चैप्टर 4 गाइड आर. के. नारायण का उपन्यास | Chapter 4 The Guide R. K. Narayan Novel In Hindi

चैप्टर 4 गाइड आर. के. नारायण का उपन्यास, Chapter 4 The Guide R. K. Narayan Novel In Hindi, Guide R. K. Narayan Ka Upanyas 

Chapter 4 The Guide R. K. Narayan Novel In Hindi

Chapter 4 The Guide R. K. Narayan Novel In Hindi

“वह लड़की की शादी में नहीं गया। वह नहीं चाहता था कि लोग उसे भीड़-भाड़ में देखें या उसके इर्द-गिर्द लोग यह देखने के लिए जमा हों कि जिद्दी लड़की का स्वभाव बदलने वाला व्यक्ति कैसा है। लेकिन अलग रहने से भी कोई लाभ नहीं हुआ। वह जानता था कि अगर वह शादी में न गया तो शादीवाले ज़रूर उसके पास आएँगे। देखते-देखते वेलान दूल्हा-दुल्हिन और रिश्तेदारों की भीड़ के साथ मन्दिर में आ गया। मालूम होता था, खुद लड़की ने लोगों से कहा था कि राजू ने उसका उद्धार किया है । ” वे किसी से बात नहीं करते, लेकिन उनकी दृष्टि मात्र से ही इन्सान का कायाकल्प हो जाता है।”

“धीरे-धीरे राजू के पास आने वाले लोगों की संख्या बढ़ती गई । दिन-भर खेत में काम करने के बाद वेलान आकर घाट की निचली सीढ़ी पर बैठ जाता था। अगर राजू कुछ कहता था तो वेलान चुपचाप सुनता रहता था, वरना वह राजू के मौन को भी कृतज्ञभाव से स्वीकार करता था । अंधेरा होने पर वह चुपके से उठकर चला जाता था । धीरे-धीरे राजू के पास कुछ लोग नियमित रूप से आने लगे। राजू ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया, न ही वह उनसे पूछ सकता था कि वे कौन हैं? घाट सार्वजनिक स्थान था और खुद राजू ने जबर्दस्ती वहाँ कब्ज़ा किया था। लोग आकर घाट की सीढ़ी पर बैठ जाते और लगातार राजू की तरफ देखते रहते। राजू को कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं थी । वह एक ही जगह बैठकर नदी की तरफ, परले किनारे की तरफ देखता रहता और यह सोचने की कोशिश करता कि अब उसे कहाँ जाना चाहिए और आगे क्या करना चाहिए। लोग इस डर से कि कहीं राजू की शान्ति में विघ्न न पड़े, खामोश रहते थे। ऐसे मौकों पर राजू को बड़ी बेचैनी होने लगती थी और वह सोचता था कि उन लोगों से जान छुड़ाने का कोई तरीका निकल सकता है या नहीं। दिन-भर करीब-करीब वह अकेला रहता था, लेकिन अपना काम खत्म करने के बाद शाम को गाँव के लोग वहाँ आ जाते थे।

“एक दिन शाम को लोगों के आने से पहले ही वह मन्दिर के पिछवाड़े लाल फूलोंवाली एक झाड़ी के पीछे छिपकर बैठ गया। घाट की सीढ़ियों पर से लोगों की आवाजें सुनाई दे रही थीं। वे दबे स्वर में बातें कर रहे थे। लोगों ने मन्दिर की परिक्रमा की, फिर वे झाड़ी के नज़दीक से गुज़रे। राजू एक आक्रान्त पशु की तरह दुबककर बैठा था और उसका दिल ज़ोर से धड़क रहा था । वह सांस रोककर वहीं बैठा रहा। उसने सोचा कि लोगों ने अगर उसे वहाँ देख लिया तो वह कहेगा कि वह वहाँ समाधि लगाकर बैठा था, क्योंकि झाड़ी के नीचे उसे मन को एकाग्र करने में सुविधा होती है। खुशकिस्मती से उनकी दृष्टि राजू पर नहीं पड़ी। वे झाड़ी की ओट में खड़े होकर दबे स्वर में बातें करने लगे। एक ने पूछा, “आखिर वे कहाँ गए ?”

