चैप्टर 5 प्यासा सावन गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 5 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel

चैप्टर 5 प्यासा सावन गुलशन नंदा का उपन्यास, Chapter 5 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel In Hindi , Gulshan Nanda Ka Upanyas 

Chapter 5 Pyasa Sawan Gulshan Nanda Novel

“हेलो अर्चना!” बहुत धीमे से उसने पुकारा।

अर्चना ने चौंक कर गर्दन घुमाई। राकेश को अपने पास खड़ा देख कर मुस्कुराती बोली, “हेलो!”

“तुम इतना सुंदर नाच सकती हो, मुझे आशा न थी।”

” आप समय पर पार्टी में सम्मिलित हो सकेंगे, मुझे भी इसकी आशा न थी।”

“तुम स्वयं नियंत्रण दो और मैं समय पर ना पहुंचू। जानती हो, पहलगाम से 100 किलोमीटर की गति से गाड़ी दौड़ा कर आया हूं।”

अर्चना ने धीरे से एक प्लेट और नैपकिन उठाकर राकेश की ओर बढ़ाते हुए कहा, ” तब तो आपको बहुत भूख लगी होगी।”

“केवल लगी ही नहीं, अब तो सहन भी नहीं हो पा रही। तुम्हीं अपने हाथों से डाल दो इसमें कुछ।” राकेश ने अपनी प्लेट अर्चना को थमा दी।

अर्चना ने अपनी और राकेश की प्लेट में कुछ स्वादिष्ट तंदूरी भुने हुए पदार्थ रख लिए और और दोनों खाने लगे। अर्चना ने खाते हुए धीरे से कहा, “कहिए, आज का मनोरंजन कैसा रहा? मेरा मतलब, पहलगाम की सैर…वह पर्वतीय शैलमालाएं…देवदास चुनार के झुंड बनाती हरी-भरी घाटियां… झरने सरोवर…यह सब मनोहर दृश्य?” अर्चना की मुस्कान में चंचलता थी।

“तुम्हें ठीक कहा था अर्चना!” राकेश ग्रास मुंह की ओर ले जाते हुए रुक गया।

“क्या?”

“यह सुंदर झरने, सुहानी धारियां, जो कुछ भी तुमने कहा है, यह सब व्यर्थ है। मुझे काटने को दौड़ते हैं यह मनोहर दृश्य।”

अर्चना चुप हो गई राकेश की इस बात से। राकेश की दृष्टि अर्चना के अंतर के तार छेड़ रही थी। उसे ऐसा लग रहा था, जैसे उसकी आंखों की गहराइयों में सोककर वह अपने एकाकी जीवन के लिए साथ ही ढूंढ रहा है। अर्चना अपने भावों को छुपाने के लिए तुरंत मुड़कर अपने दाएं खड़ी3 धनिक वर्ग की एक महिला से बात करने लगी। राकेश मौन खड़ा उसके अंदाज को देखता रहा।

राकेश अपने कमरे में खिड़की के पास खड़ा फैली हुई चांदनी में नीचे झील का दृश्य देख रहा था – ‘ डल’, नीली निथरी हुई निर्मल ‘ डल’ जिसकी गोद में अनगिनत कंवल भरे थे। ये प्राकृतिक सौंदर्य की अलौकिक कृति थी, कश्मीर की घाटी में एक उजला दर्पण थी। यह चांदनी, यह झील और वातावरण में मादकता भरे हुए गिर के हल्के हल्के स्वर मन की गहराइयों को छू रहे थे। दूर क्षितिज की ओर जाती हुई एक नाव में कमला जी न जाने कौन सी दुनिया में खोई गिटार की धुन पर हृदय के छिपे हुए भावों को उजागर कर रही थी। समझने वाला मन के कितनी ही रहस्यों को साज की आवाज में भी छिपा लेता है, स्पष्ट भी कर देता है। झील के वक्ष पर तैरती नाव मादक संगीत और अनिध्य सुंदरी… कितना मादक वातावरण था। एक विचित्र सी अनुभूति राकेश के मन प्राण में जाग उठी।

उसने सिगरेट सुलगाया और हल्के हल्के कश लेने लगा। एकाएक कमरे की बत्ती बुझ जाने से अंधेरा हो गया। क्षण भर में ही राकेश के मस्तिष्क से रोमांचक दृश्य जैसे लुप्त हो गए। उसने आंखें फाड़ कर इधर-उधर देखा और दियासलाई जलाकर फोन की ओर बढ़ा। रिसेप्शनिस्ट का नंबर डायल किया और बोला, ” हेलो, देखिए मेरे कमरे की बत्ती चली गई है।”

” घबराइए नहीं। यहां बत्ती इसी प्रकार आंख मिचौली खेलता रहती है। अभी आ जाएगी l।” दूसरी ओर से उत्तर मिला।

“कब तक?”

