चैप्टर 57 उपसंहार कायाकल्प मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास | Chapter 57 Kayakalp Novel By Munshi Premchand

चैप्टर 57 उपसंहार कायाकल्प मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास | Chapter 57 Kayakalp Novel By Munshi Premchand

Chapter 57 Kayakalp Novel By Munshi Premchand

Chapter 57 Kayakalp Novel By Munshi Premchand

कई साल बीत गए हैं। मुंशी वज्रधर नहीं रहे। घोड़े की सवारी का उन्हें बड़ा शौक था। नर घोड़े ही पर सवार होते थे। बग्घी, मोटर, पालकी इन सभी को वह जनानी सवारी कहते थे! एक दिन जगदीशपुर से बहुत रात गए लौट रहे थे। रास्ते में एक नाला पड़ता था। नाले में उतरने के लिए रास्ता भी बना हुआ था, लेकिन मुंशीजी नाले में उतरकर पार करना अपमान की बात समझते थे। घोड़े ने जस्त मारी, उस पार निकल भी गया, पर उसके पांव गड्ढे में पड़ गए। गिर पड़ा, मुंशीजी भी गिरे और फिर न उठे। हंस-खेल कर जीवन काट दिया। निर्मला भी पति का वियोग सहने के लिए बहुत दिन जीवित न रही। उसकी अंतिम अभिलाषा, कि चक्रधर फिर विवाह कर लें, पूरी नहीं हो सकी।

देवप्रिया फिर जगदीशपुर पर राज्य कर रही है। हां, उसका नाम बदल गया है। विलासिनी देवप्रिया अब तपस्विनी देवप्रिया है। उसका भविष्य अब अंधकारमय नहीं है। प्रभात की आशामयी किरणें उसके जीवन-मार्ग को आलोकित कर रही हैं।

रानी मनोरमा नए भवन में रहती हैं। उसने कितनी ही चिड़ियां पाल रखी हैं। उन्हीं की देख-रेख में अब वह अपने दिन काटती है। पक्षियों में वह अपनी मनोव्यथा को विलीन कर देना चाहती है। उसके शयनागार में सोने के चौखट में खड़ा हुआ एक चित्र दीवार से लटका हुआ है, जिसमें दीवान हरिसेवक के मुंह से निकले हुए शब्द अंकित हैं–

‘लौंगी को देखो !’

आज से कई साल पहले, जब राजा साहब जीवित थे, मनोरमा को उसके पिता ने यही अंतिम उपदेश दिया था। उसी दिन से यह उपदेश उसका जीवन-मंत्र बना हुआ है।

चक्रधर बहुत दिन घर पर न रहे। माता-पिता के बाद वह घर, घर ही न रहा। फिर दक्षिण की ओर सिधारे, लेकिन अब वह केवल सेवा-कार्य ही नहीं करते, उन्हें पक्षियों से बहुत प्रेम हो गया है। विचित्र पक्षियों की उन्हें नित्य खोज रहती है। भक्तजन उनका यह पक्षी-प्रेम देखकर उन्हें प्रसन्न करने के लिए नाना प्रकार के पक्षी लाते रहते हैं। इन पक्षियों के अलग-अलग नाम हैं। अलग-अलग उनके भोजन की व्यवस्था है। उन्हें पढ़ाने, घुमाने व चुगाने का समय नियत है।

सांझ हो गई थी। मनोरमा बाग में टहल रही थी। सहसा हौज के पास एक बहुत ही सुंदर पिंजरा दिखाई दिया। उसमें पहाड़ी मैना बैठी हुई थी। रानीजी को आश्चर्य हुआ। यहां पिंजरा कहाँ से आया? उसके पास कई चिड़ियां थीं, जिन्हें उसने सैकड़ों रुपए खर्च करके खरीदा था, पर ऐसी सुंदर एक भी चीज न थी। रंग पीला था। सिर पर लाल दाग था; चोंच इतनी प्यारी कि चूम लेने को जी चाहता था। मनोरमा समीप गई, तो मैना बोली-नोरा ! हमें भूल गईं? तुम्हारा पुराना सेवक हूँ।

मनोरमा के आश्चर्य का पारावार न रहा। उसे कुछ भय-सा लगा। इसे मेरा नाम किसने पढ़ाया? किसकी चिड़िया है? यहां कैसे आई? इसका स्वामी अवश्य कोई होगा? आता होगा, देखू कौन है?