“वे महान व्यक्ति हैं । कहीं भी जा सकते हैं। उन्हें हजारों काम हो सकते हैं।”

“ओह, तुम नहीं जानते। उन्होंने संसार त्याग दिया है। चिन्तन के सिवा उन्हें और काम नहीं है। कितने दुःख की बात है कि वे आज यहाँ नहीं हैं।”

‘ “आह, उनके सामने कुछ मिनट बैठने से ही हमारे परिवार में कितना परिवर्तन आ गया, जानते हो? कल रात मेरे चचेरे भाई ने आकर वह प्रॉमिसरी नोट मुझे लौटा दिया। जब तक वह नोट उसके पास था, मुझे लगता था जैसे अपनी गर्दन कटवाने के लिए मैंने खुद उसके हाथों में छुरा पकड़ा दिया था ।”

” अब हमें किसी बात से डरने की ज़रूरत नहीं है। यह हमारा सौभाग्य है कि ये महात्मा हमारे बीच रहने के लिए यहाँ आए हैं।”

“लेकिन आज तो वे गायब हो गए हैं। कहीं हमेशा के लिए तो यहाँ से नहीं चले गए?”

“यह हमारा दुर्भाग्य होगा। उनके कपड़े तो अभी भी मन्दिर की ड्योढ़ी में रखे हैं । “

” उन्हें कोई डर नहीं है । कल मैं जो खाना लाया था, उन्होंने खा लिया ।”

‘ “इस वक्त तुम जो चीजें लाए हो, वहीं रख दो। बाहर घूमकर जब वे यहाँ लौटेंगे, तब उन्हें जरूर भूख लगेगी ।”

“राजू ने मन ही मन उस व्यक्ति की भावना के प्रति कृतज्ञता महसूस की।

” जानते हो, कई बार ये योगी अपनी आत्म-शक्ति के बल पर ही हिमालय की यात्रा कर आते हैं।”

“मेरे ख्याल में वे इस किस्म के योगी नहीं हैं । “

” कौन कह सकता है? इंसान के बाहरी रूप से कई बार हम धोखा खा जाते हैं, ” किसी ने कहा। इसके बाद सब लोग जाकर घाट की सीढ़ी पर बैठ गए। राजू को उनकी बातचीत सुनाई देती रही। थोड़ी देर बाद वे वहाँ से चले गए। उनके पैरों से नदी में छप्-छप् की आवाज़ होने लगी। किसी ने कहा, “चलो यहाँ से चलें। कहीं ज़्यादा अँधेरा न हो जाए। सुना है नदी के इस हिस्से में एक बुड्ढा मगर रहता है। इसी जगह मेरे एक परिचित लड़के को टखने पकड़कर मगर ने पानी में खींच लिया था ।”

“फिर क्या हुआ ?”

” दूसरे दिन उसकी लाश निकली।”

“दूर से राजू को उनकी आवाजें सुनाई दे रही थीं । उसने झाड़ी के कोने से झाँककर देखा, नदी के पार उनकी धुंधली आकृतियाँ अभी भी दिखाई दे रही थीं । उनके ओझल हो जाने तक वह वहीं बैठा रहा । फिर भीतर जाकर उसने लालटेन जलाई । उसे भूख लग रही थी । वे लोग एक पुरानी प्रस्तर मूर्ति के सामने खाने की चीजें केले के पत्ते में लपेटकर रख गए थे। राजू का मन कृतज्ञता से भर उठा, और वह मन ही मन प्रार्थना करने लगा कि कहीं वेलान यह न सोचने लगे कि राजू भूख-प्यास से ऊपर है और केवल हवा खाकर ही ज़िन्दा रह सकता है।

