चैप्टर 5 दिलेर मुज़रिम इब्ने सफ़ी का उपन्यास जासूसी दुनिया सीरीज़

Chapter 5 Diler Mujrim Novel By Ibne Safi

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भयानक बूढ़ा

राजरूप नगर में नवाब वज़ाहत मिर्ज़ा की आलीशान कोठी बस्ती से लगभग डेढ़ मील की दूरी पर खड़ी थी। नवाब साहब बहुत शौकीन आदमी थे। इसलिए उन्होंने इस कस्बे को नन्हा मुन्ना सा खूबसूरत शहर बना दिया था। बस सिर्फ इलेक्ट्रिक लाइट की कसर रह गई थी। लेकिन उन्होंने अपनी कोठी में एक ताकतवर डायनेमो लगाकर इस कमी को पूरा कर दिया था। अलबत्ता कस्बे वाली बिजली की रोशनी से महरूम थे। कोठी के चारों तरफ चार फर्लांग के इलाके में ख़ुशनुमा बाद लगे हुए थे। नवाब साहब की कोठी से डेढ़ फर्लांग की दूरी पर एक पुरानी इमारत थी, जिसमें एक छोटा सा मीनार था। किसी जमाने में इस मीनार का ऊपरी हिस्सा खुला रहा होगा और नवाब साहब के पूर्वज उस पर बैठकर मौज मस्ती करते होंगे। लेकिन अब यह बंद कर दिया गया था। सिर्फ दो खिड़कियाँ खुली रह गई थी। एक खिड़की में एक बड़ी सी दूरबीन भी लगी हुई थी, जिसका व्यास लगभग एक फुट रहा होगा। इस इमारत में मशहूर अंतरिक्ष वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर इमरान रहता था। नवाब साहब ने यह पुरानी इमारत उसे किराये पर दे रखी थी। उसने इस मीनार की ऊपरी मंजिल को चारों तरफ से बंद कराकर उस पर सितारों की रफ्तार का जायज़ा लेने के लिए अपनी बड़ी दूरबीन फिट करा ली थी। कस्बे वालों के लिए वह एक संदिग्ध आदमी था। बहुतों का ख्याल था कि वह पागल है। उसे आज तक किसी ने इस चार फर्लांग के इलाके से बाहर जाते न देखा था।

इंस्पेक्टर फ़रीदी कोठी के करीब पहुँचकर सोचने लगा कि किस तरह अंदर जाये। अचानक एक नौकर बरामदे में आया। फ़रीदी ने आगे बढ़कर उससे पूछा, “अब नवाब साहब की कैसी तबीयत है?”

“अभी वही हाल है।” नौकर उसे घूरता हुआ बोला, “आप कहाँ से तशरीफ़ लाए हैं?”

“मैं डेली न्यूज का रिपोर्टर हूँ और कुंवर सलीम से मिलना चाहता हूँ।”

“यहाँ अंदर हॉल में आ जाइए। मैं उन्हें खबर करता हूँ।”

फ़रीदी बरामदे से गुजरकर हॉल में दाखिल हुआ। हॉल की दीवारों पर चारों तरफ नवाब साहब के पूर्वजों की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी हुई थी। फ़रीदी उनको देखने लगा। तभी वह चौंक पड़ा। उसकी नज़रें एक पुरानी तस्वीर पर जा टिकी थी। उसे ऐसा मालूम हुआ, जैसे घनी मूंछ और दाढ़ी के पीछे कोई जाना पहचाना चेहरा है।

“अरे वह मारा बेटा फ़रीदी!” वह आप ही आप बड़बड़ाया।

वह कदमों की आहट से चौंक पड़ा। सामने के दरवाजे में एक लंबा तगड़ा नौजवान कीमती सूट पहने खड़ा था। पहले तो वह फ़रीदी को देखकर झिझका, फिर मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ा।

“साहब आप रिपोर्टर से तो मैं तंग आ गया हूँ।” वह हँसकर बोला, “कहिए आप क्या पूछना चाहते हैं?”

