चैप्टर 6 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 6 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 6 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

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पौने बारह बजे कर्नल डिक्सन, उनकी लड़की और मिस्टर बारतोश कर्नल की कोठी में दाखिल हुए। लेकिन कर्नल उनके साथ नहीं थे।

कर्नल डिक्सन अधेड़ उम्र का एक दुबला पतला आदमी था। आँखें नीली, मगर धुंधली थीं। मूंछों का निचला हिस्सा ज्यादा तम्बाकू पीने से हल्के भूरे रंग का हो गया था। उसकी लड़की नौजवान और काफ़ी हसीन थी। हँसते वक्त उसके गालों में छोटे-छोटे भंवर पड़ जाते थे।

बारतोश अच्छी कद काठी का आदमी था। उसके चेहरे पर बड़ी कलात्मक किस्म की दाढ़ी थी। चेहरे की रंगत में फीकापन था। मगर उसकी आँखें बड़ी जानदार थीं। अगर वे इतनी जानदार न होती, तो चेहरे की रंगत के आधार पर कम-से-कम पहली नज़र में तो उसे जिगर का मरीज़ ज़रूर ही समझा जा सकता था।

“हैलो बेबी!” कर्नल डिक्सन ने सोफिया का कंधा थपथपाते हुए कहा, “अच्छी तो हो! मैं सोच रहा था कि तुम लोग स्टेशन ज़रूर आओगे।”

इससे पहले कि सोफ़िया कुछ कहती, डिक्सन की लड़की उससे लिपट गई।

फिर परिचय का दौर शुरू हुआ। जब इमरान की बारी आई, तो सोफ़िया झिझकी। इमरान आगे बढ़कर खुड़त बोला, “मैं कर्नल ज़रगाम का सेक्रेटरी हूँ अनादान… अर्र…मिस्टर नादान!” फिर वह बड़े बेतुकेपन से हँसने लगा। कर्नल डिक्सन ने लापरवाही के अंदाज़ में अपने कंधे सिकोड़े और दूसरी तरफ देखने लगा।

“ज़रगी कहाँ है?” कर्नल डिक्सन ने चारों तरफ़ देखते हुए कहा।

“क्या वे आपके साथ नहीं हैं?” सोफ़िया चौंककर बोली।

“मेरे साथ!” कर्नल डिक्सन ने हैरत से कहा, “नहीं तो!”

“ओह नहीं…ओह नहीं!”

“क्या वे आपको स्टेशन पर नहीं मिले?” सोफ़िया के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी।

सोफ़िया ने इमरान की तरफ देखा और उसने अपनी बाईं आँख दबा दी। लेकिन सोफ़िया की परेशानी में कमी नहीं आई। उसने बहुत जल्दी उससे तन्हाई में मिलने का मौका निकाल लिया।

“डैडी कहाँ गये?”

“पता नहीं!”

“और आप इत्मिनान से बैठे हुए हैं।”

“हाँ…आं!”

“ख़ुदा के लिए संजीदगी अख्तियार कीजिए।”

“फिक्र मत कीजिये। मैं कर्नल का जिम्मेदार हूँ।”

“मैं उन्हें तलाश कर ने जा रही हूँ।”

“हरगिज़ नहीं! आप कोठी से बाहर कदम नहीं निकाल सकती।”

“आखिर क्यों?”

“कर्नल का हुक्म!”

“आप अजीब आदमी हैं!” सोफ़िया झुंझला गई।

“मौजूदा हालात की जानकारी मेहमानों को नहीं होनी चाहिए…उन दोनों को भी मना कर दीजिये।”

“उन्हें इसका इल्म ही नहीं है।” सोफ़िया ने कहा।

“इतना तो जानते ही हैं कि कर्नल किसी खतरे में हैं।”

“हाँ!”

“इसका ज़िक्र भी नहीं होना चाहिए।”

“मेरे ख़ुदा मैं क्या करूं।” सोफ़िया रोआंसी आवाज में बोली।

“मेहमानों की ख़ातिर!” इमरान शांत लहज़े में बोला।

“आपसे ख़ुदा समझे। मैं पागल हो जाऊंगी।”

“डरने की बात नहीं…कर्नल बिल्कुल खतरे में नहीं हैं।”

“आप पागल हैं।” सोफ़िया झुंझलाकर बोली।

इमरान ने इस तरह सिर हिला दिया, जैसे उसे अपने पागलपन पर सहमति हो।

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