“अगले दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर उसने नदी में कपड़े धोए और चूल्हा जलाकर कॉफी बनाई। इस समय उसके मन में कोई परेशानी नहीं थी। अपने भविष्य के बारे में उसे आज ही फैसला करना था । या तो वह अपने शहर को वापस चला जाए, जहाँ कुछ दिनों तक लोग उसकी तरफ घूर घूरकर देखेंगे और मुँह बिचकाकर उस पर हँसेंगे, या फिर वह कहीं और जाकर रहे। लेकिन वह जा कहाँ सकता था ! उसने कठिन परिश्रम करके अपनी जीविका कमाने की आदत नहीं डाली थी । उसे अब बिना माँगे ही खाना मिल जाता था । अगर वह कहीं और चला जाए तो भला कौन उसे इस तरह खाना पहुँचाया करेगा। दुनिया में सिर्फ एक ही और ऐसी जगह थी जहाँ उसे इसी तरह खाना मिल सकता था, और वह जगह थी जेल । अब वह कहाँ जा सकता था? कहीं नहीं। दूर पहाड़ियों के ढलानों पर चरती हुई गायों ने इस जगह के वातावरण में एक अलौकिक शान्ति भर दी थी। राजू को अहसास हुआ कि अब वेलान द्वारा दी गई भूमिका को स्वीकार करने के अलावा उसके सामने कोई चारा नहीं था ।

“इस फैसले के बाद वह शाम को वेलान और उसके दोस्तों से मिलने की तैयारी करने लगा । वह हमेशा की तरह शान्त और आनन्दमयी मुद्रा में पत्थर की शिला पर बैठ गया । दरअसल उसे परेशानी इस बात की थी कि कहीं उसके मुँह से निकले हर शब्द को लोग चमत्कारपूर्ण न समझने लगें । इसलिए सतर्क होकर उसने मौन धारण करना शुरू कर दिया था। लेकिन अब वह डर दूर हो गया था । उसने तय किया कि वह अपनी भाव-भंगिमा को भरसक चमत्कारपूर्ण बनाने की कोशिश करेगा। अपनी ज़बान से विचारों के मोती बिखेरेगा। चेहरे को तेजस्वी बनाने की कोशिश करेगा और बिना किसी संकोच के लोगों का आध्यात्मिक मार्ग-प्रदर्शन करेगा। इस अभिनय को और भी चमत्कारपूर्ण बनाने के लिए उसने मंच की सज्जा पर पूरा ध्यान दिया । इस उद्देश्य से वह सिल को मन्दिर के भीतरी भाग में ले गया । इससे पृष्ठभूमि अधिक प्रभावशाली बन गई । वेलान और दूसरे लोगों के आने के समय वह भीतर जाकर बैठ गया और बेचैनी से उनका इन्तजार करने लगा । सूर्य अस्त हो रहा था, दीवार पर गुलाबी लालिमा छा गई थी और नारियल के पेड़ों की फुनगियाँ रक्तिम हो उठी थीं। रात को खामोश होने से पहले पक्षियों के स्वर आकाश में गूँज रहे थे । अँधेरा छा गया था। लेकिन वेलान या किसी दूसरे आदमी का वहाँ नामोनिशान नहीं था। उस रात वे लोग नहीं आए। राजू को भूखा रहना पड़ा। यह उसकी मुख्य परेशानी नहीं थी, अभी भी उसके पास कुछ केले बचे थे। मान लो अगर वे लोग कभी न आएं? तब क्या होगा ? राजू घबरा उठा। रात-भर वह चिन्तामग्न रहा। उसके पुराने डर फिर लौट आए। शहर लौटने पर उसे अपना बन्धक रखा मकान छुड़वाना पड़ेगा। अपने घर में रहने की जगह पाने के लिए या तो उसे लड़ाई करनी पड़ेगी या घर छुड़वाने के लिए नकद रुपयों का बन्दोबस्त करना पड़ेगा ।