“यही कोई एकाध घंटे में। यह तो यहां पर प्रतिदिन होता है।”

” मुझे अंधेरा अच्छा नहीं लगता। मेरा दम घुटा जा रहा है।”

” क्या आप नहीं जानते, संसार में अंधेरा अधिक और उजाला थोड़ा है। जरा उनके विषय में तो सोचिए, जो संपूर्ण जीवन अंधेरे में ही बिता देते हैं।”

“आप फिलासफी बघार रही हैं और यहां प्राणों पर बनी हुई है।”

” बस कुछ ही क्षणों में घबरा गए। ऐसे अवसर पर कभी कभार मन के दीप जला देना चाहिए।”

“अब आप फिलोसाफी छोड़कर कविता सुनाने लगीएमएस

“कविता और यथार्थ में कोई मेल नहीं। कविता करने से रात दिन में परिवर्तित नहीं हो जाती। यदि आप इतने ही दुखी हैं, तो ड्रेसिंग टेबल की दराज खोल लीजिए। उसमें आपको बहुत सी मोमबत्तियां मिलेंगी। आप चाहे तो सभी मोमबत्तियां एक साथ जला सकते हैं।” अर्चना ने हंसते हुए कहा।

राकेश ने रिसीवर हाथ में थामे हुए ही ड्रेसिंग टेबल की तीसरी दराज खोली और टटोलने लगा। फिर रिसीवर मुंह से लगाकर कुछ खीझ भरे स्वर में कहा, ” यहां कोई मोमबत्ती नहीं। कुछ मोमबत्तियां भिजवा दीजिए प्लीज।”

” अरे आप यह तो सोचिए कि आप ही की भांति यहां मैं भी तो अंधेरे में हूं।”

“आपको तो इसका अभ्यास है, किंतु मैं तो…”

“ठहरिए! मैं कुछ मोमबत्तियां भिजवा दी हूं।” अर्चना ने बात बीच में ही काट का रिसीवर रख दिया।

थोड़ी देर बाद अर्चना स्वयं राकेश के कमरे में पहुंच गई। उसके हाथ में छोटी सी टॉर्च थी। राकेश उसे देखकर एक ओर हट गया और बोला, “आप स्वयं देख लीजिए। यहां एक भी मोमबत्ती नहीं है।” उसने मेज की तीसरी दराज खोल दी। 

टॉर्च के धुंधले प्रकाश में अर्चना ने उसकी ओर देखा और मुस्कुरा कर बोली, ” जवाब नहीं आपका।”

” क्यों?”

“आप मोमबत्तियां कहां ढूंढते रहे हैं?”

“ड्रेसिंग टेबल की तीसरी दराज में।” राकेश ने एक मेज की ओर संकेत करते हुए कहा।

“आप ही बताइए, क्या यह ड्रेसिंग टेबल है।” अर्चना ने उस मेज पर टॉर्च का प्रकाश डालते हुए कहा, ” यह तो राइटिंग टेबल है।”

“ओह! क्षमा कीजिएगा। मैं कह तो रहा हूं, अंधेरे में मुझे बड़ी घबराहट होती है।”

दोनों ने झट एक साथ टेबल की तीसरी दराज में हाथ डाल दिए। दोनों के हाथ आपस में टकरा गए। स्त्री का हाथ और पुरुष का हाथ। युवक युवती और यौवन घी और अग्नि के मेल, मधु और मदिरा के मिश्रण जैसे बदलियों के टकराव से बिजली कौंध उठी। इसी प्रकार दोनों हाथों का हल्का सा स्पष्ट हृदय में छिपे उन भावों को उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त था, जिसे प्रेम कहते हैं।

अनचाहे और अनजाने ही संयोग से राकेश ने अर्चना का हाथ अपनी मुट्ठी में ले लिया। फिर एकाएक कुछ सोचकर और झेंपकर उसका हाथ छोड़ दिया। किंतु इस क्षण में उसकी सांस फूल गई और तन मन में एक तूफ़ान मचल उठा जेड हर्ष और मादकता से भरा हुआ तूफान।

अर्चना ने दराज में से दो मोमबत्तियां उठाई, तो उसका हाथ भी कांप रहा था। उसके ह्रदय में भी एक विचित्र सी उथल पुथल जाग उठी थी। टॉर्च स्वयं अर्चना के हाथ में ऑफ हो गई। दोनों ने अंधेरे में एक दूसरे को देखा। वह चेहरों से एक दूसरे की मनोदशा न देख सकते, थे किंतु इस बात का ज्ञान अवश्य था कि उनकी सांसें उखड़ी जा रही हैं।

राकेश ने अपनी बाहें अर्चना की कमर में डाल दीं और होंठ उसके कान के पास ले जाकर धीरे से बोला, ” अर्चना!”

 “राकेश!” 

