चैप्टर 5 मैला आँचल फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास | Chapter 5 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu Novel
Chapter 5 Maila Anchal Phanishwar Nath Renu
मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर ‘भाखन’ देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते हैं। सब एक ही साध बोलना चाहते हैं। बातें बढ़ती जाती हैं और असल सवाल बातों के बवंडर में दबा जा रहा है। सिंघ जी चिल्ला-चिल्लाकर कहते हैं, “उस दिन यदि हम घर में रहते तो खून की नदी बह जाती।” कालीचरन चुप रहनेवाला नहीं है, “वाह रे ! दरवाजे पर एक भले आदमी को बेइज्जत करना ‘इंसान’ आदमी का काम है ?” तहसीलदार साहब कहते हैं, “अस्पताल तो सबों की भलाई के लिए बन रहा है। इससे सिर्फ हमारा ही फायदा नहीं होगा। ओवरसियरबाबू कह गए थे कि तहसीलदार साहब जरा मदद दीजिएगा। हम अपने मन से तो अगुआ नहीं बने हैं। तुम्हीं बताओ खिलावन भाई !”
बूढ़े जोतखी जी भविष्यवाणी करते हैं, “कोई माने या नहीं माने, हम कहते हैं कि एक दिन इस गाँव में गिद्ध-कौआ उड़ेगा। लक्षण अच्छे नहीं हैं। गाँव का ग्रह बिगड़ा हुआ है। किसी दिन इस गाँव में खून होगा, खून ! पुलिस-दारोगा गाँव की गली-गली में घूमेगा। और यह इसपिताल ? अभी तो नहीं मालूम होगा। जब कुएँ में दवा डालकर गाँव में हैजा फैलाएगा तो समझना। शिव हो ! शिव हो !”
बालदेव भाखन के लिए उठना चाहता था कि लछमी हाथ जोड़कर खड़ी हो गई, “पंच परमेश्वर !”
मानो बिजली की बत्ती जल उठी। सन्नाटा छा गया। सफेद मलमल की साड़ी के खूट को गले में डालकर लछमी हाथ जोड़े खड़ी है, “पंच परमेश्वर !”
“लछमी,” महन्थ साहब शून्य में हाथ फैलाकर टटोलते हुए कहते हैं, “लछमी, तुम चुप रहो।”
लछमी रुकी नहीं, कहती गई, “जोतखी जी ठीक कहते हैं। गाँव के ग्रह अच्छे नहीं है। जहाँ छोटी-मोटी बातों को लेकर, इस तरह झगड़े होते हैं, जहाँ आपस में मेल-मिलाप नहीं, वहाँ जो कुछ न हो वह थोड़ा है। गाँव के मुखिया लोग ही इसके लिए सबसे बड़े दोखी हैं। सतगुरुसाहेब कहिन हैं-‘जहाँ मेल तहाँ सरग है।’ मानुस जन्म बार-बार नहीं मिलता है। मानुस जन्म पाकर परमारथ के बदले सोआरथ देखें तो इससे बढ़कर क्या पाप हो सकता है ? परमारथ में जो ‘विघिन’ डालते हैं वे मानुस नहीं। आप लोग तो सास्तर-पुरान पढ़े हैं, जग्ग भंग करनेवालों को पुरान में क्या कहा है, सो तो जानते ही हैं। हमारे कहने का मतलब यह है कि सब कोई भेदभाव तेयाग के, एक होकर के परमारथ कारज में सहयोग दीजिए। आप लोग तो जानते हैं- ‘परमारथ कारज देह धरो यह मानुस जन्म अकारथ जाए।’ बस हाथ जोड़कर पंच परमेश्वर से बिनै है, झगड़ा तेयागकर मेल बढ़ाइए। सतगुरु साहेब गाँव का मंगल करेंगे। आगे आप लोगों की मरजी।”
लछमी बैठ गई। उसका चेहरा तमतमा गया है, गाल लाल हो गए हैं और कपाल पर पसीने की बूंदें चमक रही हैं। पंचायत में सन्नाटा छाया हुआ है, मानो जादू फिर गया हो। बालदेव जी का भाखन देने का उत्साह कम हो गया है। वह दोहा-कवित्त नहीं जानता, सास्तर-पुरान भी नहीं पढ़ा है। जेहल में चौधरी जी उसे पढ़ाया करते थे। तीसरा भाग में-‘भारी बोझ नमक का लेकर एक गधा दुख पाता था’ के पास ही वह पढ़ रहा था कि चौधरी जी की बदली हो गई। उसी दिन से उसकी पढ़ाई भी बन्द हो गई। लेकिन…वह जरूर भाखन देगा। उसने लछमी की ओर देखा तो और मानो नशे में उठकर खड़ा हो गया, “पियारे भाइयो !”