“वह मन ही मन सोचने लगा कि क्या वह नदी पार करके गाँव में जाकर वेलान को तलाश करे। लेकिन यह कोई शालीन बात नहीं थी। हो सकता है लोग उसे घटिया आदमी समझने लगें और उसकी तरफ से लापरवाह हो जाएं।

“सुबह नदी के उस पार एक लड़का भेड़ें चराता हुआ दिखाई दिया। राजू ने ताली बजाकर आवाज़ दी, “इधर आओ।” वह घाट की सीढ़ियों से उतरकर ज़ोर से चिल्लाया, “ओ लड़के, मैं इस मन्दिर का नया पुजारी हूँ । यहाँ आ, तुझे मैं एक केला दूँगा । इधर देख !” उसने हाथ हिलाकर केला लड़के को दिखाया। वह सोच रहा था, शायद यह जोखिमवाला काम है। उसके पास बस सिर्फ यही केला बच रहा था। हो सकता है लड़के के साथ-साथ

“यह केला भी चला जाए। वेलान को यह पता ही नहीं चलेगा कि राजू को उसकी कितनी सख्त जरूरत है। राजू भूख से तड़पकर मर जाएगा और फिर एक दिन लोगों को धूप में पड़ी हुई उसकी सफेद हड्डियाँ मिलेंगी, जो आसपास के खण्डहरों में खो जाएंगी। लड़के ने राजू की आवाज़ सुन ली और वह नदी पार करके राजू के पास आ गया। वह नाटे कद का लड़का था और वह कानों तक भीग गया था। राजू ने कहा, “लड़के, अपनी पगड़ी उतारकर बदन सुखा ले।”

“मुझे पानी से डर नहीं लगता,” लड़के ने कहा ।

‘ “लेकिन इतना ज़्यादा भीगना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं ।”

“लड़के ने केले के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा, “मैं तैर सकता हूँ। हमेशा तैर सकता हूँ ।”

‘ “लेकिन मैंने तुम्हें यहाँ पहले कभी नहीं देखा,” राजू ने कहा ।

‘ “मैं इस तरफ नहीं आता, आगे जाकर तैरा करता हूँ ।”

“इधर क्यों नहीं आते?”

‘ “यहाँ एक घड़ियाल रहता है।”

” लेकिन मैंने तो यहाँ कोई घड़ियाल नहीं देखा ।”

” किसी दिन देख लोगे । मेरी भेड़ें वहाँ सामने चरती रहती हैं। मैं यहाँ किसी आदमी को देखने के लिए आया था।”

“क्यों?”

“मेरे चाचा ने मुझे भेजा था और कहा था, “उस मन्दिर के सामने भेड़ें हाँककर ले जाना और देखना वहाँ कोई आदमी है या नहीं। इसीलिए मैं आज यहाँ आया था । “

“राजू ने लड़के को केला देते हुए कहा, “अपने चाचा से जाकर कहना कि वह आदमी लौट आया है, और उसने सन्देश दिया है कि तुम्हारे चाचा शाम के वक्त यहाँ ज़रूर आएँ।”

“राजू ने उस लड़के के चाचा के बारे में पूछताछ नहीं की। वह चाहे कोई भी हो, राजू उसका स्वागत करेगा। लड़का छिलका उतारकर सारा केला एक साथ खा गया और फिर छिलका भी चबाने लगा। राजू ने पूछा, “तुम छिलका क्यों खा रहे हो? बीमार पड़ जाओगे ।”

“नहीं, नहीं पड़ूँगा”, लड़के ने जवाब दिया। वह मज़बूत इरादे का लड़का मालूम होता था, जिसे मालूम था कि वह क्या चाहता है ।

“राजू ने अस्पष्ट सलाह दी, “तुम ज़रूर अच्छे लड़के होगे। अब जाओ, और जाकर अपने चाचा से कह देना- “

“लड़का चला गया और जाते-जाते राजू को सावधान कर गया, “मेरे आने तक ज़रा इन भेड़ों का ध्यान रखना।” उसने नदी के दूसरे किनारे की तरफ संकेत किया।

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