई थी, तो फिर उसने इतनी लापरवाही से क्यों काम किया।” फ़रीदी ने कुछ सोचते हुए कहा।

“अगर उसकी नीयत में खराबी होती, तो वह इस कागज को जेब में हरगिज़ न छोड़ जाती।”

“क्या वह लड़की बहुत खूबसूरत थी?” हमीद ने कहा।

“हाँ…ऐसी लड़कियाँ कम देखने में आती है।” फ़रीदी ने जवाब दिया।

“तभी आप उसे बेगुनाह समझने की कोशिश कर रहे हैं।” हमीद ने मुस्कुराकर कहा।

“अच्छा ज़रा जल्दी से का निकालो।” फ़रीदी ने तौलिये से चेहरा साफ करते हुए कहा, “लड़की खतरे में मालूम होती है।

“क्या मतलब?”

“चलो चलो, जल्दी करो।”

“आखिर बात क्या है?”

“यह पुर्जा उसके जाने के बाद रात में किसी वक्त कोट की जेब में रखा गया।” फ़रीदी ने कहा।

“नामुमकिन!” हमीद ने कहा, “रात में यहाँ कौन आने की हिम्मत कर सकता है। हमारे कुत्ते किसी को ज़िन्दा बचकर नहीं जाने देते।”

“यही तो गलती की थी कि गज़ाला के आने के बाद मैंने सारे कुत्तों को बंद कर दिया था और फिर उसके बाद उन्हें खोलना भूल गया था।”

“ओह…तब तो फिर आप ही का कहना दुरुस्त होगा।” हमीद ने बरामदे से उतरकर गैरेज की तरफ जाते हुए कहा।

कुछ देर बाद फ़रीदी की कार तेजी से गुलिस्ता होटल की तरफ भागी चली जा रही थी। वहाँ पहुँचकर फ़रीदी को एक बैरे की जुबानी मालूम हुआ कि गज़ाला अपने कमरे में मौजूद है और अभी-अभी सोकर उठी है। फ़रीदी सीधा उसके कमरे में चला गया। वह उसे देखकर उठ बैठी। उसकी आँखें सोते रहने की वजह से अभी तक बंद हो रही थी और जिनमें पड़े लाल डोरों ने उसके हुस्न में इजाफा कर दिया था। जुल्फ़ें बेतरतीब से माथे पर बिखरी हुई थी। चेहरे के लाली मिले गोरे रंग में कुछ-कुछ सलोना पर आ गया था।

“आप…!” वह हैरान होकर बोली, “आपने तो कहा था कि अब हम लोग एक दूसरे से न मिलेंगे।”

“ख़याल तो यही था। लेकिन अब मैंने अपनी स्कीम बदल दी है।” फ़रीदी ने उसे गौर से देखते हुए कहा और कुर्सी पर बैठ गया।

गज़ाला उसे अपनी तरफ इस तरह घूरते देखकर शरमा गई और सिर झुकाकर साड़ी का आंचल ठीक करने लगी।

फ़रीदी कशमकश में पड़ गया कि उसे क्या कहेम वह सोच रहा था कि अगर वाकई वह उसे धोखा ही देने की गरज से आई थी, तो उसे गायब हो जाना चाहिए था और अगर लियोनार्ड ने उसकी तरफ से उसके मन में शक पैदा करने की कोशिश की थी, तो उसके शक को और मजबूत करने के लिए खुद उसे ही गज़ाला को गायब कर देना चाहिए था। मगर नहीं…शायद वह गज़ाला को इसी तरह सजा देना चाहता था कि पुलिस वाले उस पर शक करके उसे गिरफ्तार कर लें। बहरहाल यह तो । पर अच्छी तरह साफ हो गया था कि लियोनार्ड उसके मंसूबों से अच्छी तरह आगाह हो गया है।

“तो फिर फ़रमाइए, कैसे तकलीफ की?” गज़ाला ने पूछा।

“आपसे इस बात का पूरा सबूत देने के लिए हाजिर हुआ हूँ कि आप नवाब रसीदुज्जमा की साहबजादी है।”

गज़ाला चौंक पड़ी। वह उसे हैरत से देख रही थी।

“लेकर रात को तो आप मुतमईन हो गए थे।”

“मैंने धोखा खाया था।” फ़रीदी ने कहा।

“समझ में नहीं आता कि आपको किस तरह यकीन दिलाऊं।” गज़ाला ने कुछ परेशान होकर कहा, “आखिर, अचानक आपके दिल में यह ख़याल कैसे पैदा हुआ कि मैं आपको धोखा देने की कोशिश कर रही हूँ।”

“बात ही ऐसी हो गई है। अगर आप यह साबित न कर सकीं, तो मजबूरन मुझे आपको हिरासत में लेना पड़ेगा।”

“क्या कहा…हिरासत!” वह गरज कर बोली, “आपकी औकात ही क्या है? एक मामूली इंस्पेक्टर…बदतमीज कहीं के।”

फ़रीदी मुस्कुराने लगा।

“शहजादी साहिबा…मेरी औकात तो उस वक्त मालूम होगी, जब आप हवालात की सलाखों के पीछे नज़र आयेंगी।” फ़रीदी ने बुरे अंदाज में कहा, “ज़रा यह कागज़ देखिए।”

“इसका क्या मतलब?” गज़ाला कागज के टुकड़े को पढ़कर बोली।

“यह टुकड़ा शहजादी साहिबा के कोट से बरामद हुआ है।” फ़रीदी ने कहा। अचानक गज़ाला के चेहरे का रंग उड़ गया।

“लेकिन लेकिन…!” वह हकलाने लगी, “खख…खुदा की कसम…मम…मैं नहीं जानती क्या कागज कैसा है?”