“शायद मैं कुंवर साहब से बात कर रहा हूँ।” फ़रीदी ने अदब से कहा।

“जी हाँ मुझे कुंवर सलीम कहते हैं।” उसने बेदिली से कहा, “जो कुछ पूछना हो, जल्द पूछिए। मैं बहुत बिजी आदमी हूँ कुंवर “

“नवाब साहब का अब क्या हाल है?”

“अभी तक होश नहीं आया और कुछ?”

“कब से बेहोश हैं?”

“पंद्रह दिन से…सभी डॉक्टर की राय है कि ऑपरेशन किया जाए। लेकिन कर्नल तिवारी इस के हक में नहीं है। अच्छा, अब मुझे इजाजत दीजिए।” वह फिर उस दरवाजे की तरफ घूम गया, जिस तरफ से आया था।

फ़रीदी के पास वापस जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था।

जब पुरानी कोठी के पास से गुज़र रहा था, तो एकदम से उसकी हैट उछलकर उसकी गोद में आ गई। हैट में बड़ा सा छेद हो गया था। उसने धीमे से कहा, “बाल बाल बचे फ़रीदी साहब…अब कभी मोटर की छत गिराकर सफर न करना। अभी तो इस बेआवाज राइफल ने तुम्हारी जान ही ले ली थी।”

थोड़ी दूर चल कर उसने कार रोक ली और पुरानी कोठी की तरफ पैदल वापस लौटा। बाढ़ की आड़ से उसने देखा की पुरानी कोठी के बाग में एक अजीबोगरीब बूढ़ा एक छोटी नाल वाली राइफल लिए गिलहरियों के पीछे दौड़ रहा था।

फ़रीदी बाड़ लांघकर अंदर पहुँच गया। बूढ़ा चौंककर उसे हैरत से देखने लगा। बूढ़े को देखकर ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे कोई मुर्दा कब्र से उठ कर आ गया हो या फिर जैसे वह कोई भूत हो। उसका रंग हल्दी की तरह पीला था। बाल क्या, भवें तक सफेद हो गई थी। चेहरा लंबा था और गालों की हड्डियाँ उभरी हुई थी। दाढ़ी मूंछ साफ…होंठ बहुत पतले थे। लेकिन आँखों में बला की चमक और जिस्म में जबरदस्त फुर्ती थी। वह उछलकर फ़रीदी के करीब आ गया।

“मुझसे मिलिए मैं प्रोफ़ेसर इमरान हूँ। अंतरिक्ष वैज्ञानिक…और आप?”

“मुझे आपके नाम से दिलचस्पी नहीं।” फ़रीदी उसे घूरकर बोला, “मैं तो उस खौफ़नाक हथियार में दिलचस्पी ले रहा हूँ, जो आपके हाथ में है।”

“हथियार!” बूढ़े ने खौफ़नाक कहकहा लगाया, “यह तो मेरी दूरबीन है।”

“वह दूरबीन ही सही, लेकिन अभी उसने मुझे दूसरी दुनिया में पहुँचा दिया होता।“

फ़रीदी ने अपनी हैट का सुराख उसे दिखाया। बूढ़े की आँखों में खौफ़ झांकने लगा। उसने एक बार गौर से राइफल की तरफ देखा और फिर हँसकर कहने लगा :

“शायद आप ठीक कर रहे हैं। यह वाकई राइफल है। मैं गिलहरियों का शिकार कर रहा था। माफ़ी चाहता हूँ और अपनी दोस्ती का हाथ आपकी तरह बढ़ाता हूँ।” बूढ़े ने फ़रीदी का हाथ अपने हाथ में लेकर इस ज़ोर से दबाया कि उसके हाथ की हड्डियाँ तक दुखने लगी। उस बूढ़े में इतनी ताकत देखकर फ़रीदी बौखला गया।

“आइए अंदर चलिए। आप एक अच्छे दोस्त साबित हो सकते हैं।” वह फ़रीदी का हाथ पकड़े हुए पुरानी कोठी में घुस गया।