“यह अंधेरा कितना सुंदर है। हम दोनों की दूरियां मिट गई। पार्टी में तुम मुझसे बिछड़ गई थी।”

” तुम मुझे इस प्रकार घूर रहे थे कि मैं परेशान हो गई थी।”

दोनों के बीच अलगाव की दीवारें टूट चुकी थी। अब वे एक दूसरे से यूं घुलमिल गए थे, जैसे एक दूसरे के बहुत निकट आ गए हों। दोनों की सांसे आपस में मिलकर एक मोहक समा बांध रही थी। राकेश ने दोनों मोमबत्तियां जला दी। अर्चना अभी तक ड्रेसिंग टेबल के पास खड़ी थी। राकेश के स्पर्श ने उसकी धमनियों में जो अनुभूति जगह दी थी, वह उसी का रसपान कर रही थ। अब भी उसका ह्रदय गदगद हो रहा था और आँखें जैसे सुरूर में बंद हो रही थी। खिड़की में से आती हुई गिटार की ध्वनि वातावरण में उत्साह भर रही थी।

” अर्चना कितना मधुर है यह संगीत…कितना प्यारा।” राकेश ने मौन को तोड़ा।

“हां! यह हमारी मालकिन हैं, पुरानी यादों में खोई हुई हैं। सुना है इनके पति संगीत के बड़े प्रेमी थे। जब भी इन्हें अपने पति की याद सताती है, तो यह हाथों में गिटार ले झील में दूर निकल जाती हैंm उनकी उंगलियों में गिटार के तारे व्याकुल हो उठती हैं और एक ऐसी लय उभरती है, जिसमें नारी के हृदय की समस्त व्यथा उसके अंतर की अतृप्त प्यास संकृत होती है। अधूरी सांसे सिसकती है, असफल चाहते भटकती हैं। यह गीत नहीं संगीत नहीं, लहरों पर मचलते हुए, हवाओं में उड़ते हुए और वातावरण में गूंजते हुए हृदय के टुकड़े हैं।”

“हां अर्चना प्रेम है यह…सच्चा प्रेम!”

“हां प्रेम!” अर्चना ने भावुकता में बहते हुए बहुत धीरे से कहा। ध्वनि उसके मन की तह से निकली थी।

राकेश ने बढ़कर अर्चना को बाहों में भर लिया और बोला, ” मेरे मन की पुकार है एक कामना है।”

“क्या?”

“मैंने बहुत ही यत्न किया कि अकेले ही कश्मीर के सौंदर्य का आनंद लूं, पर असफल रहा। सौंदर्य की नवीनता और उसके निखार का आनंद लेने के लिए किसी साथी का होना आवश्यक है।”

“तो कोई साथी खोज लीजिए। जेड

“खोज लिया है।”

“कौन!” अर्चना ने घबराते भी मन को संभालने का यत्न किया।

“तुम!”

“नहीं राकेश!” और वह बहकी दृष्टि से उसे देखने लगी।

“मैं सुंदर घाटी की ताजा और अछूते सौंदर्य को मन के आंचल में समेट लेना चाहता हूं। यही मेरी कामना है। यही है वह मन की पुकार। मिलजुल कर यह हीरे मोती, यह फूल बीन लें। क्या तुम मेरा साथ न दोगी।”

“नहीं राकेश! मैं तुम्हारी यह कामना पूरा न कर सकूंगी।” अर्चना रुक रुक कर बोली, ” मैं होटल में साधारण सी नौकरी करती हूं और तुम राजकुमार हो शायद। दूसरे, मेरी मालकिन भी इसकी आज्ञा नहीं देगी। वह इसे कभी सहन न कर पाएंगी…हमारा अधिक मेलजोल। और मैं स्वयं भी उनके विश्वास को धोखा नहीं देना नहीं चाहती।”

“तो फिर उस विश्वास का क्या होगा, जो तुम्हारे प्रति मेरे मन में उत्पन्न हुआ है और उस विश्वास का, जिसका अंकुर मेरे प्रति तुम्हारे मन में फूटा है। वह विश्वास जो स्वयं तुम्हें मेरे नहीं निकट रहने पर विवश करेगा।”

अचानक बिजली आ गई और कमरे में तीव्र प्रकाश फैल गया। इस प्रकाश ने जैसे उन्हें डरा दिया हो। वे एकाएक अलग हो गए और अपरिचित सी दृष्टि से एक दूसरे को देखने लगे, जैसे उनके मन का छिपा चोर उजाला होते ही सामने आ गया है। अर्चना के मुख पर लाज और राकेश के मुंह पर झेंप की लालिमा छा गई।

“तो तुम मेरे साथ चलोगी ना अर्चना?” राकेश ने बड़े विनीत स्वर में पूछा।

अर्चना ने कोई उत्तर न दिया। वह मौन सी द्वार की ओर बढ़ी और बाहर चली गई। राकेश उसे जाते हुए देखता रहा। कुछ क्षण वह वहीं खड़ा विचारों में खोया रहा और फिर खिड़की के पास आकर बाहर दूर तक फैली झील में देखने लगा। अब गिटार पर उभरते गीत की धुन बहुत मध्यम हो गई थी। कमला जी शायद नाव में बहुत दूर निकल गई थीं।

राकेश ने सिगरेट सुलगा लिया और हल्के हल्के कश लेने लगा। वह स्वयं विचारों की झील में कल्पना की तरंगों पर हिलोरे लेने लगा। आशा निराशा में हिचकोले खाने लगा।

लॉन नीचे डल के मौन जल में ना जाने प्यार भरे कितने विकल गीतों ने समाधि ले ली होगी, किंतु तल पर वही शांति थी। नन्हीं नन्हीं लहरें हवा से खेल रही थीं।

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