“आप नहीं जानती।” फ़रीदी ने मुस्कुराकर बोला, “यह और भी अजीब बात है।”

“मैं आपको किस तरह यकीन दिलाऊं।” गज़ाला बेबसी से बोली।

“मेरी औकात ही क्या है कि आप मुझे यकीन दिलाने की कोशिश कर रही हैं।” फ़रीदी ने बुरे अंदाज में कहा।

गज़ाला खामोश हो गई। उसके चेहरे से अचानक ऐसा ज़ाहिर होने लगा था, जैसे वह बरसों की बीमार है।

“अब आप मुझे सिर्फ एक ही तरह इत्मीनान दिला सकती हैं।” फ़रीदी ने कहा।

“वह कैसे?” गज़ाला जल्दी से बोली।

“अभी और इसी वक्त मेरे साथ राज रूपनगर चलिए। अगर वहाँ नवाब वज़ाहत मिर्जा या उनके लड़के शौकत ने आपको पहचान लिया, तो क्या कहने। वरना फिर मैं जो मुनासिब समझूंगा, वह करूंगा।”

“मंजूर!” गज़ाला खुशी से बोली।

“अच्छा तो जल्दी से तैयार हो जाइए।”

“लेकिन एक शर्त पर…वह यह कि आप उन पर यह बात इतना ज़ाहिर होने दीजिएगा कि आपका मकसद क्या है।”

“इसके बारे में बाद में देखा जाएगा।” फ़रीदी ने सिगार सुलगाते हुए कहा।

गजाला ने कपड़े बदले और दोनों कार में बैठकर राजरूप नगर की तरफ रवाना हो गए।

“मैंने अभी नाश्ता नहीं किया।” गज़ाला बोली।

“यही हाल मेरा भी है। जैसे ही यह कागज मुझे मिला। मैं सीधा आप ही के पास चला आया।”

“मैं भी अजीब मुसीबत में पड़ गई।” गज़ाला बोली, “गई थी आप से मदद लेने, उल्टा खुद ही मुजरिम बन बैठी।”

“घबराइए नहीं…अगर आप सच्ची हैं, तो आपको बचाने के लिए मैं अपनी जान तक देने का वादा करता हूँ।” फ़रीदी ने कहा।

“खैर, यह सब तो बात की बातें हैं। अभी तो मैं परेशानी से जूझ रही हूँ।”

“लेकिन इसके अलावा कोई और चारा भी न था।”

दोनों खामोश हो गए।

पीटर रोड पर पहुँचकर फ़रीदी ने कार की रफ्तार कम कर दी। कृष्णा होटल की शानदार इमारत के सामने पहुँचकर दोनों कार से उतर गए।

फ़रीदी ने नाश्ते का आर्डर दिया। नाश्ता करने के बाद फ़रीदी ने सिगार सुलगा लिया और कुर्सी पर टेक लगाकर लंबे-लंबे कश लेने लगा।

“ए बैरा..!” गज़ाला ने करीब से गुज़रते हुए एक बैरे को आवाज दी।

“जी मेम साहब!”

“बाथरूम किधर है?”

“ऊपर मैम साहब। सीढ़ी पर दाहिने हाथ।” बैरे ने कहा और आगे बढ़ गया।

“मैं अभी आई।” गज़ाला ने फ़रीदी से कहा और उठकर चली गई।

फ़रीदी बदस्तूर खुली आँखों से छत की तरफ देखता हुआ सिगार के कश ले रहा था। पांच मिनट गुजर गए…दस मिनट गुजर गए…पंद्रह…बीस…फ़रीदी अचानक उछल पड़ा। बाथरूम और इतनी देर! वह बेतहाशा सीढ़ी की तरफ भागा। बाथरूम खाली था। उसने होटल के सारे बाथरूम देख डाले, लेकिन गज़ाला का कहीं पता न था। उसने उसे ढूंढ निकालने की हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन कामयाबी न हुई। आखिर थक-हारकर वह वापस आ गया। गुलिस्ता होटल में उसे गज़ाला के कमरे की तलाशी ली, लेकिन कोई संदिग्ध चीज़ हाथ न लगी।

घर पर हमीद उसका इंतज़ार कर रहा था। फ़रीदी ने वापसी पर उसे सारा हाल बताया।

“देखिए मेरा ख़याल कभी गलत साबित नहीं होता।” हमीद चहककर बोला।

“क्या कहने हैं आपके।” फ़रीदी ने जलकर कहा।

“डाकू या जासूस हमेशा औरत ही के चक्कर में पड़ कर मारा जाता है।”

“तुम्हें बातें बनाने के सिवा और भी कुछ आता है।” फ़रीदी ने बुरा सा मुँह बनाकर कहा।

“फरमाइए, मेरे लायक कोई खिदमत।” हमीद ने कहा।

“आपके लायक सबसे बड़ी खिदमत यही है कि आप ऐसे मौके पर खामोश रहकर मुझे सोचने दिया कीजिए।”

“ठीक है!” हमीद ने संजीदगी से कहा, “अगर किसी जगह पर आप सोचते-सोचते ठहर जाए, तो मुझे याद कर लीजिएगा।”

“बहुत अच्छा…अब आप तशरीफ ले जाइए।”

हमीद मुस्कुराता हुआ चला गया। फ़रीदी उसे घूर रहा था।

थोड़ी देर बाद वह गहरी सोच में डूब गया। उसने तय कर लिया था कि अब वह अपने मंसूबों से किसी को भी आगाह ना करेगा। उसे सख्त हैरत थी कि आखिर उसकी बनाई स्कीमों से लियोनार्ड किस तरह वाकिफ़ हो जाता है।

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