चैप्टर 42 : ज़िन्दगी गुलज़ार है नॉवेल | Chapter 42 Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi

Chapter 42 Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi

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२१ मार्च कशफ़

चार दिन पहले मैंने लिखा था कि मैंने ज़ारून को हमेशा के लिए छोड़ दिया, लेकिन कल मैं दोबारा उसके घर वापस आ गई हूँ. घर छोड़ते वक्त ज़ारून ने मुझसे कहा था ‘एक दफा तुम इस घर से चली गई, तो दोबारा यहाँ नहीं आ सकोगी’ और कल वह ख़ुद मुझे लेकर आया था. यह शख्स ज़ारून भी अजीब है. जो कहता है, उसके बरक्स करता है.

कल शाम को मैं हॉस्टल के कमरे में थी, जब वह आया था। उसे वहाँ देख कर मुझे हैरत नहीं हुई। मेरा ख़याल था, वह मुझे तलाक़ के कागजात देने आया है. इसलिए अपने कमरे में आने दिया.

“तुम चलाते का कालजात लाये हो?” मैंने उससे उसके अंदर आते ही पूछा था.

“नहीं मैं तुम्हें लेने आया हूँ.” इसका जवाब मेरे लिए गैर मो-तवाक्को था.

“क्यों?”

वह मेरी बात का जवाब देने के बजाय एक चेयर पर बैठ गया और कुछ देर के बाद उसने कहा था, “हमारी शादी को सिर्फ साढ़े चार महीने हुए हैं और हम लोग एक-दूसरे से इतने बेज़ार हो गए हैं कि तलाक़ हासिल करना चाहते हैं. कशफ़ हो सकता है तुम्हारा ख़याल हो कि मैंने शायद तुम्हें तंग करने के लिए तुमसे शादी की है. लेकिन यकीन करो ऐसा नहीं है. मैं अपना घर बर्बाद नहीं करना चाहता. मुझसे फिर एक गलती हो गई है. लेकिन इस बार मैंने जान लिया कि मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता. मेरे साथ चलो.”

वो धीमे लहज़े में बात कर रहा था और उसका हर लफ्ज़ मेरे गुस्से में इज़ाफ़ा कर रहा था. मेरा दिल चाह रहा था मैं उसे जान से मार दूं. वह मुझे ज़लील करने के बाद फिर मुझे अपने घर ले जाना चाहता था.

मैंने उससे कहा, “मैं बद-किरदार औरत हूँ. तुम जैसा शरीफ़ आदमी मेरे साथ कैसे रहेगा? मुझे सिर्फ़ ये बताओ, तुम कैसे बर्दाश्त करोगे? मुझे सिर्फ़ तलाक़ चाहिए. मैं कंप्रोमाइज के सहारे ज़िन्दगी नहीं गुजारना चाहती.”

“बेशक मैं तुम्हें तकलीफ़ पहुँचाना नहीं चाहता. मगर पता नहीं, मुझे क्या हो गया था. लेकिन तुम मुझे एक मौका और दो.”

मैं तुम्हारी इन बातों में नहीं आऊंगी. तुम तलाक़ नहीं दोगे. ना दो, मगर मैं तुम्हारे साथ कभी नहीं जाऊंगी. मुझे तुमसे नफ़रत है. मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती.”

मेरी बात पर उसके चेहरे पर एक साया सा लहराया था.

“तुमको मुझसे मोहब्बत थी ही क़ब? जब तुमने कभी मुझसे मोहब्बत नहीं की, तो नफ़रत का सवाल ही कहाँ पैदा होता है? मोहब्बत तो सिर्फ़ मैं करता था. तुम मुझसे जान छुड़ाने का मौका चाहती थी. मैं यह सब ना भी करता, तब भी तुम किसी ना किसी बहाने मुझे छोड़कर ज़रूर चली जाती.”

मुझे उसकी बात पर बे-इख्तियार रोना आ गया. वह सारा इल्ज़ाम मेरे सर धर रहा था.

“तुमने कभी महसूस किया कि मैं तुमसे नफ़रत करती रही हूँ. तुम्हारी हर ज़रूरत का ख़याल सिर्फ़ इसलिए रखती थी, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती थी. अगर तुमसे जान छुड़ा ना होता, तो पहले भी ऐसे बहुत से मौके आये थे, जब मैं तुम्हें छोड़ कर जा सकती थी. लेकिन जब कोई मर्द अपनी बीवी से यह कहे कि उसे अपने बीवी के किरदार पर शुबहा है, तो फिर बीवी के पास क्या रह जाता है. क्या मैं उस वक्त का इंतज़ार करती, जब तुम धक्के देकर मुझे घर से निकाल देते. तुम्हें अगर मुझसे मोहब्बत होती, तो तुम मुझे रुकने के लिए कहते. मगर तुमने एक बार भी यह नहीं कहा.”

“ठीक है! मैं ग़लत था. मगर अब मैं तुमसे माज़रत कर रहा हूँ. तुम मेरे साथ चलो.”

“सवाल ही पैदा नहीं होता. मैं किसी कीमत पर तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगी.”

“तुम नहीं जाओगी.”

“नहीं”

“ठीक है, फिर मैं भी यहीं रहूंगा. यह कहकर वह बड़े इत्मिनान से बेड पर दराज़ हो गया.”