“आजकल गिलहरियों और दूसरे छोटे जानवरों में मेरी ख़ास दिलचस्पी है। आइए मैं आपको उनके नमूने दिखाऊं।” वह फ़रीदी को एक अंधेरे कमरे में ले जाता हुआ बोला। कमरे में अजीब तरह की बदबू फैली हुई थी। पूरे दिखाई मोमबत्तियाँ जलाई। कमरे में चारों तरफ मुर्दा जानवरों के ढांचे रखे हुए थे। बहुत से छोटे जानवर कीलों की मदद से लकड़ी के तख्तों पर जकड़ दिए गए थे। इनमें से कई खरगोश और कई गिलहरियाँ तो अभी तक ज़िन्दा थी। जिनकी तड़प बहुत ही खौफ़नाक मंज़र पेश कर रही थी। कभी-कभी कोई खरगोश दर्द से चीख उठता था। फ़रीदी को ऊब सी होने लगी और वह घबराकर कमरे से निकल आया।

“अब आइए मैं आपको अपनी दूरबीन दिखाऊं।” यह कहकर वह मीनार की सीढ़ियां चढ़ने लगा। मीनार लगभग पच्चीस फुट चौड़ा रहा होगा। आखिर में वह कमरे में दाखिल हुआ, जो ऊपरी मंज़िल पर था। वहीं खिड़की में दूरबीन लगी थी।

“यहाँ आइए…!” बहुत दूरबीन के शीशे पर झुककर बोला, “मैं इस वक्त नवाब साहब के कमरे का मंज़र इतना साफ देख रहा हूँ, जैसे वे यहाँ से सिर्फ पांच फुट की दूरी पर हों। नवाब साहब लेटे हैं। उनके सिरहाने उनकी भांजी बैठी है। यह लीजिए…देखिए।”

फ़रीदी ने अपनी आँख शीशे से लगा दी। सामने वाली कोठी की बड़ी सी खिड़की खुली हुई थी और कमरा बिल्कुल साफ नज़र आ रहा था। कोई आदमी सिर से पैर तक मखमल का लिहाफ़ ओढ़े लेटा था और एक खूबसूरत लड़की उसके सिरहाने बैठी थी।

“मैं सामने वाले कमरे के बहुत से राज जानता हूँ, लेकिन तुम्हें क्यों बताऊं।” बूढ़ा फ़रीदी के कंधे पर हाथ रखते हैं बोला, “बस करो…अब आओ…चलें!”

“मुझे किसी के राज़ जाने की ज़रूरत ही क्या है?” फ़रीदी अपने कंधे उचकाता हुआ बोला।

बूढ़ा कहकहा लगाकर बोला, “क्या मुझे बेवकूफ समझते हो? मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि यह जुमला तुमने सिर्फ इसलिए कहा है कि मैं सारे राज़ उगल दूं। तुम खतरनाक आदमी मालूम होते हो। अच्छा चलो, मैं तुम्हें बाहर जाने का रास्ता दिखा दूं।”
दोनों नीचे उतर आए। अभी वे हाल ही में थे कि दरवाजे पर कुंवर सलीम की सूरत दिखाई दी।

“आप यहाँ कैसे?” उसने फ़रीदी से पूछा, “क्या प्रोफेसर को जानते हैं?”

“जी नहीं! लेकिन आज उन्हें इस तरह जान गया हूँ कि ज़िन्दगी भर न भुला सकूंगा।”

“क्या मतलब?”

“आप गिलहरियों का शिकार करते-करते आदमी का शिकार करने लगे थे।” फ़रीदी प्रोफेसर के हाथ में दबी राइफल की तरफ इशारा करके बोला, “मेरी हैट देखिए।”

“ओह समझा!” और सलीम तेज आवाज में बोला, “प्रोफेसर तुम हमारी कोठी खाली कर दो, वरना मैं तुम्हें पागलखाने भिजवा दूंगा…समझे!”
बुरे ने डरते हुए कुंवर सलीम की तरफ देखा और भागकर मीनार के ज़ीनों पर चढ़ता चला गया।

“माफ़ कीजिएगा। यह बूढ़ा पागल है। बेकार ही में हमारी परेशानी बढ़ जायेंगी। अच्छा ख़ुदा हाफिज़!”

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Ibne Safi Novels In Hindi :

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