“बोलिए एक बार प्रेम से…गंधी महतमा की जै !” यादवटोली के नौजवानों ने जयजयकार किया।
“पियारे भाइयो ! कोठारिन साहेब जितना बात बोली, सब ठीक है। लेकिन सबसे 7 बड़ा दोखी हम हैं। हमारे कारन ही गाँव में लड़ाई-झगड़ा हो रहा है। हम तो सबों का सेवक हैं। हम कोई बिदमान नहीं हैं, सास्तर-पुरान नहीं पढ़े हैं। गरीब आदमी हैं, मूरख हैं। मगर महतमा जी के परताप से, भारथमाता के परताप से, मन में सेवा-भाव जन्म हुआ और हम सेवक का बाना ले लिया। आप लोगों को तो मालूम है, जयमंगलबाबू, जो मेनिस्टर हुए हैं, अपना दस्तखत भी नहीं जानते हैं। बहुत छोटी जात का है। वह भी गरीब आदमी थे, मूरख थे। मगर मन में सेवा-भाव था और महतमा जी उसको मेनिस्टर चुन लिए। महतमा जी कहिन हैं-‘बैस्नब जन तो उसे कहते हैं जो पीर पराई जानता है रे।’ मोमेंट में जब गोरा मलेटरी हमको पकड़ा तो मारते-मारते बेहोस कर दिया। पानी माँगते थे तो मुँह में पेसाब कर दिया था…”
बालदेव जी का ‘भाखन’ शुरू होते ही पंचायत में फिर कानाफूसी शुरू हो गई थी। राजपूतटोली के लोग और भी जोर-जोर से बात करने लगे। बालदेव के भाखन के इस रोमांचक अंश ने ज़रा असर किया। मुँह में पेशाब करने की बात सुनते ही पंचायत में फिर सन्नाटा छा गया। बालदेव ने झट अपनी कमीज खोल ली, चारों ओर घूमकर पीठ दिखलाते हुए उसने अपना भाखन जारी रखा, “आप लोगों को विश्वास नहीं हो तो देख सकते हैं !”
“अरे बाप ! चीता-बाघ की तरह देह हो गया है…धन्न हैं।’
“देखिए आप लोग,” यादवटोली का एक नौजवान कहता है, “हम लोग गाँधी जी का जै करते हैं तो आप लोगों के कान में लाल मिर्च की बुकनी पड़ जाती है। देखिए !”
“अरे भाई ! यह सब महतमा जी का परताप है। कौन सह सकता है ? जब गुड़ गंजन सहे तो मिसरी नाम धराए।”
“…लेकिन पियारे भाइयो, हमने भारथमाता का नाम, महतमा जी का नाम लेना बन्द नहीं किया। तब मलेटरी ने हमको नाखून में सूई गड़ाया, तिस पर भी हम इसबिस (चूं-चमड़) नहीं किया। आखिर हारकर जेलखाना में डाल दिया। आप लोग तो जानते ही हैं कि सुराजी लोग जेहल को क्या समझते हैं-‘जेहल नहीं ससुराल यार हम बिहा करने को जाएँगे। मगर जेहल में अँगरेज सरकार हम लोगों को तरह-तरह की तकलीफ देने लगा। भात में कीड़ा मिला देता था, घास-पात का तरकारी देता था। बस, हम लोगों ने भी अनसन शुरू कर दिया। पियारे भाइयो ! पाँच दिन तक एकदम निरजला अनसन। उसके बाद कलकटर, इसपी, जज, सब आया। माँग पूरा कर दिया, खाने को दूध-हलुआ दिया। हम लोग बोले-दूध-हलुआ अपने बाल-बच्चों को खिलाओ, हम लोगों को बढ़िया चावल दो। सो पियारे भाइयो ! सेवा-वर्त जब हम लिया है तो इसको छोड़ नहीं सकते…। ‘अन्धी होकर पुलिस चलावे पर डंडों का परिवाह नहीं ! आप लोग अपने गाँव में सेवा नहीं करने दीजिएगा, हम चन्ननपटी चले जाएँगे। वहाँ आसरम है, घर-घर चरखा-करघा चलता है। घर-घर में औरत-मरद पढ़ते हैं। महतमा जी, जमाहिरलाल, रजीन्नरबाबू और दूसरे बड़े-बड़े लीडर लोग साल में एक बार जरूर आते हैं। चौधरी जी हमको बार-बार खबर भेज देते हैं।…बालदेव अपने गाँव में चले आओ। हम कहे कि चौधरी जी, आप हमारा गुरु हैं, आपका वचन हम नहीं काट सकते। लेकिन अपना गाँव तो उन्नति कर गया है। जो गाँव उन्नति नहीं किया है, हम वहीं सेवा करेंगे।…हम मेरीगंज को चन्ननपटी की तरह बनाना चाहते हैं। हम अपने से गाँव में झाड़ देंगे, मैला साफ करेंगे। हम लोगों का सब किया हुआ है। महतमा जी खुद मैला साफ करते थे। जहाँ सफाई रहती है वहाँ का आदमी भी साफ रहता है। मन साफ रहता है। साहेब लोगों को देखिए, उनके देस का गाछ-बिरिछ भी साफ रहता है। कोठी के बगीचे में कलकटर के गाछ को देखिए, एकदम बगुला की तरह उजला है। लेकिन, आप लोग हमको नहीं चाहते हैं तो हम चले जाएँगे। आप लोगों को बिसबास नहीं हो, जो पढ़ना जानते हैं, इस चिट्ठी को पढ़ लीजिए कि इसमें क्या लिखा हुआ है। टैप में छापी किया हुआ है। दो साल पहले की चिट्ठी है।”
कौन पढ़ेगा ! बड़े मौके से सभी इसकुलिया अंगरेजिया लोग भी घर में ही हैं। पढ़ो जी कोई। खेलावन ने अपने लड़के सकलदीप से कहा, “जाओ पढ़ दो।” लेकिन वह बड़ा शरमीला है। “हरगौरी, पढ़ो जी!”