“तुम यहाँ से जाओ, वरना मैं किसी को बुलवाकर तुम्हें जबरदस्ती यहाँ से निकलवा दूंगी.”

वह मेरी बात पर मुस्कुराने लगा था.

“तुम्हें साथ लिये बगैर यहाँ से नहीं जाऊंगा. मेरे साथ चलो या मुझे भी यही रहने दो और किसी को बुलवाने से पहले यह सोच लेना कि मैं तुम्हारा शौहर हूँ और तुम्हें साथ ले जाने का हक रखता हूँ. मुझे तुम्हारी इज्ज़त का एहसास है, वरना मैं तुम्हें यहाँ से ज़बरदस्ती लेके जा सकता हूँ.”

काफ़ी देर तक मैं खामोशी से उसका चेहरा देखते रही. फिर मैंने अपनी चीजों को पैक करना शुरू कर दिया. जब मैंने बैग की ज़िप बंद थी, तो उसने कुछ कहे बगैर बैग उठा लिया. घर आने के बाद मैंने उस पर चिल्लाना शुरू कर दिया. वह खामोशी से मेरी बातें सुनता रहा, फिर उसने मुझे कुछ खत लाकर दिए.

“कशफ़! अगर तुम्हारा गुस्सा ठंडा हो गया हो, तो तुम इन्हें पढ़ लो. फिर तुम्हें मेरी पोजीशन का एहसास हो जाएगा. तुमसे मंगनी होने के बाद ये खत मुझे मिलना शुरू हुए हैं और अब तक मिल रहे हैं. मैं नहीं जानता कि यह कौन भेजता है? मगर यह गुजरात से आते हैं. इसलिए मेरा अंदाज़ है, तुम्हारे खानदान में से कोई भेज रहा है. शादी के पहले जब भी खत मिलते थे, तो इन में लिखा होता था कि मैं जिससे शादी कर रहा हूँ, वह एक आवारा लड़की है और उसके कॉलेज में बहुत लड़कों के साथ चक्कर थे. तब मैंने उन लेटर्स की परवाह नहीं की, क्योंकि शायद लिखने वाला यह नहीं जानता था कि मैं तुम्हारा क्लास-फ़ैलो रह चुका हूँ. और तुम्हें अच्छी तरह जानता हूँ. लेकिन दो माह पहले जो खत मुझे मिला, उसमें लिखा था कि तुम शादी से पहले अज़हर से मोहब्बत करती थी और उससे शादी करना चाहती थी, मगर उसकी अम्मी को आसमा पसंद आ गई. मैं उसको नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता क्योंकि तुम अज़हर की अक्सर तारीफ़ करती हो. अगर मैं ग़लतफ़हमी का शिकार ना होता, तो क्या करता?”

मेरे खत पढ़ने के दौरान वह बोलता रहा. मेरी समझ में नहीं आया कि वह खत कौन लिखता है. लेकिन ज़ारून से मेरी नाराज़गी कम हो गई. खत पढ़ने के बाद मैंने उसकी तरफ़ उछाल दिया.

“इन लेटर्स की बिना पर तुम मेरे किरदार पर शक़ कर रहे हो, जिन्हें लिखने वाले में इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वह उस पर अपना नाम लिख देता. तुम्हें मुझसे ज्यादा उनके बेनाम खतूत पर यकीन है. मेरी अज़हर या किसी के साथ कोई ज़ज्बाती वाबस्तगी (रिश्ता) नहीं रही, मुझे हैरत इस बात पर है कि तुम मेरी एक इमेजनरी ग़लती बर्दाश्त नहीं कर पाये, जबकि मैंने तुम्हारी सारे हकीकी अफेयर्स को भुलाकर तुम्हें माफ़ किया. तुम थोड़ी सी आ’ला-ज़र्फी (शिष्टता) मुज़ाहिरा (दिखावा) भी नहीं कर पाये.”

वह चंद लम्हे मुझे देखता रहा. फिर उसने बड़ी सख्ती से मुझसे कहा था, “कशफ़!  मैं तुम्हारे मुँह से किसी दूसरे मर्द की तारीफ़ बर्दाश्त नहीं कर सकता. अगर तुम मेरी तारीफ़ नहीं करती, तो किसी दूसरों की भी मत करो.”

मैं उस मैच्योर आदमी की अहमकाना बात पर हैरान रह गई थी. फिर मैंने उससे मज़ीद (आगे) कुछ नहीं कहा.

आज सुबह वह मुझे यूं बात कर रहा था, जैसे हमारी दरमियां कभी कुछ झगड़ा नहीं हुआ था. ऑफिस से वापसी पर वह मुझे डिनर पर ले गया. पर अभी कुछ देर पहले वह स्टडी में गया है, तो मैं डायरी लिख रही हूँ.

पता नहीं मैंने घर छोड़ कर गलती की थी या वापस आकर गलती की है. लेकिन बहरहाल मैं एक बार फिर से उसे आज़माना चाहती हूँ. वह मेरे बारे में पजेसिव है और शायद इसलिए मेरी कोई गलती, कोई कोताही माफ़ नहीं कर सकता. मुझे अब पहले से ज्यादा कॉन्सस रहना पड़ेगा. मैं कोशिश करूंगी कि अब उसे मुझसे कोई शिकायत ना हो.

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