चैप्टर 5 चट्टानों में आग ~ इब्ने सफ़ी का हिंदी जासूसी उपन्यास

Chapter 5 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 5 Chattanon Mein Aag Ibne Safi Novel In Hindi

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अनवर और आरिफ़ दोनों को इस बात का बड़ा अफ़सोस था कि कर्नल ने उन्हें स्टेशन जाने से रोक दिया। वे इससे पहले कर्नल डिक्सन या उसकी लड़की से नहीं मिले थे। सोफिया भी स्टेशन जाना चाहती थी। उसे भी बड़ी कोफ़्त हुई।

“आप नहीं गए कर्नल साहब के साथ?” आरिफ़ ने इमरान से पूछा।

“नहीं!” इमरान ने लापरवाही से कहा और चुइंगगम चूसने लगा।

“मैंने सुना है कि कर्नल साहब आपसे बहुत ख़ुश हैं।”

“हाँ…आँ, मैं उन्हें रात भर लतीफ़े सुनाता रहा।”

“लेकिन हम लोग क्यों हटा दिए गए थे?”

“लतीफ़े बच्चों के सुनने लायक नहीं थे।”

“क्या कहा? बच्चे!” आरिफ़ झल्ला गया।

“हाँ बच्चे!” इमरान मुस्कुराकर बोला, “कर्नल साहब मुझे जवानी के इश्क़ के किस्से सुना रहे थे।”

“क्या बकवास है?”

“हाँ बकवास तो है।” इमरान ने संजीदगी से कहा, “उनकी जवानी के ज़माने में फौजियों पर आशिक़ होने का रिवाज़ नहीं था। इस वक़्त की लड़कियाँ सिर्फ़ आशिकों से इश्क़ करती थीं।”

“समझ नहीं आता कि आप किस किस्म के आदमी हैं।”

“हांय! अब आप ये समझते हैं कि कसूर मेरा है।” इमरान ने हैरत से कहा, “कर्नल साहब ख़ुद ही सुना रहे थे।”

आरिफ़ हँसने लगा। फिर उसने थोड़ी देर बाद पूछा, “वो बंदर कैसा था?”

“अच्छा था।”

“ख़ुदा समझे!” आरिफ़ ने भन्ना कर कहा।

फिर इमरान टहलता हुआ उस कमरे में आया, जहाँ अनवर और सोफ़िया शतरंज खेल रहे थे। वह चुपचाप खड़ा होकर देखने लगा। अचानक अनवर ने सोफ़िया को शह दी। उसने बादशाह को उठाकर दूसरे खाने में रखा। दूसरी तरफ़ से अनवर ने हाथी उठा कर फिर शह दी। सोफ़िया बचने ही जा रही थी कि इमरान बोल पड़ा, “ऊं…हूं हूं? यहाँ रखिये।”

“क्या!” सोफ़िया झल्ला कर बोली, “आपको शतरंज आती है या यूं ही…बादशाह एक घर से ज्यादा चल सकता है?”

“तब वो बादशाह हुआ या केंचुआ। बादशाह तो मर्ज़ी का मालिक होता है। यह खेल ही ग़लत है, घोड़े की छलांग ढाई घर थी, ऊंट तिरछा सपाटा भरता है, चाहे जितनी दूर चला जाये। रुख एक सिरे से दूसरे सिरे तक सीधा दौड़ता है और फरजी जिधर चाहे चले, उसे कोई रोक-टोक नहीं। गोया बादशाह घोड़े से भी बदतर है…क्यों न उसे गधा कहा जाये, जो इस तरह एक खाने में रेंगता फिरता है।”

“यार! तुम वाकई बुकरात ही।” अनवर हँसकर बोला।

“चलो…चाल चलो।” सोफ़िया ने झल्ला कर अनवर से कहा।

सोफ़िया सोच-समझ कर नहीं खेलती थी, इसलिए उसे जल्दी ही मात हो गई।

अनवर उसे चिढ़ाने के लिए हँसने लगा। सोफ़िया उसकी हरकत पर ध्यान दिए बगैर इमरान से बोली, “आपने डैडी को तन्हा क्यों जाने दिया?”

“मैं निहत्था होकर नहीं जाना चाहता।” इमरान ने कहा।

“क्या मतलब?”