मनोरमा बड़ी देर तक खड़ी उस आदमी का इंतजार करती रही। जब अब भी कोई न आया, तो उसने माली को बुलाकर पूछा-यह पिंजरा बाग में कौन लाया?

माली ने कहा–पहचानता तो नहीं हुजूर, पर हैं कोई भले आदमी। मुझसे देर तक रियासत की बातें पूछते रहे। पिंजरा रखकर गए कि और चिड़ियां लेता आऊ पर लौटकर न आए।

रानी–आज फिर आएंगे?

माली–हां, हुजूर, कह तो गए हैं।

रानी–आएं तो मुझे खबर देना।

माली–बहुत अच्छा, सरकार।

रानी–सूरत कैसी है, बता सकता है?

माली–बड़ी-बड़ी आंखें हैं, हुजूर, लंबे आदमी हैं। एक-एक बाल पक रहा है।

रानी ने उत्सुकता से कहा–आएं तो मुझे जरूर बुला लेना।

रानी पिंजरा लिए हुए चली आई। रात भर वही मैना उसके ध्यान में बसी रही। उसकी बातें कानों में गूंजती रहीं।

कौन कह सकता है, यह संकेत पाकर उसका मन कहाँ–कहाँ विचर रहा था। सारी रात वह मधुर स्मृतियों का सुखद स्वप्न देखने में मग्न रही। प्रात:काल उसके मन में आया, चलकर देखू, वह आदमी आया है या नहीं। वह भवन से निकली, पर फिर लौट गई।

थोड़ी ही देर में फिर वही इच्छा हुई वह आदमी कौन है, क्या यह बात उससे छिपी हुई थी? वह बाग में फाटक तक आई, पर वहीं से लौट गई। उसका हृदय हवा के पर लगाकर उस मनुष्य के पास पहुँच जाना चाहता था, पर आह ! कैसे जाए?

चार बजे वह ऊपर के कमरे में जा बैठी और उस आदमी की राह देखने लगी। वहां से माली का मकान साफ दिखाई देता था। बैठे-बैठे बहुत देर हो गई। अंधेरा होने लगा। रानी ने एक गहरी सांस ली। शायद अब न आएंगे।

सहसा उसने देखा, एक आदमी दो पिंजरे दोनों हाथों से लटकाए बाग में आया। मनोरमा का हृदय बांसों उछलने लगा। सहस्र घोड़ों की शक्ति वाला इंजन उसे उस आदमी की ओर खींचता हुआ जान पड़ा। वह बैठी न रह सकी। दोनों हाथों से हृदय थामे, सांस बंद किए मनोवेग से आंदोलित वह खड़ी रही। उसने सोचा, माली अभी मुझे बुलाने आता होगा, पर माली न आया और वह आदमी वहीं पिंजरा रखकर चला गया! मनोरमा अब वहां न रह सकी। हाय! वह चले जा रहे हैं! तब जमीन पर लेटकर फफक-फफक रोने लगी।

सहसा माली ने आकर कहा–सरकार, वह आदमी दो पिंजरे रख गया है और कह गया है कि फिर कभी और चिड़िया लेकर आऊंगा।

मनोरमा ने कठोर स्वर में पूछा–तूने मुझसे उसी वक्त क्यों नहीं कहा।

माली पिंजरे को उसके सामने जमीन पर रखता हुआ बोला–सरकार, मैं उसी वक्त आ रहा था, पर उसी आदमी ने मना किया। कहने लगा, अभी सरकार को क्यों बुलाओगे? मैं फिर कभी और चिड़िया लाकर आप ही उनसे मिलूंगा।

रानी कुछ न बोली। पिंजरे में बंद दोनों चिड़ियों को सजल नेत्रों से देखने लगी।

Prev | All Chapters 

अन्य हिंदी उपन्यास :

प्रेमाश्राम मुंशी प्रेमचंद की कहानी 

अप्सरा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का उपन्यास 

गोदान मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास 

प्रेमा मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास

प्रतिज्ञा मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास

Leave a Comment