पासवानटोले के रामचन्दर का भतीजा मेवालाल उठकर खड़ा हुआ, बालदेव के हाथ से चिट्ठी लेकर पढ़ने लगा।
“जरा जोर से पढ़ो। गला साफ कर लो। थर-थर क्यों काँपते हो ?”
“सेवा में, बालदेवसिंह जी। महाशय ! आपको विदित हो कि कस्तुरबा स्मारक निधि की एक अस्थाई कमेटी गठन करने के लिए कांग्रेसजनों की एक विशेष बैठक ता. 8-12-45 को पूर्णिया धर्मशाला में होगी। इस बैठक में बिहार के भूतपूर्व प्रीमियर भी उपस्थित रहेंगे। इस महत्त्वपूर्ण बैठक में आपकी उपस्थिति आवश्यक है। आपका, विश्वनाथ चौधरी।”
‘अरथ भी समझा दो मेवालाल !…अरे नहीं, अरथ क्या समझाएगा ! टैप में छापी किए हुए खत का अब अरथ समझाएगा ?”
“चौधरी जी भी बालदेव जी से राय लिए बिना कुछ नहीं करते हैं। यह अपने गाँव का भाग है कि बालदेव जी जैसा हीरा आदमी यहाँ आकर रहते हैं। अपना गाँव भी अब सुधर जाएगा जरूर…। सुनो, सिंघ जी क्या कहते हैं।”
“बालदेव ! तुम यहाँ से चले जाओगे तो यह मेरीगंज गाँव का दुरभाग होगा, सरम की बात होगी। गाँव में तो लड़ाई-झगड़े लगे ही रहते हैं। दो हंडी एक जगह रहे तो ढनमन होना जरूरी है। तुम लोगों का काम है, गाँव में मेल-मिलाप बढ़ाना, गाँव की उन्नति करना। इसमें जो बाधा डालता है, वह अधर्मी है। तुम लोग देश के सेवक हो। खल और कुटिल लोगों को सुमारग पर चलाना तुम्हीं लोगों का काम है। गोसाईं जी ने रमैन में पहले खल और कुटिल की ही वन्दना की है। तुम गाँव से मत जाओ। तहसीलदार और हम तो छोटे-बड़े भाई हैं। बचपन से साथ खेले-कूदे, लड़े-झगड़े और फिर मिल गए। आओ जी तहसीलदार भाई, लोग तो हम लोगों के खानदान को बदनाम करते ही हैं कि कायस्थ और राजपूत ने मिलकर महारानी चम्पावती के इस्टेट को ही पार कर दिया। अब हम लोग एक बार फिर मिल जाएँ।” सिंघ जी ने अपना लम्बा-चौड़ा वक्तव्य समाप्त करते हुए पंचायत में बैठे लोगों की ओर देखा।
पंचायत में जोर का ठहाका पड़ा। लोग हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए।…एकदम ‘बम भोलानाथ’ हैं सिंघ जी ! मन में कोई सात-पाँच नहीं रखते। सादा दिल के आदमी हैं।
सिंघ जी ने तहसीलदार को हाथ पकड़कर उठा लिया। दोनों गले मिलने लगे।
“बोलिए एक बार प्रेम से…गन्ही महतमा की जै!”
“जै ! जै!”