“मैं उनसे कह रहा था कि मैं अपनी हवाई बंदूक साथ ले चलूंगा, लेकिन वो इस पर तैयार नहीं हुये।”

“क्या आप वाकई बंदूक से मक्खियाँ मारते हैं?” अनवर ने चंचल मुस्कुराहट के साथ पूछा।

“जनाब!” इमरान सीने पर हाथ रख कर थोड़ा सा झुका, फिर सीधा खड़ा होकर बोला, “पिछली जंग में मुझे विक्टोरिया क्रॉस मिलते-मिलते रह गया। मैं हस्पतालों में मक्खियाँ मारने का काम करता था। इत्तेफ़ाक़ से एक दिन डॉक्टर की नाक पर बैठी हुई मक्खी का निशाना लेते वक़्त ज़रा सी चूक हो गई। कसूर मेरा नहीं, मक्खी का था कि वह नाक से उड़कर आँख पर जा बैठी। बहरहाल, इस हादसे ने मेरी सारी पिछली खिदामत पर सोडा वॉटर फेर दिया।”

“सोडा वाटर!” अनवर ने कहकहा लगाया। सोफ़िया भी हँसने लगी।

“जी हाँ! उस जमाने में खालिस पानी नहीं मिलता था। वरना, मैं यह कहता कि मेरे पिछले कारनामों पर पानी फेर दिया गया।”

“खूब! आप बहुत दिलचस्प आदमी है।” सोफ़िया बोली।

“मेरा दावा है कि मेरा निशाना बहुत साफ़ है।”

“तो फिर दिखाइए न!” अनवर ने कहा।

“अभी लीजिये।”

इमरान अपने कमरे से एयरगन निकाल लाया। फिर उसमें छर्रा लगाकर बोला, “जिस मक्खी को कहिये।”

सामने वाली दीवार पर मक्खियाँ नज़र आ रही थीं। अनवर ने एक की तरफ़ इशारा कर दिया।

“जितने फासले पर कहिये।” इमरान बोला।

“आखिरी सिरे पर चले जाइये।”

“बहुत खूब!” इमरान आगे बढ़ गया। फ़ासला अठारह फूट ज़रूर रहा होगा।

इमरान ने निशाना लेकर ट्रिगर दबा दिया। मक्खी दीवार से चिपककर रह गई। सोफ़िया देखने के लिए दौड़ी। फिर उसने अनवर की तरफ़ मुड़कर आश्चर्य से कहा, “सचमुच कमाल है। डैडी का निशाना भी बहुत अच्छा है, लेकिन शायद वे भी…”

“ओह! कौन सी बड़ी बात है।” अनवर शेखी में आ गया, “मैं ख़ुद लगा सकता हूँ।”

उसने इमरान के हाथ से बंदूक ले ली। थोड़ी देर बाद सोफ़िया भी इस काम में शामिल हो गई। दीवारों का प्लास्टर बर्बाद हो गया। उन पर मानो मक्खियाँ मारने का भूत सवार हो गया। फ़िर आरिफ़ भी आकर शामिल हो गया। लेकिन कामयाबी किसी को भी न हुई। अचानक सोफ़िया बड़बड़ाई, “लाहौल विला कूवत…क्या हिमाकत है…दीवारें बर्बाद हो गईं।”

फिर वे झेंपी हुई हँसी हँसने लगे। लेकिन इमरान की बेवकूफी भरी संजीदगी में तनिक भर भी फ़र्क नहीं आया।

“वाकई दीवारें बर्बाद हो गईं।” आरिफ़ बोला, “कर्नल साहब हमें ज़िंदा दफ़न कर देंगे।”

“सब आपकी बदौलत।” अनवर ने इमरान की तरफ इशारा करके कहा।

“मेरी बदौलत क्यों? मैंने तो सिर्फ़ एक ही मक्खी पर निशाना लगाया था।”

अनवर हँसने लगा। फिर उसने इमरान के कंधे पर हाथ रखकर कहा, “यार! सच बताना…क्या तुम वाकई बेवकूफ हो।”

इमरान ने गंभीरता से सिर हिला दिया।

“लेकिन कल रात तुमने ड्रग्स की तस्करी के बारे में क्या बात कही थी?”

“मुझे याद नहीं!” इमरान ने हैरत से कहा।

“फिर कर्नल साहब ने हमें हटा क्यों दिया था?”

“इनसे पूछ लीजियेगा।” इमरान ने आरिफ़ की तरफ़ इशारा किया और आरिफ़ हँसने लगा।

“क्या बात थी?” अनवर ने आरिफ़ से पूछा।

“अरे कुछ नहीं….बकवास!” आरिफ़ हँसता हुआ बोला।

“आखिर बात क्या थी?”

