चैप्टर 49 : ज़िन्दगी गुलज़ार है नॉवेल | Chapter 49 Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi

Chapter 49 Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi

Chapter 49 Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi
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१७ फरवरी ज़ारून

आज मुझे मेरे पोस्टिंग के ऑर्डर्स मिल गए हैं. मुझे यूएनओ में पाकिस्तान के मुस्ताकिल नुमाइंदे की हैसियत से काम करना है – एक बहुत नाज़ुक और अहम जगह पर, एक ऐसी जगह जहाँ पोस्ट होने के लिए फॉरेन ऑफिस के मुख्तलिफ़ ऑफिसर्स के दरमियान खींचा-तानी होती रहती है, लेकिन जीत हमेशा उसी बंदे की होती है, जिसके ताल्लुकात सबसे ज्यादा हो और मेरे लिए इस जगह पोस्टेड होना कोई प्रॉब्लम नहीं था, क्योंकि रिश्तेदारों का कुछ फ़ायदा तो होना ही चाहिए और वैसे भी पाकिस्तान में मेरे इतने लंबे कायम के पीछे रिश्तेदारों की करम-फ़रमाई ही तो है, वरना मुझे इतना लंबा कायम कैसे मिला. इतना लंबा अरसा पाकिस्तान में सिर्फ़ इसलिए रहा, क्योंकि अपनी पर्सनल लाइफ़ को सेटल करना चाहता था. फिर कशफ़ भी जॉब कर रही थी और वो एकदम फॉरेन सर्विस में नहीं आ सकती थी. बहरहाल अब सब कुछ ठीक हो चुका है, इसलिए अपने करियर पर तवज़्ज़ो मर्कूज़ (fix) करना चाहता हूँ.

कशफ़ तैमूर और एबक मेरे साथ जा रहे हैं, इसलिए मुझे कोई परेशानी नहीं है और वैसे भी कहीं भी अपनी पोस्टिंग होने पर इन्हें हमेशा अपने साथ रखूंगा, क्योंकि मैं उनका आदी हो चुका हूँ और आदी ही रहना चाहता हूँ. उनके बगैर रहना अब मेरे लिए मुमकिन नहीं है और वैसे भी माँ-बाप की सबसे ज्यादा ज़रूरत इस उम्र में होती है. एबक तो अभी काफी छोटा है, लेकिन तैमूर को अभी मेरे साथ रहने की ज़रूरत है. उसे मेरी मोहब्बत और तवज़्ज़ो चाहिए और यह सब उसी वक्त हो सकता है, जब वह मेरे साथ रहे. मैं चाहता हूँ, अब कशफ़ जॉब छोड़ दे, लेकिन यह बात उससे कहने की हिम्मत नहीं है. मुझे यह डर है कि कहीं वह यह ना समझे कि मैं दोबारा पहले जैसा हो गया हूँ. मैं उस पर अपनी ज़बरदस्ती कायम करना चाहता हूँ. फिर मुझे यह खौफ़ है कि कहीं वह ख़ुद को मुझ से कमतर महसूस करना ना शुरू कर दे. उसे कहीं ऐसा न लगे कि वह मेरे मुकाबले में कुछ नहीं है. सिर्फ़ बेकार और बे-मशरूफ़ है और मैं उसे घर तक महदूद (बांध देना, कैद कर देना) कर देना चाहता हूँ. हालांकि मेरे दिल में ऐसी कोई बात नहीं है.

मैं सिर्फ़ उस पर से काम का प्रेशर कम करना चाहता हूँ. मैं चाहता हूँ, उसके पास अपने लिए भी कुछ वक्त हो. चंद ऐसे लम्हे, जिन्हें वह अपनी मर्ज़ी से गुज़ार सके. अभी तो वह एक मशीनी ज़िन्दगी गुज़ार रही है. सारा दिन ऑफिस में गुज़ार कर घर आती और फिर वही रूटीन लाइफ़. दोपहर और रात का खाना तैयार करवाना, मेरे और तैमूर और ऐबक के दूसरे काम करना. वह हमारे घर में सबसे पहले जाती है और सबसे आखिर में सोती है. सो मैं चाहता हूँ, उसे थोड़ा आराम मिले.

उसने मुझे अपना इतना आदि बना लिया है कि मैं उसके अलावा किसी दूसरे से अपना काम करवा ही नहीं सकता, लेकिन फिर भी चाहता हूँ कि उस पर काम का इतना बोझ ना रहे. लेकिन मैं उसे किसी बात पर भी मजबूर नहीं करूंगा. आखिरी फैसला उसी का होगा. अब मैं बार-बार उस से मोहब्बत का इज़हार नहीं करता, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मुझे उससे मोहब्बत नहीं रही. उसके और मेरे दरमियान अब जो रिश्ता है, उसे लफ़्ज़ों की ज़रूरत नहीं. वो जानती है कि मैं उससे मोहब्बत करता हूँ, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह मुझे यह इल्म है कि वह मुझसे मोहब्बत करती है.

कशफ़ मेरे लिए बहुत कीमती चीज़ है. मैं हमेशा कोशिश करता हूँ कि उसे मुझसे कोई तकलीफ़ ना पहुँचे. एक बात पर मुझे हमेशा अफ़सोस रहेगा. आज से पाँच-छः पहले मैंने एक दफ़ा उसे थप्पड़ मारा था और वह घर छोड़कर चली गई थी. उस वक्त मैं उसे तलाक देने के बारे में संजीदगी से सोचा था. तब वह प्रेग्नेंट थी और यह बात हम दोनों नहीं जानते थे. मैं कभी-कभी सोचता हूँ, अगर तब मैं उसे तलाक दे देता और बाद में मुझे पता चलता कि वह मेरे बच्चे की माँ बनने वाली थी, तो मैं शायद पागल ही हो जाता, क्योंकि मेरे पास उसकी तरफ़ से वापसी का कोई रास्ता नहीं रहता. फिर ज़िन्दगी मेरे लिए अज़ाब (सज़ा) की तरह होती. अगर मैं दूसरी शादी कर भी लेता, तब भी मेरा दिल कशफ़ और अपने बच्चे के लिए तड़पता रहता. तो यह ख़ुदा ही है, जिसने उस वक्त मेरा घर तबाह होने से बचा लिया, जिसने मुझे कशफ़ जैसी बीवी, तैमूर और ऐबक जैसे से बेटे दिये. मैं तो उसकी इतनी बहुत सारी ने’मतों (वरदान, उपहार) का मुस्तहिक़ (हक़दार) ही नहीं था, फिर भी उसने मुझ जैसे आदमी पर इतनी इनायत (कृपा) की. मैं कभी-कभी उन सब चीजों के लिए उसका शुक्र अदा नहीं कर सकता. यकीनन ख़ुदा सबसे ज्यादा रहीम और करीम है। मेरी उसे सिर्फ़ यही दुआ है कि वह मेरे घर को हर मुसीबत से बचाये रखे और मेरी बाकी ज़िन्दगी भी इसी तरह अमन और सुकून से गुज़ार दे.

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