अब भंडारा जमेगा। दो दिन से तो ऐसा मालूम होता था कि लोगों के पत्तल में परोसी हुई पूड़ी-जिलेबी अब गई तब गई।…उस दिन कीर्तन और नाच करेंगे।…अगमू चौकीदार क्या कहता था, महतमा जी का झंडा पत्तखा नहीं उड़ाना होगा, वह मार खाएगा अब। उसको कहो, अपने नाना दारोगा साहेब से पूछे कि राज किसका है। अनसन करने से लाट, हाकिम, कलट्टर सब डर जाता है।
सारी पंचायत में दो ही व्यक्ति ऐसे हैं जिनके ऊपर मेल-मिलाप की खुशी का उलटा असर हुआ है। खेलावनसिंह यादव को सिंघ ने जिस चालाकी से एक किनारे किया है, इसे कोई नहीं समझ पाए, लेकिन खेलावन ने सब समझ लिया। खेलावन की चर्चा भी नहीं की सिंघ ने। और इस तहसीलदार को तो देखो, तुरत गिरगिट की तरह रंग बदल लिया। लड़ाई-झगड़ा यादवटोली से था और गले मिले तहसीलदार जी। खेलावन को सठबरसा (साठ वर्ष तक समझदारी का न आना) नहीं समझना। सब चालाकी समझते हैं। दुनिया की ज्ञान-गुदड़ी बघारता है बालदेव, मगर इतना भी समझ में नहीं आया कि सिंघ तहसीलदार से क्यों मिल रहा है। मेल-मिलाप तो यादवटोली के मुखिया से होना चाहिए। सुराजी होने से क्या हुआ, जात सुभाव नहीं छूटते। इतना मान-आदर से अपने यहाँ रखते हैं, खिलाते-पिलाते हैं और समय पड़ने पर सब धान बाईस पसेरी !
जोतखी जी खेलावन के चेहरे को देखकर ही सबकुछ समझ लेते हैं। मोटी चमड़ी पर असर हुआ है ! “खेलावनबाबू, सकलदीप बबुआ की जन्मपत्री काशी जी से बनकर आ गई क्या ! जरा एक बार हम भी देखते। आज तक हम जो गणना किए हैं उसको काशी के पंडितों ने भी कभी नहीं काटा।”
“कल सुबह में आइएगा जोतखी काका ! आप तो बहुत दिन से आए भी नहीं हैं। सकलदीप तो हायस्कूल में संसकिरत भी पढ़ता है। जरा आकर देखिएगा तो संसकिरत में उसका जेहन कैसा है ?”
ठीक दोपहर से पंचायत की बैठक शुरू हुई, शाम को खत्म हुई। बहुत दिन बाद गाँव-भर के लोग पंचायत में बैठे थे। बहुत दिन बाद फिर मेल-मिलाप हुआ।
कल ही भंडारा है। सुबह से ही इसपिताल के सामने की जमीन को साफ करके जाफरा से घेरना होगा, शामियाना टाँगना होगा, सजाना होगा। हलवाई लोग सुबह से ही आ जाएँगे। आजकल दिन छोटा होता है। बिजै होते-होते शाम हो जाएगी। डाक्टर साहब को लाने के लिए चार बैलगाड़ियाँ जाएँगी टीशन-भैंसचरमनबाबू ने बालदेव से कहा है। कल भोर को ही इसपिताल में सब-कोई जमा होंगे; काम का बँटवारा होगा। इतने बड़े भोज को सँभालना खेल नहीं।
सभी बारी-बारी से महन्थ साहब को साहेब-बन्दगी करके विदा हुए। बालदेव जी को महन्थ साहब ने रोक लिया है। “बालदेवबाबू, तुम जरा ठहर जाना। कल फिर समय नहीं मिलेगा। अभी एक बार हिसाब-किताब कर लेना अच्छा होगा। थोड़ी देर बैठ के बीजक बाँचो, हम डोलडाल (नित-क्रिया) से हो आएँ। कहाँ हो रामदास ! गंगासागर में जल भर दो !”
बालदेव धुनी के पास बैठकर बीजक के पन्ने उलटता है-
…बीजक बतावे बित्त को
जो बित्त गुप्ते होय,
शब्द बतावे जीव को
बूझे बिरला कोय॥
लछमी लालटेन जलाकर सामने रख गई। अक्षर स्पष्ट हो गए-‘सन्तो, सारे जग बौराने।’…लछमी के शरीर से एक खास तरह की सुगन्ध निकलती है। पंचायत में लछमी बालदेव के पास ही बैठी थी। बालदेव को रामनगर मेला के दुर्गा मन्दिर की तरह गन्ध लगती है-मनोहर सुगन्ध ! पवित्र गन्ध !…औरतों की देह से तो हल्दी, लहसुन, प्याज और घाम की गन्ध निकलती है !
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तीसरी कसम फणीश्वर नाथ रेणु का उपन्यास