“फिर बताऊंगा।”

सोफ़िया इमरान को घूरने लगी।

“वो बंदर कैसा था?” अनवर ने इमरान से पूछा।

“अच्चर खासा था…आर्ट का एक बेहतरीन नमूना।”

“घास खा गए थे शायद!” अनवर झल्ला गया।

“मुमकिन है लंच में घास ही मिले।” इमरान ने रोनी सूरत बनाकर कहा, “नाश्ते में तो चने के छिलके खाए थे।”

तीनों बेतहाशा हँसने लगे। लेकिन सोफ़िया गंभीर हो गई। उसने गुस्साई आवाज़ में कहा, “आप डैडी का मज़ाक उड़ाने की कोशिश कर रहे थे। पता नहीं वे क्यों ख़ामोश रह गये।”

“मुमकिन है उन्हें खयाल आ गया हो कि मेरे पास भी हवाई बंदूक मौजूद है।” इमरान ने संजीदगी से कहा, “और हकीकत ये है कि मैं उनका मज़ाक उड़ाने की कोशिश हरगिज़ नहीं कर रहा था। मैं भी विटामिन पर जान छिड़कता हूँ। विटामिनों को खतरे में देख कर मुझे सारी कौम खतरे में नज़र आने लगती है।”

“क्या बात थी?” अनवर ने सोफ़िया से पूछा।

“कुछ नहीं!” सोफ़िया ने बात टालने चाही, लेकिन अनवर पीछे पड़ गया। जब सोफ़िया ने महसूस किया कि जान छुड़ानी मुश्किल है, तो उसने सारी बात दुहरा दी। इस पर कहकहा पड़ा।

“यार! कमाल के आदमी हो।” अनवर हँसता हुआ बोला।

“पहली बार आपके मुँह से सुन रहा हूँ, वरना मेरे डैडी तो मुझे बिल्कुल बुद्धू समझते हैं।”

“तो फिर आपके डैडी ही…”

“अर्र!” इमरान हाथ उठाकर बोला, “ऐसा न कहिए। वे बहुत बड़े आदमी हैं… डायरेक्टर ऑफ इंटेलिजेंस ब्यूरो।”

“क्या!” अनवर हैरत से आँखें फाड़कर बोला, “यानी रहमान साहब!”

“जी हाँ!” इमरान ने लापरवाही से कहा।

“अरे, तो आप वही इमरान हैं, जिन्होंने लदंन में अमरीकी गुंडे मैक्लैरेंस का गिरोह तोड़ा था?”

“पता नहीं आप क्या कह रहे हैं?” इमरान ने आश्चर्य व्यक्त किया।

“नहीं नहीं! आप वहीं हैं।” अनवर के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी। वह सोफ़िया की तरफ मुड़कर बोला, “हम अभी तक एक बड़े खतरनाक आदमी का मज़ाक उड़ा रहे थे।”

सोफ़िया फटी-फटी आँखों से इमरान की तरफ देखने लगी और इमरान ने एक बेवकूफी भरा कहकहा लगा कर कहा, ” आप लोग न जाने क्या हांक रहे हैं।”

“नहीं सूफी!” अनवर बोला, “मैं ठीक कह रहा हूँ। मेरा एक दोस्त साजिद ऑक्सफोर्ड में इनके साथ था। उसने मुझे मैक्लैरेंस का किस्सा सुनाया था। वो मैक्लैरेंस जिसका वहाँ की पुलिस कुछ नहीं बिगाड़ सकी थी। इमरान साहब से टकराने के बाद अपने गिरोह समेत ख़त्म हो गया था।”

“खूब हवाई छोड़ी है किसी ने!” इमरान ने मुस्कुराकर कहा।

” मैक्लैरेंस के सिर के दो टुकड़े हो गए थे।” अनवर बोला।

“अरे तौबा तौबा!” इमरान अपना मुँह पीटने लगा, “अगर मैंने उसे मारा, तो मेरी कब्र में कट्टर घुसे…नहीं बिच्छू…भिगू… हांय नहीं, गलत, क्या कहते हैं उस छोटे जानवर को, जो कब्रों में घुसता है।”

“बिज्जू!” आरिफ़ बोला।

“ख़ुदा जीता रहे…बिज्जू बिज्जू!”

“इमरान साहब, मैं माफ़ी चाहता हूँ।” अनवर ने कहा।

“अरे, आपको किसी ने बहकाया है।”

“नहीं जनाब! मुझे यकीन है।”

सोफ़िया इस दौरान कुछ नहीं बोली। वह बराबर इमरान को घूरे जा रही थी। आखिर उसने थूक निगलकर कहा, “मुझे कुछ-कुछ याद पड़ता है कि एक बार कैप्टन फैयाज़ ने आपका ज़िक्र किया था।”

“किया होगा…मुझे वह आदमी सख्त नापसंद है। उसने पिछले साल मुझसे साढ़े पांच रुपये उधार लिए थे। आज तक वापस नहीं किये।”

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